काले धन के विरुद्ध
अभियान चल रहा है,
आप भी इसमें शामिल होकर
अपने आश्रम और हम जैसे चेलों
का रुतवा बढ़ाओ
यह विचार मेरे दिमाग में पल रहा है।’
सुनकर गुरुजी बोले
‘‘मुझे तेरी जन्म कुंडली
देखकर अपने दल में शामिल करना था,
तेरे ख्याल देखकर
अपने आश्रम में तुझे भरना था,
धंधा नहीं तेरा कोई भी
फिर भी रोज पीता है शराब,
क्या जानता है उसका पैसा कहां से आता है
स्वच्छ है कि खराब,
नित नित नये चमकदार कपड़े भेंट मे जो तू लाता है,
कभी समझ में आयी है यह बात तुझे कि
अपने भक्तों में किसके पास सफेद और
किसके पास काला धन आता है,
ज्यादा चक्कर में नहीं पड़ना,
फंस जायेगा वरना,
अभी तक लोगों की नज़र अपने से दूर है,
कहीं छपने लगे रोज अखबार में तो
समझ लो आगे अपनी जांच होना भी जरूर है।
सफेद धन तो बस, गरीबों के पास ही होता है,
जिनका धर्म से नहीं नाता
आत्मा जिनका पेट भरकर ही सोता है,
ज्यादा आंदोलन के चक्कर में
पड़े तो दानदाता नाराज हो सकते हैं
तब काले धन के बिना
हम लोग ही बेरोजगार हो जायेंगे,
जल्दी आश्रम को भी अतिक्रमण विरोधी अभियान से
ध्वस्त पायेगे,
हमें अपने वातानुकूलित आश्रम में रहना चाहिए
क्या करना शहर बेईमानी की आग में जल रहा है।’’
——–
मुर्दे के कफन से भी
वह टुकड़ा चुरा लाते हैं,
बच्चे के मुख की रोटी छीनकर
अपना बैंक बढ़ाते हैं,
कमबख्त!
कल्याण का ठेका उन्हीं का नाम चढ़ता है
जो बेईमानी के ढंग सीख जाते हैं।
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poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
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