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लोगों के जज़्बात भी देखने होंगे-हिंदी कविता


वह चीखकर अपना दर्द
ज़माने को  सुना हैं,
भीड़ लगी उनके घर के दरवाजे पर
लोग तरह तरह के इलाज पर
एक दूसरे के कान में गुनागुना रहे हैं,
लगता नहीं उनका मसला  हल होगा।
चर्चा होगी पूरे शहर में
मगर घाव उनका वहीं होगा।
कहें दीपक बापू
अपना गम चौराहे पर सुनाने से
पहले सोचना होगा
लोगों के दिल में जज़्बात हैं भी कि नहीं
वरना खामोशी से अपनी हालातों को पीना होगा।
———————-
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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एक सौर मंडल जो धरती पर रहता है-हिन्दी व्यंग्य (dharti par rahane wala saurmandal-hindi vyangya)


धरती को जिंदा रखने के लिऐ उसके पास सौरमंडल होना चाहिए, ऐसा वैज्ञानिक कहते हैं। इसका सीधा आशय यह है कि सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति तथा अन्य ग्रहों के रक्षा कवच पर ही धरती और उस पर विचरण करने वाला जीवन टिका रहता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र तो यह भी मानता है कि इन सब ग्रहों की चाल का मनुष्य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इधर हमारे मन में यह भी ख्याल आया कि एक सौर मंडल इस धरती पर भी विचरता है जो सामने है पर दिखता नहीं क्योंकि इसके सारे ग्रह इतने पर्दों मे रहते हैं ं कि सभी ग्रह एक दूसरे को देख तक नहीं पाते, अलबत्ता दोनों का एक दूसरे से मिलन नहीं होता क्योंकि उनके परिक्रमा पथ कभी आपस में टकराते नहीं है। राजा और प्रजा दो भागों में बंटे मनुष्य जीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है भले ही दोनों को यह दिखाई नहीं देता।
इस सौर मंडल के ग्रह हैं पूंजीपति, बाहूबली, धार्मिक ठेकेदार तथा अपराधियों के गिरोह ओर उनके दलाल। पूंजीपति तो सूरज की तरह है जिनकी रौशनी से सारे सारे छोटे ग्रह चमत्कृत होते हैं। सृष्टि के निर्माण से ही यह गिरोह चलते रहे होंगे पर आजकल कृत्रिम दूरदृष्टि मिल जाने के कारण आम लोगों को भी दिखाई देने लगे हैं-बुद्धिमानों तो इनके प्रभाव का आभास कर लेते हैं पर सामान्य लोगों को शायद ही होता हो।
जब बात पूंजीपतियों की बात चली है तो आजकल अमेरिका नाम का एक धरती पर स्वर्ग है जहां इनकी बस्ती बन गयी है और तय बात है कि वहां का कोई भी राज्यप्रमुख उनके लिये एक तरह से बहुत बड़ा सुरक्षाकवच की तरह काम करता है। हालांकि वह स्वतंत्र दिखता है पर लगता नहीं है। वह अपनी चाल चल रहा है पर लगता है कि उसे चलना भर है बाकी काम तो उसके मातहत ही करते होंगे।
पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के विमान की बात कर लें। विमान का अधिक वर्णन तो हमारे लिये संभव नहीं है क्योंकि अपने खटारा स्कूटर की याद आने लगती है और लिखना बंद हो जाता है। विमान एक तरह से महल होने के साथ अभेद्य किला है। वहां बैठा राष्ट्रपति यात्रा के दौरान ही अपनी सेना और प्रशासन के अधिकारियों से संपर्क कर सकता है-करता होगा इसमें शक ही है क्योंकि अमेरिका की व्यवस्था ऐसी ही दिखती है। कोई आपत्ति आ जाये तो राष्ट्रपति वहां से कोई भी कार्यवाही करने का आदेश दे सकता है-इसकी आवश्यकता पड़ती होगी यह संभावना नगण्य है। कहने का अभिप्राय यह है कि उसमें महल जैसी सारी व्यवस्था है, विमान तो बस नाम है।
