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शराब और शराबी -हास्य कविता (drink and drunker-hindi comedy poem)


त्यौहार के दिन
फंदेबाज घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू आज पहली बार दे रहा हूं सात्विक बधाई,
यह पहला मौका है है
जब मैने किसी खास अवसर पर
अपने मुंह से शराब की एक बूंद भी नहीं लगाई।
सोच रहा हूं पीना छोड़ दूं
वरना कहीं कोई पीट पीटकर कर न दे धराशायी,
भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना साहेब ने
शराबियों को हंटर से पीटने की आवाज जो लगाई।
आप तो जानते हैं,
लोग उनको बहुत मानते हैं,
उनके दर्शन में भले लगता नहीं दम है,
पर नारों का वजन नहीं कम है,
आपने पीना छोड़ दिया है,
इसलिये अपने को उनकी मुहिम से जोड़ दिया है,
इसलिये आप भी शराब के खिलाफ लिखो,
उनके कट्टर समर्थक की तरह दिखो,
अभी तक आप रहे फ्लाप हो
संभव हिट हो जाओ
करने लगें लोग आपकी बड़ाई।’’

सुनकर चुप रहे पहले
फिर गला खंखारकर बोले
‘‘दूसरों के मसौदे देखकर अपनी राह बदलें
यह आमजन को बहुत भाता है,
अन्ना की बात सुनकर
शराब छोड़ने के नारे बहुत लोग लगायेंगे
पर देखेंगे कौन इस पर चल पाता है,
हम जानते हैं
अन्ना 74 बरस में भी स्वस्थ हैं
क्योंकि अपनी जिंदगी में शराब नहीं पिये,
अमेरिका में उनसे भी बड़ी उम्र के लोग जिंदा हैं
जिन्होंने एक नहीं बहुत सारे पैग लिये,
बहुत बुरी चीज है शराब,
फिर भी लोग पीते साथ में खाते कबाब,

दुनियां का सच है
जिस बुराई को दबाने का प्रयास करो
बढ़ती जायेगी,
पहले फ्लाप हो रही
क्रिकेट खेलकर
अन्ना ने उसमें अपने प्रशंसकों लगाया
अब उनके मुख से निकली बात
शराब भी शायद वैसा ही प्रचार पायेगी,
हम ठहरे गीता साधक
बुराई से नफरत करते,
मगर बुरे आदमी में ज्ञान के सूत्र भरते,
अरे,
परमात्मा नहीं खत्म कर पाया
तामसी प्रवृत्ति के लोगों को,
भला क्या भगायेंगे अन्ना संसार से ऐसे रोगों को,
सारे संसार को ठीक करने का ठेका लेना
आत्ममुग्ध करने वाली चीज है,
समझ लो इस भाव में ही
अज्ञान से उपजे अहंकार के बीज हैं,
इससे तो अपने बाबा रामदेव का दर्शन सही है,
कपाल भाति करे जो शख्स स्वस्थ वही है,
हमारा मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के साथ
पतंजलि योग में भरा है ज्ञान और विज्ञान,
देश भूल गया पर
बाकी विश्व रहा है मान,
फिर कौन अपने को बाज़ार से
कभी चंदा मिला है,
खुद नहीं पीते
मगर नहीं पीने वालों से गिला,
समझें जो लोग
अपनी वाणी से करना
भूल जाते निंदा और बड़ाई
हम जैसे लोगों के लिये नारे लगाना संभव नहीं है
कर सकते हैं आध्यात्मिक चिंत्तन
फिर जहां मौका मिला वहीं हास्य कविता बरसाई।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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चमत्कार वाला धर्म-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
————
चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
————-
चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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बिग बॉस के लिये फतवा फिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य (big boss ke liye fatva fixing-hindi vyangya)


