Tag Archives: हिंदी का महत्व

राष्ट्रभाषा से ही विश्व में पहचान बनती है-हिन्दी चिंत्तन लेख


            14 सितम्बर 2014 रविवार को हिन्दी दिवस सरकारी तौर से मनाया जायेगा। इसमें अनेक ऐसे बुद्धिजीवी अपने प्रवचन करते मिल जायेंगे जो न केवल हिन्दी भाषा के प्रति हार्दिक भक्ति दिखायेंगे वरन् उसका महत्व भी प्रतिपादित करेंगे पर सच यह है कि उनके शब्द केवल औपचारिक मात्र होंगे।  अगर हम हिन्दी भाषी समुदाय की बात करें तो शायद ही वह आमजन कहीं इस दिवस में कोई दिलचस्पी दिखाये जो कि वास्तव में इसका आधार है। अनेक लोग इस लेखक के ब्लॉग पर यह टिप्पणी करते हैं कि आप हिन्दी के महत्व के बारे में बतायें।  यह ऐसे पाठों पर लिखी गयी हैं जो चार से छह वर्ष पूर्व लिखे गये हैैं।  तब हैरानी होती है यह सोचकर कि क्या वाकई उन लोगों को हिन्दी का महत्व बताने की आवश्यकता है जो पढ़े लिखे हैं।  क्या अंतर्जाल पर सक्रिय हिन्दी भाषी चिंत्तन क्षमता से इतना कमजोर हैं कि वह स्वयं इसके महत्व पर विचार नहीं करते।

            हैरानी तो इस बात पर भी होती है कि व्यवसायिक विद्वान आज भी हिन्दी के प्रचार प्रसार की बात करते हुए उसके पिछड़ेपन के लिये बाज़ार को बता देते हैं जो हिन्दी भाषियों का दोहन तो करता है पर उसके विकास पर जोर नहीं देता।  इतना ही नहीं बाज़ार पर अपने हिसाब से हिन्दी अंग्रेजी की मिश्रित हिंग्लिश का प्रचलन बढ़ाने का आरोप भी लगता है।  सबसे बड़ी बात तो यह कि हिन्दी की निराशाजनक स्थिति पर हमेशा बोलने वाले यह विद्वान बरसों से रटी रटी बतायें दोहराते हैं।  उनके पास हिन्दी को लेकर अपनी कोई योजना नहीं है और न ही हिन्दी  भाषी जनमानस में प्रवाहित धारा को समझने का कोई प्रयास किया जाता है।  वह अपने पूर्वाग्रहों के साथ हिन्दी भाषा पर नियंत्रण करना चाहते हैं। मुख्य बात यह कि ऐसे विद्वान हिन्दी को रोजी रोटी की भाषा बनाने का प्रयास करने की बात करते हुए उसमें अन्य भाषाओं से शब्द शामिल करने के प्रेरणा देते हैं।  उन्हें आज भी हिन्दी साठ साल पहले वाली दिखाई देती है जबकि उसने अनेक रूप बदले हैं और वह अब निर्णायक संघर्ष करती दिख रही है।

            हिन्दी आगे बढ़ी है।  एक खेल टीवी चैनल तो अब हिन्दी में सीधा प्रसारण कर रहा है और हम ऐसे अनेक पुराने क्रिकेट खिलाड़ियों को हिन्दी बोलते देखते हैं जिनके मुंह से अभी तक अंग्रेजी ही सुनते आये थे।  कपिल देव और  नवजोत सिद्धू के मुख से हिन्दी शब्द सुनना तो ठीक है जब सौरभ गांगुली, सुनील गावस्कर, अरुणलाल तथा संजय मांजरेकर जैसे लोगों से हिन्दी वाक्य सुनते हैं तो लगता है कि बाज़ार भी एक सीमा तक भाषा नियंत्रित करता है तो होता भी है।  रोजी रोटी से भाषा के जुड़ने का सिद्धांत इस तरह के परिवर्तनों से जोड़ा जा सकता है पर हमेशा ऐसा नहीं होता क्योंकि भाषा की जड़ों को इससे मजबूती नहीं मिलती क्योंकि बाज़ार को भाषा के विकास से नहीं वरन् उसक दोहन से मतलब होता है।

