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अंतर्जाल पर लिखते समय भाषा मर्यादित होना चाहिये-आलेख


अंतर्जाल पर जैसे जैसे आप लिखते जायेंगे वैसे वैसे नित नये अनुभव होंगे। एक बात लगने लगी है कि यहां पर हिंदी साहित्य तो लिखा जायेगा पर शायद वैसे नहीं जैसे प्रकाशन माध्यमों में लिखा जाता है। कहानियां केवल कल्पना और सत्य का मिश्रण नहीं बल्कि अनुभूति से घटी घटनायें भी कहानी की शक्ल में प्रस्तुत होंगी। हिंदी ब्लाग अभी शैशवास्था में हैं पर इसके विकास की पूरी संभावना है। अभी तक जो ब्लाग लेखक हैं वह सामान्य लोग हैं और उनका प्रयास यही है कि किसी भी तरह वह न केवल अपने लिये पाठक जुटायें बल्कि दूसरे के पास अपने पाठक भेज सकें तो भी अच्छी बात है। ऐसी कोशिश इस ब्लाग लेखक ने कई बार की है पर अभी हाल ही में एक दिलचस्प अनुभव सामने आया।

हुआ यूं कि एक अध्यात्मिक ब्लाग पर एक ज्योतिष विद् महिला ने अपनी टिप्पणी लिखी। उनके अनुसार वह ज्योतिष की जानकार हैं और जिस तरह उसके नाम पर भले लोगों का ठगा जा रहा है उसके खिलाफ वह जागरुकता लाने का प्रयास कर रही हैं। इस मामले में वह ब्लाग/पत्रिका लेखक से सहायता की आशा भी उन्होंने की।
अगर कोई इस तरह का प्रयास कर रहा है तो उसमें कोई बुराई नहीं। तब उसे लेखक ने अपने उत्तर में बताया कि हिंदी ब्लाग जगत में भी एक महिला लेखिका हैं जो इस विषय पर लिखती हैं। उन महिला टिप्पणीकार को यह भी बताया वह ब्लाग लेखिका न केवल ज्योतिष की जानकारी हैं बल्कि अन्य विषयों पर भी लिखती है। साथ में उनके ‘जागरुकता अभियान’ को पूरा समर्थन देने का वादा भी किया।
उन्होंने फिर आभार जताते हुए ईमेल से जवाब दिया। तभी हिंदी फोरमों पर लेखक की नजर में आया कि हिंदी ब्लाग जगत की उन प्रसिद्ध महिला ब्लाग लेखिका का एक पाठ इसी विषय पर लिखा गया है जिसमें ज्योतिष के नाम पर अंधविश्वास फैलाने का विरोध किया गया है। तक इस लेखक ने उस महिला को उस पाठ का लिंक भेजते हुए लिखा कि वह इसे पढ़ें।
उस समय लेखक यह आशा कर रहा था कि ज्योतिष की जानकार दो प्रतिष्ठत लेखिकाओं-उन टिप्पणीकार महिला ने एक किताब भी लिखी है- के आपसी संपर्क होंगे और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह आगे किस तरह अपने अभियान को बढ़ाती हैं। यह लेखक ज्योतिष के मामले में कोरा है पर उसमें दिलचस्पी अवश्य है और इसी की वजह से दोनों महिलाओं के आपसी संपर्क हों इस उम्मीद में यह सब किया।

बाद में उस टिप्पणीकार का जवाब आया कि वह उस महिला ब्लाग लेखक की ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखे गये विचारों ं से सहमत नहीं है। अब आगे करने क्या किया जाये? उनकी बात से यह नहीं लगा कि वह उन महिला ब्लाग लेखिका से आगे संपर्क रखने के मूड में हैं। फिलहाल यह मामला विचाराधीन रख दिया। आप किसी से सहमत हों इसलिये ही संपर्क करना इस लेखक को जरूरी नहीं लगता। अगर आप असहमत हैं तब भी अपने हमख्याल व्यक्ति से संपर्क करना चाहिये ताकि उस विषय पर अपना ज्ञान बढ़ सके और हम जान सकें कि हमारे विचारों से भी कोई असहमत हो सकता है? मगर हरेक का अलग अलग विचार है। किसी पर कोई आक्षेप करना ठीक नहीं।