पाकिस्तान के एक मौलवी ने बिग बॉस धारावाहिक में काम कर रही अपने देश की एक अभिनेत्री वीना मलिक की गतिविधियों का इस्लाम विरोधी बताया है। उन्होंने वीना मालिक को इस्लाम के लिये बहुत बड़ा खतरनाक घोषित कर दिया है। अब यह तो इस्लाम से जुड़े व्यंग्यगकार ही यह विषय उठा सकते हैं कि एक अभिनेत्री को उसके अश्लील अभिनय से 14 सौ वर्ष पुराने इस्लाम को खतरा बताकर उसे शक्तिमूर्ति कह रहे हैं या अपने धर्म को कमजोर बता रहे हैं। उनके इस बयान का विरोध उनके देश में ही किया गया है और एक आदमी ने तो सवाल उठाया है कि मौलवी को आखिर बिग बॉस देखने की फुर्सत मिल कैसे जाती है? इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आखिर वह मौलवी अगर धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तो ऐसे धारावाहिक देखते ही क्यों हैं?

यह प्रश्न काफी जोरदार है और धर्म के नाम पर फतवे या निर्देश जारी करने वाले सभी धर्म के ठेकेदारों से पूछा जाना चाहिए कि वह मनोरंजन के नाम पर हो रही गतिविधियों को देखते ही क्यों हैं? अगर नहीं देखते तो उसके बारे में फैसला कैसे करते हैं? केवल सुनकर! तब तो उनको कान का कच्चा और बात का बच्चा कहना चाहिए।
बात अगर पाकिस्तानी मौलवी की चली है तो वहां के क्रिकेटरों की भी चर्चा हो जाती है जिन पर फिक्सिंग का लेबल चिपका हुआ है। हमें तो वह मौलवी भी फिक्सर दिखाई दे रहा है। उसके इस फतवे पर पाकिस्तान की ही एक महिला ने सवाल उठाया है कि जब पारदर्शी कपड़े पहनकर पाकिस्तानी के टीवी चैनलों पर नाचती है तब ऐसे फतवे क्यों नहंीं जारी हुए?
अब इसका जवाब तो यही हो सकता है कि बिग बॉस को पाकिस्तान तथा भारत में लोकप्रिय बनाये रखने के प्रयास में शायद वह मौलवी ने फिक्स फतवा जारी किया है। सच तो यह है कि बिग बॉस को निरंतर चर्चा में बनाये रखने के लिये विवादों को फिक्स किया गया है। इतना ही नहीं जिस वीना मलिक को इसमें शामिल किया गया उससे पहले एक पाकिस्तानी फिक्सर क्रिकेटर के खिलाफ उससे बयान दिलाया गया जो एक फिक्सिंग प्रकरण में ताजा ताजा फंसा था। बस, हो गयी वीना मलिक हिट! सप्ताह भी नहीं बीता कि उसके बिग बॉस में आने की खबर आ गयी। ऐसे में हमने यह लिखा था कि पाकिस्तानी क्रिकेटर इंग्लैंड पुलिस के हाथ फिक्सिंग में पकड़े गये तो संभव है कि पूरा घटनाक्रम ही फिक्स हो सकता है। इस प्रकरण में लोगों को सत्य लगे इसलिये इंग्लैंड की गोरी पुलिस को फिक्स किया गया होगा क्योंकि भारत में गोरों को अभी तक ईमानदार माना जाता है। हमें इसी प्रकरण के बाद लगा कि गोरी पुलिस ने ही अपनी छवि का लाभ उठाने के लिये यह प्रकरण फिक्स किया होगा-शायद केवल वीना मलिक को बिग बॉस लाने के लिये यह प्रकरण रचा गया यही कारण है कि बाद में यह पूरा मामला ही टांय टांय फिस्स हो गया।
