ख्वाहिश तो कर्जा लेकर भी पूरी हो जाती हैं,
फिर पूरी जिंदगी किश्तों में खो जाती है।
कहें दीपक बापू सामान लेने के सपने रोज आते हैं,
उधार लेकर भले पूरे कर लो ब्याज की पूंछ भी लग जाती है।
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जिन्होंने महलों में रहकर गुजारी जिंदगी
क्या वह समझेंगे वीरों के जंग की कहानी।
कहें दीपक बापू वातानुकूलन कक्ष में जो सोते हैं
मौसम से जूझने वाले मजदूर की उनको क्या व्यथा समझानी।
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पूरी जिंदगी का बखान क्या करें
यहां तो पल ही में माहौल बदल जाता है,
इंसान सुबह जाता है शवयात्रा में
शाम का बारात में जाने का आनंद पाता है।
कहें दीपक बापू किस पर खफा हों किसे करें सलाम,
रिश्ते मुंह फेर जाते अनजान लोग कर जाते काम
एक मंजिल के लिये जोड़ा कई लोगों ने वास्ता,
नये चेहरे आ जाते उधर पुराने बदल जाते हैं रास्ता,
कई लोगों ने फिर मिलने का वादा किया
क्या पहुंचते उनके पास जिनका पता बदल जाता है।
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शरीक के जख्म तो जाते हैं कभी न कभी,
दिल का दर्द ऐसा लगता जैसे चोट हुई हो अभी अभी।
कहें दीपक बापू लोग अपने जज़्बात नहीं समझते
दूसरों के क्या समझेंगे
एक दूसरे को नीचे गिराने में लगे हैं सभी
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नायक के बखान के लिये खलनायक होना चाहिये,
शब्दों को गीत बनाने वाला गायक मिलना चाहिये।
कहें दीपक बापू कहानियों से बहल जाते लोग
झूठी हो या सच्ची किसी की गाथा में मसाला जरूर लगाईये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
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