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योग बाबा की संपत्ति में कितने शून्य-हास्य व्यंग्य (yoga baba ki sampatti mein kitne shoonya-hasya vyangya)


दीपक बापू को गंजू उस्ताद का इस तरह सुबह सुबह मिलना अपशकुन जैसा लगता है, पर अपनी हास्य कविताई के लिये विषय मिलने का मोह उनको अपनी राह बदलने या उससे मुंह फेरने की अनुमति नहीं देता। गंजू उस्ताद सामने से आ रहा था और दीपक बापू भी सड़क पर उसी दिशा में बढ़ रहे थे। पास आते ही गंजू उस्ताद ने दीपक बापू से बिना किसी औपचारिकता के कहा-‘‘कहां जा रहे हो?’’
दीपक बापू ने कहा-‘‘जरा, उस पान वाले को बीड़ी के पैसे देने जा रहा हूं। कल उससे खरीदी पर खुले पैसे नहीं थे तो उसने उधार ही दे दिया। कह दिया कल सुबह दस बजे तक पैसे पहुंचाने स्वयं आ जाना नहीं तो मेरा लड़का घर पर तकादा करने आ जायेगा।’’
गंजू उस्ताद ने कहा-‘‘उसे छोड़ो। चलो मेरे साथ, ज्ञानीजी से तुम्हारा शास्त्रार्थ करवाना है। वह उधर पेड़ के नीचे बैठे अपना ज्ञान बघार रहे हैं। पान वाला तुमसे बाद में पैसे ले लेगा।’’
दीपक बापू बोले-‘‘पगला गये हो! इतने बड़े ज्ञानी से भला हम क्या शास्त्रार्थ करेंगे? कभी कोई शास्त्र नहीं पढ़ा। ताउम्र हास्य कविताई करते गुजारी, उसमें भी फ्लाप रहे। पहले हम अपना उधार चुकाकर अपनी पड़ौस में अपनी इज्जतदार होने की छवि बचा लें फिर सोचेंगे। कहंी उसका लड़का घर पहुंचा और पड़ौसियों को पता लगा कि हम उधार लेकर बीड़ी पीते हैं तो कितनी हमारे मान सम्मान का जनाजा निकल जायेगा।’’
गंजू उस्ताद ने कहा-‘‘तुम चिंता मत करो। ज्ञानी जी तो अभी इसी रास्ते में बैठे हैं उनको दो तीन मिनट हास्य कविता सुनाकर चले जाना।’’
दीपक बापू ने कहा-‘‘कमबख्त, कवि समझ रखा है या क्लर्क कि चाहे जब कुछ भी लिखने लगो। वैसे तुम वहां चलो जहां ज्ञानी जी विराजमान हैं। पहले पता तो चले कि वह क्या कह रहे हैं।’’
गंजू उस्ताद कहने लगा कि ‘‘वह अपने देश के महान योग बाबा की मज़ाक उड़ा रहे हैं। कह रहे है कि ‘काहेके के बाबा ओर कैसी उनकी शिक्षा, वह तो बारह सौ करोड़ कमाकर सेठ जैसे हो चुके हैं’।’’
दीपक बापू बोले‘‘यह तुम हमें कहां फंसाने चले। भला इस प्रसंग में हमारी समझ कितनी है। हमसे महंगाई, भ्रष्टाचार, शादी, गमी, गमी, सर्दी और बरसात पर हास्य कवितायें लिखवा लो मगर इस तरह बारह सौ करोड़ रुपये पर हम क्या लिखेंगे? यही पता नहीं कि 12 के बाद उसमें कितने सौ के शून्य लिखने होंगे? तुम चाहे तो योग पर ही कुछ लिखवा लो जिसके बारे में हमें भले नहंी पता पर उस लिखा जा सकता है। सभी लोग लिख रहे हैं।’’
