चमत्कार वाला धर्म-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
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चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
————-
चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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