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हिन्दी अंग्रेजी का मिक्चर-हिन्दी व्यंग्य कविता (hindi aur inglish ka mixer-hindi vyangya kavita)


हिन्दी बोले बिना कान नहीं चलता,
अंग्रेजी में न बोलें तो दिल जलता।
आधी हिन्दी आधी अंग्रेजी बोलकर
हर कोई युवा मन खुद ही बहलता।
भाषा के मिक्चर से गूंगा बना ज़माना
देख कर हमारा दिल हर रोज दहलता।
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अखबार आज का ही है
खबरें ऐसा लगता है पहले भी पढ़ी हैं
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

ट्रेक्टर की ट्रक से
या स्कूटर की बस से भिड़ंत
कुछ जिंदगियों का हुआ अंत
यह कल भी पढ़ा था
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

भाई ने भाई ने
पुत्र ने पिता को
जीजा ने साले को
कहीं मार दिया
ऐसी खबरें भी पिछले दिनों पढ़ चुके
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

कहीं सोना तो
कहीं रुपया
कहीं वाहन लुटा
लगता है पहले भी कहीं पढ़ा है
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

रंगे हाथ भ्रष्टाचार करते पकड़े गये
कुछ बाइज्जत बरी हो गये
कुछ की जांच जारी है
पहले भी ऐसी खबरें पढ़ी
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

अखबार रोज आता है
तारीख बदली है
पर तय खबरें रोज दिखती हैं
ऐसा लगता है पहले भी भी पढ़ी हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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हमें पता है कि सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण सामान्य प्राकृतिक घटना है-हिन्दी लेख (chadra grahan and sooryagrahan-hindi lekh)