क्रिकेट, मनोरंजन, व्यापार तथा अपराध जगत का ऐसा गठजोड़ है कि उनमें सक्रिय दलाल कोई प्रकरण किसी भी आदमी से कुछ भी फिक्स कर सकता है। अरे, बड़े बड़े दिग्गज उनके सामने बिकने के लिये तैयार हैं तब एक मौलवी भला कैसे बच सकता है? संभव है मौलवी ने यह बयान इस इरादे से दिया हो कि कि कहीं इस फतवे से मिले प्रचार की वजह से आर्थिक, अपराधिक, मनोरंजन तथा धर्म के आधार पर संयुक्त उद्यम बने इस वैश्विक गठजोड़ से शायद कुछ फायदा हो? बिग बॉस की तो फिल्म पिट रही है। इसका प्रचार अधिक है पर लोकप्रियत कम! इस वैश्विक गठजोड़ के लिये यह एक चिंता की बात हो सकती है। एक बात याद रखें कि यह कार्यक्रम एक अंतर्राष्ट्रीय शैली का है और भारत पाकिस्तान में प्रसारित कर यहां के लोगों को मनोरंजन मेें व्यस्त किया जा रहा है ताकि उनका ध्यान अपने शिखर पुरुषों के नकारापन की तरफ न जाये। दोनों ही देशों की अंदरूनी हालतों पर नज़र डालें तो संतोषप्रद नहीं लगते-अगर कहें कि डरावने हैं तो भी गलत नहीं है।
मौलवी ने इस्लाम की परंपरागत शैली की आड़ ली पर आजकल यह एक फैशन हो गया है कि चाहे जहां विरोध करना हो वहीं धर्म की आड़ लो। मौलवी के फिक्स होने का संदेह यूं भी होता है कि भारतीय चैनलों पर इसे पर्याप्त स्थान दिया गया या कहें कि विज्ञापनों के बीच प्रसारण के लिये उनको एक संवदेनशील सामग्री मिल गयी। वैसे हम लोग यहां सुनते हैं कि पाकिस्तान भारतीय चैनलों पर प्रतिबंध लगा चुका है पर बिग बॉस वहां दिखने का मतलब यह है कि वह प्रतिबंध भी एक तरह से फिक्स है। हमें पहले से ही शक है कि पाकिस्तान के फिक्स शासकों के बूते की यह बात नहीं है कि वह भारतीय चैनलों पर प्रतिबंध लगा सकें। संभवतः वह ऐसी घोषणाऐं भी इसलिये फिक्स करते हैं कि भारतीय टीवी चैनल इसके माध्यम से अपने देश के लोगों पर देशभक्ति का भाव फिक्स कर अपना विज्ञापन समय अच्छी तरह पास करें।
आज के समय कौनसी कंपनी कहां कैसे काम कर रही है इसका पता नहंी चलता! ऐसे में अगर भारतीय कंपनियों या उनके दलालों का कोई अस्तित्व पाकिस्तान में न हो यह मानना संभव नहीं है। यही कंपनियां भारत में में चैनलों को तो उधर पाकिस्तान में उसके शिखर पुरुषों को मदद करती हैं। विश्व में सक्रिय मनोरंजन के दलालों को लगा कि भारत में किसी मौलवी को पटाया नहीं जा सकता या उससे कोई फायदा नहीं इसलिये पाकिस्तान में कोई मौलवी ढूंढ लें। इससे धर्म और देशभक्ति के भाव से बिग बॉस कार्यक्रम का विज्ञापन हो जायेगा। अब अगर वह इस्लाम के मौलवी हैं तो यह बात निश्चित है कि कोई दूसरा मौलवी उसका विरोध करने का खतरा नहंी उठायेगा। कम से कम भारत में तो यह संभव नहीं है खासतौर से तब जब अन्य धर्म के ठेकेदार भी इस कार्यक्रम को पंसद नहीं कर रहे। पसंद तो हम भी नहीं करते पर मालुम है कि देश में मूर्खों की कमी नहीं है और उनको ऐसे ही कार्यक्रमों में फिक्स कर अन्य लोगों को उनका शिकार होने से बचाया जा सकता है।
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फतवा फिक्सिंग-हिन्दी व्यंग्य
हिन्दी

चाणक्य दर्शन-आमदनी से अधिक खर्च मुसीबत का कारण (amdani aur kharcha-chankya niti)


अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्यनाथःः कलहप्रियः।
आतुर सर्वक्षेत्रेपु नरः शीघ्र विनश्चयति ।।
हिंदी में भावार्थ-
नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि बिना विचारे ही अपनी आय के साधनों से अधिक व्यय करने वाला सहायकों से रहित और युद्धों में रुचि रखने वाला तथा कामी आदमी का बहुत शीघ्र विनाश हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-आज समाज में आर्थिक तनावों के चलते मनुष्य की मानसिकता अत्यंत विकृत हो गयी है। लोग दूसरों के घरों में टीवी, फ्रिज, कार तथा अन्य साधनों को देखकर अपने अंदर उसे पाने का मोह पाल लेते हैं। मगर अपनी आय की स्थिति उनके ध्यान में आते ही वह कुंठित हो जाते हैं। इसलिये कहीं से ऋण लेकर वह उपभोग के सामान जुटाकर अपने परिवार के सदस्यों की वाहवाही लूट लेते हैं पर बाद में जहां ऋण और ब्याज चुकाने की बात आयी वहां उसके लिये आय के साधनों की सीमा उनके लिये संकट का कारण बन जाती है। अनेक लोग तो इसलिये ही आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि उनको लेनदार तंग करते हैं या धमकी देते हैं। इसके अलावा कुछ लोग ठगी तथा धोखे की प्रवृत्ति अपनाते हुए भी खतरनाक मार्ग पल चल पड़ते हैं जिसका दुष्परिणाम उनको बाद में भोगना पड़ता है। इस तरह अपनी आय से अधिक व्यय करने वालें जल्दी संकट में पड़ जाने के कारण अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। समझदार व्यक्ति वही है जो आय के अनुसार व्यय करता है। आय से अधिक व्यय करना हमेशा ही दुःख का मूल कारण होता है।
यही स्थिति उन लोगों की भी है जो नित्य ही दूसरों से झगड़ा और विवाद करते हैं। इससे उनके शरीर में उच्च रक्तचाप और हृदय रोग संबंधी विकास अपनी निवास बना लेते हैं। अगर ऐसा न भी हो तो कहीं न कहीं उनको अपने से बलवान व्यक्ति मिल जाता है जो उनके जीवन ही खत्म कर देता है या फिर ऐसे घाव देता है कि वह उसे जीवन भर नहीं भर पाते। अतः प्रयास यही करना चाहिये कि शांति से अपना काम करें। जहाँ तक हो सके अपने ऊपर नियत्रण रखें।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भर्तृहरि नीति शतक-अनैतिकता से ऐश्वर्य नष्ट होता है (anetikta se eshvarya nasht hota hai-adhyatmik sandesh)


भर्तृहरि महाराज कहते है कि
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दौर्मन्त्र्यान्नृपतिर्विनष्यति यतिः सङगात्सुतालालनात् विप्रोऽन्ध्ययनात्कुलं कुतनयाच्छीलं खलोपासनात्
ह्यीर्मद्यादनवेक्षणादपि कृषिः स्नेहः प्रवासाश्रयान्मैत्री चाप्रणयात्सृद्धिरनयात् त्यागपमादाद्धनम्