मन में आया कि उन महिला टिप्पणीकार से कहें कि आप भी अपना ब्लाग लिखें पर लगा कि वह तो किताब लिख चुकी हैं और यहां ब्लाग लेखक अपनी किताबें प्रकाशित होने के आमंत्रण की प्रतीक्षा कर रहे हैं ऐसे में उनको यह सुझाव देना अपनी अज्ञानता प्रदर्शित करना होगा। इसके अलावा उनकी बातों से लगा कि वह अपने जागरुकता अभियान के प्रति गंभीर है। वह हमारे अध्यात्मिक ब्लाग/पत्रिकाओं में दिलचस्पी संभवतः इसलिये लेती लगती हैं क्योंकि उनके लगता है कि उसमें लिखे गये पाठ उनके ही विचारों का प्रतिबिंब हैं। आगे जब संपर्क बढ़ेगा तो यह आग्रह अवश्य करेंगे कि वह भी अपना ब्लाग बनायें। अध्ययनशील, मननशील और कर्मशील स्वतंत्र लोग जब आगे आकर हिंदी में ब्लाग लिखेंगे तभी चेतना का संचार देश में होगा। जिस तरह लोग हिंदी ब्लाग जगत में रुचि ले रहे हैं उससे यही आभास मिलता है।

बहरहाल ज्योतिष का विषय हमेशा ही इस देश में विवादास्पद रहा है। कुछ लोग सहमत होते हैं तो कुछ नहीं। यह लेखक इस विषय पर विश्वास और अविश्वास दोनों से परे रहा है। एक प्रश्न जो हमेशा दिमाग में आता रहा है कि क्या खगोल शास्त्र और ज्योतिष में क्या कोई अंतर नहीं है। हमारे पंचागों में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण का समय और दिन कैसे निकाला जाता है? यह हमें भी पता नहीं पर इतना तय है कि इसके पीछे कोई न कोई विद्या है और उसे जानने वाले विद्वान हमारे देश में हैं जिनको उसके लिये पश्चिम से किसी प्रकार का ज्ञान उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ती। फिर उसमें तमाम राशियों के लिये भविष्यफल भी होता है। हमने यह भी देखा कि कुछ भविष्यवाणियां सत्य भी निकलती हैं तो कुछ नहीं भी। सबसे बड़ी चीज है कि हमारे यहां गर्मी, सदी और बरसात के लिये जो माह निर्धारित हैं उन्हीं महीनों में होती है। इस विद्या को किससे जोड़ा जाना चाहिये-खगोल शास्त्र से ज्योतिष शास्त्र से।
इधर कोई ब्लाग लेखकों का महासम्मेलन हो रहा है। उसमें इस लेखक को भी आमंत्रण भेजा गया। वहां जाना नहीं हो पायेगा पर वहां शामिल होने वाले लोगों के लिये शुभकामनायें। हां, एक महिला ब्लाग लेखिका ने अपने ब्लाग पर लिखे पाठ में शिकायत की उसने उस ब्लाग पर अपनी सहमति जताते हुए टिप्पणी लिखी थी जिसमें उस महासम्मेलन के लिये सभी को आमंत्रित किया गया पर उसकी टिप्पणी को उड़ा कर ईमेल भेजा गया और कहा गया कि ‘आपको तथा आपकी सहेलियों को आमंत्रण नहीं है।’
दोनों प्रसंग एक ही दिन सामने थे। हमने सोचा कि ज्योतिषविर्द ब्लाग लेखिका और टिप्पणीकार के बीच संपर्क कायम हो जाये फिर इन ब्लाग लेखकों और लेखिकाओं के बीच समझौते के लिये आग्रह करते हैं। आज जब ज्योतिषविद् महिला टिप्पणीकार से यह उत्साहहीन जवाब मिला तो फिर हमने दूसरा कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया।
यह सब अजीब लगता है। ब्लाग लेखकों और टिप्पणीकारों के बीच एक ऐसा रिश्ता है जिसकी अनुभूति बाहर नहीं की जा सकती। मैं उन ज्योतिषविद् महिला टिप्पणीकार और प्रसिद्ध ब्लाग लेखिका के बीच संपर्क होते देखना चाहता था पर नहीं हुआ। सभी यहीं खत्म नहीं होने वाला है। जैसे जैसे हिंदी ब्लाग जगत आगे बढ़ता जायेगा वैसे वैसे ही इस तरह की छोटी छोटी घटनायें भी जब पाठों में आयेंगी तो लोग रुचि से पढ़ेंगे और शायद कुछ लोगों को मजा नहीं आये। हां, वैसे इनका मजा तभी तक है जब तक मर्यादा के साथ उन पर पाठा लिखा जाये। अश्लीलता या अपमान से भरे शब्द न केवल पाठ का मूलस्वरूप नष्ट करते हैं बल्कि पाठक पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं।
इधर ब्लाग पर नियंत्रण को लेकर अनेक तरह के भय व्यक्त किये जा रहे हैं पर यह भ्रम है। दरअसल उन्ही ब्लाग लेखकों पर परेशानी आ रही है जो दूसरों के लिये अपशब्द लिखते हैं। सच बात तो यह है कि आप किसी की वैचारिक, रणनीतिक, या कार्यप्रणाली को लेकर आलोचना कर सकते हैं पर अपशब्द के प्रयोग की आलोचना कानून नहीं देता भले ही ब्लाग के लिये अलग से कानून नहीं बना हो। भंडास निकलने के लिये क्या साहित्यक भाषा नहीं है जो अपशब्दों का प्रयोग किया जाये। इसलिये अंतर्जाल पर लिखने वाले लेखकों इस बात से विचलित नहीं होना चाहिये। इसकी बजाय किसी की आलोचना या विरोधी के लिये शालीन भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।
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पाकिस्तान को भी झेलना पड़ सकता है संकट-आलेख


