चंद्रयान-1 के अभियान से विश्व में भारत का सम्मान बढ़ेगा-आलेख


श्री हरिकोटा से ‘चंद्रयान-1’ का प्रक्षेपण हमारे भारत देश के लिये विश्व के विज्ञान जगत में प्रतिष्ठा के चार चांद लगाने वाली बहुत बड़ी घटना है। यह आश्चर्य की बात है कि भारतीय समाचार चैनल इस घटना को प्रमुखता देने की बजाय देश में हो रही हिंसक घटनाओं को अग्रता प्रदान कर रहे हैं। कुछ खबर को विस्तार देने के लिये फिल्मों के चांद पर लिखे गये गानों को सुनाकर अपने कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस खबर का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव होगा उसका आंकलन करना आवश्यक है जो शायद कल कुछ समाचार पत्र के संपादक अपने संपादकीय लिख कर पूरा करेंगे।
अभी तक भारतीय विज्ञान की प्रगति और तकनीकी के चर्चे बहुत थे पर चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे प्रमाणिक स्वरूप प्रदान करेगा इसमें संदेह नहीं है। सच तो यह है कि परमाणु विस्फोटों से जहां अन्य देशों के लोगों में भारत के लिये नकारात्मक संदेश गया था पर इससे सकारात्मक संदेश जायेगा। वह यह कि भारत विज्ञान की प्रगति केवल अपने सुरक्षा के लिये नहीं बल्कि विश्व कल्याण के लिये भी करना चाहता है।
परमाणु बम भले ही घोषित रूप से कुछ ही देशों के पास है पर अघोषित रूप से कई अन्य के पास होने का भी संदेह है। फिर परमाणु बम अंततः मानव सभ्यता को कुछ नहीं देता जबकि चंद्रयान-1 के निष्कर्षों से पूरा विश्व लाभन्वित होगा। अमेरिका ने चंद्रमा पर अपना विमान पहले भेजकर ही अपनी शक्ति का लोहा मनवाया था। वैसे उसने जापान पर परमाणु बम गिराकर अपनी शक्ति दिखाई थी पर उसे वास्विकता प्रतिष्ठा चंद्रमा पर यान भेजने के बाद ही प्राप्त हुई थी।
हो सकता है कि इस पर आये खर्चे पर कुछ लोग यह कहकर आलोचना करें कि इससे देश की गरीबों में बांटा जा सकता था पर यह उनकी अज्ञानता का प्रमाण माना जायेगा। इस पर आया खर्च एक तो बहुत कम है दूसरे एक सभ्य समाज और राष्ट्र को ‘विज्ञान के क्षेत्र’ मेंे प्रगति करना चाहिये ताकि उसके दायरे में मौजूद प्रतिभाशाली लोगों को अवसर मिले। उनका आत्मविश्वास बना रहे इसलिये ऐसे वैज्ञानिक प्रयोग निरंतर करते रहना चाहिये। इससे समाज और राष्ट्र का अन्यत्र सम्मान बढ़ता है और प्रतिभाशाली लोगों के आत्मविश्वास से उसकी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा संभव है।

हालांकि इस यान में अन्य देशों की भी भूमिका है पर यह भारत के हरिकोटा से छोड़ा गया है और इसका आशय यह है कि इसरो ने अब नासा के समकक्ष अपनी भूमिका निभाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है। भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष में अंतर्राष्ट्रीय जगत पर अपनी भूमिका निभाने के लिये अब बहुत तत्पर लगते हैं। इसका कारण यह भी है कि अमेरिका से उपग्रह भेजना बहुत महंगा है और भारत इसके लिये अब एक सस्ता देश हो गया है। यही कारण है हमारे देश के वैज्ञानिक अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेज रहे हैं बल्कि दूसरों का भी सहयोग कर रहे हैं। संभव है कि किसी दिन रूस,अमेरिका,फ्रांस और ब्रिटेन किसी दिन अपने उपग्रह भारत ये भेजने का विचार करें।
आमतौर से विज्ञान और व्यापार के विषय राजनीति से बाहर रखे जाते हैं पर भारत के पड़ौसी देशों में पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो भारत के साथ हर क्षेत्र में राजनीति जोड़ लेता है। वरना वहां के कई समझदार लोग सलाह देते हैं कि अंतरिक्ष, विज्ञान, स्वास्थ्य और व्यापार के मामले में भारत की मदद ली जाये।