भारतीय प्रचार माध्यम अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन पर उसके विमान, पत्नी तथा वक्तव्यों का खूब वर्णन करते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने ताज होटल पर हुए हमले की निंदा की पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।
शायद आगे लेंगे जब भारतीय समकक्षों से मिलेंगें।
वह पाकिस्तान नहीं जा रहे, इससे यह संदेश तो मिल ही रहा है कि वह भारत में अपना हित अधिक देखते हैं।
ऐसे बहुत से जुमले हैं जो ओबामा के आने पर तीसरी बार सुने गये। पहले क्लिंटन आये फिर जार्ज बुश, तब भी यही नज़ारा था। तीनों राष्ट्रपति पहले बैंगलौर या मुंबई आये फिर नई दिल्ली। दोनों पाकिस्तान नहीं गये इस पर बहस! संदेश ढूंढने की कोशिश! हमने तीनों को देखा। हम सोचते हैं कि क्या वह इतने विराट व्यक्तित्व के स्वामी है जितना वर्णन किया जाता है या उनका पद ही उनको विराटता प्रदान कर रहा है। दूसरी ही बात सही लगती है।
जार्ज बुश को तो राष्ट्रपति बनने से पहले तक यही नहीं मालुम था कि भारत देश किस दिशा में है, पर बाद में भारत का लोहा मानते हुए दिखाये और बताये गये।
अब ओबामा की चाल ढाल पर नज़र रखी। एक ऐसे इंसानी बुत नज़र आये जिसे विराट व्यक्तित्व का स्वामी बना दिया गया है। कोई कसर नहीं रहे इसलिये उनको शांति का नोबल भी दिया गया। अनेक लोग हैरान हुए थे पर उस समय भी हमने लिखा था कि विश्व का बाज़ार अपना यह बुत चमका रहा है। यह बात अब सत्य लगती है।
उनके साथ 250 पूंजीपतियों का समूह आया है। मुंबई में भारतीय पूंजीपतियों के साथ ही उनका सम्मेलन है। अमेरिका चाहता है कि भारतीय पूंजीपति उनके यहां निवेश करे। इस सम्मेलन को एक मुखिया की तरह ओबामा संबोधित कर चुके हैं। पहले भी राष्ट्रपति ऐसा ही कर चुके हैं। पूंजीपति यानि इस धरती का सूर्य जिससे सभी को जीवन मिलता है। अमेरिका में यह सच होगा पर भारत में आज भी कृषि आधारित व्यवस्था है। अगर यहां कृषि ठप्प हो जाये तो फिर पैसा नहीं मिलने का। भारत का पानी भी अब बाहर बिकने लगा है जो यहां के पूंजीपतियों के पैट्रोल जैसा कीमती हो गया है। कहा जाता है कि भारत में जलस्तर जितना ऊपर है उतना कहीं नहीं है। यह प्रकृति की कृपा है पर अब पानी भी पैट्रोल की तरह दुर्लभ होता जा रहा है। धरती पर स्थित सौर मंडल का भगवान बस, पद पैसा और प्रतिष्ठा कमाना है सो उसे कई बातों से मतलब नहीं है। वह राजा और प्रजा दोनों को अपनी गिरफ्त में रखता है। ऐसे में अब भारत दोहन अभियान शुरु हो गया है लगता है।