गंजू उस्ताद बोला-‘‘नहीं, यह राष्ट्रीय स्वाभिमान का विषय है? ज्ञानी जो ललकारना है।
दोनों बातचीत करते हुए वहीं आये जहां ज्ञानी जी पेड़ के नीचे अपने चेलों के साथ बैठे थे। गंजू उस्ताद को देखते ही वह बोले-‘‘फिर तू आ गया बहस करने! तेरे योग बाबा पर हमने तेरे से जो कहा वह समझ में नहीं आया जो इस फटीचर हास्य कविता को हमारे सामने लाया है।’’
दीपक बापू बोले-‘‘महाराज, आप कैसी बात करते हो। हम तो किराने वाले को पैसे देने जा रहे थे। यह बोला कि ‘चलो ज्ञानी से मिलवाता चलूं‘, भला हमारी क्या औकात कि आपके साथ बहस करें।’’
ज्ञानी जी बोले-‘‘अच्छा, हमसे तू झूठ बोल रहा है। तू उस पान वाले को बीड़ी के पैसे देने जा रहा है जिससे कल उधार करवाकर कर गया था। उसने तुम्हें धमकी दी कि सुबह दस बजे तक पैसे भिजवा देना वरना अपना आदमी घर भेज दूंगा। अरे, अपने चेले चारों तरफ फैले हैं, सबकी खबर मिल जाती है।’’
दीपक बापू ने देखा कि उनका वहां विराजमान एक चेला कल उसी दुकान पर खड़ा होकर पान खा रहा था, जिसने शायद अब उनको आते देखकर यह बात अपने ज्ञानी गुरु को बता दी थी।
दीपक बापू ने कहा-‘’महाराज, आपके चेले ने यह नहीं बताया कि हमारे पास पांच सौ का नोट था, इसलिये यह उधार लिया। बहरहाल आपके सूचना संगठन की शक्ति बहुत प्रशंसनीय है भले ही उसमें दो टके की खबरों का आदान प्रदान होता है।’’
ज्ञानी महाराज बोले-‘‘दो टके के लोग मिलते हैं तो उनको अपनी औकात के अनुसार ही खबर देनी पड़ती है। अगर बाहर सौ करोड़ की हो तो वह भी बड़े लोगों के साथ चर्चा में काम आती है।’’
गंजू उस्ताद ने दीपक बापू को कोहनी मारी और कहा-‘‘देखा दीपक बापू! सुबह से योग बाबा के बारह सौ करोड़ की संपत्ति की बात उनके दिमाग में भरी पड़ी है। जरा, सुनाओ इनको हास्य कविता!’’
ज्ञानी जी बोले-‘‘अरे, इनकी औकात नहीं है जो बारह सौ करोड़ रुपये पर हास्य कविता लिखें। यह तो पांच दस रुपये पर लिख सकते हैं। तुम्हारे योग बाबा जिनको तुम भगवान मानते हो बारह सौ रुपये करोड़ की संपत्ति बना चुका है। वह धंधेबाज है!’’
दीपक बापू थोड़ा चौंकते हुए बोले-‘‘महाराज योग में भगवान! कैसी बात कर रहे हैं आजकल तो भगवान क्रिकेट में होते हैं।‘’
ज्ञानी जी गंजू उस्ताद की तरफ देखकर बोले-‘‘देख ली हास्य कवि की समझ! जैसे टीवी वालों न रटाया वैसा ही रट लिया। क्रिकेट में इसे भगवान नज़र आते हैं और योग में नहीं!’
