लिखना और बोलना प्रभावी बनाने के लिये अध्ययन जरूरी-विशिष्ट हिन्दी रविवारीय लेख


                     अनेक लोगों का मन करता है कि वह कुछ लिखें।  कुछ लोग शेरो शायरी कर दूसरे को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी कहावतों को सुनाकर यह कोशिश करते हैं कि सामने वाला आदमी उनकी बुद्धि का लोहा माने।  वैसे अपनी बात कहने में तुलसीकृत रामचरित मानस  का अध्ययन करने वालों का जवाब नहीं है।  खास अवसरों पर वह उसके दोहे सुनाकर अपने गहन अध्ययन को प्रमाणित कर देते हैं पर उसमें उनका स्वरचित कुछ नहीं होता।  समाज पर प्रभाव तो वही डाल सकता है जो स्वयं रचनाकार हो।  वैसे आजकल शेरो शायरी कर अपनी बात का प्रभावपूर्ण ढंग से कहने का रिवाज चल पड़ा है पर यह हमारे पारंपरिक वार्तालाप का कोई स्थाई भांग नहीं है। कई विषयों पर कबीर, रहीम और तुलसी की रचनायें इतना प्रभाव रखती हैं कि उनके उद्धरण उर्दू की शायरी से बेहतर प्रभावी रहते हैं।  इन सबके बावजूद यह सच्चाई है कि आदमी का मन स्वरचना की अभिव्यक्ति के लिये तड़पता है।  लिखना और बोलना  सहज लगता है   पर वह उनके दूसरे को मस्तिष्क और हªदय को अंदर तक प्रभावित कर दे ऐसी बात लिखना  या बोलना आसान नहीं है। प्रभावी लेखन और वार्तालाप के लिये आवचश्यक है कि हम दूसरे का लिखा धीरज से पढ़ें और कही गयी बात सुने।

ब्लॉग लेखन के प्रारंभिक दौर में अनेक पाठकों ने हमसे पूछा कि आप इतना लिख कैसे लेते हैं? इसका सीधा जवाब तो यह था कि हम पढ़ते बहुत हैं पर किसी को दिया नहीं!  सोचते कि अपने हर राज को बांटना जरूरी नहीं है।  सच्चाई यह है कि   जितना ज्यादा पढ़ोगे उतना ही ज्यादा लिखोगे।  जितना अच्छा सुनोगे उतना अच्छा बोलोगे।  तय बात है कि अपनी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये पुस्तक प्रेम और बेहतर संगत का होना जरूरी है।  मूर्खों में बैठकर गल्तियां न करना सीखा जा सकता है पर बुद्धिमानों की संगत में बिना गल्तियां किये काम करने की  मिलने वाली प्रेरणा ही असली ही शक्ति होती है।

इधर जब फेसबुक पर अपने निजी तथा सार्वजनिक संपर्क वाले लोगों को देखते हैं तो उनके अंदर अपनी अभिव्यक्ति की कभी शांत न होने वाली भूख साफ दिखाई देती है।  उनके पास कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा है। उन्होंने फेसबुक पर खाते खोल लिये हैं।  मोबाइल से फोटो खींचकर उसमें डाल देते हैं।  दूसरे की पठनीय और दर्शनीय सामग्री अपने फेसबुक पर लाने के लिये उन्हें शेयर करना पड़ता है।  कई लोग तो ऐसे हैं जो शेयर करते समय एक शब्द भी नहीं लिखते। लिखते भी है तो रोमन में हिन्दी लिखकर अपनी भूख शांत करते हैं।  ऐसे में उनकी अभिव्यक्ति की भूख साफ दिखती है। भूख और प्यास की व्याकुलता हमने स्वयं भी झेली है पर खुशी होती है यह देखकर अभिव्यक्ति के लिये कभी तड़पना नहीं पड़ता।  हिन्दी और अंग्रेजी टाईप का शैक्षणिक काल में ज्ञान प्राप्त किया और तीस वर्ष पहले कंप्यूटर से ही अपनी जिंदगी शुरु की थी।  इसलिये वर्तमान समय में बिना हिचक इंटरनेट पर लिख लेते हैं।  लिखने के विषय का टोटा नहीं रहा पर अध्यात्मिक विषयों की पुस्तकें पढ़कर चिंत्तन लिखते हुए जीवन का ज्ञान स्वतः ही आता रहा।  हमारे अध्यात्मिक विषयों पर लिखे गये पाठों को देखकर पाठक सोचते हैं कि यह कोई पुराना ज्ञानी है पर सच्चाई यह है कि लिखते लिखते ही बहुत सारा ज्ञान आ गया है।

