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पश्चिमी देश आतंकवाद से लड़ने के इच्छुक नहीं


                                   पेरिस पर हमले के बाद पूरे विश्व में उथलपुथल मची है। उस पर कहने से पूर्व हम भारतीय योग सिद्धांत की बात करें। यह सच है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हम अगर किसी वस्तु, विषय या व्यक्ति से अनुकूल प्रतिक्रिया चाहें तो अपनी किया उसके अनुरूप करनी होगी।  दूसरा कर्म और फल के सिद्धांत को भी ध्यान रखना होगा। यूरोप तथा अमेरिका हथियारों के उत्पादक तथा निर्यातक देश हैं।  पेरिस पर निरंतर हो रहे हमलों को हम धर्म तथा लोकतंत्र के सीमित दृष्टिकोण से उठकर व्यापक चिंत्तन के दायरें में आयें तो पता चलेगा हर व्यापारी अपनी वस्तु का प्रचार करते हुए उसके प्रयोग का भी प्रचार करता है। इसलिये संभव है कि पहले अपराधियों को ऐसे हथियार देकर उनके हमलों से प्रचारित अपने हथियारों के  बेचने का बाज़ार बनाते हों।

                                   हम एशियाई देशों की सेनाओं तथा पुलिस विभागों की स्थिति में नज़र डालें तो उनसे पहले नये हथियार अपराधियों के पास आये।  उससे प्रभावित होकर संबंधित देशों ने उत्पादक देशों से हथियार खरीदे। एक-47 बंदूक इसका प्रमाण है।  एशियाई देशों ने खरीदी पर बाद में पता चला कि उसका नया रूप पहले ही अपराधियों के पास आ गया है।  अमेरिका व यूरोप हथियार निजी क्षेत्र के माध्यम से हथियार बेचते हैं जिन्हें क्रेता के प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे में संदेह होता है कि हथियारों के मध्यस्थ कहीं आतंकवादियों को प्रचार नायक तो नहीं बनाते? अमेरिका ने सीरिया सरकार के विद्रोहियों की सहायता के लिये हथियार हवाई जहाज से नीचे गिराये थे-जिनके संबंध आतंकी संगठनों से प्रत्यक्ष दिख रहे थे।  अमेरिका मध्यपूर्व में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये जिन संगठनों को अपना मित्र समझता है उन्हें शेष विश्व आतंकी कहता है। इस तरह विश्व के राज्यप्रबंधकों तथा आतंकवादियों के बीच एक ऐसा रिश्ता है जिसकी व्याख्या करने बैठें तो एक ग्रंथ लिखना पड़ेगा।

                                   मध्यपूर्व में जबरदस्त अस्थिरता फैली है और हमारा अनुमान है कि उसका प्रकोप काम होने की बजाय बढ़ते रहने वाला ही है। आतंकवादी जिन देशों को ललकार रहे हैं वह सभी कहीं न कहीं हथियार के कारखानों की कमाई से अपनी संपन्नता बढ़ाने  वाले रहे हैं।  अब उनके सामने स्वयं के बने हथियार दुश्मन की तरह सामने आने वाले हैं।  मध्यपूर्व से लाखों शरणार्थी इन देशों में गये हैं जिनके साथ आतंकवादी भी हैं।  पेरिस में हुए हमलों से यह जाहिर हो गया है कि इन संपन्न देशों का राज्यप्रबंध के अभेद होने का भ्रम समाप्त हो गया है। जिस तरह इन देशों के राजकीय प्रबंधकों की प्रतिक्रियायें सामने आयी हैं उससे तो नहीं लगता कि वह जल्दी आतंकवादी पर विजय प्राप्त करेंगे।  वैसे जिन लोगों ने पचास वर्षों से लगतार समाचार देखे और पढ़े हों उन्हें पता है कि कोई राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक संघर्ष प्रारंभ होता है तो वह अगले दस वर्ष तक चलता है।  जब थमता भी तो उसके कारण प्राकृतिक होते हैं-राजकीय प्रबंधक बयानबाजी तक ही सीमित रहती है।