            अंतर्जाल पर हिन्दी भाषा को  कम समर्थन मिलता है इससे यहां लिखने वालों के लिये रोजी रोटी या सम्मान मिलने जैसी  कोई सुविधाजनक प्रेरणा नहीं है पर परंपरागत क्षेत्रों में भी तो यही हाल है।  फिर भी वहां स्वांत सुखाय लिखने वाले ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो  हिन्दी की अध्यात्मिक धारा में प्रवाहित होने का आंनद लेते हैं। उन्हें व्यवसायिक धारा से जुड़कर शब्द और शैली पर समझौता करना पसंद नहीं है।  न ही दूसरे के निर्देश पर रचना की विषय सामग्री रचने  की उनमें इच्छा पैदा है। उनके लिये भाषा सांसरिक विषयों से अधिक अध्यात्मिक महत्व की है। उनका बेहतर चिंत्तन हिन्दी में होता है जिसकी अभिव्यक्ति हिन्दी में होने पर ही उनको संतोष होता है। हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी में बोलने के लिये व्यावसायिक बाध्यता नहीं होती।  वैसे हमारा मानना है कि हिन्दी की ताकत ग्रामीण और मध्यम क्षेत्र के शहरी लोग हैं जिनका अंग्रेजी से कोई संबंध नहीं है।  वह हिन्दी से इतर कही बात को अनसुना कर देते हैं।  आज के लोकतांत्रिक तथा भौतिक युग की यह बाध्यता बन गयी है कि भारत क आम जनमानस को प्रभावित करने के लिये हिन्दी की सहायता ले। यही कारण है कि व्यवसायिक समूह हिन्दी से जुड़ रहे हैं जो कि हिन्दी के भविष्य के लिये अच्छे संकेत हैं।

            सबसे बड़ी बात यह कि  हमारी राय हिन्दी के विषय में अलग है।  वह ब्लॉग मित्र पता नहीं कहां लापता है जिसका यह सिद्धांत हमारे मन को भाया था कि हिन्दी एक नवीन भाषा है इसलिये वह बढ़ेगी क्योंकि यह संसार का सिद्धांत है कि नवीनता आगे बढ़ती है। उनका यह भी मानना था कि अंग्रेजी पुरानी भाषा इसलिये उसका पतन होगा।  हमारे यहां अंग्रेजी के प्रति मोह विदेशों में नौकरी की वजह से है।  सामाजिक विशेषज्ञ भले ही प्रत्यक्ष न कहें पर सच यह है कि श्रम निर्यातक देश के रूप में भारत में अंग्रेजी का महत्व इस कारण ही बना हुआ है क्योंकि यहां शिक्षित बेरोजगारों की संख्या ज्यादा है और उन्हें बाहर जाकर रोजगार ढूंढने या करने के लिये उसका ज्ञान आवश्यक माना जाता है। यह शर्त निजी व्यवसाय पर लागू नहीं होती क्योंकि पंजाब के अनेक लोग बिना अंग्रेजी के ही बाहर जाकर व्यवसायिक करते हुए फलेफूले हैं। बहरहाल विश्व में डूबती उतरती अर्थव्यवस्था अब नौकरियों की कमी का कारण बनती जा रही है।  इधर जापान से भारत में निवेश की संभावना से निजी छोटे उद्योग पनपने की संभावना है। ऐसे में लगता तो यही है कि नवीन भाषा होने के कारण हिन्दी वैश्विक भाषा बन ही जायेगी।  जिन्हें समय के साथ चलना है उन्हें हिन्दी का ज्ञान रखना जरूरी है क्योंकि इसके अभाव में अनेक लोग देश में ही अपनी वाणी के लिये परायापन अनुभव करने लगेंगे।

            इस हिन्दी दिवस पर सभी ब्लॉग लेखकों और पाठकों को बधाई।  हमारा यही संदेश तो यही है कि हिन्दी अध्यात्मिक भाषा है। इसमें चिंतन, मनन, अध्ययन और वाचन करने से ही हमारे विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व की मौलिकता बचा सकते हैं।