अगर संकेतों को साफ समझें तो आने वाले दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ घटने वाला है। मुंबई में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की जमीन उपयोग करने का प्रमाण साफ मिल गया है और जिस तरह हमले में विदेशी नागरिक मरे हैं उसका विश्वाव्यापी प्रभाव हुआ है और पूरी दुनियां भारत की तरफ देख रही है कि वह कार्यवाही करता है।
राजनीति और सैन्य विशेषज्ञों की राय तो यही है कि पाकिस्तान के साथ जो इस समय राजनीतिक तौर पर सौहार्दपूर्ण संबंध हैं उसके चलते सीधी सैन्य कार्यवाही की धमकी देना ठीक नहीं है पर सीमित मात्रा में उसके आतंकी इलाकों पर हमला कर देना चाहिये। यह राय जो विशेषज्ञ दे रहे हैं वह न केवल अनुभवी हैं बल्कि उनका सम्मान भी हर कोई करता है।

भारत पाकिस्तान के बीच कोई बड़ा युद्ध होगा इसकी संभावना अगर न ही लगती तो यह भी लगता है कि कुछ न कुछ होगा। क्या होगा? इसका उत्तर देने से पहले पाकिस्तान की अंदरूनी स्थिति को समझना जरूरी है। पाकिस्तान में इस समय लोकतंत्र है। मुंबई के आतंकी हमले को लेकर वहां के लोकतांत्रिक नेताओं पर सीधे कोई आरोप नहीं लगा रहा। भारत भी नाराज बहुत है फिर भी वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के प्रतिकूल कोई टिप्पणी नहीं दिखाई दे रही। दोनों नये हैं और लोकतांत्रिक नेता होने के नाते जानते हैं कि इस हमले से भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी लोग उससे नाराज हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ जरदारी तो भारत के साथ मित्रता के लिये अनेक बयान दे चुके हैं। प्रधानमंत्री गिलानी भी कोई भारत के विरुद्ध कोई अनर्गल बात नहीं कहते। इन दोनों के साथ कठिनाई यह है कि सेना पर अभी तक इनका वर्चस्व स्थापित नहीं हो सका है। दोनों साफ नहीं कहते पर यह सच है कि दोनों ही सेना से डरे हुए हैं और वह जानते हैं कि उनकी खुफिया ऐजेंसी आई.एस.आई. सेना और अपराधी शामिल भारत में आतंकी गतिविधियों में हैं पर कोई कार्यवाही कर पायेंगे इसमें संदेह है।