                                   अब योग और भारत की बात करें।  कुछ लोगों को चिंता है कि भारत में भी मध्यपूर्व के आतंकवादी संगठन आ सकते हैं। हमारे पास खुफिया संगठन नहीं है पर योगदृष्टि से हमें यह आशंका नहीं लगती।  एक बात तो यह कि भारत ने कोई हथियार योग नहीं किया-उसने बंदूकें तोप या टैंक नहीं बेचे जो उनका मुंह हमारी तरफ होगा।  इसलिये जिन्होंने युद्ध योग किया है उन्हें प्रतियुद्ध भी झेलना ही होगा। अगर इन देशों को प्रतियुद्ध से बचना है तो युद्ध योग से बचते हुए हथियार के कारखाने बंद करने होंगे। जिसकी संभावना नहीं दिखती। उल्टे जिस तरह यह देश मध्यपूर्व देशों में अधिक हमले कर रहे हैं उससे शरणार्थी संकट बढ़ेगा और आतंकी इन्हीं देशों में जायेंगे।  आखिरी सलाह भारतीय प्रचार माध्यमों को भी है कि वह मध्यपूर्व के आतंकी संगठनों का नाम अधिक न लें कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान कहीं उसके नाम से आतंकी भेजने लगे।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior

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विश्वहिन्दीसम्मेलन और हिन्दी दिवस पर नया पाठ


               भोपाल में 22वां विश्व हिन्दी सम्मेलन हो रहा है।  पूर्व में हुए 21 सम्मेलनों का हिन्दी में क्या प्रभाव हुआ पता नहीं पर इतना तय है कि भारतीय जनमानस की यह अध्यात्मिक भाषा है।  इसलिये उसे रिझाये रखने के लिये बाज़ार ने भाषा को जिंदा रखा है।  इस तरह के सम्मेलन चंद ऐसे विद्वानों का संगम बन कर रह जाते हैं जो  भारतीय जनमानस को यह समझाने के लिये एकत्रित होते हैं कि वह उनके अपने हैं भले ही अंग्रेजी में लिखते हैं।  दूसरी बात यह कि इसमें कागज पर छपी किताबों के प्रति परंपरागत झुकाव रखने वाले पेशेवर हिन्दी विद्वान यह बताने इन सम्मेलनों में आते हैं कि उनके लेखन की वजह से भाषा जिंदा है। पिछले दस वर्ष से अंतर्जाल पर हिन्दी लेखन हो रहा है पर उसके नुमाइंदों को इस सम्मेलन में न बुलाने से यही साबित हो गया है कि इसके लेखक अप्रतिष्ठत यह लघु स्तर के हैं। विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर ट्विटर लिखे जिनकी सामग्री यहां प्रस्तुत है।

               अंतर्जालीय लेखकों की उपस्थिति और उनके लेखन की चर्चा न दिखना रूढ़ता का प्रतीक लगता है। हिन्दी का भविष्य अब अंतर्जाल पर टिका है और वहां के लेखकों की अनुपस्थिति के बिना विश्व हिन्दी सम्मेलन महत्वहीन लगता है। अब स्वप्रायोजित किताबों से नहीं वरन् अंतर्जाल पर लिखने वाले लेखक ही हिन्दी के सारथी हो सकते हैं। अंतर्जालीय लेखकों के प्रति विश्व हिन्दी सम्मेलन में दिखाया गया परायेपन का भाव उसी के लक्ष्य में बाधक होगा। विश्व हिन्दी सम्मेलन में इस पर विचार होना चाहिये कि जनमानस में अंतर्जाल पर मातृभाषा में स्वयं लिखने की प्रेरणा लाने का विषय हो। स्वप्रायोजित किताबों की बजाय अंतर्जाल पर अपने परिश्रम वह निष्काम भाव से सक्रिय लेखक विश्वहिन्दी सम्मेलने में होते तो मजा आता।

