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भ्रष्टाचार पर निबंध और हास्य कविता लिखकर बताएं -दीपक भारतदीप की मौलिक हास्य कवितायें रचना (bharashtachar par nibandh aur hasya kavitaen likhkar bataen-Deepak Bharatdeep’s original hindi poem’s on corruption)


पोते ने दादा से कहा
‘‘कक्षा की हिन्दी शिक्षिका ने
सभी विद्यार्थियों  घर से
भ्रष्टाचार पर निबंध लिखने को कहा है,
आप जरा मदद करो
कुछ जोरदार तर्क भरो
ताकि मेरी श्रेणी सुधर जाये
वरना मैंने फिसड्डी होने का दर्द बहुत सहा है,
पहले तो मेरे यही समझ में नहीं आता कि
भ्रष्टाचार होता किस तरह है,
सभी चेहरे ईमानदार दिखते
फिर बेईमानी होने की क्या वजह है,
आप तो अनेक बार आंदोलन कर चुके हैं,
कई बार अनशन तो हड़ताल कर
इतिहास में अपना नाम भर चुके हैं,
इसलिये भ्रष्टाचार पर निबंध जोरदार लिखायें,
पहले मुझे बाद में समाज के मार्ग दिखायें।’’
सुनकर बोले दादाजी
‘‘बेटा,
कल चलना मेरे साथ स्कूल,
तुम्हारी शिक्षिका को समझाऊंगा
भ्रष्टाचार पर निबंध लिखवाने की बात जायेगी भूल,
तुम चाहे तो अब भी अनशन करा लो,
नौकरी अब करता नहीं
इसलिये सुबह दूध सब्जी लाने के काम से
चाहे हड़ताल धरा लो,
मगर यह भंष्टाचार पर निबंध लिखने में
मदद की बात सोचना भी नहीं,
इस पर पूरा पुराण लिखना पड़ेगा
अपने सिर के बाल नौचना न पड़ें कहीं,
वैसे तुम्हारी शिक्षिका को समझाऊंगा
इस बालपन में भला
हमारे बच्चों को भ्रष्टाचार के विषय से
अवगत क्यों करा रही हो,
सीख जायेंगे सब कुछ
जब बड़े ओहदे पर पहुंच जायेंगे,
नहीं पहुंचे तो भी
इसके परिणाम जरूर समझ पायेंगे,
बड़े बड़े लोग माथापच्ची कर भी
भ्रष्टाचार के आगे हार जाते हैं,
जेब सबसे अधिक वही भरते

जो बहसों में ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं,
हिन्दी में ईमानदारी और नैतिकता पाठ
कभी न पढ़ायें,
भ्रष्टाचार जैसे विषय पर
हमारे बच्चों का खून अभी से न जलाये
बड़े होकर वैसे भी भ्रष्टाचार पर बहस करेंगे,
कहीं देखेंगे फिल्म, कहीं  कविता कहेंगे,
इससे अच्छा तो शीला की जवानी को इंगित करती,

बदनाम मुन्नी के नाम में प्रतिष्ठा भरती,
कविता इनको लिखना सिखायें,
संभव है कुछ बालक
भविष्य में हास्य कवि होकर आपका नाम
गुरु के रूप में रौशन कर दिखायें।’’
————
समाज सेवक को धनपति ने
अपनी शराब पार्टी में बुलाकर
अकेले में कहा
‘‘यार, अपनी कमाई बहुत हो रही है,
पर मजा नहीं आ रहा है,
लोगों के कल्याण के नाम पर
तुम्हें चंदा देते हैं
गरीबों की भीड़ कम नहीं हुई
कभी लोग भड़क न उठें
यह डर सता रहा है,
इसलिये तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाओ,
यहां जिंदा कौम रहती है यह
संदेश विदेशों में फैलाओ,
बस इतना ख्यान रखना
भ्रष्टाचार के खिलाफनारे लगाना,
किसी पर आरोप लगाकर
उसकी पहचान मत बताना,
तुम तो जानते हो
हमारा काम बिना रिश्वत
दिये बिना चलता नहीं,
टेबल के नीचे से न दो पैसे
तो किसी का पेन काम के लिये मचलता नहीं,
फिर कई बड़े लोग
तुम्हें जानते हैं,
उनका भी ख्याल रखना
तुमको वह अपना सबसे बड़ा दलाल मानते हैं
इसलिये
हवा में भाषणबाजी कर
अपना अभियान चलाना,
हमें भी है विदेश में
अपने देश की जिंदा पहचान बताना,
अब तुम रकम बताओ,
अपना चेक ले जाओ।