हिंदी में भावार्थ-कुमित्रता से राजा, विषयासक्ति और कामना योगी, अधिक स्नेह से पुत्र, स्वाध्याय के अभाव से विद्वान, दुष्टों की संगत से सदाचार, मद्यपान से लज्जा, रक्षा के अभाव से कृषि, परदेस में मित्रता, अनैतिक आचरण से ऐश्वर्य, कुपात्र को दान देने वह प्रमाद से धन नष्ट हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ संक्षिप्त व्याख्या-आशय यह है कि जीवन में मनुष्य जब कोई कर्म करता है तो उसका अच्छा और बुरा परिणाम यथानुसार प्राप्त होता है। कोई मनुष्य ऐसा नहीं है जो हमेशा बुरा काम करे या कोई हमेशा अच्छा काम करे। कर्म के अनुसार फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्म से अर्थ और सम्मान की प्राप्ति होती है। ऐसे में अपनी उपलब्ध्यिों से जब आदमी में अहंकार या लापरवाही का भाव पैदा होता है तब अपनी छबि गंवाने लगता है। अतः सदैव अपने कर्म संलिप्त रहते हुए अहंकार रहित जीवन बिताना चाहिये।
अगर हमें अपने कुल, कर्म या कांति से धन और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तो उसका उपयोग परमार्थ में करना चाहिये न कि अनैतिक आचरण कर उसकी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए लोगों का प्रभावित करने का प्रयास करें। इससे वह जल्दी नष्ट हो जाता है।
यह मानकर चलना चहिये कि हमें मान, सम्मान तथा लोगों का विश्वास प्राप्त हो रहा है वह अच्छे कर्मों की देन है और उनमें निरंतरता बनी रहे उसके लिये कार्य करना चाहिये। अगर अपनी उपलब्धियों से बौखला कर जीवन पथ से हट गये तो फिर वह मान सम्मान और लोगों का विश्वास दूर होने लगता है।
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संत कबीर दर्शन-स्वप्न निराश करते हैं


कबीर सपनें रैन के, ऊपरी आये नैन
जीव परा बहू लूट में, जागूं लेन न देन

संत शिरोमणि कबीरदास जी का आशय यह है कि रात में सपना देखते देखते हुए अचानक आंखें खुल जाती है तो प्रतीत होता है कि हम तो व्यर्थ के ही आनंद या दुःख में पड़े थे। जागने पर पता लगता है कि उस सपने में जो घट रहा था उससे हमारा कोई लेना देना नहीं था।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सपनों का एक अलग संसार है। अनेक बार हमें ऐसे सपने आते हैं जिनसे कोई लेना देना नहीं होता। कई बार अपने सपने में भयानक संकट देखते हैं जिसमें कोई हमारा गला दबा रहा है या हम कहीं ऐसी जगह फंस गये हैं जहां से निकलना कठिन है। तब इतना डर जाते हैं कि हमारी देह अचानक सक्रिय हो उठती है और नींद टूट जाती है। बहुत देर तक तो हम घबड़ाते हैं जब थोड़ा संभलते हैं तो पता लगता है कि हम तो व्यर्थ ही संकट झेल रहे थे।

कई बार सपनों में ऐसी खुशियां देखते हैं जिनकी कल्पना हमने दिन में जागते हुए नहीं की होती । ऐसे लोगों से संपर्क होता है जिनके पास जाने की हम सोच भी नहीं सकते। जागते हुए पुरानी साइकिल पर चलते हों पर सपने में किसी बड़ी गाड़ी पर घूमते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे में जब खुशी चरम पर होती है और सपना टूट जाता है। आंखें खुलने पर भी ऐसा लगता है कि जैसे हम खुशियों के समंदर में गोता लगा रहे थे पर फिर जैसे धीरे धीरे होश आता है तो पता लगता है कि वह तो एक सपना था।

आशय यह है कि यह जीवन भी एक तरह से सपना ही है। इसमें दुःख और सुख भी एक भ्रम हैं। मनुष्य को यह देह इस संसार का आनंद लेने के लिये मिली है जिसके लिये यह जरूरी है कि भगवान भक्ति और ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया जाये न कि विषयों में लिप्त होकर अपने को दुःख की अनुभूति कराई जाये। जीवन में कर्म सभी करते हैं पर ज्ञानी और भक्त लोग उसके फल में आसक्त नहीं होते इसलिये कभी निराशा उनके मन में घर नहीं करती। ऐसे ज्ञानी और भक्तजन दुःख और सुख के दिन और रात में दिखने वाले सपने से परे होकर शांति और परम आनंद के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।
अगर हम भारतीय अध्यात्म संदेशों का अर्थ समझें तो दुःख और सुख जीवन में बर्फ में पानी के सदृश हैं। अर्थात दोनों की अनूभूतियां हैं बस और कुछ नहीं है। जिस तरह बर्फ दिखती है पर होता तो वह पानी ही है। उसी दुःख और सुख बस एक सपने की तरह है। जो इस तत्व ज्ञान को समझ लेना वह जीवन को आनंद के साथ जी सकता है।
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संत कबीर के दोहे-रात्रि के स्वप्न दिन का चैन हराम कर देते हैं


