गुरदासपुर में हमले से भारत में भारी नाराजगी का वातावरण है अनेक सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान का सिंध प्रांत ऐसा है जहां अगर सही रणनीति अपनायी जाये तो भारत उस पर नियंत्रण कर सकता है। पाकिस्तान के सिंधी भाषी मूलतः वहां के पंजाबी भाषियों से सांस्कृतिक दृष्टि से एकरूप हैं पर दोनों के बीच भारी वैमनस्य है। इसका कारण यह है कि पंजाब चूंकि हिमालय के निकट इसलिये वहां से नदियां बहकर सिंध जाती हैं। पंजाब में उनके जल का इतना दोहन हो जाता है कि सिंध पहंुचते पहुंचते उनमें जल कम रह जाता है। दूसरी बात यह कि प्रभावशाली पंजाबियों ने पाकिस्तान तो ले लिया पर लाहौर से अधिक कराची में भारत से गये उर्दू भाषियों को बसाकर वहां सिंधियों के लिये एक नया विरोधी समुदाय स्थापित किया। इतना ही नहीं भारत से गये जितने भी अपराधी हैं वह सब कराची में जाकर रहते हैं। कभी लाहौर या मुल्तान में उनका निवास नहीं सुना जाता।
आज भी प्रभावशाली पंजाबी समुदाय सिंध, ब्लूचिस्तान और सीमा प्रांत को अपने अनुचर की तरह मानता है। हम कहते हैं जरूर है कि भारत में कोई स्वयं को पहले भारतीय नहीं मानता पर सच यह है कि भारत शब्द इतना प्राचीन है कि जनमानस में इस कदर बसा है कि उसे स्वयं को भारतीय कहने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान की स्थिति अलग हैं। वहां के जनमानस में भारत शब्द से घृणा भरी गयी है। समस्या यह है कि पाकिस्तान के प्रति वहां कोई वफादार बन नहीं सकता। ऐसे में पाकिस्तान मानसिक रूप से भी एक विघटित राष्ट्र है।
हमारे भारत के रणनीतिकारों को चाहिये कि वह सिंध में पाकिस्तान के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों को जीवंत करें। वहां जियो सिंध आंदोलन चलता रहा है जिसके शीर्ष नेता हमेशा भारत की तरफ सहायता के लिये ताकते रहे हैं। अगर सिंध पाकिस्तान के लिये समस्या बना तो वह आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से लड़खड़ा जायेगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
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अनजान में भटके
राही को सही रास्ता
सुझा सकते हैं।
जानकर चले तबाही के रास्ते
उसे समझाते हुए अपनी अक्ल के
चिराग बुझा सकते हैं।
कहें दीपक बापू शहर बड़े हैं
हादसों के डर से सहम जाते
एक वहम से बचते
दूसरा साथ लाते
अंग्रेजी में भटके इस तरह
उनको खुश करने के लिये
हिन्दी के चिराग
चाहे जब बुझा सकते हैं।
——————
दर्द के व्यापारी
कभी अपने चेहरे पर भी
जख्म कर लेते हैं।
खाली बैठे होते
तब भरे बाज़ार रक्त
बहाने की रस्म भी कर लेते हैं।
कहें दीपक बापू खुशी से
जीना नहीं सीखा ज़माना
मस्ती के लिये
झगड़े का ढूंढता बहाना
जज़्बात सजाये बैठे दुकान पर
बेचने के लिये
वह अमन के घर भी
भस्म कर देते हैं।
…………
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”
Gwalior Madhya Pradesh
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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जिस तरह गुरुओं की पूजा हो रही है उससे तो लगता है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अध्यात्मिक ज्ञान देने वाले को ही गुरु मानने के सिद्धांत की मजाक बन रहा है। यहां तो सांसरिक विषयों में शक्कर का स्वाद दिलाने वाले गुड़ ही पुज रहे हैं।
हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार गोविंद यानि परमात्मा और गुरु दो प्रथक विषय है पर सांईबाबा के भक्तों का भय भ्रम पैदा करता है। जब गोविंद का दिन हो तो भी उनके दरबार में समागम करते हैं और गुरु का दिन हो तो भी वही करते हैं। चमत्कारों के लिये प्रसिद्ध सांईबाबा की भक्ति केवल भौतिक लाभ की चाहत पूरी करने के लिये होती है जो अंततः अध्यात्मिक ज्ञान के धारण करने की बात तो दूर उसे सुनने से भी रोक देती है।
फिल्मी कलाकार, क्रिकेट खिलाड़ी तथा लोकप्रिय विषयों से जुड़े लोग जो शीर्ष पर पहंुंच गये हैं अपने शिक्षकों के गुरु होने का बखान इस तरह कर रहे हैं जैसे कि उन्हें कोई अध्यात्मिक रूप से कोई बड़ी सफलता मिली हो। हमारे अध्यात्मिक दर्शन संदेशों का अर्थ समझे तो उसके अनुसार सांसरिक विषयों में हर किसी को भाग्य और परिश्रम के अनुसार सफलता मिलती है पर इसमें सहायक लोग अध्यात्मिक गुरुओं जैसे पूज्यनीय नहीं हो सकते। बहरहाल गुरु पूणिर्मा पर इस तरह के दृश्य गंभीर अध्यात्मिक भाव की बजाय सांसरिक विषयों के प्रति हास्य रस का आनंद दिलाते हैं। हमारे अनुसार सांसरिक विषयों के शिक्षकों की जरूरत तो एक नहीं तो दूसरा पूरा कर देता है पर अध्यात्मिक गुरु बड़ी कठिनाई से ही मिलते है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर
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गुरदासपुर में हुआ पाकिस्तानी प्रायोजित हमला बहुत गंभीर है-यह सभी मान रहे हैं पर ऐसे हमले आगे न हों इसका स्थाई उपाय करने की बात पर सभी खामोश हो जाते हैं। सन् 1971 के बाद भारतीय सेना ने सीमा पार जाकर पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाया है जबकि इसकी आवश्यकता लंबे समय से अनुभव की जा रही है-कारगिल युद्ध में भारत ने सीमा पार नहीं की इसका पाकिस्तान इसे भारत की कमजोरी समझ रहा है। पाकिस्तान सीना तानकर कहता है कि उसके पास परमाणु बम है और वह युद्ध में परंपरागत हथियारों की बजाय उसका इस्तेमाल करेगा। भारत के रणनीतिकार इस धमकी पर खामोश हो जाते हैं। निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक कह चुके हैं कि पाकिस्तान के परमाणु बम से भारत का जो होगा सो होगा पर जवाबी कार्यवाही में पाकिस्तान का अस्तित्व मिट जायेगा। पाकिस्तान के अस्तित्व मिटने की बात पर वहां से ज्यादा भारत के रणनीतिक विशारद ज्यादा घबड़ाते हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तान का अस्तित्व बना रहना भारत के हित में है। अगर उनकी बात सही माने तो उन्हें यह भी समझना चाहिये कि कम से कम दस वर्ष में एक बार सीमा पार जाकर पाकिस्तान को सबक सिखाते रहना जरूरी होगा। वह लातों का भूत है बातों से नहीं मानेगा।
जहां तक पाकिस्तान के अस्तित्व का प्रश्न है पाकिस्तान के रणनीतिकार इसके लिये कम चिंतित नहीं होंगे। परमाणु बम हमले की धमकी देते जरूर हैं पर उनको पता है कि अंततः सबसे बुरे नतीजे उन्हें भी भोगने होंगे। जिस तरह भारत के सुविधा भोगी युद्ध के नाम से सिहरते हैं उसी तरह पाकिस्तान के सुविधाभोगी रणनीतिकार भी कम विचलित नहीं होंगे। थोड़ी मार झेलकर उन्हें खामोश होना ही होगा। इस थोड़ी मार से सीधा आशय यही है कि दस पंद्रह वर्ष में एक बार भारतीय