लालच के शिकार-हिंदी व्यंग्य कविता


जोर जोर की आवाजों में

सामूहिक शोर मचाकर

उन्होंने  शक्तिशाली होने की छवि बनाई,

बैठ गये तख्त पर

जमाने के भले की नीयत उनके दिल में ही है

सारे जहान में अपनी ईमानदारी जताई।

कहें दीपक बापू

कौन बच पाया

दौलत शौहरत और ओहदे की लालच के शिकार से,

फर्ज से मुंह फेर लेना आसान है

रिश्ता रह जाता सभी का अधिकार से,

जब तक खुद बदहाल है आदमी

दूसरे के दर्द का बखान करता है,

मिलता है हमदर्द होने पर इनाम

फिर केवल अपने घर भरता है,

धरती पर जन्नत लाने का वादा कर

बहुत लोगों ने अपनी बड़ी इमारते बनायी,

जिन्होंने लिखी खून से इतिहास में इबारत

कभी उन्होंने अपनी व्यथा नहीं जताई।

————

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
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