बंदर दे रहा था धर्म पर प्रवचन
उछलकूद करते हुए तमाशा भी
दिखा रहा था
यह सनसनीखेज खबर है
उसके मुखौटे के पीछे
इंसान का चेहरा है
आंखें देखती हैं पर पहचानती नहीं
कान सुनते है मगर समझ नहीं इतनी
बंदर के बोलों में इंसान का ही स्वर है।
कहें दीपक बापू
ज़माना बंटा है टुकड़ों में
कोई दौलत के नशे में मदहोश है,
कोई गरीबी के दर्द से बेहोश है,
जज़्बात सभी के घायल है,
ख्वाबी अफसानों के फिर भी कायल है
दिल के सौदागरों के अपनी चालाकी से
रोते को हंसाने के लिये
खुश इंसान के दिमाग में प्यास बढ़ाने के लिये
मचाया इस जहान में विज्ञापनों का कहर है।
देखते देखते
गांवों की खूबसूरती हो गयी लापता
नहीं रही वहां भी पुरानी अदा
घर घर पहुंच गया बेदर्द शहर है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
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