सेना पंजाब से बाघा सीमा या गुजरात के कच्छ के रण से एक बार निकल कर पाकिस्तान को ठोके। रहा परमाणु बम का सवाल तो पाकिस्तान कोई अमेरिका नहीं कि बम फैंक ही लेगा और भारत भी कोई जापान जैसा छोटा देश नहीं है कि दो चार परमाणु बम खाकर चुप बैठ जायेगा। वैसे भी अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञ अक्सर पाकिस्तान को समझाते हैं कि पाकिस्तान जब भारत पर परमाणु बम फैंकने की सोचगा तब तक भारत उसे पहले ही अपने परमाणु बम उपहार में आकाश से प्रस्तुत कर इस तरह कृतार्थ करेगा कि वह उठ ही नहीं जायेगा-पाकिस्तान बचेगा ही नहीं कि वह परमाणु बम फैंके।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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‘आज दिल्ली में बादल छाये रहने की आशंका है’-यह वाक्य एक हिन्दी समाचार टीवी चैनल पर उद्घोषक है। जिन लोगों ने अपनी शिक्षा हिन्दी माध्यम से प्राप्त की है उनके लिये अक्सर इन समाचार टीवी चैनलों पर आशा, आशंका और संभावना जैसे शब्द दर्शक की गंभीर बुद्धि में चल रही गेयता के दौर में अवरोध पैदा करते हैं।
इस समय दिल्ली में गर्मी पड़ रही है। अगर बादल छायेंगे तो तापमान कम होगा-यानि वहां के नागरिकों के लिये यह खबर इस आशा के कारण उत्साहवर्द्धक हो सकती है कि वह अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाहर निकल सकतेे हैं। यहां हिन्दी भाषा का शब्द ‘संभावना’ का उपयोग देश में रहने वाले अन्य क्षेत्र के लोगों के लिये निरपेक्ष भाव प्रदर्शन में हो सकता है। गर्मी में बादलों का छाना की आशंका नहीं हो सकती। हां, अगर सर्दी हो तो यह आशंका बन जाती है पर तब भी संभावना शब्द ही उपयोग किया जाना चाहिये।
हिन्दी की यह खूबी है कि वह जैसी लिखी जाती है वैसी बोली जाती है। हिन्दी पाठकों और दर्शकों में भी एक खूबी होती है कि वह बोलचाल में भले ही वह दूसरी भाषाओं के शब्द स्वीकार करते हैं पर जहां वह पठन पाठन, श्रवण अथवा अध्ययन के लिये तत्पर होते हैं तब शुद्ध हिन्दी उनके लिये अधिक गेय होती है। इस बात को हिन्दी के व्यवसायिक प्रकाशन नहीं जानते यही कारण है कि आज भी अंग्रेजी के संस्थानों से स्तरहीन माने जाते हैं। ऐसा लगता है कि हिन्दी समाचार चैनल वाले अपने यहां नियुक्त कर्मचारियों की भाषाई योग्यता से अधिक किन्ही अन्य योग्यताओं पर दृष्टिपात करते हैं।
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हमारे देश में लोग भोजन की बात तो करते हैं पर उसे ग्रहण करने का तरीके और पचाने की शक्ति पर कभी विचार नहीं करते। हम भोजन में कब, क्या और कितना खायें-यह सवाल अनेक लोगों को परेशान करता है। अनेक लोग तो अपने से सवाल पूछकर ही स्वयं से ही कन्नी काट जाते हैं। हमारा मानना है कि पेट में ऐसे ही भरें जैसे स्कूटर या गाड़ी में उतना ही ईंधन भरवाते हैं जितना टंकी में आता है। अंतर इतना है कि अगर उनकी टंकी में ज्यादा पेट्रोल भरा जाये तो वह बाहर फैल जाता है और उसे कपड़े से साफ किया जा सकता है पर अगर पेट में भरा ईंधन फैला तो वह शरीर में ही इधर उधर फैलता है जिसे साफ करना कठिन है। कालांतर में यही अति भोजन बीमारियों का कारण बनता है।
