#दर्द के #व्यापारी-#हिन्दीकवितायें


अनजान में भटके

राही को सही रास्ता

सुझा सकते हैं।

जानकर चले तबाही के रास्ते

उसे समझाते हुए अपनी अक्ल के

चिराग बुझा सकते हैं।

कहें दीपक बापू शहर बड़े हैं

हादसों के डर से सहम जाते

एक वहम से बचते

दूसरा साथ लाते

अंग्रेजी में भटके इस तरह

उनको खुश करने के लिये

हिन्दी के चिराग

चाहे जब बुझा सकते हैं।

——————

दर्द के व्यापारी

कभी अपने चेहरे पर भी

जख्म कर लेते हैं।

खाली बैठे होते

तब भरे बाज़ार रक्त

बहाने की रस्म भी कर लेते हैं।

कहें दीपक बापू खुशी से

जीना नहीं सीखा ज़माना

मस्ती के लिये

झगड़े का ढूंढता बहाना

जज़्बात सजाये बैठे दुकान पर

बेचने के लिये

वह अमन के घर भी

भस्म कर देते हैं।

…………

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

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