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आग लगाने की इंसानों में आदत होती-हिंदी शायरी


जमीन पर आते हुए इंसान ने
सर्वशक्तिमान से कहा
‘इस बार इंसान बनाया है
इसके लिये शुक्रगुजार हूं
पर मुझे परिंदों की तरह पंख लगा दो
उड़कर पूरी दुनियां घूम सकूं
इतना मुझे ताकतवर बना दो’

सर्वशक्तिमान ने कहा
‘तेरी इस ख्वाहिश पर
परिंदों का आकाश में उड्ना
बंद नहीं करा सकता
इंसान के दिमाग की फितरत है जंग करना
आपस में होता है उनका लड़ना मरना
वैसे भी कभी उड़ते हुए परिंदों को
मारकर जमीन पर गिरा देता है
अगर तुम्हें पंख दे दिये तो
आकाश में उड़ने वालों को
वह भी नसीब नहीं हो पायेगा
जमीन पर तो क्या तुम्हारे साथ
कोई परिंदा रह पायेगा
क्योंकि बिना पंख में इंसान का दिमाग
उड़ता है ख्वाबों और सपनों में इधर उधर
ख्वाहिशें उससे क्या क्या नहीं करवाती
नीयत और चालचलन को गड्ढे में गिराती
ऊंचाई की तरफ उड़ने की चाहत
उसको हमेशा बैचेन बनाती
पंख दे दिये तो तू जमीन पर
चैन नहीं पायेगा
आकाश में और बैचेनी फैलायेगा
जमीन पर तो इंसानों के घर को ही
आग लगाने की इंसानों में आदत होती
मैं तुझे पंख देकर इतना ताकतवर
कभी नहीं बना सकता कि
तुम आकाश में भी आग लगा दो
या ऊंचे उड़ते हुए
आकाश छूने की हवस में
अपने पंख जलाकर
समय से पहले अपनी मौत बुला लो

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