नजरें फेरकर वह चले जाते हैं।
देखने में लगते हैं हमसे बेपरवाह
पर हकीकत यह है कि
हमारी आंखों में उनको अपने
पुराने सच दिखते नजर आते है।
हम तो भूल चुके उनके पुराने कारनामे
पर उनकी नजरें फेरने से
फिर वही यादों मे तैर जाते हैं।।
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कुछ हकीकतें बयां करने में
कलम कांप जाती है
इरादा यह नहीं होता कि
किसी कि दुःखती रग सभी को दिखायें
जरूरत पड़ी तो उनका नाम भी छिपायें
पर खौफ जमाने का जिसकी
रिवाजों पर उठ सकती है उंगली
कही लोग भड़क न जायें
कायदों में बंधी आजादी
तब गुलामी से बुरी नज़र आती है।
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