गंजू उस्ताद बोला-‘‘हां, आप भी तो कह रहे हैं कि योग बाबा भगवान नहीं हैं। कभी यह नहीं कहा कि क्रिकेट में भगवान नहीं हो सकते।’
ज्ञानी जी बोले-‘‘अबे चुप! ऐसी बात हम नहीं कह सकते जिससे हमारा हुक्कापानी बंद हो जाये। तेरे इस हास्य कवि की तरह हम भी फ्लाप होकर घर बैठ जायें। अबे दीपक बापू तू निकल यहां से! वरना मेरे चेलों को गुस्सा आ जायेगा।’’
गंजू उस्ताद बोले-‘‘इन पर आप अपना रौब न दिखाओ। इनकी कोई गलती नहीं है हम ही लाये थे इनको आपसे शास्त्रार्थ कराने। वह योग बाबा पर आपकी बात हमें पसंद नहीं आयी।’’
ज्ञानी जी बोले-‘‘तो इससे बाबा की बारह सौ करोड़ की संपत्ति पर एक हास्य कविता लिखा तो जाने! उसके काले धन पर यह क्या सोचता है हम भी तो सुने।’’
दीपक बापू बोले-‘‘बाबा के पास केवल बारह सौ करोड़ की संपत्ति है, बस! बहुत कम है! हम तो सोचते थे कि दो चार लाख करोड़ की संपत्ति होगी। उनका नाम फोर्ब्स पत्रिका में शायद इसलिये ही नहीं आता क्योंकि उसके हिसाब से बहुत कम है।
ज्ञानी जी दीपक बापू को घूरकर बोले-‘‘अच्छा! पांच रुपये की बीड़ी पंद्रह दिन चलाने वाले को बारह सौ करोड़ रुपये कम नज़र आ रहे हैं? क्या बात है! घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने! अरे हास्य कवि, पहले यह बता कि लाख में कितने शून्य आते हैं। जवाब दे तब पूछेंगे इससे कठिन सवाल कि करोड़ में कितने अंक होते हैं।
दीपक बापू बोले-‘‘महाराज कहा जाता है कि जब अपनी औकात देखनी है तो नीचे देखो कि कितने लोग हैं तब मन को शांति मिलेगी। उसमें हमने यह भी जोड़ा है कि अगर ऊपर के आदमी को देखना है तो फिर उससे ऊपर भी देखना चाहिये कि उससे आगे कितने हैं तब दूसरे के प्रति ईर्ष्या कम होगी। इधर हमारा गणित गरीब हो गया है। इधर टीवी पर अनेक ऐसे समाचार आते हैं जिसमें कभी दो हजार करोड़ तो कभी पांच हजार करोड़ की चर्चा भी होती है। अमुक ने अमुक चीज इधर17 करोड़ में खरीदी और उसे पांच हजार करोड़ में उधर बेची। इसका मतलब यह है कि लाखों करोड़ वाले लोग हो गये हैं। यह बारह सौ करोड़ हमें कम लगती है तो अच्छा ही है क्योंकि तब किसी से ईर्ष्या नहंी होती।’’
ज्ञानी जी को अपना ज्ञान अब गणित से पिटता नजर आ रहा था। वह बोले-‘अरे यार तुम्हारा राजनीतिक दृष्टिकोण शून्य है। अब तुम जाओ, हमारा समय खराब न करो।’’
गंजू उस्ताद बोला-‘‘पहले यह बताओ दोनों में से कौन जीता! यह लाखोंकरोड़ रुपये की बात हमारी समझ में नहीं आयेगी। इसलिये तो टीवी देखना ही बंद कर दिया है।’
दीपक बापू उस पर गुस्सा दिखाते हुए बोले-‘चल मूर्ख कहीं के! ज्ञानी जी की मजाक बनाता है, भला इनसे कौन जीत सकता है।’
गंजू उस्ताद और दीपक बापू वहां से चल दिये। थोड़ा आगे चलकर गंजू उस्ताद बोला-‘यार, दीपक बापू हमें यह तो बताओ कि करोड़ में कितने अंक होते हैं।’
दीपक बापू बोले-‘चल मूर्ख कहीं के! हमें क्या पता! अच्छा हुआ अपनी पोल खुलने से बच गयी। चल तो पान वाले को बीड़ी के पांच सौ करोड़ रुपये दे आते हैं।’
गंजू उस्ताद एक चौंक गया-‘‘कितने दीपक बापू!’