आजकल स्थिति यह हो गयी है कि लोग भोजन के बारे में कम अपने लिये धन संपदा अर्जन पर अधिक मानसिक ऊर्जा नष्ट करते हैं। परंपरागत घरेलू रोटी सब्जी की जगह बाज़ार में चटकदार मसाले का खाना चाहते हैं। उससे भी ज्यादा मैदे के बने पिज्जा तथा अन्य सामग्री सामान्य लोगों के लिये प्रिय भोजन बनता जा रहा है। परिणाम हम देख ही रहे हैं कि आजकल अस्पताल पांच सितारानुमा बन गये हैं। उनके बाहर की नामपट्टिका भी संस्कृत के मधुर शब्दों-आस्था, संस्कार, संजीवनी आदि-से सजी हुई हैं। अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति से किसी बीमारी का इलाज नहीं होता पर इसके सहारे रहने वाले चिकित्सक भारी पैसा कमा रहे हैं।
हर व्यक्ति दावा करता है कि वह स्वयं परिवार तथा रोटी के लिये कमा रहा है पर उसी के प्रति वह गंभीर नहीं दिखता। लोग खाने का बाहरी आकर्षण और स्वाद देखते हैं यह जानना ही नहीं चाहते कि उनके हाथ से उदरस्थ सामग्री सुपाच्य है कि नहीं। खासतौर से शादी आदि समारोह में लोगों की यह दिलचस्पी ही खत्म हो गयी है कि वह जो खा रहे हैं कि उससे उसे वह पचा पायेंगे कि नहीं। कई घंटे पहले रखा सलाद खा लेते हैं जिसके खराब होने की पूरी आशंका रहती है।
सबसे बड़ी बात यह है कि खाने के बाद आदमी में जो संतोष का भाव होना चाहिये उसकी अनुभूति करना ही भुला दिया गया है। कहा जाता है कि भोजन प्रसाद की ग्रहण करना चाहिये। यह भी कहा जाता है कि प्रसाद भोजन की तरह नहीं लेना चाहिये। लोगों खाने पीने में किसी नियम का पालन नहीं कर रहे। हमारा मानना है कि भोजन शांत भाव से ग्रहण करते हुए सर्वशक्तिमान का इस बात के लिये मन ही मन धन्यवाद देना चाहिये कि उसने हमें न केवल वह दिया वरन् हमें पचाने की शक्ति भी दी।
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19/07/2015 – 4:31 अपराह्न
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आमतौर से बड़ी आयु में मौत होना ही स्वाभाविक माना जाता है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य राजरोगों से एक सामान्य मनुष्य एक आयु तक स्वयं ही लड़ लेता है पर बड़ी उम्र होने पर वह हथियार डाल देता है। अब छोटी आयु में मौतें भी अधिक होने लगी हैं जिस पर शायद ही कोई अधिक चिंतित होता हो। सड़क हादसों में अनेक युवा काल कवलित होते देखे गये हैं। अगर बड़ी आयु के लोग अपनी स्मरण शक्ति पर बोझ डालें तो उन्हें लगेगा कि अपनी युवा अवस्था से अधिक उम्र के इस पड़ाव अनेक गोदें सूनी होते देख रहे हैं। बहरहाल तीस से चालीस के बीच अगर सड़क हादसे की बजाय बीमारी से किसी की मौत हो तो अब भी स्वाभाविक मानना कठिन लगता है पर जिस तरह तंबाकू के पाउचों का प्रचलन हुआ है उस पर अनेक स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं। अनेक लोग तो इन पाउचों को धीमे विष जैसा मानते हैं। ऐसे में जागरुक लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिये।
इस लेखक ने एक चिकित्सक मित्र को एक अस्वस्थ युवक के पिता से यह कहते सुना था कि‘अगर तुम्हारा लड़का इस पाउच का सेवन बंद नहीं करता तो समझ लेना कि वह तुम्हें दुनियां का सबसे बड़ा दर्द देने वाला है।’ अतः यह जरूरी है कि इस विषय पर गंभीरता से अनुसंधान कर लोगों को जानकारी दी जाये।