                                   भारतीय भाषायें सांसरिक विषयों के विदुषकों से नहीं वरन् अध्यात्मिक ज्ञान के प्रचारकों की शक्ति से अंतर्जाल पर बढ़ेगी यह बात विश्वहिन्दीसम्मेलन में कहना चाहिये। विश्वहिन्दीसम्मेलन में पाठकों में रचनाओं से अध्यात्मिक ज्ञान संदेश मिलने की अपेक्षा पर विचार होना चाहिये।

हिन्दी ब्लॉगर बिन विश्व हिन्दी सम्मेलन लगे सून।

कहें दीपकबापू जैसे सूर्य के ताप बिन माह जून।।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

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नये निर्माण से ही इतिहास भूलना संभव-हिन्दी लेख


                                  हमारा मानना है कि इतिहास को केवल कागज या लकड़े के पट्टे पर नहीं दर्ज होता। उसे भुलाना है तो जनमानस मे नयी स्वर्णिम छवि भी आना चाहिये। यह छवि वही लेाग बना सकते हैं जो सामान्यजनों के लिये हितकारक काम करते हुए उसकी रक्षा भी कर सकते हैं।

‎                                   औरंगजेबमार्ग का नाम बदलकर ‪‎अब्दुलकलाममार्ग किया गया है। उम्मीद है ‪इतिहास अब भविष्य में विकास मार्ग पर ले जायेगा। हमने देखा है कि इस तरह अनेक बाज़ारों, मार्गों, इमारतों तथा उद्यानों के नाम बदल गये। क्षणिक रूप से भावनात्मक शांति देने वाले ऐसे प्रयास जनमानस में अधिक दिन तक याद नहीं रखे जाते। अनेक जगह तो लोग उसे बरसों तक पुराने नाम याद रखते हैं।  अनेक जगह तो नये नामों की वजह उस स्थान को  ढूंढने वाले लोगों को  परेशानी होती है।

                                   मुख्य बात यह है कि जब तक जनमानस में इतिहास की जो  अविस्मरणीय छवियां है उसे मिटाना सहज तभी हो सकता है जब उसका वर्तमान काल सुखद और भविष्य आशामय हो।  हमें अब यह विचार भी करना चाहिये कि क्या वाकई हमारे देश के सामान्यजन यह अनुभव करते हैं कि उनके सामने ऐसी छवियां हैं जिनके दर्शन से वह भावविभोर हो उठते हों। अगर इसका जवाब हां है तो यह मान लेना चाहिये इतिहास मिट गया और नहीं तो सारे प्रयास व्यर्थ हो गये, यह समझना चाहिये।  देश में जिस तरह एक बार फिरा निराशा, आशंका, और तनाव का वातावरण बन रहा है वह चिंताजनक है।  पुराने लोग आज भी अंग्रेजों को याद करते हैं इसका मतलब यह है कि वह नये व्यवस्था से प्रसन्न नहीं है। ऐसे में इस तरह के प्रयासों पर अनेक असंतुष्ट सवाल भी कर रहे हैं जिसका साहस उनमें व्यवस्था के प्रति निराशापूर्ण वातावरण से पैदा होता है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

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पाकिस्तान से #सिंधप्रांत प्रथक कराने का प्रयास हों-#हिन्दीलेख


                              गुरदासपुर में हमले से भारत में भारी नाराजगी का वातावरण है अनेक सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान का सिंध प्रांत ऐसा है जहां अगर सही रणनीति अपनायी जाये तो भारत उस पर नियंत्रण कर सकता है। पाकिस्तान के सिंधी भाषी मूलतः वहां के पंजाबी भाषियों से सांस्कृतिक दृष्टि से एकरूप हैं पर दोनों के बीच भारी वैमनस्य है। इसका कारण यह है कि पंजाब चूंकि हिमालय के निकट इसलिये वहां से नदियां बहकर सिंध जाती हैं।  पंजाब में उनके जल का इतना दोहन हो जाता है कि सिंध पहंुचते पहुंचते उनमें जल कम रह जाता है। दूसरी बात यह कि प्रभावशाली पंजाबियों ने पाकिस्तान तो ले लिया पर लाहौर से अधिक कराची में भारत से गये उर्दू भाषियों को बसाकर वहां सिंधियों के लिये एक नया विरोधी समुदाय स्थापित किया।  इतना ही नहीं भारत से गये जितने भी अपराधी हैं वह सब कराची में जाकर रहते हैं। कभी लाहौर या मुल्तान में उनका निवास नहीं सुना जाता।