समाज सेवक ने चेक की रकम देखी
फिर वापस करते हुए कहा
‘यह क्या रकम भरते हो,
लड़ा रहे हो उस भ्रष्टाचार नाम के शेर से
जिसका पालन तुम ही करते हो,
पहले से कम से कम पांच गुना
रकम वाला चेक लिखो,
कम से कम हमारे सामने तो
ईमानदार दिखो,
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए
जब मैदान में आयेंगे,
भले किसी का नाम लें
पर हमारे कई प्रायोजक
डरकर साथ छोड़ जायेंगे,
बाल कल्याण और स्त्री उद्धार वाले हमारे धंधे
सब बंद हो जायेंगे,
भ्रष्टाचार विरोधी होकर
हमारी कमाई के दायरे तंग हो जायेंगे,
बंद हो जायेगा
शराब और जुआ खानों पर जाना,
बंद हो जायेगा वहां का नजराना,
जब चारों तरफ मचेगा कोहराम,
तुम्हारा बढ़ जायेगा दो नंबर का काम,
इसलिये हमारा चंदा बढ़ाओ,
वरना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
हम कतई न उलझाओ।’’
————

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior

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गरीबी की रेखा-हास्य कविताएँ (garibi ki rekha-haysa kavitaen


गरीबी की रेखा के ऊपर बैठे लोग ही
पूरा हिस्सा खा जाते हैं
इसलिये ही नीचे वाले
नहीं उठ पाते ऊपर
कहीं अधिक नीचे दब जाते हैं।
———
गरीबी रेखा के ऊपर बसता है इंडिया
नीचे भारत के दर्शन हो जाते हैं,
शायद इसलिये बुद्धिजीवी अब
इंडिया शब्द का करते हैं इस्तेमाल
भारत कहते हुए शर्माते हैं।
————-
गरीबी की रेखा पर कुछ लोग
इसलिये खड़े हैं कि
कहीं अन्न का दाना नीचे न टपक जाये
जिस भूखे की भूख का बहाना लेकर
मदद मांगनी है दुनियां भर से
उसका पेट कहीं भर न जाये।
——-
गरीबी रेखा के नीचे बैठे लोगों का
जीवन स्तर भला वह क्यों उठायेंगे,
ऐसा किया तो
रुपये कैसे डालर में बदल पायेंगे,
फिर डालर भी रुपये का रूप धरकर
देश में नहीं आयेंगे,
इसलिये गरीबी रेखा के नीचे बैठे
इंसानों को बस आश्वासन से समझायेंगे।
————-
अपना पेट भरने के लिये
गरीबी की रेखा के नीचे
वह इंसानों की बस्ती हमेशा बसायेंगे,
रास्ते में जा रही मदद की
लूट तभी तो कर पायेंगे।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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हास्य कविताएँ – पुरानी कथा के नायक और खलनायक


राजशाही लुट गयी
लुटेरे बन गये
ज़माने के खैरख्वाह।
उठाये थे पहले भी गरीब
साहुकारों का बोझ
भले ही भरकर रह जाते थे आह,
अब भी कहर बरपा रहे
लुटेरे तमंचों के जोर पर रोज
फिर भी बोलना पड़ता है वाह वाह।
———
इतिहास क्यों पुराना सुनाते हो,
यहां घट रहा है रोज नया घटनाक्रम
तुम पुरानी कथा क्यों सुनाते हो।
पढ़ लिखकर किताबें क्यों ढूंढ रहे हो
जमाने को दिखाने का रास्ता,
अपनी खुद की सोच बयान करो
मत दो रद्दी हो चुके ख्यालों का वास्ता,
पुराने समय के नायकों की याद में
नये खलनायकों की चुनौती क्यों भुलाते हो।
———-