शायद दस वर्ष पूर्व की बात होगी। इस लेखक के एक मित्र न मात्र 42 वर्ष की उम्र में हृदयाघात से दम तोड़ा होगा। वह ऐसे पाउचों का सेवन करता था। उससे एक दो वर्ष पूर्व एक लड़के ने इन पाउचों के सेवन का दुष्परिणाम बताया था। उसने पाउच की पूरी सामग्री एक ग्लास में भरते हुए पानी के साथ ही चार आल्पिनें उसमें डाल दीं। सुबह वह चारों आल्पिने गुम थीं। मित्र की मौत के बाद इस लेखन ने कम उम्र में हृदयाघात से मरने वालों की जानकारी लेना प्रारंभ किया। दस में से सात इसके सेवन में लिप्त पाये गये। पिछले बीस पच्चीस वर्ष से यह पाउच प्रचलन में आया है इसलिये अनेक बड़ी आयु के भी इसका शिकार होते हैं तो बड़ी बात नहीं पर चूंकि उनकी मौत स्वाभाविक मानी जाती है इसलिये कोई चर्चा नहीं करतां।
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11/07/2015 – 2:24 अपराह्न
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हमारे देश में सरकार ने डिजिटल इंडिया सप्ताह का प्रारंभ किया है। डिजिटल इंडिया की सफलता के लिये बहुत सारा पैसा खर्च करने की बात चल रही है। अपना स्वदेशी अंतर्जालीय मस्तक यानि सर्वर बनाया जाना चाहिये। इतनी सारी टेलीफोन कंपनियां हैं पर आज तक एक भी स्वदेशी सर्वर नहीं बन पाया-इस पर अनेक विशेषज्ञों को हैरानी है।
इतने उद्योगपति भारत में हैं। साफ्टवेयर में भारतीय इंजीनियर दुनियां में झंडा फहरा रहे हैं। फिर भी भारत में एक भी स्वदेशी सर्वर नहीं बन सका जो केवल अपने ही देश का अंतर्जालीय बोझ उठा सके और हम कह सकें कि यह है हमारा भारतीय अंतर्जालीय मस्तक। हैरानी की बात यह है कि यह अभी भी एक सपना लगता है
व्यापार सभी करते हैं पर प्रबंध कौशल किसी किसी में ही होता है। हमारे देश में आबादी सदैव अधिक रही है। प्रकृत्ति की कृपा भी अन्य देशों की अपेक्षा यहां अधिक है। मानव श्रम और उपभोक्ता अधिक होने से यहां वणिकों के लिये सदैव एक बाज़ार रहा है पर उन्हें दैनिक उपभोग क्रय विक्रय करने में हमेशा सुविधा उठाने की योग्यता ही रखते हैं। इसलिये उन्हें प्रबंध कौशल की आवश्यकता नहीं रहती। व्यापार में प्रबंध कौशल का पता सामने उपस्थित वस्तु के विक्रय से नहीं वरन् विक्रय योग्य नयी वस्तु के निर्माण तथा उसके लिये बाज़ार बनाने से ही पता लगता है। इस मामले में पश्चिमी जगत अपने हमसे आगे है। विदेशी सर्वरों के चलते भारतीय संचार व्यवसायियों ने देश के उपभोक्ताओं का जमकर दोहन किया। वह भी तब जब भारतीय संचार निगम का प्रदर्शन गिराता गया। अपना पैसा देश में रखा या बाहर ले गये यह तो पता नहीं पर उन्होंने यहां संचार के क्षेत्र में किसी नये निर्माण को प्रोत्साहित नहीं किया। स्वदेशी अंतर्जाल मस्तक यानि सर्वर का न होने भारत के कथित पूंजीपतियों के प्रबंध कौशल तथा देश से प्रतिबद्धता रखने के अभाव को पूरे विश्व में दर्शाता है।
बताया तो यहां तक जाता है कि अमेरिका अंतर्जालीय उपलब्धियों में हमसे आगे है पर ईरान और चीन भी कम नहीं है। एक बात हम यहां स्पष्ट कर दें कि हमारी दृष्टि से भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों की वैश्विक योग्यता को देखते उनकी यह अग्रता हो ही नहीं सकती। चीन तो यह बात स्पष्ट रूप से मान ही चुका है कि भारत की बौद्धिक क्षमता उससे आगे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता ही है कि आखिर हमारे देश के कथित सेठ क्यों नहीं ऐसा कर पाये? क्या यह उनकी इस मानसिकता का प्रमाण नहीं है कि वह अपने समाज या देश के किसी व्यक्ति को इतना प्रसिद्ध या सफल होते नहीं देखना चाहते जो उनकी सामने खड़े होकर आंखें मिला सके? एक स्वदेश अंतर्जालीय मस्तक या सर्वर का न होना तो यही दर्शाता है।