                              आज भी प्रभावशाली पंजाबी समुदाय सिंध, ब्लूचिस्तान और सीमा प्रांत को अपने अनुचर की तरह मानता है।  हम कहते हैं जरूर है कि भारत में कोई स्वयं को पहले भारतीय नहीं मानता पर सच यह है कि भारत शब्द इतना प्राचीन है कि जनमानस में इस कदर बसा है कि उसे स्वयं को भारतीय कहने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान की स्थिति अलग हैं।  वहां के जनमानस में भारत शब्द से घृणा भरी गयी है। समस्या यह है कि पाकिस्तान के प्रति वहां कोई वफादार बन नहीं सकता।  ऐसे में पाकिस्तान मानसिक रूप से भी एक विघटित राष्ट्र है।

                              हमारे भारत के रणनीतिकारों को चाहिये कि वह सिंध में पाकिस्तान के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों को जीवंत करें। वहां जियो सिंध आंदोलन चलता रहा है जिसके शीर्ष नेता हमेशा भारत की तरफ सहायता के लिये ताकते रहे हैं।  अगर सिंध पाकिस्तान के लिये समस्या बना तो वह आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से लड़खड़ा जायेगा।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

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Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

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#दर्द के #व्यापारी-#हिन्दीकवितायें


अनजान में भटके

राही को सही रास्ता

सुझा सकते हैं।

जानकर चले तबाही के रास्ते

उसे समझाते हुए अपनी अक्ल के

चिराग बुझा सकते हैं।

कहें दीपक बापू शहर बड़े हैं

हादसों के डर से सहम जाते

एक वहम से बचते

दूसरा साथ लाते

अंग्रेजी में भटके इस तरह

उनको खुश करने के लिये

हिन्दी के चिराग

चाहे जब बुझा सकते हैं।

——————

दर्द के व्यापारी

कभी अपने चेहरे पर भी

जख्म कर लेते हैं।

खाली बैठे होते

तब भरे बाज़ार रक्त

बहाने की रस्म भी कर लेते हैं।

कहें दीपक बापू खुशी से

जीना नहीं सीखा ज़माना

मस्ती के लिये

झगड़े का ढूंढता बहाना

जज़्बात सजाये बैठे दुकान पर

बेचने के लिये

वह अमन के घर भी

भस्म कर देते हैं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

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उनकी दरियादिली-हिन्दी कवितायें


ईमानदार हो या नहीं

ज़माने को बहलाने के लिये

दिखना जरूरी है।

किसी के जिस्म पर रहम करें

मगर दौलत और शोहरत के लिये

इंसानों के जज़्बातों से

खेलना जरूरी है।

कहें दीपक बापू सबसे ऊंचा हिमालय

त्यागियों का ही आश्रयदाता है

जज़्बातों के सौदागरों की छवि

सन्यासी जैसी दिखाने के लिये

नकली हिमालय बनाना जरूरी है।

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हमसे तेल लेकर

अपने घर की

रौशनी उन्होंने जलाई।

चहक रहे हैं वह

अपनी मस्ती में

न चिराग अपना न दियासलाई।

कहें दीपक बापू रौशनदान से

हम भी झांक लेते हैं,

कैसे वह अपनी दरियादिली

अपने मुंह से फांक देते हैं,

ज़माने की क्या करेंगे भलाई

पहले स्वयं तो खा लें मलाई।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

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सर्वशक्तिमान का रूप अचिंतनीय है-21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख


        प्रचार माध्यमों के अनुसार ब्रिटेन में इस बात पर बहस छिड़ी है कि गॉड स्त्री है या पुरुष! हमारे हिसाब से उन्हें इस बात पर बहस करना ही नहीं चाहिये क्योंकि अंग्रेजी में स्त्री या पुरुष की क्रिया के वाचन शब्द का कोई विभाजन ही नहीं है। स्त्री कार्य कर रही है(Women is working) या पुरुष कार्य कर रहा है(Men is working) इसमें अंग्रेजी वर्किंग शब्द ही उपयोग होता है। यही कारण है कि अनेक कट्टर हिन्दी समर्थक अपनी भाषा को वैज्ञानिक और अंग्रेजी को भ्रामक मानते हैं। यह बहस देखकर उनके तर्क स्वाभाविक लगते हैं|

   सर्वशक्तिमान की स्थिति पर भारतीय दर्शन स्पष्ट है। हमारे यहां परब्रह्म शब्द  सर्वशक्तिमान के लिये ही उपयोग  किया जायेगा।  मुख्य बात यह कि वह अनंत माना जाता है-यह स्पष्ट किया गया है कि वह चित में धारण किया जा सकता है पर वह रूप, रस, गंध, स्वर और स्पर्श के गुणों से नहीं जाना जा सकता। वह चिंत्तन से परे है पर मनुष्य अपने चित्त में जिस गुण से उसका स्मरण करेगा वही उसका ब्रह्म है।

         हमारे यहां विदेशी विचाराधारा के प्रवर्तक सब का सर्वशक्तिमान एक है का नारा लगाते हुए यहां भ्रम पैदा करते हैं। सद्भाव के नाम पर यही नारा लगाते हैं पर सच यह है कि वह एक है कि अनेक, यह कहना या मानना संभव नहीं। अनेक विद्वान तो यह भी कहते हैं कि वह है भी कि नहीं इस पर भी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अनंत है। इसलिये उस पर बहस करना ही नहीं चाहिये। वह वैसा ही है जैसा भक्त है। भक्त जिस रूप में चाहता है उसे धारण कर ले। हमारे यहां अनेक साकार स्वरूप माने जाते हैं। भक्ति को जीवन का अभिन्न भाग माना जाता है। यही कारण है कि निराकार परब्रह्म की कल्पना में असहजता अनुभव करने वाले साकार रूप में उसे स्थापित करते हैं पर उनमें यह ज्ञान रहता ही है कि वह अनंत है। अपने अपने स्वरूपों को लेकर बहस कहीं नहीं होती। यह तत्वज्ञान हर भारतीय विचारधारा में स्थापित है  इसलिये यहां ऐसी निरर्थक तथा भ्रामक चर्चा कभी नहीं होती।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

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कंपनी के उत्पाद परंपरागत भोजन न बनायें-हिन्दी चिंत्तन लेख और कविता


       अब मेगी को खाने के लिये खतरनाक बताया जा रहा है। हैरानी की बात है कि यह बात बहुत समय बाद तब सामने आयी है जब यह युवा पीढ़ी के जीवन का हिस्सा बन चुकी है। युवा पीढ़ी ही क्या पुरानी पीढ़ी भी इसका उपयोग अपनी सुविधा के लिये कर रही है। शादी विवाह में मैगी को एक पकवान की तरह परोसा जाता है। एक तरह से मेगी ने खान पान में नये फैशन की तरह जगह बनाई है। हमारा सवाल तो यह है कि मान लीजिये कि मेगी में खतरनाक तत्व नहीं भी है तो क्या उसका उपयोग घरेलू भोजन के विकल्प में रूप में अपनाना चाहिये?