सम्मेलन में
कुछ रूठे इस उम्मीद में गये कि
कोई उन्हें मना लेगा
कुछ टूटे दिलों ने आसरा किया कि
कोई उन्हें फिर बना लेगा,
मगर वहां जमी महफिल में
सभी चीख रहे थे
गुर्राने के नये नये तरीके सीख रहे थे,
सद्भाव के नाम संघर्ष दिखने लगा।
सभी ने अपनी अपनी कही,
दूसरे की सलाह भी सही,
तय किया ज़माने में नश्तर चुभोने का,
अपने को छोड़कर सभी को डुबोने का,
फिर कोई अगले सम्मेलन की तारीख लिखने लगा।

————————
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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इश्क में सच-हास्य कविता (ishq aur sach-hasya kavita)


आशिक शिष्य ने अपने इश्क गुरु से कहा
‘‘आदरणीय
फिर एक माशुका मेरी जिंदगी में आई
पर उसने मेरा इश्क का मामला
मंजूर करने से पहले
सच बोलने वाली मशीन के सामने
साक्षात्कार की शर्त लगाई।
आपसे सलाह लेकर अपने इश्क के मसले
सुलझाने में पहले भी
मदद नहीं मिली
इसलिये इस बार इरादा नहीं था
आपके पास आने का
पर क्या करता जो यह
एकदम नई समस्या आई।’’

इश्क गुरु ने कहा
‘‘कमबख्त! हर बार पाठ पढ़ जाता है
नाकाम होकर फिर लौट आता है
मेरे कितने चेले इश्क में इतिहास बना चुके हैं
पर केवल तेरी वजह से
मुझे असफल इश्क गुरु कहा जाता है
इस बार तुम घबड़ाना नहीं
सच का सामना करने के लिये
मैदान पर उतर जा
रख दे माशुका से भी
सच का सामना करने की शर्त
उसकी असलियत की भी उधड़ेगी पर्त
वह घबड़ा जायेगी
अपनी शर्त भूल जायेगी
तुम्हारी अक्लमंदी देखकर कर लेगी
जल्दी सगाई।’’

कुछ दिन लौटकर चेला
गुरु के सामने आया
चेहरे से ऐसा लगा जैसे पूरे जमाने ने
उस अकेले को सताया
बोला दण्डवत होकर
‘’गुरु जी, आपका पाठ इस बार भी
काम न आया
माशुका सुनकर मेरा प्रस्ताव
कुछ न बोली
बाद में उसने यह संदेश भिजवाया कि
‘भले ही न करना था
सच की मशीन का सामना
कोई बात नहीं थी
पर मुझ पर मेरी शर्त थोपकर
तुमने मेरा विश्वास गंवाया
इसलिये तय किया कि
किसी दूसरे से सच का सामना
करने के लिये नहीं कहूंगी
पर तुमने शर्त नहीं मानी
इसलिये आगे तुम्हारे इश्क को
अब दर्द की तरह नहीं सहूंगी
कर ली मैंने
अपने माता पिता के चुने लड़के से ही सगाई’
अफसोस! इस बार भी गुरु की सलाह
काम न आई’’

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किसके चिल्लाने की बारी है-हिन्दी व्यंग्य कविता


भ्रष्टाचार,

अत्याचार

और व्याभिचार को भी

जाति, भाषा और धर्म के नाम पर

बांटने की कोशिश जारी है,

अक्लमंद दिखाते हैं बहादुरी

अपने अपने हिस्से की शिकायतें उठाने में

शब्द खर्च करते

दूसरे की कमियां गिनाने में

हर हादसे पर देखते हैं बस यही कि

किसके चिल्लाने की बारी है।
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इशारे-हिन्दी व्यंग्य कविता (ishare-hindi satire poem)