इन दोनों में भी एक अंतर है। जरदारी सिंध और गिलानी पंजाब प्रांत के हैं । पाकिस्तान में चार प्रांत हैं-पंजाब,सिंध,सीमा प्रांत, और बलूचिस्तान। आजादी के बाद पंजाब प्रांत का ही प्रभाव बाकी तीनों प्रांतों पर रहा है। सेना और प्रशासन पर उनका वर्चस्व रहा है पर बाकी तीनों प्रांतों में लोग आज भी पाकिस्तान का हृदय से अस्तित्व नहीं स्वीकार करते। भारत के विरुद्ध सबसे अधिक सक्रियता पंजाब प्रांत के लोग ही दिखाते हैं। शुरु में कबायली लोगों ने कश्मीर पर कब्जा करने में पाकिस्तान की सहायता अवश्य की थी पर बाद वह भी वहां की सरकार से असंतुष्ट हो गये। गिलानी भले ही पीपुल्स पार्टी के हैं और उन पर आसिफ जरदारी का पूरा नियंत्रण लगता है पर उनका पंजाबी होना भी यह संदेह पैदा करता है कि वह शायद ही भारत के हितचिंतक हों। जरदारी उस सिंध के हैं जो पाकिस्तान भक्ति से कोसों दूर हैं। बलूचिस्तान और सीमाप्रांत तो नाम के लिये ही पाकिस्तान का भाग हैं बाकी वहां के लोग अपना स्वायत्त जीवन जीते हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ जरदारी ने तो पहले स्वयं ही माना है कि मुंबई में हुए हमले में उनके देश के उन तत्वों का हाथ हो सकता है जो दोनों के बीच दुश्मनी कराना चाहते हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि ‘उनकी सजा हमें क्यों देते हो?’ हालांकि बाद में भारत द्वारा 20 आंतकवादी मांगने के बाद उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। इससे यह तो पता चलता है कि पाकिस्तान में पंजाब की लाबी बहुत प्रभावी है और उसकी सहमति के बिना वहां काम करना कठिन है।

पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार होने के कारण भारत भी फूंक फूंक कर कदम रख रहा है क्योंकि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता कि वहां की लोकतांत्रिक सरकार वहां अलोकप्रिय हो। ऐसे पाकिस्तान के अंदर सीमित कार्यवाही करने की संभावना बनती दिख रही है हालांकि पाकिस्तानी सेना की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी यह भी देखने वाली बात है। इस सीमित कार्यवाही में पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर हमला करना भी शामिल है। वैसे अधिकतर विशेषज्ञ पाकिस्तान का बंटवारा करवाने के पक्ष में नहीं है पर कुछ लोग मानते हैं कि वहां की अदंरूनी राजनीति के गड़बड़झाले का लाभ उठाते हुए उसका विभाजन करना भी बुरा नहीं है।

भारतीय रक्षा,राजनीति और विदेश नीति विशेषज्ञ भी मानते हैं कि काबुल में हुए भारतीय दूतावास और अब मुंबई पर हमले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी,सेना और अपराधियों का हाथ तो है पर वहां के प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति और अन्य लोकतांत्रिक नेता उनसे जुड़े नहीं है। ऐसे में आक्रमण की स्थिति होने पर वहां की लोकतांत्रिक सरकार भला कैसे चुप बैठ सकती है? आखिर कैसे वह भारत का समर्थन कर सकते है?’

पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे। वैसे देखा जाये तो काबुल दूतावास पर भारतीय दूतावास पर हमले पर भारत में उच्च स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी पर चूंकि आम जनता उससे सीधे जुड़ी नहीं थी इसलिये इसका भारतीय प्रचार माध्यमों ने प्रचार भी नहीं किया। वैसे भी प्रचार माध्यम इस समय भले ही पाकिस्तान के प्रति रोष दिखा रहे हैं पर यही अपने कार्यक्रमों और प्रकाशनों में वहां के लोगों को स्थान देने के लालायित रहते हैं। भारतीय प्रचार माध्यम पाकिस्तान से आम आदमी के स्तर पर सपंर्क के नाम पर वहां के कुछ खास लोगों का यहां अपने व्यवसायिक उपयोग करते हैं। आज जब मुंबई पर हमला हुआ है तब उन्हें पाकिस्तान खलनायक नजर आ रहा है पर इस प्रचार में भी उनका व्यवसायिक भाव दिख रहा है-दिलचस्प बात यह है कि पाकिंस्तान से सभी प्रकार के संपर्क तोड़ने का नारा कोई नहीं लगा रहा है क्योंकि सभी अपने भविष्य की व्यवसायिक संभावनाओं को जीवित रखना चाहते हैं।

बहरहाल आने दिनों वाले में क्या होगा? कुछ नहीं कहा जा सकता है पर इतना तय है कि भारत और पाकिस्तान में अंदरूनी राजनीतिक गतिविधियां तीव्र हो जायेंगी। अगर आगे आतंकी घटनायें रोकनी हैं तो कुछ कठोर कदम तो उठाने ही होंगे। सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो फिर लोगों को समझाना कठिन होगा। पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध न भी हो पर सीमित कार्यवाही अवश्यंभावी प्रतीत होती है क्योंकि इसके बिना भारत के शक्तिशाली होने का प्रमाण नहीं मिल सकता। अब यह देखने वाली बात होगी कि आगे क्या होता है? एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि जब तक भारत इस आतंकवाद का मूंहतोड़ जवाब नहीं देता तब तक लोग उसकी शक्ति पर यकीन नहीं करेंगे।
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यह आलेख मूल रूप से इस ब्लाग ‘अनंत शब्दयोग’पर लिखा गया है । इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं हैं। इस लेखक के अन्य ब्लाग।
1.दीपक भारतदीप का चिंतन
2.दीपक भारतदीप की हिंदी-पत्रिका
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
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चंद्रयान-1 के अभियान से विश्व में भारत का सम्मान बढ़ेगा-आलेख