आज के दौर में भोजन केवल स्वाद के लिये अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जिस भोज्य पदाथों से देह में रक्त तथा शक्ति का निर्माण होता है उन्हें जीभ के स्वाद की वजह से ही कम उपयोग किया जाने लगा है। लौकी, तुरिया और करेला का उपयोग मधुमेह का रोग होने पर ही करने का विचार आता है। सबसे बड़ी बात कि मेगी तथा बेकरी मे अनेक दिनों से बने पदार्थों के उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है।

     हमने तो यह सब स्थितियां बताई हैं जो वर्तमान समय में परंपरागत  भोजन के विकल्प के रूप में खतरनाब पदार्थों का चयन हो रहा है। हमारा तो यह कहना है कि  अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार भोजन के अनुसार ही व्यक्ति की बाह्य श्रेणी भी निर्धारित होती है। भोजन केवल पेट भरने के लिये नहीं होता वरन् उदरस्थ पदार्थ मनुष्य की मानसिकता पर भी प्रभाव डालते हैं। बासी भोजन तामस प्रवृत्ति का परिचायक है। इसे हम यह भी कह सकते हैं कि बासी पदार्थों को खाने वालों में तामसी प्रवृत्ति आ ही जाती है और वह आलस तथा प्रमाद की तरफ आकर्षित होते हैं।

हर जीव के लिये भोजन अनिवार्य है। यह अलग बात है कि पशु, पक्षी, तथा अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य के पास भोज्य पदार्थ के अधिक विकल्प रहे हैं पर इस सुविधा का उपयोग करने की कला उसे नहीं आयी। हमारे अध्यात्मिक दर्शन में सात्विक भोजन करने का संदेश दिया जाता है क्योंकि कहीं न कहीं मनुष्य की बाह्य सक्रियता आंतरिक विचार से प्रभावित होती है। इसलिये भोज्य पदार्थों का चयन करते समय पेट भरने की बजाय हम जीवन में किस तरह की प्रवृत्ति के साथ सक्रिय रहें इस पर विचार करना चाहिये।

खाने पर बहस-हिंदी कविता

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मांस खायें या मिश्री मावा

इस पर प्रचारवीर

अभियान चला रहे हैं।

महंगाई में दोनों ही महंगे

मिलावट के दौर में

शुद्धता लापता 

फिर भी शोर मचाकर लोगों के

कान जला रहे हैं।

कहें दीपक बापू भरे पेट वाले

नहीं करते बात

सड़क पानी और बिजली की

समाज की ऊर्जा 

भोजन पकाने की बजाय

बहस में गला रहे हैं।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

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क्रिकेट मैचों पर व्यंग्यकार की वक्रदृष्टि


        कुछ समझदार लोग अब इस बात से प्रसन्न है कि वह चैन से टीवी पर समाचार देख सकेंगे। कथित विश्व कप से-जिसे कुछ विशेषज्ञ अंतर्राष्ट्रीय कप ही मानते हैं- बीसीसीआई की टीम बाहर हो गयी है। इसलिये भारत के सामान्य सभ्रांत लोग रविवार को आराम से इधर उधर घूमने जा पायेंगे। समझदार मायने क्या? क्रिकेट के व्यवसाय की असलियत जानते हुए भी कभी कभी प्रचार माध्यमों के दबाव में देशभक्ति से ओतप्रोत होकर कुछ लोग मैच देखने लग ही जाते हैं।  कहा जाता है कि बंदर कितना भी बुढ़ा जाये गुलाटियां लगाना नहीं भूलता।  ऐसे ही फिक्सिंग और सट्टे के प्रभाव के समाचार टीवी चैनलों पर देखने बाद अनेक ऐसे लोग जो युवावस्था से मैचे देखते हुए चले आ रहे थे- अब तो उनके बच्चे भी युवा है-इससे विरक्त हो गये थे, पर अब कभी न कभी टीवी पर चिपक ही जाते हैं।  मालुम है कि सब कुछ पटकथा जिस तरह लिखी गयी है उसके अनुसार ही मैच होते हैं फिर भी मन है कि मानता नहीं।

          ऐसे ही हमारे एक मित्र ने जब एक टीवी चैनल पर सुना कि सट्टबाजों की पसंदीदा की टीम है तो विचलित हो गये।  हमसे इस समाचार का मतलब पूछा। हम ज्ञान साधक होने के नाते दूसरे का मन खराब नहीं करते इसलिये अपनी अनभिज्ञता जाहिर की।

          वह बोले-‘‘यार, हमने देखा है कि सट्टेबाजों की पसंदीदा टीम हारती नहीं है।’’

          हमने कहा-‘‘तब मैच मत देखना!’’