तैश में आकर तांडव नृत्य मत करना
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन
जीभ होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
यह लोग
इशारे से तुम्हें उकसा रहे रहे हैं।
जब तुम खो बैठोगे अपने होश,
तब यह वातानुकूलित कमरों में बैठकर
तमाशाबीन बन जायेंगे
तुम्हें एक पुतले की तरह
अपने जाल में फंसा रहे हैं।

————————
कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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फरिश्ते होने का अहसास जताते-व्यंग्य कविता


किताबों में लिखे शब्द
कभी दुनियां नहीं चलाते।
इंसानी आदतें चलती
अपने जज़्बातों के साथ
कभी रोना कभी हंसना
कभी उसमें बहना
कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।

ओ किताब हाथ में थमाकर
लोगों को बहलाने वालों!
शब्द दुनियां को सजाते हैं
पर खुद कुछ नहीं बनाते
कभी खुशी और कभी गम
कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता
यह कोई करना नहीं सिखाता
मत फैलाओं अपनी किताबों में
लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम
किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें
उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम
शब्द समर्थ हैं खुद
ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को
गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है
जो तुम उनका बोझा उठाकर
अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।
————–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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कहीं ढूढें भाभी, ढूंढे साली, पसंद न आये घरवाली-हास्य व्यंग्य कविता (bhabhi, sali aur gharwali par vyangya kavita


साली और भाभी पर जो
कोई ख्याली शेर लिखा
पढ़ते हुए उसे लोगों का ढेर दिखा।
जो बयान किये दर्द जमाने के
उसे पढ़ने से कतराये सभी
कैसा यह फेर दिखा।
……………………….

जिनके दिल में दर्द है
भला वह उससे सजे शब्द पढ़कर
क्या पायेंगे
जिनके दिमाग और घर हैं
खुशी और दुःख से खाली
वह ढूंढ रहे हैं किताबों और कंप्यूटर पर
कल्पित साली और भाभी
मनोरंजन घर की है उनके लिये यही चाभी
बढ़ गयी है पूरी दुनियां
देश के जवान अभी पीछे हैं
सीख ली अंग्रेजी
पहुंच गये ऊपर पर
नजरें अभी भी नीचे हैं
अपनी कभी रास न आये घरवाली
कहीं ढूंढे भाभी तो कहीं साली
बरसों पहले भी यही था
अब भी यही चला रहा है
जमाने में कभी नहीं फेर दिखा
………………………………

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परीक्षा परिणाम-हास्य व्यंग्य कविता