आज जार्ज बुश उनके पिता तथा दादा की भी चर्चा हुई। पता लगा कि वह हथियार कंपनियों के मालिक थे इसलिये ही उन्होंने अपने समय में युद्ध का रास्ता अपनाया ताकि माल की खपत हो सके। यह पहली बार पता लगा कि अमेरिका में हथियार बेचने वाली लॉबी इतनी दमदार है। इसका मतलब हमारा यह दावा सही होता जा रहा है कि दुनियां में अब अनेक जगह अब इंसानी बुत सौदागरों के मुखौटे बनकर राजा के पद पर सुशोभित हो रहे हैं।
प्रचार माध्यम कहते हैं कि ओबामा उन सबसे अलग हैं। इसे हम यूं भी मान सकते हैं कि वह हथियार लॉबी से इतर किसी अन्य लॉबी के इंसानी बुत हैं। वैसे वह हथियारों की बिक्री बढ़ाने तो वह भारत यात्रा पर पधार हैं पर साथ ही अन्यत्र क्षेत्रों में वह यहां का सहयोग चाहते हैं। अन्य व्यापारियों ने हथियार व्यापारियों से कहा होगा कि‘भई, कुछ हमारा काम हो जाये, इसलिये इस बार हमारी पंसद का राष्ट्रपति आने दो।’
हथियार लॉबी का काम तो होना ही था सो वह मान गये होंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार ओबामा के प्रतिद्वंद्वी का नाम आखिर तक किसी को पता नहीं चला। आज ओबामा यह कर रहे हैं, आज वहां बोलेंगे, ओबामा के बारे में यह अफवाह फैली-ऐसी बातें भारतीय प्रचार माध्यम ही नहीं इंटरनेट पर भी आती रहीं। न आया तो उनके प्रतिद्वंद्वी का नाम। वैसे ओबामा चेहरे से भले लगे। धरती के सौरमंडल के ग्रहों ने बहुत सोच समझकर उनको चुना। हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है। अगर हम कहें कि उनको क्यों लाये तो यह बात भी तय है कि उनकी जगह कोई दूसरा चेहरा या इंसानी बुत आना था। वह जो भी बोलेंगे अपने सहायकों के इशारे से ही बोलेंगे। कई बार तो लिखा हुआ पढ़ेंगे। इसका मतलब यह है कि उनको एक ऐसे इंसानी बुत की तरह प्रस्तुत किया गया है कि जो समझकर बोलता हो। बाकी तो उनको गुड्डे की तरह खूब चलाया जायेगा। कभी कभी तो लगता है कि उनको भी यही पता न होगा कि उनको अगली बार कौनसी लाईन बोलनी है या अगले कार्यक्रम में आखिर विषय क्या है? अमेरिका का राष्ट्रपति दुनियां का सबसे दबंग आदमी है-ऐसा कहा गया पर हम सोच रहे थे कि वाकई क्या यह सच है?
धरती का सौर मंडल उस पर तथा यहां विचरण करने वाले जीवों पर क्या प्रभाव डालता है हमें नहीं दिखता लगभग उसी तरह ही धरती पर विचरने वाला सौर मंडल किस तरह राजा और प्रजा को चला रहा है यह आम आदमी नहीं जानते। जो जानते हैं वह बता नहीं सकते क्योंकि वह खुद उसका हिस्सा होते हैं।
आखिरी बात यह है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ताज के अलावा दो अन्य जगह भी हुए थे। जिसमें रेल्वे स्टेशन भी शामिल था जहां आम आदमी अधिक होते हैं। ओबामा ने केवल ताज के शहीदों को ही श्रद्धांजलि दी। आतंकियों को चुनौती देने के लिये ही वह ताज होटल में रुके ऐसा कहा जा रहा है। इससे भी हमें कोई शिकायत नहीं पर धरती के सौरमंडल की प्रतिबद्धता साफ दिखाई दे रही है कि वह कुछ विषयों पर प्रजा के जज़्बातों की परवाह नहीं करता। वह अपने इंसानी बुत को रेल्वे स्टेशन नहीं ले जा सकता क्योंकि सौर मंडल के ग्रहों में इतनी ताकत है कि उनकी परिक्रमा प्रजा की चाल से प्रभावित नहीं होती।