          अगले दिन वह मिले तो बोले-‘यार, टीवी चैनल वाले भी गजब है।  उनका इशारा जो समझ ले वही बुद्धिमान है।’’

जब बीसीसीआई के टीम ने एसीबी का पहला ही विकेट जल्द झटक लिया तो वह काम पर जाना छोड़कर घर में ही जम गये। तब वह सोच रहे थे कि संभव है कि इस बार सट्टेबाज नाकाम हो जायें पर जब दूसरा विकेट नहीं मिला और तेजी से रन बन रहे थे तो वह घर से चले गये।  बाद में कहीं दूसरी जगह बीसीसीआई की पारी देखने लगे। जब पहले विकेट की साझेदारी जोरदार चल रही थी तब वह सोच रहे थे कि आज तो सट्टेबाज फ्लाप हो रहे हैं। मगर यह क्या?  थोड़ी देर बाद ही एक के एक खिलाड़ी होते गये। जिस तरह बीसीसीआई के दूल्हे एक के बाद एक बाराती बनकर बाहर जा रहे थे उससे उनका माथा ठनका। तब यह बात उनके समझ में आयी कि अगर मामला क्रिकेट का हो तो सट्टेबाज  भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अधिक दक्ष लगते हैं।

          बीसीसीआई की टीम ने लगातार सात मैच जीतकर जो पुराने क्रिकेट प्रेमियों में उम्मीद जगाई थी वह टूट गयी।  हम दूसरों की क्या कहें जो इन मैचों पर संदिग्ध दृष्टि रखते हैं वह भी प्रचार के झांसे आ ही जाते हैं तो उन लोगों की क्या कहें जो इसे नहीं जानते। बहरहाल हमारे मित्र इस बात पर खुश थे कि उन्हें इस भ्रम से दो दिन पहले मुक्ति मिल गयी  वरना बीसीसीआई की टीम अगर सेमीफायनल  जीत जाती तो फायनल तक बेकार वक्त खराब होता।  हमें हैरानी हुई लोग ऐसा भी सोच सकते हैं।  धन्य है कि क्रिकेट की महिमा!

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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मन और माया की चाल योग से जानना संभव-हिन्दी चिंत्तन लेख(man aur maya ki chal yog se hi janna sambhav-hindi thought article)


            हमारा मानना है कि मन, माया और मय के विचित्र खेल को योगी ही समझ सकता है। यह तीनों उतार चढ़ाव या कहा जाये अस्थिर प्रकृति के हैं। मन पता नहीं कब  कहां और कैसे मनुष्य को चलने के लिये बाध्य कर दे। माया पता नहीं कब हाथ आये और निकल जाये।  मय का नशा चढ़ता है फिर उतर भी जाता है। अंतर इतना है कि मनुष्य देह में स्थित मन ही है जो माया और मय के पीछे भागता है।  इस तरह उसे सहज लगता है।  हमारे अध्यात्मिक दर्शन में कहा जाता है कि मन पर नियंत्रण कर उसका स्वामी होने मनुष्य  प्रसन्न रह सकता है पर वह इसके विपरीत स्वयं बंधुआ बन जाता है जिससे जीवन में उसकी स्थिति उस मोर की तरह हो जाती है जो नाचने के बाद अपने गंदे पांव देखकर रोता है। मनुष्य भी एक के बाद एक भौतिक उपलब्धि प्राप्त करता है पर तन और मन पर आयी थकावट उसे कभी अपनी ही सफलता का पूर्ण आनंद नहीं लेने देती। एक सामान मिलने पर वह  दूसरी, तीसरी और चौथी की कामना होने से  वह भागता रहता है।  चिंत्तन के लिये उसे समय ही नहीं मिलता। सामानों से सुख नहीं मिलता यह अंतिम सत्य है।  सुख कोई बाहर लटकी वस्तु नहीं है जो हाथ लग जाये।  सुख तो एक अनुभूति जो अंदर प्रकट होती है।