संत कबीर के दर्शन के अनुसार
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कबीर सपनें रैन के, ऊपरी आये नैन
जीव परा बहू लूट में, जागूं लेन न देन

संत शिरोमणि कबीरदास जी का आशय यह है कि रात में सपना देखते देखते हुए अचानक आंखें खुल जाती है तो प्रतीत होता है कि हम तो व्यर्थ के ही आनंद या दुःख में पड़े थे। जागने पर पता लगता है कि उस सपने में जो घट रहा था उससे हमारा कोई लेना देना नहीं था।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सपनों का एक अलग संसार है। अनेक बार हमें ऐसे सपने आते हैं जिनसे कोई लेना देना नहीं होता। कई बार अपने सपने में भयानक संकट देखते हैं जिसमें कोई हमारा गला दबा रहा है या हम कहीं ऐसी जगह फंस गये हैं जहां से निकलना कठिन है। तब इतना डर जाते हैं कि हमारी देह अचानक सक्रिय हो उठती है और नींद टूट जाती है। बहुत देर तक तो हम घबड़ाते हैं जब थोड़ा संभलते हैं तो पता लगता है कि हम तो व्यर्थ ही संकट झेल रहे थे।

कई बार सपनों में ऐसी खुशियां देखते हैं जिनकी कल्पना हमने दिन में जागते हुए नहीं की होती है। ऐसे लोगों से संपर्क होता है जिनके पास जाने की हम सोच भी नहीं सकते। जागते हुए पुरानी साइकिल पर चलते हों पर सपने में किसी बड़ी गाड़ी पर घूमते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे में जब खुशी चरम पर होती है और सपना टूट जाता है। आंखें खुलने पर भी ऐसा लगता है कि जैसे हम खुशियों के समंदर में गोता लगा रहे थे पर फिर जैसे धीरे धीरे होश आता है तो पता लगता है कि वह तो एक सपना था।

आशय यह है कि यह जीवन भी एक तरह से सपने ही है। इसमें दुःख और सुख भी एक भ्रम हैं। मनुष्य को यह देह इस संसार का आनंद लेने के लिये मिली है जिसके लिये यह जरूरी है कि भगवान भक्ति और ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया जाये न कि विषयों में लिप्त होकर अपने को दुःख की अनुभूति कराई जाये। जीवन में कर्म सभी करते हैं पर ज्ञानी और भक्त लोग उसके फल में आसक्त नहीं होते इसलिये कभी निराशा उनके मन में घर नहीं करती। ऐसे ज्ञानी और भक्तजन दुःख और सुख के दिन और रात में दिखने वाले सपने से परे होकर शांति और परम आनंद के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।
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स्वयं कभी छोड़ नहीं पाते पर दूसरों से कहते हैं कि अहंकार छोड़ दो-चिंतन


धर्म बेचने वालों का नारा है अंहकार छोड़ दो. उनकी बात सुनकर लोग खुश हो जाते हैं. पांच तत्वों से बनी इस देह में मन बुद्धि और अहंकार ही वह तत्व हैं जिनके हर जीव इस धरती पर विचरण करता है.आपने कुछ ऐसे लोग देखने होंगे जो पागल होते हैं. आप उनसे कुछ भी कहें पर वह आपकी बात पर ध्यान नहीं देंगे. मन उनके पास भी है और बुद्धि भी पर नहीं है तो अहंकार. वह खाते-पीते हैं और बात करते हुए मुस्कराते हैं पर फिर खामोश भी हो जाते हैं. उनके पास अपने मनुष्य होने का अहंकार नहीं है और वह निरीह हो जाते हैं और हर कोई उन पर तरस खाता है.

