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राष्ट्रभाषा की सेवा और सम्मान-14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष हिन्दी हास्य रचना


हिन्दी दिवस पर फंदेबाज ने

कसी फब्तियां और बोला

दीपक बापू फ्लाप कवि की

जब तुम्हारी भूमिका देखता हूं

तब तरस आता है,

तुम लिखते हो शब्द

किसी के अर्थ समझ में नहीं आता है,

या तुम पर किसी का ध्यान नहीं होता,

ऐसा लगता है जब तुम लिखते हो,

तब पाठक सो जाता है,

या तुम्हारा शब्द प्रकाशित होते ही

अंतर्जाल की भीड़ में खो जाता है,

न कभी नाम मिला न नामा

14 सितम्बर हर बरस निकल जाता है।’’

सुनकर हंसे दीपक बापू

हम निराश नहीं होते,

क्योंकि आशा का बोझ कभी नहीं ढोते,

हिन्दी में सम्मान पाने की चाहत

हमें कभी रही नहीं,

लिखना बन गया धर्म

शब्द बन गये आराध्य देव

इसलिये कभी चाहतों की

पीड़ा कभी सही नहीं,

इस बार भी देखेंगे

हम हिन्दी दिवस पर तमाशा,

इस पर हुए गंभीर प्रवचन

बन जाते हमें लिये व्यंग्य विषय के

सृजन की आशा,

कुछ विद्वान बड़े बन जायेंगे,

कुछ बड़े विद्वान की तरह तन जायेंगे,

सभी आयेंगे मंच पर सीना तानकर,

श्रोता सुनेंगे उनको ज्ञाता मानकर,

गनीमत है अंतर्जाल पर हिन्दी

अधिक नहीं चलती है,

अपनी हर हास्य कविता

चाहे जैसी हो एकांत में मचलती है,

स्थानीय स्तर पर भी

कोई हमारा नाम नहीं जान पाया,

हम प्रसन्न हैं

हमारा हर शब्द वैश्विक स्तर पर छाया,

न मिला न मिलना चाहिये

हमें लेखकीय सम्मान,

हम एकांत साधना की चुके ठान,

देखते हैं हम भी दृष्टा की तरह

अनेक खड़े रहते सम्मान की पंक्ति में

किसी के रहते हाथ रहते खाली

किसी पर हिन्दी दिवस

प्यार से बरस ही जाता है।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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हिन्दी अंग्रेजी का मिक्चर-हिन्दी व्यंग्य कविता (hindi aur inglish ka mixer-hindi vyangya kavita)


हिन्दी बोले बिना कान नहीं चलता,
अंग्रेजी में न बोलें तो दिल जलता।
आधी हिन्दी आधी अंग्रेजी बोलकर
हर कोई युवा मन खुद ही बहलता।
भाषा के मिक्चर से गूंगा बना ज़माना
देख कर हमारा दिल हर रोज दहलता।
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अखबार आज का ही है
खबरें ऐसा लगता है पहले भी पढ़ी हैं
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

ट्रेक्टर की ट्रक से
या स्कूटर की बस से भिड़ंत
कुछ जिंदगियों का हुआ अंत
यह कल भी पढ़ा था
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

भाई ने भाई ने
पुत्र ने पिता को
जीजा ने साले को
कहीं मार दिया
ऐसी खबरें भी पिछले दिनों पढ़ चुके
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

कहीं सोना तो
कहीं रुपया
कहीं वाहन लुटा
लगता है पहले भी कहीं पढ़ा है
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

रंगे हाथ भ्रष्टाचार करते पकड़े गये
कुछ बाइज्जत बरी हो गये
कुछ की जांच जारी है
पहले भी ऐसी खबरें पढ़ी
आज भी पढ़ रहे हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।

अखबार रोज आता है
तारीख बदली है
पर तय खबरें रोज दिखती हैं
ऐसा लगता है पहले भी भी पढ़ी हैं
इसलिये कोई ताज़ा खबर नहीं लगती।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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