खानपान के विषय में गंभीरता से विचार करें-हिन्दी चिंत्तन लेख


                              हमारे देश में लोग भोजन की बात तो करते हैं पर उसे ग्रहण करने का तरीके और पचाने की शक्ति पर कभी विचार नहीं करते। हम भोजन में कब, क्या और कितना खायें-यह सवाल अनेक लोगों को परेशान करता है। अनेक लोग तो अपने से सवाल पूछकर ही स्वयं से ही कन्नी काट जाते हैं।  हमारा मानना है कि पेट में ऐसे ही भरें जैसे स्कूटर या गाड़ी में उतना ही ईंधन भरवाते हैं जितना टंकी में आता है। अंतर इतना है कि अगर उनकी टंकी में ज्यादा पेट्रोल भरा जाये तो वह बाहर फैल जाता है और उसे कपड़े से साफ किया जा सकता है पर अगर पेट में भरा ईंधन फैला तो वह शरीर में ही इधर उधर फैलता है जिसे साफ करना कठिन है। कालांतर में यही अति भोजन बीमारियों का कारण बनता है।

                              आजकल स्थिति यह हो गयी है कि लोग भोजन के बारे में कम अपने लिये धन संपदा अर्जन पर अधिक मानसिक ऊर्जा नष्ट करते हैं।  परंपरागत घरेलू रोटी सब्जी की जगह बाज़ार में चटकदार मसाले का खाना चाहते हैं। उससे भी ज्यादा मैदे के बने पिज्जा तथा अन्य सामग्री सामान्य लोगों के लिये प्रिय भोजन बनता जा रहा है। परिणाम हम देख ही रहे हैं कि आजकल अस्पताल पांच सितारानुमा बन गये हैं।  उनके बाहर की नामपट्टिका भी संस्कृत के मधुर शब्दों-आस्था, संस्कार, संजीवनी आदि-से सजी हुई हैं।  अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति से किसी  बीमारी का इलाज नहीं होता पर इसके सहारे रहने वाले चिकित्सक भारी पैसा कमा रहे हैं।

                              हर व्यक्ति दावा करता है कि वह स्वयं परिवार तथा रोटी के लिये कमा रहा है पर उसी के प्रति वह गंभीर नहीं दिखता। लोग खाने का बाहरी आकर्षण और स्वाद देखते हैं यह जानना ही नहीं चाहते  कि उनके हाथ से उदरस्थ सामग्री सुपाच्य है कि नहीं।  खासतौर से शादी आदि समारोह  में लोगों की यह दिलचस्पी ही खत्म हो गयी है कि वह जो खा रहे हैं कि उससे उसे वह पचा पायेंगे कि नहीं। कई घंटे पहले रखा सलाद खा लेते हैं जिसके खराब होने की पूरी आशंका रहती है।

                              सबसे बड़ी बात यह है कि खाने के बाद आदमी में जो संतोष का भाव होना चाहिये उसकी अनुभूति करना ही भुला दिया गया है।  कहा जाता है कि भोजन प्रसाद की ग्रहण करना चाहिये। यह भी कहा जाता है कि प्रसाद भोजन की तरह नहीं लेना चाहिये। लोगों खाने पीने में किसी नियम का पालन नहीं कर रहे।  हमारा मानना है कि भोजन शांत भाव से ग्रहण करते हुए सर्वशक्तिमान का इस बात के लिये मन ही मन धन्यवाद देना चाहिये कि उसने हमें न केवल वह दिया वरन् हमें पचाने की शक्ति भी दी।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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