हिंदी का महत्व हम समझते तो ही समाज को समझा पाते-हिंदी दिवस पर विशेष लेख


         14 सितम्बर को हिन्दी दिवस है पर  इसके लिये मनाने वालों को तैयारी करने के लिये विषय सामग्री चाहिये इसलिये उनकी इंटरनेट पर उनकी  सक्रियता 11 से 13 सितम्बर तक बढ़ जाती है। इस ब्लॉग ने पहले के वर्षों में अनेक रचनायें हिन्दी दिवस पर लिखी  इसलिये सर्च इंजिनों से उन पर पाठक आते हैे।  13 सितम्बर को करीब करीब सारे ब्लॉग जमकर पाठक जुटाते हैं।  इस बार चार  ब्लॉग राजलेख की हिन्दी पत्रिका,  दीपक बापू कहिन,हिन्दी पत्रिका तथा अभिव्यक्ति पत्रिका ने जमकर पाठक जुटायें हैं। यह चारों शाइनी स्टेटस के साहित्य वर्ग में अंग्रेजी ब्लॉगों को पछाड़कर क्रमशः एक, दो, तीन और पांच जैसे  ऊंचे पायदान पर पहुंच गये हैं।  इस लेखक के ब्लॉग अपने जन्मकाल के बाद 13 सितम्बर 2012 को सर्वोच्च स्तर पर हैं।  इन चारों ब्लॉग के अलावा अन्य 16 ब्लॉग भी अपने पुराने कीर्तिमानों से आगे निकले हैं पर यह चारों ब्लॉग उल्लेखनीय हैं।  तीन ब्लॉग तीन हजार तथा दो ब्लॉग दो हजार के पास जाते दिखते रहे हैं।  इस लेखक के बीस ब्लॉगों पर यह संख्या बीस हजार पार सकती है।
      हम जैसे लेखक के लिये यह स्थिति अब आत्ममुग्धता नहीं लाती।  बल्कि कभी नहीं लाती। आज जो लिखा कल उससे बेहतर लिखने का प्रयास होता है।  पिछले लिखा लेखक उसे दिखातें फिरे यह शुद्ध लेखक का स्वभाव नहीं होता। फिर अनुभव के साथ लिखने के लिये विषय, शैली तथा प्रस्तुति के आयाम बदलते हैं।  इतने सारे पाठकों को देखकर अपने मन में निराशा उत्पन्न होती है कि अपनी ही  रचनायें बेदम नजर आ रही है।  ऐसा लगता नहीं है कि हमारी रचनायें पाठकों को प्रभावित कर सकीं। जब लिखा तब पता नहीं था कि अंतर्जाल पर हिन्दी दिवस के अवसर पर इतने सारे पाठक हमारे ब्लॉग पर आयेंगे।  एक शौकिया लेखक होने के नाते व्यवसायिक कौशल न तो जानते है न ही यह प्रयास रहता है कि कोई सम्मान आदि मिले।
     हमारा मानना है कि अंतर्जाल पर हिन्दी दिवस के अवसर पर इससे ज्यादा बेहतर लिखा जा सकता था।  मुश्किल यह है कि जिन लोगों को अंतर्जाल से आर्थिक लाभ है उनके पास प्रबंधन नहीं है।  यह अकुशल प्रबंधन अर्थशास्त्र की दृष्टि से हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है और हिन्दी लेखन इससे अछूता नहीं है। हमारे देश में कमाने वाले बहुत लोग हैं पर व्यवसायिक प्रवत्तियों का उनमें अभाव है जो कि अकुशल प्रबंधन की समस्या  बने रहने का कारण है।  हिन्दी लेखन में  स्वतंत्रता पूर्वक लिखना एकाकी यात्रा का कारण बनता है हालांकि उच्च कोटि की रचनायें ऐसे ही वातावरण में उत्पन्न  होती हैं।  हिन्दी प्रकाशन संस्थायें, प्रतिष्ठान और समितियां सरकारी पैसे के अनुदान की अपेक्षा करती हैं पर जहां देने की बात आती है वहां चाटुकार लेखक उनके लिये प्रिय होते हैं।  जहां चाटुकारिता है वहां रचनायें व्यक्ति से प्रतिबद्ध हो जाती हैं उस समय लेखक के दृष्टिपथ से आम पाठक गायब हो जाता है।  कुल मिलाकर हिन्दी लेखन जगत चांटाकार और चाटुकार जमात का बंधुआ हो गया है।  चांटाकार से सीधा आशय यह है कि जिसके पास पैसे, पद और प्रतिष्ठा का शिखर है वह किसी को भी लेखक को अपना चाटुकार बनाकर उसे सम्मनित करता है और जो उपेक्षा करे उसे अपमान या उपेक्षा का चांटा मारता है।  समस्या दूसरी यह है कि शुद्ध हिन्दी लेखक अध्यात्मिक रूप से परिपक्व होता है और वह किसी भी शिखर पुरुष का चाटुकार बनने की बजाय उस देव को पूजता है जो सबका दाता है।
       अक्सर लोग इस लेखक से सवाल पूछते हैं कि ‘तुम क्यों लिखते हो? इसका तुम्हें पैसा नहीं मिलता तो क्यों हाथ घिसते हो?
        इसके उत्तर में हम श्रीमद्भागवत गीता का  यह संदेश बताते हैं कि हमारा स्वभाव इसमें हमें लगाये रहता है। हम यह भी कहते हैं कि ‘‘शराब पीने से क्या मिलता है? सिगरेट का धुंआ उड़ाने से क्या मिलता है।  हम व्यसन नहीं पालते इसलिये कुछ न कुछ तो करना ही है। लिखने से बढ़िया और कौनसा ऐसा फालतु काम है जिसमें न पैसा खर्च हो न देह बीमार हो।’’
           इस हिन्दी दिवस पर अनेक बातें मन में आयीं पर उनको लिखने का अवसर तथा समय नहीं मिला।  इसका अफसोस है।  कमबख्त एक बात हमारे दिमाग में आती जाती है कि आखिर हिन्दी का क्या महत्व है इसे कैसे समझायें।  अनेक टिप्पणीकारों ने ‘‘समाज को हिन्दी का महत्व समझना चाहिये’’ इस शीर्षक में लिखी गयी विषय सामग्री से अंसतुष्ट हैं।  वह कहते हैं कि आपने महत्व तो बताया ही नहीं।  एक हास्य कविता पर एक टिप्पणीकार तो लिख गया कि यह बोरियत भरी है।  इन सब पर हमारा आश्वासन है कि अवसर मिला तो अगले हिन्दी दिवस पर कुछ अच्छा लिख कर बतायेंगे।  इधर कंप्यूटर कर रखरखाव और इंटरनेट का खर्च अब असहनीय होता जा रहा है। ऐसे में यह संकट हमारे सामने हैं कि कैसे एक ब्लॉग लेखक के रूप में अपना असितत्व बचायें।  लोग कहते है कि लेपटॉप खरीद लो।  अब इतनी बड़ी रकम इस पुराने शौक पर खर्च कर नहीं सकते।  एक बात तय रही कि अगर हमने ब्लॉग लिखना बंद किया तो सब डीलिट कर देंगे। हम अपना पैसा और श्रम खर्च कर इंटरनेट कंपनियों के ग्राहकों को अपनी मुफ्त सामग्री दे रहे हैं। यह सब टीवी पर विज्ञापनों और कार्यक्रमों पर इतना खर्च कर सकती हैं पर उन हिन्दी लेखकों के लिये उनके पास कुछ नहीं है जो अंततः उनके ग्राहकों को पठनीय सामग्री प्रदान करते हैं।