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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सभी पियक्कड़ हो जाते, जो पहुंचे मधुशाला-व्यंग्य


हिंदी भाषा के महान कवि हरिबंशराय बच्चन ने मधुशाला लिखी थी। अनेक लोगों ने उसे नहीं पढ़ा। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने उसे थोड़ा पढ़ा। कुछ लोगों ने जमकर पढ़ा। हमने उसके कुछ अंश एक साहित्यक पत्रिका में पढ़े थे। एक बार किताब हाथ लगी पर उसे पूरा नहीं पढ़ सके और लायब्रेरी में ं वापस जमा कर दी। मधुशाला के कुछ काव्यांश प्रसिद्ध हैं और देश की एकता के लिये उनका उपयेाग जमकर किया जाता है। उनका आशय यह है कि सर्वशक्तिमान के नाम पर बने सभी प्रकार के दरबार आपस में झगड़ा कराते हैं पर मधुशाला सभी को एक जैसा बना देती है। मधुशाला को लेकर उनका भाव संदेशात्मक ही था। एक तरह से कहा जाये तो उन्होने मधुशाला की आड़ में समाज को एकता का संदेश दिया था। हमने अभी तक उसके जितने भी काव्यांश देखे है उनमें मधुशाला पर लिखा गया है पर मद्यपान पर कुछ नहीं बताया गया। सीधी भाषा में कहा जाये तो मधुशाला तक ही उनका संदेश सीमित था पर मद्यपान में उसमें गुण दोषों का उल्लेख नहीं किया गया।
अब यह बताईये कि मधुशाला में मद्यपान नहीं होगा तो क्या अमृतपान होगा?बहुत समय तक लोग एकता के संदेशों में मधुशाला के काव्यांशों का उल्लेख करते हैं पर मद्यपान को लेकर आखें मींच लेते हैं। उनमें वह भी लोग हैं जो मद्यपान नहीं करते। नारों और वाद पर चलने का यह सबसे अच्छा उदाहरण है। मधुशाला पवित्र और एकता का संदेश देने वाली पर मद्यपान…………..यानि देश में गरीबी का एक बहुत बड़ा कारण। इससे आंखें बंद कर लो। चिंतन के दरवाजे मधुशाला से आगे नहीं जाते क्योंकि वहां से मद्यपान का मार्ग प्रारंभ होता है ं।

चलिये मधुशाला को जरा आज के संदर्भ में देख लें। बीयर बार और पब भी आजकल की नयी मधुशाला हैं। जब से यह शब्द प्रचलन में आये हैं तब से मधुशाला की कविताओं का प्रंचार भी कम हो गया है। पिछले दिनों हमने पब का अर्थ जानने का प्रयास किया पर अंग्रेजी डिक्शनरी में नहीं मिला। तब एक ऐसे सभ्य,संस्कृत और आधुनिक शैली जीवन के अभ्यस्त आदमी से इसका अर्थ पूछा तब उन्होंने बताया कि ‘आजकल की नयी प्रकार की कलारी भी कह सकते हो।’ कलारी से अधिक संस्कृत शब्द तो मधुशाला ही है। दरअसल आजकल कलारी शब्द देशी शराब के संबंध में ही प्रयोग किया जाता है। बहरहाल मधुशाला का अर्थ अगर मद्यपान का केंद्र हैं तो पब का भी आशय यही है।

स्व. हरिबंशराय बच्चन की मधुशाला में कई बातें लिखी गयी हैं जिनमें यह भी है कि मधुशाला एक ऐसी जगह है जहां पर जाकर हर जाति,वर्ण,वर्ग,भाषा,धर्म और क्षेत्र का आदमी हम प्याला बन जाता है। उन्होंने यह शायद कहीं नहीं लिखा कि वहां स्त्रियों और पुरुष भी ं एक समान हो जाते है। अगर वह अपने समय में भी ऐसी बातें लिखते तो उनका जमकर विरोध हो जाता क्योंकि उस समय स्त्रियों के वहां जाने का कोई प्रचलन नहीं होता। मधुशाला प्रगतिवादियों की मनपसंदीदा पुस्तक है मगर मुश्किल है कि मद्यपान से आदमी का मनमस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उस समय सारी नैतिकता और नारे एक जगह धरे रह जाते हैंं।