उतरा मूंह लेकर फंदेबाज
घर आया और बोला-
‘दीपक बापू,
बड़ा बुरा दिन आया
हाईस्कूल के इम्तहान में
मोहल्ले के बच्चों ने डुबाया नाम
होकर बुरी तरह फेल
आदर्श मोहल्ला बनाने का हमारा इरादा था
पर बिगड़ गया सारा खेल।‘
उसकी बात सुनकर
आंखों और नाक पर लटके चश्में के बीच से
झांकते हुए बोले दीपक बापू
‘’तुम कभी अच्छी खबर भी कहां लाते हो
दर्द उभार कर कविता लिखवाते हो
मगर खैरियत है तुम यहां आये
इम्तहान के परिणाम से दुःखी मोहल्ले वालों ने
नहीं की होगी पाश्च् समीक्षा
इसलिये ही यहाँ पहुंच पाये
वरना तुम भी क्या कम हो
मोहल्ले का पीछा नहीं छोड़ते
हमारी नज़र में तुम वह गम हो
बीस ओवरीय प्रतियोगिता में
देश क्या जीता
बाजार के साथ तुम्हारे हाथ लग गया
जैसे जनता को बहलाने वाला एक पपीता
बच्चों को क्रिकेटर बनने का सपने दिखाने लगे
स्कूल में पढ़ते क्या बच्चे
उनके नाम क्रिकेट कोच के पास लिखाने लगे
एक दिन की बात होती तो समझ में आती
डूबते क्रिकेट में एक छोटे कप की जीत से
फट गयी पूरे देश की छाती
किकेट मैच होता था कभी सर्दियों में
अब तो होने लगा गर्मियों में
कुछ बच्चे खेलते हैं
तो कुछ अपने पैसे का दांव भी पेलते हैं
फिर भारतीय आदर्श प्रतियोगता का
प्रचार माध्यमों में प्रचार
इधर रीयल्टी शो की भरमार
लाफ्टर शो में बेकार की मजाक
समझ कोई नहीं रहा पर सब रहें हैं ताक
तुम भी तो अपने बच्चों को
आदर्श मोहल्ला बनाने के नाम पर
क्रिकेट, संगीत, और नृत्य सीखने के लिये
संदेश दिया करते थे
कहीं जाकर इनाम जीतें
इसलिये रोज उनका प्रगति प्रतिवेदन लिया करते थे
जब बच्चों के पढ़ने की उम्र है
तब उन पर टिका रहे हो
उनके माता पिता और पड़ौसी होने के प्रचार का
कभी पूरा न हो सकने वाला खेल
बिचारे, कैसे न होते फेल।
गनीमत है जिन छोटे शहरों को
अभी बेकार के खेलों की हवा नहीं लगी है
वहीं शिक्षा की उम्मीद बची है
वहीं परिणामों का प्रतिशत अच्छा रहा है
क्योंकि वहां के बच्चों ने आधुनिकता से
परे रहने की कमी को सहा है
पास होकर निकल पड़े तो
ऐसे खेल और खिलाड़ी उनके पीछे आयेंगे
समय के साथ वह भी मजे उठायेंगे
हमारा संदेश तो यही है कि
हर काम और कामयाबी का अपना समय होता है
जिंदगी में बिना सोचे समझे
चल पड़ने से आती है हाथ नाकामी
सेवा करते हुए ही बनता कोई स्वामी
समय से पहले मजे उठाने के लिये
जो खेलते हैं खेल
वही होते हैं हर इम्तहान में फेल।’’

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जोरदार और रंगीन तकदीर वह लिखा लाये-व्यंग्य कविता


आसमान से जमीन पर आते हुए
लिखा लाये हैं वह अपनी रंगीन तकदीर।
न ख्याल उनका अपना
न कोई सोच अपनी
पर जमाने को सुधारने के लिये
देते हैं जोरदार तकरीर।
लगता है उनकी अदाओं से ऐसे
मानो जिंदा हो सिर्फ उनका जमीर।
क्योंकि वह हैं अमीर।
…………………
कभी कभी छोड़ कर आते हैं बाहर
छोड़कर अपने खूबसूरत महल।
आसमान से गिरती तकदीर की हवायें
कहीं उनके महल का रास्ता न भूल जायें
गरीब इंसान कहीं समंदर के पानी सरीखे
उसे बहाकर न जायें
जमाने पर काबिज होने के लिये
जला देते हैं वह रौशनी के दिये
नीली छतरी वाले का देते हैं वास्ता
नहीं जानते जिसका खुद भी रास्ता
उजाड़ देते हैं उनके सिपहसालार पूरा चमन
तब वह निकलते हैं बाहर
अपनी तकरीरों में
उसे बसाने की करते हैं पहल।

………………………………..
क्षितिज पर जमीन और आसमान के
मिल जाने का दिखता है सुखद अहसास।
मगर यह एक ख्वाब है
वह दोनों कभी नहीं आते
कभी एक दूसरे के पास।

उनके आपस में मिलने की चाहत
कभी पूरी नहीं हो सकती
दोनों के बीच फासले ही
उनके अस्तित्व का है आधार
दूरियों में ही छिपा है जिंदगी का सार
उनकी निकटता कभी हो नहीं सकती
चाहत अलग चीज है
जिंदगी चलते रहने के उसूल अलग हैं
दोनों के फासले मिटाने की कोशिश में
खौफनाक मंजर सामने आ जायेगा
धोखा बन सकता है अपना विश्वास।

………………………….
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