दीपक बापू बोले-‘अरे, यह ज्ञानी जी वजह से हमारा दिमागी संतुलन बिगड़ गया और बहुत सारी बिंदियां दिमाग में आ गयी इसलिये पांच रुपये को…………कितना बोला था! पता नहीं कितनी बिंदियां दिमाग में आ गयीं।’

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नोट-‘यह हास्य व्यंग्य काल्पनिक है तथा किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बिग बॉस के लिये फतवा फिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य (big boss ke liye fatva fixing-hindi vyangya)


पाकिस्तान के एक मौलवी ने बिग बॉस धारावाहिक में काम कर रही अपने देश की एक अभिनेत्री वीना मलिक की गतिविधियों का इस्लाम विरोधी बताया है। उन्होंने वीना मालिक को इस्लाम के लिये बहुत बड़ा खतरनाक घोषित कर दिया है। अब यह तो इस्लाम से जुड़े व्यंग्यगकार ही यह विषय उठा सकते हैं कि एक अभिनेत्री को उसके अश्लील अभिनय से 14 सौ वर्ष पुराने इस्लाम को खतरा बताकर उसे शक्तिमूर्ति कह रहे हैं या अपने धर्म को कमजोर बता रहे हैं। उनके इस बयान का विरोध उनके देश में ही किया गया है और एक आदमी ने तो सवाल उठाया है कि मौलवी को आखिर बिग बॉस देखने की फुर्सत मिल कैसे जाती है? इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आखिर वह मौलवी अगर धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तो ऐसे धारावाहिक देखते ही क्यों हैं?

यह प्रश्न काफी जोरदार है और धर्म के नाम पर फतवे या निर्देश जारी करने वाले सभी धर्म के ठेकेदारों से पूछा जाना चाहिए कि वह मनोरंजन के नाम पर हो रही गतिविधियों को देखते ही क्यों हैं? अगर नहीं देखते तो उसके बारे में फैसला कैसे करते हैं? केवल सुनकर! तब तो उनको कान का कच्चा और बात का बच्चा कहना चाहिए।
बात अगर पाकिस्तानी मौलवी की चली है तो वहां के क्रिकेटरों की भी चर्चा हो जाती है जिन पर फिक्सिंग का लेबल चिपका हुआ है। हमें तो वह मौलवी भी फिक्सर दिखाई दे रहा है। उसके इस फतवे पर पाकिस्तान की ही एक महिला ने सवाल उठाया है कि जब पारदर्शी कपड़े पहनकर पाकिस्तानी के टीवी चैनलों पर नाचती है तब ऐसे फतवे क्यों नहंीं जारी हुए?
अब इसका जवाब तो यही हो सकता है कि बिग बॉस को पाकिस्तान तथा भारत में लोकप्रिय बनाये रखने के प्रयास में शायद वह मौलवी ने फिक्स फतवा जारी किया है। सच तो यह है कि बिग बॉस को निरंतर चर्चा में बनाये रखने के लिये विवादों को फिक्स किया गया है। इतना ही नहीं जिस वीना मलिक को इसमें शामिल किया गया उससे पहले एक पाकिस्तानी फिक्सर क्रिकेटर के खिलाफ उससे बयान दिलाया गया जो एक फिक्सिंग प्रकरण में ताजा ताजा फंसा था। बस, हो गयी वीना मलिक हिट! सप्ताह भी नहीं बीता कि उसके बिग बॉस में आने की खबर आ गयी। ऐसे में हमने यह लिखा था कि पाकिस्तानी क्रिकेटर इंग्लैंड पुलिस के हाथ फिक्सिंग में पकड़े गये तो संभव है कि पूरा घटनाक्रम ही फिक्स हो सकता है। इस प्रकरण में लोगों को सत्य लगे इसलिये इंग्लैंड की गोरी पुलिस को फिक्स किया गया होगा क्योंकि भारत में गोरों को अभी तक ईमानदार माना जाता है। हमें इसी प्रकरण के बाद लगा कि गोरी पुलिस ने ही अपनी छवि का लाभ उठाने के लिये यह प्रकरण फिक्स किया होगा-शायद केवल वीना मलिक को बिग बॉस लाने के लिये यह प्रकरण रचा गया यही कारण है कि बाद में यह पूरा मामला ही टांय टांय फिस्स हो गया।
