लिखने की बीमारी जो है-व्यंग्य आलेख (likhne ki bimari-hindi hasya vyangya)


अंतर्जाल पर रचनाकर्म कोई आसान काम नहीं है। जो लेखक, कलाकर या कार्टूनिस्ट स्वयं न लिखकर दूसरे को अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिये देते हैं वह पाठकों की अभद्र टिप्पणियों से बच जाते हैं। एक तो दूसरी वेबसाईट या ब्लाग का लेखक उनको बताता नहीं होगा कि तुम्हारी रचना पर इस तरह की टिप्पणी आई है और अगर बतायेगा भी तो सोचेंगे कि कौन हमने सीधे यह अभद्र टिप्पणी का दर्द झेला है।
इसी कारण जो मौलिक स्वतंत्र लेखक तथा कलाकार हैं उनके सामने यह समस्या तो आने वाली है क्योंकि कलाकार, कहानीकार, व्यंग्यकार, निबंधकार तथा कवि तो बहुत भावुक होते हैं। ऐसा हो सकता है कि कोई एक टिप्पणी ही किसी लेखक का अंतर्मन हिला दे कि वह उसे फिर न संभाल सके।
दरअसल यह समस्या केवल लेखन से जुड़े ब्लाग पर ही नहीं बल्कि गीत, संगीत तथा तकनीक विषयों पर भी है। इंटरनेट पर कई ऐसी वेबसाईटें और ब्लाग हैं जो गाली गलौच वाली टिप्पणियों से भरे पड़े हैं। एक बात देखकर आश्चर्य होता है कि उनको वहां से उसके स्वामियों ने हटाया भी नहीं है। संभवतः वह उस सामग्री पर उनका स्वामित्व नहीं है वरना संबंधित कलाकार, लेखक गायक या गायिका उसे देख ले तो वह यकीनन मानसिक यंत्रणा का अनुभव करेगी।
इधर एक वरिष्ठ ब्लाग लेखक की इसी संबंध में एक जगह टिप्पणी पढ़ी। उन्होंने लिखा कि ‘लोग तो यह लिख जाते हैं कि यह क्या कूड़ा लिखा है। हम भी कह देते हैं कि भई हम तो गधे हैं और अपनी जाति वालों के लिये लिख रहे हैं।’
वह भी हमारी तरह लेखक हैं तो उनकी इस सदाशयता ने हमारा आत्म्विश्वास बढ़ाया। इधर कुछ दिनों से हमारे सामने भी ऐसी टिप्पणियां आ रही हैं। तब हम सोच रहे थे कि ‘यार, एक तो मुफ्त में मेहनत कर रहे हैं। अनेक बार राह चलते या काम करते हुए कोई विषय आता है तो कितनी मेहनत से अपने दिमाग में सुरक्षित-कंप्यूटर की भाषा में कहें कि सेव-करते है। अब हमारा दिमाग कंप्यूटर तो है नहीं है कि उसकी तरह सामने प्रदर्शित-डिस्प्ले-कर दे। फिर हाथ की बजाय बड़ी मेहनत से टाईप करते हैं। ऐसे में संभव है कि हास्य रचना चिंतन नुमा और कविता गद्यनुमा हो जाती हो। लिख लिया तो फिर उसे रख नहीं सकते। ब्लाग/पत्रिका पर ठेलना-प्रकाशित करना-ही है। जितने शब्द हमारी कविता में है उतने तो वह टिप्पणीकार लिखने में दो दिन लगा देंगे जो लिखते हैं कि यह मूर्खतापूर्ण रचना है या यह कविता नहीं है या यह व्यंग्य नहीं है। हमने देखा है कि एस.एम.एस लिखने वालों की हालत क्या होती है। अनेक कंप्यूटर प्रेमी एक उंगली से एक एक अक्षर देखकर टाईप करते हैं। हम जितना बड़ा गद्य लिखते हैं उतना तो इस देश में बहुत कम ही लिखने वाले होंगे। मगर पढ़ने वालों को समझ कितनी है यह भी देख चुके हैं। देश, भाषा, समाज और धर्म के नाम पर जो नारे उन्होंने सुने हैं उससे आगे उनका सोच जा ही नहीं सकता। ऐसी टिप्पणियां देखकर उन पर ही हमें दया आती है। फिर तो यही कहते हैं कि हम तो गधे हैं और अपनी जाति वालों के लिये ही लिख रहे हैं। याद, रखिये गधा शब्द सुनकर सभी को बुरा लगता है पर परिश्रम के मामले में किसी अन्य जीव की उससे तुलना नहीं है। हमारे वह वरिष्ठ लेखक भले ही अपने को गधा केवल दिखाने के लिये बोले हों हम तो मन से अपने को गधा मानने लगे हैं। वरना तो कभी कभी इतना गुस्सा आता है कि सारे ब्लाग उड़ा दो। हम मेहनत किसके लिये कर रहे हैं। इन टेलीफोन कंपनियों के लिये जो इंटरनेट कनेक्शनों से पैसा कमाती हैं और खर्च करती हैं फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों तथा क्रिकेट खिलाड़ियों पर विज्ञापन के रूप में। जिस कंपनी का हमारे पास कनेक्शन है वह तो अब क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन भी कर रही है। दरअसल इस क्रिकेट ने देश का सत्यानाश कर दिया है। बीसीसीआई की टीम जब हारती है तब लोग उसके लिये तमाम तरह की कटु भाषा का प्रयोग करते हैं। कोई खिलाड़ी जल्दी आउट हो जाता है तब भी गालियां निकालकर अपना गुस्सा ठंडा करते हैं। यह करते करते इंटरनेट पर भी उनकी यही आदत हो गयी है। यह हम इसलिये कह रहे हैं क्योंकि क्रिकेट मैच वाले दिन हमारा ब्लाग पिट जाते हैं।
हमें पढ़ने वाले भी इन्हीं टेलीफोन कंपनियों को पैसा देते हैं जैसे कि हम। यह तो लिखने की पुरानी बीमारी है जिसका इलाज तो लिखना ही है।
बहरहाल एक बात हम अपने देश के लोगों को बता देना चाहते हैं कि इससे विश्व में अपने देश की छबि खराब होगी। आप जो ब्लाग देख रहे हैं वह किसी अन्य भाषा में पढ़ा जा सकता है क्योंकि अनुवाद टूल इस काम को आसान करते जा रहे हैं। जब हिंदी के ब्लाग ख्याति प्राप्त करेंगे तब यह अभद्र टिप्पणियों पूरे विश्व में हमारी छबि खराब करेंगी यह सोच लेना। हम तो गधे ठहरे सब झेल जायेंगे पर जब आगे चलकर अखबारों में अपनी इसी छबि की चर्चा पढ़ोगे तो तिलमिलाओगे क्योंकि तुम तो इंसान हो न! वैसे गधे की दुलती पड़ जाये तो आदमी हिल जाता है। अगर हम अपने बीस ब्लाग उड़ा दें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा बस यह है कि मित्र लोगा निराश होंगे और हम ऐसे गधे हैं कि धोबी के गधे की तरह उनको छोड़ नहीं सकते। अलबत्ता गुस्सा कुछ भी करा सकता है।
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‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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