            इस संसार को समझने के लिये बाह्य विषयों पर दक्षता से अधिक अपनी ही इस देह रूपी क्षेत्र को जानने की आवश्यकता है। यह योग साधना से ही पूरी हो सकती है।  योग साधना का विषय ऐसा है जिसमें एक बार अगर सिद्धि मिल जाये तो फिर संसार के सभी विषयों का सत्य सहजता से समझा जा सकता है।  एक योग साधक के खाने का भूख से और पानी पीने का प्यास से संबंध नहीं होता। वह  भोजन दवा की गोली या कैप्सूल की तरह यह सोचते हुए उदरस्थ करता है कि कहीं आगे भूख आक्रमण न करे।  वह समय तय कर लेता है कि निश्चित समय पर वह भोजन करेगा चाहे भूख लगे या नहीं।  वह पानी भी दवा की तरह पीता है ताकि उससे प्राणवाणु सहजता से देह में प्रवाहित होती रहे।  एक पारंगत योग साधक भोजन और जल का सेवन करते हुए भी भूख प्यास के अधीन नहीं होता। इससे वह सांसरिक विषयों में भी दृढ़ता पूर्वक निर्लिप्त भाव से स्थित हो जाता है।

            मनुष्य के बाह्य चक्षु सदैव बाहर के विषयों पर केंद्रित रहते हैं इसलिये बुद्धि भी केवल उन्हीं का चिंत्तन करती है।  मन भी विषयों में इतना अभ्यस्त हो जाता है कि मनुष्य परमात्मा की कृपा से प्राप्त इस देह का महत्व नहीं समझ पाता।  देह के बाह्य विकार जल और साबुन से नष्ट किये जा सकते हैं पर अंदर स्थित दोषों के निवारण का उपाय केवल योग साधक ही कर सकता है। सच यह है कि देह के बाह्य विकार भी आंतरिक दोषों से उत्पन्न होते हैं।  आंतरिक दोषों से मन और बुद्धि भ्रमित होती है और अंततः तनाव चेहरे पर प्रकट होता ही है। ऐसा नहीं है कि योग साधक कभी विकार या तनाव ग्रस्त नहीं होते पर वह आसन, प्राणायाम तथा ध्यान की कला से उनका निवारण कर लेते हैं।

            हमारे देश में योग साधना सिखाने वाले बहुत से विद्वान और संस्थान सकिय  हैं पर भारतीय योग संस्थान के शिविरों में  सक्रिय विशारद निष्काम भाव से जिस तरह यह काम करते हैं वह प्रशंसनीय है। सबसे बड़ी बात यह कि वहां निशुल्क सेवा होती है।  शुल्क लेना और देना माया का ही रूप है। भारतीय योग संस्थान के साथ जुड़ने अनेक साधकों के विभिन्न कार्यक्रमों मिलने जो सुखद अनुभव होता उसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है।  इस तरह का सत्संग दुर्लभ होता है।  हम अन्य कार्यक्रमों में सामान्य लोगों से मिलते हैं तो सांसरिक विषयों पर उबाऊ चर्चा होती है पर योग साधकों से मिलने पर हुई योग विषय पर चर्चा अध्यात्मिक शांति मिलती है। तब यह ज्ञान सहज रूप से होता है कि माया, मन और मय के खेल से बचने के लिये योग साधना से बेहतर उपाय नहीं हो सकता।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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