कई बार आपने देखा होगा ऊंचे मंचों पर बैठे साधू-संत अपने भक्तों से कहते हैं”अहंकार छोड़ दो”. आर फिर मुस्कराते हुए लोगों की तरफ देखते हैं जैसे कोई बहुत बड़ा राज उजागर किया है. लोग भी खुश हो जाते हैं कि उन्होने कोई बडे रहस्य से पर्दा उठाया है. उनका धर्म बेचना व्यवसाय है यह बात जानते हुए भी उसे धारण नहीं कर पाते और उनके पास जाते हैं वजह मन हो गया खाली और बुद्धि से काम लेना नहीं है तो अहंकार है कहाँ जो वह आत्ममंथन करे. विचार करे कि इस देह से अहंकार कभी जा नहीं सकता. निरंकार की उपासना करने की जा सकते हैं पर निरंकार रहा नहीं जा सकता.

मंच पर बैठ संत जो बोलते हैं और उसके बाद क्या होते हैं यह कई लोग जानते हैं. अभी जब सात बाबा रंगे हाथों काले धन को सफ़ेद बनाते हुए पकडे गए थे उनमें एक एसे बाबा भी थे जो कई बार कृष्ण कथा करते हुए श्रीगीता के बारे में बोलते हैं और एक ही नारा-अंहकार मत करो. उनकी बातों में जो अंहकार था वह देखने योग्य था और में तो उनके तारीफ करूंगा को उन्होने अपने अहंकार को नियंत्रित किया और धर्म के शिखर पर जाकर विराजमान हुए. आखर व्यवसाय चाहे कोई भी हो उसे चलाने के लिए कई तरह की चालाकी की आवश्यकता होती है उसमें अहंकार पर नियंत्रण रखना जरूरी होता है.
सभी बाबाओं के बडे आश्रम हैं और उनमें फाईव स्टार होटलों जैसी सुविधाएं है आम भक्त उनसे इतनी आसानी से नहीं मिल सकता जितना किसी धनी व्यक्ति कि लिए संभव है. वह कहते है कि’ मन को स्वच्छ रखो और बुद्धि को सात्विक क्योंकि इनको देह से अलग नहीं किया जा सकता. फिर अंहकार छोड़ने का नारा वह क्यों लगाते हैं? भगवान् श्री कृष्ण तो कहते हैं कि तीन गुणों से -सात्विक, राजसी और तामस- परे हो जाये वही योगी है. वह इन्द्रियों पर नियंत्रित करने के लिए कहते हैं जिसका आशय यह है कि अंहकार को भी वैसे ही काबू में रखा जाये जैसे बुद्धि और मन को. अहंकार देह का एक हिस्सा है जो उसके नष्ट होते तक रहता है. उस पर नियंत्रण तो किया जा सकता है पर छोडा नहीं जा सकता.

धर्म बेचने वाले तथाकथित संतों को अहंकार पर नियंत्रण की विधि नहीं मालुम इसलिए उसे छोड़ने का नारा लगते हैं-अंहकार पर नियंत्रण की विधियां मालुम होती तो वह धर्म बेचने का व्यवसाय ही नहीं कर पाते. सबसे बड़ी बात यह हैकि भगवान् श्री कृष्ण ने गीता के ज्ञान का केवल अपने भक्तों में प्रचार की अनुमति दी है और यह चाहे जहाँ उसे सुनाने लगते हैं. इस तरह देश के लोगों की मानसिकता को ही गुलाम बना दिया है . इसी कारण हमारे देश के लोगों को वाद और नारों पर चलने का लिए अभ्यास हो गया है और इसलिए यह देश बरसों तक गुलाम रहा और आज भी गुलामी से रह रहा है. जिनके पास थोडी बहुत चतुराई हैं वह यहाँ शासन उन्हीं लोगों के सहारे करते हैं जो धर्म के नाम पर नारे लगाते हैं. (क्रमश:)

यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’ पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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