क्रिकेट, मनोरंजन, व्यापार तथा अपराध जगत का ऐसा गठजोड़ है कि उनमें सक्रिय दलाल कोई प्रकरण किसी भी आदमी से कुछ भी फिक्स कर सकता है। अरे, बड़े बड़े दिग्गज उनके सामने बिकने के लिये तैयार हैं तब एक मौलवी भला कैसे बच सकता है? संभव है मौलवी ने यह बयान इस इरादे से दिया हो कि कि कहीं इस फतवे से मिले प्रचार की वजह से आर्थिक, अपराधिक, मनोरंजन तथा धर्म के आधार पर संयुक्त उद्यम बने इस वैश्विक गठजोड़ से शायद कुछ फायदा हो? बिग बॉस की तो फिल्म पिट रही है। इसका प्रचार अधिक है पर लोकप्रियत कम! इस वैश्विक गठजोड़ के लिये यह एक चिंता की बात हो सकती है। एक बात याद रखें कि यह कार्यक्रम एक अंतर्राष्ट्रीय शैली का है और भारत पाकिस्तान में प्रसारित कर यहां के लोगों को मनोरंजन मेें व्यस्त किया जा रहा है ताकि उनका ध्यान अपने शिखर पुरुषों के नकारापन की तरफ न जाये। दोनों ही देशों की अंदरूनी हालतों पर नज़र डालें तो संतोषप्रद नहीं लगते-अगर कहें कि डरावने हैं तो भी गलत नहीं है।
मौलवी ने इस्लाम की परंपरागत शैली की आड़ ली पर आजकल यह एक फैशन हो गया है कि चाहे जहां विरोध करना हो वहीं धर्म की आड़ लो। मौलवी के फिक्स होने का संदेह यूं भी होता है कि भारतीय चैनलों पर इसे पर्याप्त स्थान दिया गया या कहें कि विज्ञापनों के बीच प्रसारण के लिये उनको एक संवदेनशील सामग्री मिल गयी। वैसे हम लोग यहां सुनते हैं कि पाकिस्तान भारतीय चैनलों पर प्रतिबंध लगा चुका है पर बिग बॉस वहां दिखने का मतलब यह है कि वह प्रतिबंध भी एक तरह से फिक्स है। हमें पहले से ही शक है कि पाकिस्तान के फिक्स शासकों के बूते की यह बात नहीं है कि वह भारतीय चैनलों पर प्रतिबंध लगा सकें। संभवतः वह ऐसी घोषणाऐं भी इसलिये फिक्स करते हैं कि भारतीय टीवी चैनल इसके माध्यम से अपने देश के लोगों पर देशभक्ति का भाव फिक्स कर अपना विज्ञापन समय अच्छी तरह पास करें।
आज के समय कौनसी कंपनी कहां कैसे काम कर रही है इसका पता नहंी चलता! ऐसे में अगर भारतीय कंपनियों या उनके दलालों का कोई अस्तित्व पाकिस्तान में न हो यह मानना संभव नहीं है। यही कंपनियां भारत में में चैनलों को तो उधर पाकिस्तान में उसके शिखर पुरुषों को मदद करती हैं। विश्व में सक्रिय मनोरंजन के दलालों को लगा कि भारत में किसी मौलवी को पटाया नहीं जा सकता या उससे कोई फायदा नहीं इसलिये पाकिस्तान में कोई मौलवी ढूंढ लें। इससे धर्म और देशभक्ति के भाव से बिग बॉस कार्यक्रम का विज्ञापन हो जायेगा। अब अगर वह इस्लाम के मौलवी हैं तो यह बात निश्चित है कि कोई दूसरा मौलवी उसका विरोध करने का खतरा नहंी उठायेगा। कम से कम भारत में तो यह संभव नहीं है खासतौर से तब जब अन्य धर्म के ठेकेदार भी इस कार्यक्रम को पंसद नहीं कर रहे। पसंद तो हम भी नहीं करते पर मालुम है कि देश में मूर्खों की कमी नहीं है और उनको ऐसे ही कार्यक्रमों में फिक्स कर अन्य लोगों को उनका शिकार होने से बचाया जा सकता है।