फिलहाल हमारी लेखन जारी रखने की योजना है।  अपने प्रायोजक स्वयं हैं।  आगे प्रयास करेंगे कि बेहतर रचनायें हों।  इस हिन्दी दिवस पर समस्त पाठकों को बधाई।  कम से कम उन्होंने आज यह साबित कर दी है कि उनके अंदर भी अपनी मातृभाषा के लिये उमंग हैं यह अलग बात है कि उनके दिल की बात कोई समझा नहीं।  हम जैसे लेखक के लिये एक दिन में बीस हजार से अधिक पाठक कम नहीं होते।  बड़ी बड़ी वेबसाईटें इस आंकड़े को तरसती होंगी। यह अलग बात है कि प्रायोजित वेबसाईटें किसी न किसी तरह से अपने लिये पाठक जुटा लेती हैं पर उनके लिये भी यह आंकड़ा कोई आसान नहीं रहता होगा।  हिन्दी के पाठकों ने हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें उनके समकक्ष खड़ा कर दिया यह हमारी नहीं हिन्दी भाषा की ताकत है।  एक दृष्टा होने के नाते हमें यह खेल देखने में भी मजा आता है। यह संदेश भी नोट कर लें कि हिन्दी का महत्व इसलिये है क्योकि इसमें लिखने में मजा आता है। जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh

हिंदी भाषा का महत्व,हिंदी पर निबंध,राष्ट्रभाषा का महत्व,१४ सितम्बर हिंदी दिवस,संपादकीय,समाज,भारत और हिंदी,hindi ka mahatva,samaj,society,hindi bhasha ka mahatva,rashtrabhasha ka mahatva,hindi diwas on 14 september,hindi par nibandh,hindi bhasha par nibandh,article on hindi divas

लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर

poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior