पश्यदिभ्र्दूरतोऽप्रायान्सूपायप्रतिपत्तिभिः।
भवन्ति हि फलायव विद्वादभ्श्वन्तिताः क्रिया।।
हिन्दी में भावार्थ-विद्वान तो दूर से विपत्तियों को आता देखकर पहले ही से उसकी प्रतिक्रिया का अनुमान कर लेता है और इसी कारण अपनी क्रिया से उसका सामना करता है।
अशिक्षितनयः सिंहो हन्तीम केवलं बलात्।
तच्च धीरो नरस्तेषां शतानि जतिमांजयेत्।।
हिंदी में भावार्थ-सिंह किसी नीति की शिक्षा लिये बना सीधे अपने दैहिक बल से ही आक्रमण करता है जबकि शिक्षित एवं धीर पुरुष अपनी नीति से सैंकड़ों को मारता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सिंह बुद्धि बल का आश्रय लिये बिना अपने बल पर एक शिकार करता है पर जो मनुष्य ज्ञानी और धीरज वाला है वह एक साथ सैंकड़ों शिकार करता है। महाराज कौटिल्य का यह संदेश आज के संदर्भ में देखें तो पता लगता है कि हमारे देश में लोगों की समझ इसलिये कम है क्योंकि वह अपने अध्यात्मिक साहित्य आधुनिक शिक्षा में पढ़ाया नहीं जाता। अंग्रेज हिंसा से इस देश में राज्य नहीं कर पा रहे थे तब उन्होंने अपने विद्वान मैकाले का यह जिम्मेदारी दी कि वह कोई मार्ग निकालें। उन्होंने ऐसी शिक्षा पद्धति निकाली कि अब तो अंग्रेज ब्रिटेन में हैं पर अंग्रेजियत आज भी राज्य कर रही है। अब तलवारों से लड़कर जीतने का समय गया। अब तो फिल्म, शिक्षा, धारावाहिक, समाचार पत्र, किताबें तथा रेडियो से प्रचार कर भी सैंकड़ों लोगों को गुलाम बनाया जा सकता है। इनमें फिल्म और टीवी तो एक बड़ा हथियार बन गया है। आप फिल्में और टीवी की विषय सामग्रंी देखकर उसका मनन करें तो पता लग जायेगा कि जाति, धर्म, और भाषा के गुप्त ऐजेडे वहीं से लागू किये जा रहे हैं। फिल्म और टीवी वाले तो कहते हैं कि समाज में जो चल रहा है वही दिखा रहे हैं पर सच तो यह है कि उन्होंने अपनी कहानियों में ईमानदार लोगों का परिवार समेत तो हश्र दिखाया वह कहीं नहीं हुआ पर उनकी वजह से समाज डरपोक होता चला गया और आज इसलिये अपराधियों में सार्वजनिक प्रतिरोध का भय नहीं रहा। वजह यह थी कि इन फिल्मों में अपराधियों का पैसा लगता रहा था। फिल्मों के अपराधी पात्र गोलियों से दूसरों को निशाना बनाते थे पर उनको नायक के हाथ से पिटते हुए दिखाया गया। स्पष्टतः संदेश था कि आप अगर नायक नहीं हो तो आतंक या बेईमानी से लड़ना भूल जाओ। इस तरह समाज को डरपोक बना दिया गया और अब तो पूरी तरह से अपराधियों को महिमा मंडन होने लगा है।
अगर आप कभी फिल्म या टीवी धारवाहिकों की पटकथा तथा अन्य सामग्री देखें और उस पर चिंतन करें तो हाल पता लग जायेगा कि उसके पीछे किस तरह के प्रायोजक हैं? यह एक चालाकी है जो धनवान और शिक्षित लोग करते हैं। अंग्रेज लोग हमारे धार्मिक ग्रंथों को खूब पढ़ते रहे होंगे इसलिये उन्होंने एसी शिक्षा पद्धति थोपी कि उनसे यह देश अपनी प्राचीन विरासत से दूर हो जाये। अब क्या हालत है कि जो अंग्रेज जो कहें वही ठीक है। वह अपनी परंपराओं तथा भाषा के कारण आज भी यहां राज्य कर रहे हैं। उनकी दी हुई शिक्षा पद्धति यहां गुलाम पैदा करती है जो अंग्रेजों की सेवा के लिये वहां जाकर उनकी सेवा के लिये तत्पर रहते हैं। सच यह बात है कि अंग्रेजी की यह शिक्षा केवल गुलाम ही बना सकती है जबकि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य को एक ऐसा विद्वान बना सकता है जो हर जगह शासन कर सकता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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टिप्पणियाँ
बिल्कुल सही कहना है आपका .. अंग्रेजो द्वारा थोपी गयी शिक्षा हमें गुलाम बना रही है .. जो हमें लोखों देते हैं .. वे हमारे माध्यम से लाखों कमाते हैं .. भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के सहारे बडा विद्वान बना जा सकता है .. जो हर जगह शासन कर सकता है .. काश हमारे देश के लोग इस बात को समझ पाते .. आपकी अनंत शब्द योग पत्रिका को मैने अपने ब्लॉग लिस्ट में जोड लिया!!