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फतवा फिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य
हिन्दी

अपना सफर-हिन्दी शायरी (apna safar-hindi shayari)


ग़मों को बोझ उठाते रहे उम्र भर
फिर भी कभी चंद पल हंस लिये,
अपने सफर पर डालते हैं
जब अपनी नज़र
लगता है कि बस वही  पल हमने जिये।
——-
कौन उन कमबख्तों का दिल जलाये
जो अपनी चिंताओं में खाक हुए हैं,
खड़े हैं जो बुत हमारे सामने
क्या उनसे बात करें,
जो चल रहे दूसरे के इशारे पर
अपनी अक्ल के साथ
जिनके ख्याल भी राख हुए हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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एक सौर मंडल जो धरती पर रहता है-हिन्दी व्यंग्य (dharti par rahane wala saurmandal-hindi vyangya)


धरती को जिंदा रखने के लिऐ उसके पास सौरमंडल होना चाहिए, ऐसा वैज्ञानिक कहते हैं। इसका सीधा आशय यह है कि सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति तथा अन्य ग्रहों के रक्षा कवच पर ही धरती और उस पर विचरण करने वाला जीवन टिका रहता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र तो यह भी मानता है कि इन सब ग्रहों की चाल का मनुष्य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इधर हमारे मन में यह भी ख्याल आया कि एक सौर मंडल इस धरती पर भी विचरता है जो सामने है पर दिखता नहीं क्योंकि इसके सारे ग्रह इतने पर्दों मे रहते हैं ं कि सभी ग्रह एक दूसरे को देख तक नहीं पाते, अलबत्ता दोनों का एक दूसरे से मिलन नहीं होता क्योंकि उनके परिक्रमा पथ कभी आपस में टकराते नहीं है। राजा और प्रजा दो भागों में बंटे मनुष्य जीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है भले ही दोनों को यह दिखाई नहीं देता।
इस सौर मंडल के ग्रह हैं पूंजीपति, बाहूबली, धार्मिक ठेकेदार तथा अपराधियों के गिरोह ओर उनके दलाल। पूंजीपति तो सूरज की तरह है जिनकी रौशनी से सारे सारे छोटे ग्रह चमत्कृत होते हैं। सृष्टि के निर्माण से ही यह गिरोह चलते रहे होंगे पर आजकल कृत्रिम दूरदृष्टि मिल जाने के कारण आम लोगों को भी दिखाई देने लगे हैं-बुद्धिमानों तो इनके प्रभाव का आभास कर लेते हैं पर सामान्य लोगों को शायद ही होता हो।
जब बात पूंजीपतियों की बात चली है तो आजकल अमेरिका नाम का एक धरती पर स्वर्ग है जहां इनकी बस्ती बन गयी है और तय बात है कि वहां का कोई भी राज्यप्रमुख उनके लिये एक तरह से बहुत बड़ा सुरक्षाकवच की तरह काम करता है। हालांकि वह स्वतंत्र दिखता है पर लगता नहीं है। वह अपनी चाल चल रहा है पर लगता है कि उसे चलना भर है बाकी काम तो उसके मातहत ही करते होंगे।
पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के विमान की बात कर लें। विमान का अधिक वर्णन तो हमारे लिये संभव नहीं है क्योंकि अपने खटारा स्कूटर की याद आने लगती है और लिखना बंद हो जाता है। विमान एक तरह से महल होने के साथ अभेद्य किला है। वहां बैठा राष्ट्रपति यात्रा के दौरान ही अपनी सेना और प्रशासन के अधिकारियों से संपर्क कर सकता है-करता होगा इसमें शक ही है क्योंकि अमेरिका की व्यवस्था ऐसी ही दिखती है। कोई आपत्ति आ जाये तो राष्ट्रपति वहां से कोई भी कार्यवाही करने का आदेश दे सकता है-इसकी आवश्यकता पड़ती होगी यह संभावना नगण्य है। कहने का अभिप्राय यह है कि उसमें महल जैसी सारी व्यवस्था है, विमान तो बस नाम है।
