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सविता भाभी और कविता भाभी का झगड़ा-हास्य व्यंग्य (savita bhabhi aur kavita bhabhi ka jhagda)


कविता सजधज तैयार हो गयी। उसका पति कवि बाहर स्कूटर पर खड़ा उसका इंतजार कर रहा था। उसे तैयार होता देख सविता अंदर ही अंदर सुलग रही थी। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपना गुस्सा कहां प्रकट करे। उसका पति तो ब्लागर था जिसे अपने छोटे भाई की तरह कवि सम्मेलन में आना जाने से मतलब नहीं था। बस कंप्यूटर पर वह लिखता था।
इधर कविता सजधजकर कवि सम्मेलन में जा रही थी। वहां उसका कवि-यानि ब्लागर का छोटा भाई-कवितायें सुनाने वाला था। यह कवितायें उसे कंप्यूटर पर बैठकर भाई के ब्लाग से ही निकाली थी। इस बात ने सविता को और अधिक चिढ़ा दिया था।
इधर कविता ने एक पर्स उठाया जिस पर सविता का लेबल लगा हुआ था। बस सविता को अवसर मिल गया।
उसने कड़ककर देवरानी से पूछा‘-यह पर्स पर मेरे नाम का लेबल क्यों लगा रखा है।’
कविता ने कहा-सविता भाभी, यह तो बाजार से खरीदा है। इस पर ऐसे ही लेबल लगा हुआ है। लेबल तो किसी भी नाम का भी हो सकता है।’
सविता चिल्ला पड़ी-‘समझती हूं सब! इंटरनेट पर मेरा नाम ‘सविता भाभी’ बहुत मशहूर है। तुम कवि सम्मेलन में जाकर लोगों को यह बताओगी कि मेरी जिठानी का नाम भी सविता भाभी है। इधर यह तुम्हारा पति मेरे ही पति की कवितायें ही चुराकर सभी जगह सुनाता है और तुम मजे से उसके साथ घूमती है हो और जिसके सहारे यह सब चल रहा उस ब्लागर की पत्नी होने के बावजूद मुझे घर पर सड़ना पड़ता है।’
कविता भी चिल्ला पड़ी-‘क्या हिंदुस्थान में आप ही एक सविता भाभी हो जो इस तरह चिल्ला रही हो। जब से अखबार में आपके नाम वाली वेबसाईट बैन होने की खबर क्या आयी है अपने पति के ब्लागर होने का रौब गालिब करती हैं भले ही अकेले में उनको कोसती हैं मगर सभी के सामने कमर मटकाते हुए कहती हैं कि ‘मेरे पति ब्लागर हैं’। उंह, जैसे जानती ही नहीं कि भाई साहब कितने फ्लाप लेखक हैं।
कविता ने आखिरी वाक्य कमर वास्तव में मटकाते हुए कहा था। इससे सविता चिढ़ गयी। उसने चिल्लाकर कहा-‘तुम अपने आपको समझती क्या हो? तुम्हारे पति का नाम कवि और तुम्हारा कविता है तो चाहे जो कर लो। अरे, मेरे पति का नाम ब्लागर और मेरा सविता है। मेरे नाम इंटरनेट पर खूब चल रहा है। इसलिये ही तुम यह पर्स लायी हो ताकि लोग तुम्हें देखें और तुम उनको बताओ कि मेरी जिठानी का नाम ‘सविता भाभी’ है और मेरे जेठ भी इंटरनेट पर लिखते हैं पर फ्लाप हैं। जबकि तुम्हारा पति मेरे पति की कवितायें चुराकर सुनाता है।’
कविता का पारा भी चढ़ गया-‘अब क्यों इतरा रही हो। आपके नाम वाली वेबसाईट पर बैन लग गया है। भाई साहब ने भी अपने ब्लाग पर लिखा है। आपके नाम वाली वेबसाईट बहुत खराब थी। ‘सविता भाभी’ का चरित्र प्रसिद्ध है उससे अपनी तुलना इसलिये मत करो कि आपके पति देव ब्लाग पर घटिया किस्म की हास्य कवितायें और व्यंग्य लिखते हैं।
इधरा कविता को न आता देख कवि वापस अंदर आया तो उधर ब्लागर भी ऊंची आवाजें सुनकर अपने कंप्यूटर से उठकर उस कमरे मेें पहुंचा जहां यह द्वैरथ चल रहा था।
कवि ने अपनी पत्नी कविता से कहा-‘क्या बात कविता इतनी देर क्यों लगा दी?’
कविता ने कहा-‘इन सविता भाभी ने मूड खराब कर दिया।’
ब्लागर एकदम उछल पड़ा और अपने भाई सो बोला-अच्छा याद दिलाया। आज मुझे सविता भाभी पर कविता लिखनी है।’
कवि एकदम च ौंककर बोला-’अच्छा भईया! लिखो! सामयिक विषय है। आप लिखदो तो मैं उसे कवि सम्मेलन में सुनाऊंगा।’
हां! अभी लिखता हूं!’वह जाते हुए फिर मुड़ा ओर बोला-‘कविता और सविता तुम यह बताओ कि तुम्हारा झगड़ा किस बात पर चल रहा था?’
कवि ने कहा-‘क्या बात है भईया! क्या तुकबंदी मिलाई। कविता और सविता। वाह! अब तो जाकर आप लिख दो ब्लाग पर ‘सविता और कविता का झगड़ा।’
कविता और सविता दोनों ही चिल्ला पड़ी-‘नहीं! हम दोनों का नाम एक साथ नहीं लिखें।’
मगर ब्लागर कहां मानने वाला था। अलबत्ता वह कविता की जगह व्यंग्य लिख गया।
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नोट-यह एक काल्पनिक रचना है तथा किसी व्यक्ति या घटना से कोई लेना देना नहीं है। इसमें लिखा हुआ किसी से संयोग भी हो सकता है। वैसे यह पाठ प्रयोग के लिये भी जारी किया गया है।

यह आलेख इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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