आजकल पब का जमाना है और उसमें स्त्री और पुरुष दोनों ही जाने लगे हैं। मगर पब मेें ड्रिंक करने पर भी वहीं असर होता है जो कलारी में दारु और मधुशाला में मद्यपान करने से होता है। पहले लोग कलारियों के पास अपना घर बनाने ये किराये पर लेने से इंकार कर देते थे पर आजकल पबों और बारों के पास लेने में उनको कोई संकोच नहीं होता। मगर दारु तो दारु है झगड़े होंगे। पीने वाले करें न न पीने वाले उनसे करें। जिस तरह पबों का प्रचलन बढ़ रहा है उससे तो लगता है कि आगे ‘आधुनिक रूप से’ फसाद होंगें। ऐसा ही कहीं झगड़ा हुआ वहां सर्वशक्तिमान के नाम पर बनी किसी सेना ने महिलाओं से बदतमीजी की। यह बुरी बात है। इसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही होना चाहिये पर जिस तरह देश के बुद्धिजीवी और लेखक इस घटना पर अपने विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं वह गंभीरता की बजाय हास्य का भाव पैदा कर रहा है। हमने देखा कि इनमें कुछ बुद्धिजीवी और लेखक मधुशाला के प्रशंसक रहे हैं पर उनको मद्यपान के दोषों का ज्ञान नहीं है। पहले भी कलारियों पर झगड़े होते थे पर उनमें लोग वर्ण,जाति,भाषा और धर्म का भेद नहीं देखते थे-क्योंकि मधुशाला के संदेश का प्रभाव था और सभी झगड़ा करने वाले ‘हमप्याला’ थे। मगर अभी एक जगह झगड़ा हुआ उसमें पब में गयी महिलाओं से बदतमीजी की गयी। यह एक शर्मनाक घटना है और उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी की जा रही पर अब इस पर चल रही निरर्थक बहस में ं दो तरह के तर्क प्रस्तुत किया जा रहे हैं।

1.कथित प्रगतिवादी लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग के लोग इसमें अपनी रीति नीति के अनुसार महिलाओं पर अनाचार का विरोध कर रहे हैं क्योंकि मधुशाला में स्त्रियों और पुरुषों के हमप्याला होने की बात नहीं लिखी।
2.गैरप्रगतिवादी लेखक और बुद्धिजीवी महिलाओं के शराब पीने पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ दोनों का हमप्याला होने पर आपत्ति उठा रहे हैं।
हम दोनों से सहमत नहीं हैं।

जहां तक घटना का सवाल है तो हमें यह जानकारी भी मिली है कि वहां कुछ पुरुषों के साथ बदतमीजी की गयी थी। इसलिये केवल महिलाओं के अधिकारों की बात करना केवल सतही विचार है। महिलाओं को शराब नहीं पीना चाहिये तो शायद इस देश के कई जातीय समुदायों के लोग सहमत नहीं होंगे क्योकि उनमें महिलायें भी मद्य का अपनी प्राचीन परंपराओं के अनुसार सेवन करती हैं। किसी घटना पर इस तरह की सोच इस बात को दर्शाती हैं कि लोगों की सीमित दायरे में कुछ घटनाओं पर लिखने तक ही सीमित हो रहे हैं। मजे की बात यह है कि मधुशाला पढ़ने वाले हमप्यालों के एक होने पर तो सहमत हैं पर झगड़े होने पर तमाम तरह के पुराने भेद ढूंढ कर बहस करने लगते हैं। बहरहाल इस पर हमारी एक कुछ काव्य के रूप में पंक्तियां प्रस्तुत हैं।

किसी भी घर का बालक हो या बाला
पियक्कड़ हो जाते जो पहुंचे मधुशाला
मत ढूंढों जाति,धर्म,भाषा,और लिंग का भेद
सभी को अमृतपान कराती मधुशाला
नशे में टूट गया, एक जो था गुलदस्ता
हर फूल को अपने से उसने अलग कर डाला
जो खुश होते थे देखकर रोज वह मंजर देखकर
करने लगे आर्तनाद,भूल गये वह थी मधुशाला
मद्यपान की जगह होगी जहां, वहां होंगे फसाद
नाम पब और बार हो या कहें अपनी मधुशाला
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आदमी हो या औरत पीने का मन
किसका नहीं करता
यारों, चंद शराब के कतरों की धारा में
संस्कृति नहीं बहा करती
आस्था और संस्कारों की इमारत
इतनी कमजोर नहीं होती
टूट सकती है शराब की बोतल से
जो संस्कृति वह बहुत दिन
जिंदा रहने की हक भी नहीं रखती
अपने इरादों पर कमजोर रहने वाला इंसान ही
यकीन को जिंदा रखने के लिये जंग की बात करता

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इस दुनियां में होते हैं नाटक अपार-व्यंग्य कविता


क्यों अपना दिल जलाते हो अपना यार
इस दुनियां में होते हैं नाटक अपार

कभी कहीं कत्ल होगा
कहीं कातिल का सम्मान होगा
चीखने और चिल