इस ज्ञान साधना ने जीवन के प्रति विश्वास दिया पर व्यंग्य विद्या कोे छीन लिया।  अनेक बार व्यंग्य लिखने का मन करता है पर कहीं न कहीं ज्ञान उसमें बाधा बन जाता है।  व्यंग्य विषय गंभीरता के रंग में डूब जाता है।  अपने ही बचपन गुजारने के बाद जवानी में परे हुए लोगों के फेसबुक देखते हैं।  उनको हम ढूंढते हैं पर वह भुलाये बैठे है।  हम उनके पास अपने मित्र बनने का कोई प्रस्ताव नहीं भेजते।  इसका कारण यह है कि अनेक बार वह हमारे व्यंग्यों और चिंत्तनों का हिस्सा बने हैं।  दूसरी बात यह कि हमारे लेखकीय और पाठकीय संस्कारों से न उनका कोई वास्ता है और न ही हमारी इच्छा है कि वह हमसे बिना हृदय के फेसबुक से  जुड़ें।

हम अपने उन बिछड़े लोगों का एबीसी समूह बनाकर बात करते हैं। इनमें हम बी नाम से हैं।   हम अपने ही शहर में रहे पर ए और सी बाहर जाकर बसे हैं।  इंटरनेट पर फुरसत के समय बहुत दिन तक  ए नाम के व्यक्ति का फेसबुक ढूंढा पर मिला नहीं।  अब दो महीने उन्होंने बनाया तो हमारे दृष्टिपथ में आ गया। सी की स्थिति यह थी कि उनकी पत्नी का फेसबुक  मिला। उन पर सी का फोटो क्या  नाम तक नहीं था।  चेहरे से पहचाना कि यह जान पहचान वाली भद्र महिला है।  परसों  उस पर  सी का फोटो देखने को मिला।  अपनी बेटी और दामाद के साथ सी और उसकी पत्नी ने फोटो खिंचवाया और फेसबुक  पर डाला।  ए और उसके  बेटे और बहु का फेसबुक रोज देखते हैं।

उस दिन ए का फोन बहुत दिन बाद आया।  उसे किसी दूसरे आदमी का फोन नंबर चाहिये था।  उस समय उसके बेटे के फेसबुक को ही देख रहे थे जो अधिक सक्रिय है।  हमने उसे नहीं बताया कि क्या कर रहे हैं।  संभावना यह  भी है कि सी से भी अगले सप्ताह उसके शहर आने पर मुलाकात होगी पर उससे फेसबुक की चर्चा बिल्कुल नहीं करेंगे।  दरअसल इसका कारण यह है कि हमारा लिखा देखकर लोग पूछते हैं कि इसका तुम्हें मिलता क्या है?

यहां हम स्वयं को ही प्रभाहीन अनुभव करते हैं।  यह कहते हुए शर्म आती है कि हम फोकटिया हैं। लिखने का अभ्यास इतना है कि एक हजार शब्दों का लेख हम बीस मिनट में सोचते हुए लिख देते हैं।  यह सहज इसलिये होता है कि हमारी दृष्टि हमेशा समय मिलते ही पठनीय सामग्री पर चली जाती है।  यह आवश्यक है कि उसे देखकर ही हम कुछ लिखें पर कहीं न लिखने की प्रेरणा उससे ही मिलती है।  ए और सी के साथ  उनके परिवार  के सदस्यों के फेसबुक देखकर लगता है कि हम भाग्यशाली हैं कि लिखने की शक्ति मिली है।  हालांकि इसमें अच्छा पढ़ने और सुनने का भी योगदान है।

लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
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