चेहरे कब तक बनावटी सामान से सजाओगे-हिन्दी शायरी


शोला कहो या शबनम
मोहब्बत के जज्बातों के
इजहार में हर लफ्ज़ है कम।
मगर जिदंगी में सफर में
खूबसूरत हमसफर भी
लगते हैं बदसूरत
जब होते है सामने गम।
चैहरे को कब तक बनावटी सामान से
कितना चमकाओगे
उम्र के साथ फीके होते जाओगे
जला सके ताउम्र खूबसूरत कोई चिराग
जिस्म की मोहब्बत में नहीं है इतना दम।
…………………….
रंगबिरंगे कागज पर शायरी लिखने से
रंगीन नहीं हो जाएगी
शब्द को शोर करते हुए लिखने से
संगीन नहीं हो जाएगी।
रोते हुए उसके जज़्बातों से
वह गमगीन नहीं हो जाएगी।
ओ शायर!
जब तेरे अल्फ़ाजों में
तुझे तेरा अक्स दिखने लगे
तू हो जाये बेहोश
तेरे जज़्बात खुद लिखने लगे
तभी समझना कि तेरी शायरी
जमाने में रौशन हो जायेगी।

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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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