    दुनियां में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण आते रहते हैं। बरसों से हम देख रहे हैं पर इतनी चर्चा कभी नहीं होती थी। बचपन में बुजुर्गों के पहले ही पता चल जाता था कि अमुक तारीख को सूर्य ग्रहण या चंद्रग्रहण है। उस दिन कुछ सावधानी बरतने की बात कही जाती पर वह आज के टीवी चैनलों की तरह महाबहस का विषय नहीं होती थी। सच कहें तो सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण को सामान्य घटना ही माना जाता था। कहीं आतंक या डर का माहौल नहीं देखा। आजकल   टीवी चैनलों ने दोनों ग्रहणों का बाज़ारीकरण कर दिया है।
         कह रहे हैं कि डरो नहीं, खूब देखो। कुछ परेशानी नहीं है। इन चैनलों पर बहस के लिये आने वाले वही लोग होते हैं जो पहले भी आते रहे हैं। खगोलशास्त्र से जुड़ी इन घटनाओं पर चर्चा करने के लिये ज्योतिषी बुलाये जाते हैं। फिर उनका मुकाबला करने के लिये कुछ आधुनिक विज्ञान समर्थक भी होते हैं। प्रचार इस तरह किया जाता है कि जैसे हिन्दू समाज में ही अंधविश्वास हो और पश्चिमी विज्ञान एकदम प्रमाणिक है। यह सब देखकर हम तो यह सोचते हैं कि भारतीय हिन्दू समाज इतना अविकसित ओर पिछड़ा नहीं है जितना आधुनिक ज्ञानी समझते हैं। देखा जाये तो हमारी श्रीमद्भागवत गीता के प्रचलन में आने के बाद भारतीय समाज शायद दुनियां का इकलौता समाज है जो समय के साथ आगे बढ़ता जाता है। यह अलग बात है कि प्रगतिशील और जनवाद से जुड़े विद्वानों का सभी जगह बाहुल्य है जिनकी यह मनोवृत्ति है कि संपूर्ण भारतीय अध्यात्म दर्शन को अवैज्ञानिक तथा समाज को जड़ साबित कर अपनी चेतना की व्यवसायिक धारा प्रवाहित की जाये। फिर उनके साथ बहस करने वाले भारतीय अध्यात्म के ज्ञानी भी कुछ इस तरह पेश आते हैं जैसे कि अंधविश्वास का समर्थन कर रहे हों। पेशेवर ज्योतिषी अपने प्रचार क्रे लिये आते हैं तो उनका मुकाबला करने पेशेवर बहसकर्ता आते हैं। चर्चा कराने वाले उद्घोषक का तो कहना भी क्या? निरपेक्ष दिखने की कोशिश इस तरह करते हैं जैसे कि लग रहा हो कि किसी विषय पर सहमति या असहमति न देना ही उनकी योग्यता का प्रमाण हो।
       भारत के हिन्दी टीवी चैनलों में कार्यरत उद्घोषकों का यह भाग्य है कि भारतीय अध्यात्म की व्यापकता ही उनको इस तरह के कार्यक्रम प्रदान करती है। जिसमें ढेर सारे ग्रंथ हैं और उसमें जीवन के हर पक्ष के साथ -जिसमें मनुष्य तथा अन्य जीव भी शािमल हैं-प्रकृति के रहस्यों पर भी प्रकाश डाला गया है। जबकि अन्य दर्शनों में अन्य जीवों की उपेक्षा कर केवल मानव जीवन पर ही अधिक लिखा और बोला जाता हैं। कुछ बातें मनुष्य समाज के संचालन से संबंधित होती हैं।
        प्रकृति के रहस्यों पर पश्चिम तो अब दृष्टिपात कर रहा है जबकि भारतीय अध्यात्म दर्शन में बहुत पहले ही इस पर लिखा गया है। हमने पंचांगों में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण की तारीखें देखी हैं जो कि यकीनन पश्चिमी विज्ञान से नहीं ली गयीं। पहले लोग अखबार पढ़े बिना बताते थे कि अमुक दिन चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण है।
बहरहाल भारत के टीवी चैनल अपने व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति अपने अध्यात्मिक दर्शन के आधार पर कर लेते हैं यह अलग बात है कि अपने चश्में से समाज को अधंविश्वासी समझने वाले उद्घोषक अपने को भले ही चालाक समझें पर हम सब जानते हैं कि उनकी अदायें ऐसी न हों तो शायद उनका काम भी न चले।
       पिछली बार के पूर्ण सूर्यग्रहण की याद आती है जब कहा गया है कि उसे देखना ठीक नहीं है और देखना है तो विशेष प्रकार के चश्में से देखें। सामान्य रंगीन चश्में से काम नहीं चलेगा। हम आज भी सामान्य काले चश्में से दोपहर मेें तपते हुए सूर्य को आसानी से देख पाते हैं। तब यह सवाल आता है कि ग्रहण के समय जब सूर्य का प्रकाश कम हो जाता है तो वह सामान्य से अधिक खतरनाक कैसे हो सकता है। उस समय खूब सूर्यगं्रहण देखने वालेचश्में बिके थे उसमें कुछ तो नकली भी बताये गये थे। तय बात है कि बाज़ार ने ही ऐसा प्रचार करवाया होगा ताकि वह अपने उत्पाद बेच सके। वैसे तो इष्ट दिवस, मित्र दिवस, पितृदिवस, मातृदिवस तथा प्रेम दिवस जैसे पश्चिमी दिवसों को भारतीय प्रचार माध्यम अपने प्रायोजक बाज़ार के लिये विज्ञापन प्रसारित कर उसके लिये ग्राहक जुटाते हैं। वैसे ही भारतीय त्यौहारों के साथ सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण भी उनके लिये विज्ञापन प्रसारण के बीच में कार्यक्रम की सामग्री बन जाते हैं।
      वैसे चर्चाओं में शामिल लोग भारतीय समाज को फालतु समझते हैं पर लोगों को लगते स्वयं फालतू हैं-हम नहंी मानते क्योंकि पता है कि यह सब कमाई करने और प्रचार पाने के लिये बहस करने आते हैं।
हम यह खग्रास चंद्रग्रहण देख पायेंगे कि पता नहीं। यह लेख लिखने के तत्काल बाद ही सोने का प्रयास करेंगे। अगर बीच में नींद टूटी तो छत पर देखने जायेंगे कि कैसा है खग्रास चंद्रग्रहण। जहां हानि लाभ, दुःख सुख, और जीवन मरण का सवाल है तो वह इस संसार का हिस्सा हैं। जब तक देह हैं तो विकार आयेंगें। भूख लगेगी, प्यास लगेगी। कभी जीभ किसी नये स्वाद के लिये चीत्कार करेगी। जिस तरह सत्य अनंत है वैसे ही माया भी अनंत है। सत्य सूक्ष्म है और उसे ध्यान आदि के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है तो माया इतनी व्यापक है कि उसके चक्र में फंसे तो सभी हैं पर समझ नहीं पाते। खेलती माया है और आदमी सोचता है कि मैं खेल रहा हूं।
      जहां तक चर्चाओं का सवाल है तो भारतीय अध्यात्म इतना विशाल है कि जिस विषय पर चाहो बहस कर लो। जहां चार बुजुर्ग मिलते हैं किसी न किसी धर्मग्रंथ पर बहस करने लगते हैं। सभी अपना ज्ञान सुनाते हैं पर सुनता कौन है पता नहीं। सभी बोलते हैं। यही हाल टीवी चैनलों का है पर वहां के उद्घोषक तमाम तरह के तामझाम और आकर्षण मे घिरे होते हैं इसलिये उनको विद्वान माना जाता है। यह अलग बात है कि उनकी महाबहस-यह शब्द आज तक हमारे समझ में नहीं आया-अध्यात्मिक में वास्तविक रुचि रखने वालों के लिये हास्य का विषय होती है।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior

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