दुनियां का हर इंसान आशिक है किसी न किसी का,
कोई दौलत, कोई बदन कोई पसीना चाहे मुफ्त किसी का।
जितना खाये कोई भी उसकी भूख नहीं मिट पाती,
सूखी रोटी मिले तो घी से चुपड़ी के लिये जीभ ललचाती,
सौंदर्य प्रसाधन से सजे चेहरे पर आंखें जमकर रह जाती है,
एक से ऊबता है दिल दूसरे शिकार पर नज़र जाती है,
मुफ्त के मददगार को समझें मूर्ख कहें फरिश्ता,
पराया खून पानी माने अपने पसीने का समझें सोने से रिश्ता,
कहें दीपक बापू मौके के हिसाब से बनाते अपना नजरिया,
मतलब के सगे सभी है वफादार नहीं कोई किसी का।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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टिप्पणियाँ
Very Good Poem
On 3/15/14, “*** दीपक भारतदीप की हिंदी सरिता-पत्रिका*** mastram