भारतीय प्रचार माध्यम अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन पर उसके विमान, पत्नी तथा वक्तव्यों का खूब वर्णन करते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने ताज होटल पर हुए हमले की निंदा की पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।
शायद आगे लेंगे जब भारतीय समकक्षों से मिलेंगें।
वह पाकिस्तान नहीं जा रहे, इससे यह संदेश तो मिल ही रहा है कि वह भारत में अपना हित अधिक देखते हैं।
ऐसे बहुत से जुमले हैं जो ओबामा के आने पर तीसरी बार सुने गये। पहले क्लिंटन आये फिर जार्ज बुश, तब भी यही नज़ारा था। तीनों राष्ट्रपति पहले बैंगलौर या मुंबई आये फिर नई दिल्ली। दोनों पाकिस्तान नहीं गये इस पर बहस! संदेश ढूंढने की कोशिश! हमने तीनों को देखा। हम सोचते हैं कि क्या वह इतने विराट व्यक्तित्व के स्वामी है जितना वर्णन किया जाता है या उनका पद ही उनको विराटता प्रदान कर रहा है। दूसरी ही बात सही लगती है।
जार्ज बुश को तो राष्ट्रपति बनने से पहले तक यही नहीं मालुम था कि भारत देश किस दिशा में है, पर बाद में भारत का लोहा मानते हुए दिखाये और बताये गये।
अब ओबामा की चाल ढाल पर नज़र रखी। एक ऐसे इंसानी बुत नज़र आये जिसे विराट व्यक्तित्व का स्वामी बना दिया गया है। कोई कसर नहीं रहे इसलिये उनको शांति का नोबल भी दिया गया। अनेक लोग हैरान हुए थे पर उस समय भी हमने लिखा था कि विश्व का बाज़ार अपना यह बुत चमका रहा है। यह बात अब सत्य लगती है।
उनके साथ 250 पूंजीपतियों का समूह आया है। मुंबई में भारतीय पूंजीपतियों के साथ ही उनका सम्मेलन है। अमेरिका चाहता है कि भारतीय पूंजीपति उनके यहां निवेश करे। इस सम्मेलन को एक मुखिया की तरह ओबामा संबोधित कर चुके हैं। पहले भी राष्ट्रपति ऐसा ही कर चुके हैं। पूंजीपति यानि इस धरती का सूर्य जिससे सभी को जीवन मिलता है। अमेरिका में यह सच होगा पर भारत में आज भी कृषि आधारित व्यवस्था है। अगर यहां कृषि ठप्प हो जाये तो फिर पैसा नहीं मिलने का। भारत का पानी भी अब बाहर बिकने लगा है जो यहां के पूंजीपतियों के पैट्रोल जैसा कीमती हो गया है। कहा जाता है कि भारत में जलस्तर जितना ऊपर है उतना कहीं नहीं है। यह प्रकृति की कृपा है पर अब पानी भी पैट्रोल की तरह दुर्लभ होता जा रहा है। धरती पर स्थित सौर मंडल का भगवान बस, पद पैसा और प्रतिष्ठा कमाना है सो उसे कई बातों से मतलब नहीं है। वह राजा और प्रजा दोनों को अपनी गिरफ्त में रखता है। ऐसे में अब भारत दोहन अभियान शुरु हो गया है लगता है।
आज जार्ज बुश उनके पिता तथा दादा की भी चर्चा हुई। पता लगा कि वह हथियार कंपनियों के मालिक थे इसलिये ही उन्होंने अपने समय में युद्ध का रास्ता अपनाया ताकि माल की खपत हो सके। यह पहली बार पता लगा कि अमेरिका में हथियार बेचने वाली लॉबी इतनी दमदार है। इसका मतलब हमारा यह दावा सही होता जा रहा है कि दुनियां में अब अनेक जगह अब इंसानी बुत सौदागरों के मुखौटे बनकर राजा के पद पर सुशोभित हो रहे हैं।