चंद्रयान-1 प्रक्षेपण में अमेरिका भी जुड़ा हुआ है और यह इस बात का प्रमाण है कि विज्ञान और अंतरिक्ष मामले में उसके और भारत के संबंध में कितनी गहराई है। शीतयुद्ध के समय भी भारत के इंसैट उपग्रहों की श्रृंखला का अमेरिका से ही प्रक्षेपण हुआ और भारत के संचार क्रांति मेंं उसकी भूमिका को आज भी पुराने लोग जानते हैं। हमेशा भारत के मित्र रहे सोवियत संघ ने भी विज्ञान में अमेरिका के समान ही प्रगति की पर उसकी भूमिका इस मामले में नगण्य ही रही। यही कारण है कि आज भी हमारे देश में सोवियत संघ को अमेरिका के मुकाबले समर्थन देने वाले कम हैं। आज वही अमेरिका श्रीहरिकोटा में च्रदंयान-1 अभियान से जुड़ा तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं है। भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली के कारण अनेक देश भारत से जुड़ेंगे इसमें संदेह नहीं है और कोई बड़ी बात नहीं है कि आगे चीन भी कोई ऐसी पहल करे। विश्व के अनेक देश अपने यहां संचार व्यवस्था के विकास के लिये भारत से संपर्क बढ़ायेंगे इसमें संदेह नहीं है। सच तो यह है कि भारत के विश्व में सामरिक रूप से महाशक्ति के रूप में स्थापित होने की जो कल्पना की गयी थी उसकी तरफ यह बढ़ाया गया यह एक प्रमाणिक कदम है।

इधर कुछ आर्थिक विद्वान वैश्विक मंदी में भी अमेरिका सहित पश्चिम देशों की हालत देखकर कह रहे हैं कि हो सकता है कि भारत कहीं आर्थिक महाशक्ति न बन जाये। जब तक मंदी नहीं थी तब तक तो कोई कुछ नहीं कह रहा था पर अब जो मंदी चल रही है उससे भारत में संकट है पर लोगों को उसकी तरफ कम अमेरिका पर अधिक ध्यान है। पहले तो दबे स्वर में कहा जाता था कि विश्व के गरीब देशों के शीर्षस्थ लोग अपना धन अमेरिका में निवेश कर उसे शक्ति प्रदान कर रहे हैं पर अब तो यह खुलेआम कहा जा रहा है कि अब अमेरिका में निवेश करने वाले लोग भारत में निवेश कर सकते हैं। कुछ लोग तो इसमें अंतर्राट्रीय स्तर पर देशों के आपसी समीकरण बदलने की संकेत भी ढूंढ रहे हैं। उनका मानना है कि इस मंदी से अमेरिका का छुटकारा आसान नहीं है। अगर वह बचा भी तो उसे कम से कम पांच साल पुराने स्तर पर आने में लग जायेंगे। इधर सोवियत संघ भी चीन के साथ मिलकर भारत को इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाने के लिये पे्ररित कर रहा है।
जहां तक विश्व में महाशक्ति बनने या न बनने का सवाल है तो एक बात तय है कि अमेरिका तो कहता है कि उसकी विदेश नीति में उसके स्वयं के हित ही सर्वोपरि हैं पर इस राह पर तो सभी चलते हैं। विश्व में अमेरिका के विकल्प के रूप में कोई राष्ट्र नहीं है। सोवियत संघ और चीन ने अमेरिका की तरह भारत तरक्की की है पर अपने आंतरिक ढांचों की कार्यप्रणाली की संकीर्णताओं और शंकाओं के कारण वह उसके विकल्प नहीं बन पाये। विश्व के कई देश भारत को उसके विकल्प के रूप में देखते हैं तो इसका कारण यह है कि यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है और धन के मामले में भी कोई गरीब नहीं हैं। यह अलग बात है कि बढ़ती आबादी के कारण यहां का आर्थिक विकास मंद नजर आता है। लोकतांत्रिक सरकारों की आलोचना बहुत आसान है क्योंकि वह अमूर्त रूप में हैं पर अपने सामाजिक ढांचे और सोच के संकीर्ण दायरों को ही इसके लिये वास्तविक जिम्मेदार माना जाता है। बहरहाल चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण से भारत के सभ्य,शिक्षित और जागरुक लोगों को आत्मविश्वास बढ़ेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। भारत के बाहर भी अनेक अप्रवासी हैं और वह इस उपलब्धि पर गर्व कर वहां रह रहे लोगों को बता सकते हैं कि उनका देश एक शक्तिशाली राष्ट्र है। विदेशी भी इस सफलता पर आश्चर्य चकित तो होंगे और अगर इतने विकास के बावजूद जो भी भारत के प्रति संकीर्ण सोच रखते थे वह उसे बदलना चाहेंगे। इस अवसर पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई इस आशा के साथ कि वह आगे इसी तरह अपना कार्य जारी रखकर अन्य उपलब्धियां हासिल करेंगे। यह बात निश्चित है कि विश्व के अनेक छोटे और बड़े राष्ट्र अब विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भारत से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा करेंगे।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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टिप्पणियाँ

  • mahendra mishra  On 24/10/2008 at 2:31 पूर्वाह्न

    इस अवसर पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई.

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