श्री हरिकोटा से ‘चंद्रयान-1’ का प्रक्षेपण हमारे भारत देश के लिये विश्व के विज्ञान जगत में प्रतिष्ठा के चार चांद लगाने वाली बहुत बड़ी घटना है। यह आश्चर्य की बात है कि भारतीय समाचार चैनल इस घटना को प्रमुखता देने की बजाय देश में हो रही हिंसक घटनाओं को अग्रता प्रदान कर रहे हैं। कुछ खबर को विस्तार देने के लिये फिल्मों के चांद पर लिखे गये गानों को सुनाकर अपने कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस खबर का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव होगा उसका आंकलन करना आवश्यक है जो शायद कल कुछ समाचार पत्र के संपादक अपने संपादकीय लिख कर पूरा करेंगे।
अभी तक भारतीय विज्ञान की प्रगति और तकनीकी के चर्चे बहुत थे पर चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे प्रमाणिक स्वरूप प्रदान करेगा इसमें संदेह नहीं है। सच तो यह है कि परमाणु विस्फोटों से जहां अन्य देशों के लोगों में भारत के लिये नकारात्मक संदेश गया था पर इससे सकारात्मक संदेश जायेगा। वह यह कि भारत विज्ञान की प्रगति केवल अपने सुरक्षा के लिये नहीं बल्कि विश्व कल्याण के लिये भी करना चाहता है।
परमाणु बम भले ही घोषित रूप से कुछ ही देशों के पास है पर अघोषित रूप से कई अन्य के पास होने का भी संदेह है। फिर परमाणु बम अंततः मानव सभ्यता को कुछ नहीं देता जबकि चंद्रयान-1 के निष्कर्षों से पूरा विश्व लाभन्वित होगा। अमेरिका ने चंद्रमा पर अपना विमान पहले भेजकर ही अपनी शक्ति का लोहा मनवाया था। वैसे उसने जापान पर परमाणु बम गिराकर अपनी शक्ति दिखाई थी पर उसे वास्विकता प्रतिष्ठा चंद्रमा पर यान भेजने के बाद ही प्राप्त हुई थी।
हो सकता है कि इस पर आये खर्चे पर कुछ लोग यह कहकर आलोचना करें कि इससे देश की गरीबों में बांटा जा सकता था पर यह उनकी अज्ञानता का प्रमाण माना जायेगा। इस पर आया खर्च एक तो बहुत कम है दूसरे एक सभ्य समाज और राष्ट्र को ‘विज्ञान के क्षेत्र’ मेंे प्रगति करना चाहिये ताकि उसके दायरे में मौजूद प्रतिभाशाली लोगों को अवसर मिले। उनका आत्मविश्वास बना रहे इसलिये ऐसे वैज्ञानिक प्रयोग निरंतर करते रहना चाहिये। इससे समाज और राष्ट्र का अन्यत्र सम्मान बढ़ता है और प्रतिभाशाली लोगों के आत्मविश्वास से उसकी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा संभव है।

हालांकि इस यान में अन्य देशों की भी भूमिका है पर यह भारत के हरिकोटा से छोड़ा गया है और इसका आशय यह है कि इसरो ने अब नासा के समकक्ष अपनी भूमिका निभाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है। भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष में अंतर्राष्ट्रीय जगत पर अपनी भूमिका निभाने के लिये अब बहुत तत्पर लगते हैं। इसका कारण यह भी है कि अमेरिका से उपग्रह भेजना बहुत महंगा है और भारत इसके लिये अब एक सस्ता देश हो गया है। यही कारण है हमारे देश के वैज्ञानिक अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेज रहे हैं बल्कि दूसरों का भी सहयोग कर रहे हैं। संभव है कि किसी दिन रूस,अमेरिका,फ्रांस और ब्रिटेन किसी दिन अपने उपग्रह भारत ये भेजने का विचार करें।
आमतौर से विज्ञान और व्यापार के विषय राजनीति से बाहर रखे जाते हैं पर भारत के पड़ौसी देशों में पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो भारत के साथ हर क्षेत्र में राजनीति जोड़ लेता है। वरना वहां के कई समझदार लोग सलाह देते हैं कि अंतरिक्ष, विज्ञान, स्वास्थ्य और व्यापार के मामले में भारत की मदद ली जाये।

चंद्रयान-1 प्रक्षेपण में अमेरिका भी जुड़ा हुआ है और यह इस बात का प्रमाण है कि विज्ञान और अंतरिक्ष मामले में उसके और भारत के संबंध में कितनी गहराई है। शीतयुद्ध के समय भी भारत के इंसैट उपग्रहों की श्रृंखला का अमेरिका से ही प्रक्षेपण हुआ और भारत के संचार क्रांति मेंं उसकी भूमिका को आज भी पुराने लोग जानते हैं। हमेशा भारत के मित्र रहे सोवियत संघ ने भी विज्ञान में अमेरिका के समान ही प्रगति की पर उसकी भूमिका इस मामले में नगण्य ही रही। यही कारण है कि आज भी हमारे देश में सोवियत संघ को अमेरिका के मुकाबले समर्थन देने वाले कम हैं। आज वही अमेरिका श्रीहरिकोटा में च्रदंयान-1 अभियान से जुड़ा तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं है। भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली के कारण अनेक देश भारत से जुड़ेंगे इसमें संदेह नहीं है और कोई बड़ी बात नहीं है कि आगे चीन भी कोई ऐसी पहल करे। विश्व के अनेक देश अपने यहां संचार व्यवस्था के विकास के लिये भारत से संपर्क बढ़ायेंगे इसमें संदेह नहीं है। सच तो यह है कि भारत के विश्व में सामरिक रूप से महाशक्ति के रूप में स्थापित होने की जो कल्पना की गयी थी उसकी तरफ यह बढ़ाया गया यह एक प्रमाणिक कदम है।