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ईमानदार हो या नहीं
ज़माने को बहलाने के लिये
दिखना जरूरी है।
किसी के जिस्म पर रहम करें
मगर दौलत और शोहरत के लिये
इंसानों के जज़्बातों से
खेलना जरूरी है।
कहें दीपक बापू सबसे ऊंचा हिमालय
त्यागियों का ही आश्रयदाता है
जज़्बातों के सौदागरों की छवि
सन्यासी जैसी दिखाने के लिये
नकली हिमालय बनाना जरूरी है।
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हमसे तेल लेकर
अपने घर की
रौशनी उन्होंने जलाई।
चहक रहे हैं वह
अपनी मस्ती में
न चिराग अपना न दियासलाई।
कहें दीपक बापू रौशनदान से
हम भी झांक लेते हैं,
कैसे वह अपनी दरियादिली
अपने मुंह से फांक देते हैं,
ज़माने की क्या करेंगे भलाई
पहले स्वयं तो खा लें मलाई।
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25/06/2015 – 10:05 पूर्वाह्न
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प्रचार माध्यमों के अनुसार ब्रिटेन में इस बात पर बहस छिड़ी है कि गॉड स्त्री है या पुरुष! हमारे हिसाब से उन्हें इस बात पर बहस करना ही नहीं चाहिये क्योंकि अंग्रेजी में स्त्री या पुरुष की क्रिया के वाचन शब्द का कोई विभाजन ही नहीं है। स्त्री कार्य कर रही है(Women is working) या पुरुष कार्य कर रहा है(Men is working) इसमें अंग्रेजी वर्किंग शब्द ही उपयोग होता है। यही कारण है कि अनेक कट्टर हिन्दी समर्थक अपनी भाषा को वैज्ञानिक और अंग्रेजी को भ्रामक मानते हैं। यह बहस देखकर उनके तर्क स्वाभाविक लगते हैं|
सर्वशक्तिमान की स्थिति पर भारतीय दर्शन स्पष्ट है। हमारे यहां परब्रह्म शब्द सर्वशक्तिमान के लिये ही उपयोग किया जायेगा। मुख्य बात यह कि वह अनंत माना जाता है-यह स्पष्ट किया गया है कि वह चित में धारण किया जा सकता है पर वह रूप, रस, गंध, स्वर और स्पर्श के गुणों से नहीं जाना जा सकता। वह चिंत्तन से परे है पर मनुष्य अपने चित्त में जिस गुण से उसका स्मरण करेगा वही उसका ब्रह्म है।
हमारे यहां विदेशी विचाराधारा के प्रवर्तक सब का सर्वशक्तिमान एक है का नारा लगाते हुए यहां भ्रम पैदा करते हैं। सद्भाव के नाम पर यही नारा लगाते हैं पर सच यह है कि वह एक है कि अनेक, यह कहना या मानना संभव नहीं। अनेक विद्वान तो यह भी कहते हैं कि वह है भी कि नहीं इस पर भी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अनंत है। इसलिये उस पर बहस करना ही नहीं चाहिये। वह वैसा ही है जैसा भक्त है। भक्त जिस रूप में चाहता है उसे धारण कर ले। हमारे यहां अनेक साकार स्वरूप माने जाते हैं। भक्ति को जीवन का अभिन्न भाग माना जाता है। यही कारण है कि निराकार परब्रह्म की कल्पना में असहजता अनुभव करने वाले साकार रूप में उसे स्थापित करते हैं पर उनमें यह ज्ञान रहता ही है कि वह अनंत है। अपने अपने स्वरूपों को लेकर बहस कहीं नहीं होती। यह तत्वज्ञान हर भारतीय विचारधारा में स्थापित है इसलिये यहां ऐसी निरर्थक तथा भ्रामक चर्चा कभी नहीं होती।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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