प्रचार माध्यम कहते हैं कि ओबामा उन सबसे अलग हैं। इसे हम यूं भी मान सकते हैं कि वह हथियार लॉबी से इतर किसी अन्य लॉबी के इंसानी बुत हैं। वैसे वह हथियारों की बिक्री बढ़ाने तो वह भारत यात्रा पर पधार हैं पर साथ ही अन्यत्र क्षेत्रों में वह यहां का सहयोग चाहते हैं। अन्य व्यापारियों ने हथियार व्यापारियों से कहा होगा कि‘भई, कुछ हमारा काम हो जाये, इसलिये इस बार हमारी पंसद का राष्ट्रपति आने दो।’
हथियार लॉबी का काम तो होना ही था सो वह मान गये होंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार ओबामा के प्रतिद्वंद्वी का नाम आखिर तक किसी को पता नहीं चला। आज ओबामा यह कर रहे हैं, आज वहां बोलेंगे, ओबामा के बारे में यह अफवाह फैली-ऐसी बातें भारतीय प्रचार माध्यम ही नहीं इंटरनेट पर भी आती रहीं। न आया तो उनके प्रतिद्वंद्वी का नाम। वैसे ओबामा चेहरे से भले लगे। धरती के सौरमंडल के ग्रहों ने बहुत सोच समझकर उनको चुना। हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है। अगर हम कहें कि उनको क्यों लाये तो यह बात भी तय है कि उनकी जगह कोई दूसरा चेहरा या इंसानी बुत आना था। वह जो भी बोलेंगे अपने सहायकों के इशारे से ही बोलेंगे। कई बार तो लिखा हुआ पढ़ेंगे। इसका मतलब यह है कि उनको एक ऐसे इंसानी बुत की तरह प्रस्तुत किया गया है कि जो समझकर बोलता हो। बाकी तो उनको गुड्डे की तरह खूब चलाया जायेगा। कभी कभी तो लगता है कि उनको भी यही पता न होगा कि उनको अगली बार कौनसी लाईन बोलनी है या अगले कार्यक्रम में आखिर विषय क्या है? अमेरिका का राष्ट्रपति दुनियां का सबसे दबंग आदमी है-ऐसा कहा गया पर हम सोच रहे थे कि वाकई क्या यह सच है?
धरती का सौर मंडल उस पर तथा यहां विचरण करने वाले जीवों पर क्या प्रभाव डालता है हमें नहीं दिखता लगभग उसी तरह ही धरती पर विचरने वाला सौर मंडल किस तरह राजा और प्रजा को चला रहा है यह आम आदमी नहीं जानते। जो जानते हैं वह बता नहीं सकते क्योंकि वह खुद उसका हिस्सा होते हैं।
आखिरी बात यह है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ताज के अलावा दो अन्य जगह भी हुए थे। जिसमें रेल्वे स्टेशन भी शामिल था जहां आम आदमी अधिक होते हैं। ओबामा ने केवल ताज के शहीदों को ही श्रद्धांजलि दी। आतंकियों को चुनौती देने के लिये ही वह ताज होटल में रुके ऐसा कहा जा रहा है। इससे भी हमें कोई शिकायत नहीं पर धरती के सौरमंडल की प्रतिबद्धता साफ दिखाई दे रही है कि वह कुछ विषयों पर प्रजा के जज़्बातों की परवाह नहीं करता। वह अपने इंसानी बुत को रेल्वे स्टेशन नहीं ले जा सकता क्योंकि सौर मंडल के ग्रहों में इतनी ताकत है कि उनकी परिक्रमा प्रजा की चाल से प्रभावित नहीं होती।

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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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