इधर कुछ आर्थिक विद्वान वैश्विक मंदी में भी अमेरिका सहित पश्चिम देशों की हालत देखकर कह रहे हैं कि हो सकता है कि भारत कहीं आर्थिक महाशक्ति न बन जाये। जब तक मंदी नहीं थी तब तक तो कोई कुछ नहीं कह रहा था पर अब जो मंदी चल रही है उससे भारत में संकट है पर लोगों को उसकी तरफ कम अमेरिका पर अधिक ध्यान है। पहले तो दबे स्वर में कहा जाता था कि विश्व के गरीब देशों के शीर्षस्थ लोग अपना धन अमेरिका में निवेश कर उसे शक्ति प्रदान कर रहे हैं पर अब तो यह खुलेआम कहा जा रहा है कि अब अमेरिका में निवेश करने वाले लोग भारत में निवेश कर सकते हैं। कुछ लोग तो इसमें अंतर्राट्रीय स्तर पर देशों के आपसी समीकरण बदलने की संकेत भी ढूंढ रहे हैं। उनका मानना है कि इस मंदी से अमेरिका का छुटकारा आसान नहीं है। अगर वह बचा भी तो उसे कम से कम पांच साल पुराने स्तर पर आने में लग जायेंगे। इधर सोवियत संघ भी चीन के साथ मिलकर भारत को इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाने के लिये पे्ररित कर रहा है।
जहां तक विश्व में महाशक्ति बनने या न बनने का सवाल है तो एक बात तय है कि अमेरिका तो कहता है कि उसकी विदेश नीति में उसके स्वयं के हित ही सर्वोपरि हैं पर इस राह पर तो सभी चलते हैं। विश्व में अमेरिका के विकल्प के रूप में कोई राष्ट्र नहीं है। सोवियत संघ और चीन ने अमेरिका की तरह भारत तरक्की की है पर अपने आंतरिक ढांचों की कार्यप्रणाली की संकीर्णताओं और शंकाओं के कारण वह उसके विकल्प नहीं बन पाये। विश्व के कई देश भारत को उसके विकल्प के रूप में देखते हैं तो इसका कारण यह है कि यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है और धन के मामले में भी कोई गरीब नहीं हैं। यह अलग बात है कि बढ़ती आबादी के कारण यहां का आर्थिक विकास मंद नजर आता है। लोकतांत्रिक सरकारों की आलोचना बहुत आसान है क्योंकि वह अमूर्त रूप में हैं पर अपने सामाजिक ढांचे और सोच के संकीर्ण दायरों को ही इसके लिये वास्तविक जिम्मेदार माना जाता है। बहरहाल चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण से भारत के सभ्य,शिक्षित और जागरुक लोगों को आत्मविश्वास बढ़ेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। भारत के बाहर भी अनेक अप्रवासी हैं और वह इस उपलब्धि पर गर्व कर वहां रह रहे लोगों को बता सकते हैं कि उनका देश एक शक्तिशाली राष्ट्र है। विदेशी भी इस सफलता पर आश्चर्य चकित तो होंगे और अगर इतने विकास के बावजूद जो भी भारत के प्रति संकीर्ण सोच रखते थे वह उसे बदलना चाहेंगे। इस अवसर पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई इस आशा के साथ कि वह आगे इसी तरह अपना कार्य जारी रखकर अन्य उपलब्धियां हासिल करेंगे। यह बात निश्चित है कि विश्व के अनेक छोटे और बड़े राष्ट्र अब विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भारत से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा करेंगे।
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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