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कागजों में फ़रिश्ते-हिंदी व्यंग्य कविता



कभी वह वह जोर से रोते
कभी हंसे जाते हैं,
सामने पर्दे पर चलते दृश्य देखकर
उनके ख्याल भी बदल जाते हैं।
कहें दीपक बापू
लेते हैं वह मुस्कराने के भी दाम
आंसु भी कौड़ियों के भाव नहीं बहाते
अपनी हर अदा पर लेते कभी दान कभी चंदा
ज़माने का भला का दावा भी कर जाते,
बेसहारों को दर्द बांटने रहो
मशहूर होने का ख्याल छोड़कर
अब दुनियां का दस्तूर बन गया
करते हैं जो लोग जज़्बातों का व्यापार
कागजों में फरिश्तों की तरह
अपना नाम भी वही लिखा पाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

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