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खुशफहमी और गलतफहमी-हिन्दी शायरी


जहान चला रहा है सर्वशक्तिमान
मगर कुछ लोगों गलतफहमी है कि
वह उसके रास्ते चांद और सूरज से
सजा सकते हैं,
जिस पर लोग चलते हुए ऐश करेंगे,
बस यूं ही हम फरिश्तों की तरह
अपना नाम इतिहास में भरेंगे।
कहें दीपक बापू
किसी को समझाना मुश्किल है
खुशफहमियों में जिंदा रहने की आदत हो गयी
वह दूर हो गयी तो लाश बन जायेंगे
बहानों में जीने की आदत हैं इंसानों को
वहम तोड़ने का फायदा नहीं
सांसों के कम होने से नहीं
ख्वाब टूटने से ज्यादा लोग मरेंगे।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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शराब और शराबी -हास्य कविता (drink and drunker-hindi comedy poem)


त्यौहार के दिन
फंदेबाज घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू आज पहली बार दे रहा हूं सात्विक बधाई,
यह पहला मौका है है
जब मैने किसी खास अवसर पर
अपने मुंह से शराब की एक बूंद भी नहीं लगाई।
सोच रहा हूं पीना छोड़ दूं
वरना कहीं कोई पीट पीटकर कर न दे धराशायी,
भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना साहेब ने
शराबियों को हंटर से पीटने की आवाज जो लगाई।
आप तो जानते हैं,
लोग उनको बहुत मानते हैं,
उनके दर्शन में भले लगता नहीं दम है,
पर नारों का वजन नहीं कम है,
आपने पीना छोड़ दिया है,
इसलिये अपने को उनकी मुहिम से जोड़ दिया है,
इसलिये आप भी शराब के खिलाफ लिखो,
उनके कट्टर समर्थक की तरह दिखो,
अभी तक आप रहे फ्लाप हो
संभव हिट हो जाओ
करने लगें लोग आपकी बड़ाई।’’

सुनकर चुप रहे पहले
फिर गला खंखारकर बोले
‘‘दूसरों के मसौदे देखकर अपनी राह बदलें
यह आमजन को बहुत भाता है,
अन्ना की बात सुनकर
शराब छोड़ने के नारे बहुत लोग लगायेंगे
पर देखेंगे कौन इस पर चल पाता है,
हम जानते हैं
अन्ना 74 बरस में भी स्वस्थ हैं
क्योंकि अपनी जिंदगी में शराब नहीं पिये,
अमेरिका में उनसे भी बड़ी उम्र के लोग जिंदा हैं
जिन्होंने एक नहीं बहुत सारे पैग लिये,
बहुत बुरी चीज है शराब,
फिर भी लोग पीते साथ में खाते कबाब,

दुनियां का सच है
जिस बुराई को दबाने का प्रयास करो
बढ़ती जायेगी,
पहले फ्लाप हो रही
क्रिकेट खेलकर
अन्ना ने उसमें अपने प्रशंसकों लगाया
अब उनके मुख से निकली बात
शराब भी शायद वैसा ही प्रचार पायेगी,
हम ठहरे गीता साधक
बुराई से नफरत करते,
मगर बुरे आदमी में ज्ञान के सूत्र भरते,
अरे,
परमात्मा नहीं खत्म कर पाया
तामसी प्रवृत्ति के लोगों को,
भला क्या भगायेंगे अन्ना संसार से ऐसे रोगों को,
सारे संसार को ठीक करने का ठेका लेना
आत्ममुग्ध करने वाली चीज है,
समझ लो इस भाव में ही
अज्ञान से उपजे अहंकार के बीज हैं,
इससे तो अपने बाबा रामदेव का दर्शन सही है,
कपाल भाति करे जो शख्स स्वस्थ वही है,
हमारा मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के साथ
पतंजलि योग में भरा है ज्ञान और विज्ञान,
देश भूल गया पर
बाकी विश्व रहा है मान,
फिर कौन अपने को बाज़ार से
कभी चंदा मिला है,
खुद नहीं पीते
मगर नहीं पीने वालों से गिला,
समझें जो लोग
अपनी वाणी से करना
भूल जाते निंदा और बड़ाई
हम जैसे लोगों के लिये नारे लगाना संभव नहीं है
कर सकते हैं आध्यात्मिक चिंत्तन
फिर जहां मौका मिला वहीं हास्य कविता बरसाई।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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चमत्कार वाला धर्म-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
————
चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
————-
चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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घाट घाट का पानी पिया-हिन्दी शायरी (ghat ghat ka pani piya-hindi shayari)


जहां कद्र नहीं थी हमारी
वहां अपना बसाया आशियाना
हमने क्यों बसाया,
बेकद्रों के लिये बेकार बहाया पसीना,
मगर फिर भी उन्होंने बेरुखी दिखाई
आसरा देने का अहसान भी जताया।
————
मालुम था भरोसा टूट जायेगा
फिर भी किया,
ख्वाब बिखरने का अंदेशा था
फिर भी उसे जिया,
धरती पर बहती जिंदगी की
यह नदिया
कितनी गहरी है यह किसने समझा
कभी हम डूबे
कभी तैरे
देखने की ख्वाहिश थी
इसलिये घाट घाट का पानी पिया।
———-
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
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फरिश्तों की दलाली में शैतान-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (farishtey,shaitan aur dalali-hindi vyangya kavitaen)


फरिश्ते मशगूल हो गये है
जी-हुजूरी कराने में
इसलिये लोग जान बचाने के लिये
शैतानों को सलाम बजाते है।
कौन बजाये बड़ी दरबार का दरवाजा
बाहर खड़े दलालों से ही
कमीशन पर काम हो जाते हैं।
दुनियां के दस्तूर बदल गये हैं
फरिश्तों का वजूद बचाने के लिये भी
शैतान उनके महल पर पहरेदार बन जाते हैं।
————
कौन बिना कसूर के जिंदा है यहां
किसकी शिकायत करे कौन,
अच्छे बुरे की पहचान पर
वैसे भी सभी हो गयी अक्ल मौन,
फरिश्तों की दलाली में
लग गये हैं शैतान
उनसे लड़ेगा कौन।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
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हमें पता है कि सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण सामान्य प्राकृतिक घटना है-हिन्दी लेख (chadra grahan and sooryagrahan-hindi lekh)


    दुनियां में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण आते रहते हैं। बरसों से हम देख रहे हैं पर इतनी चर्चा कभी नहीं होती थी। बचपन में बुजुर्गों के पहले ही पता चल जाता था कि अमुक तारीख को सूर्य ग्रहण या चंद्रग्रहण है। उस दिन कुछ सावधानी बरतने की बात कही जाती पर वह आज के टीवी चैनलों की तरह महाबहस का विषय नहीं होती थी। सच कहें तो सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण को सामान्य घटना ही माना जाता था। कहीं आतंक या डर का माहौल नहीं देखा। आजकल   टीवी चैनलों ने दोनों ग्रहणों का बाज़ारीकरण कर दिया है।
         कह रहे हैं कि डरो नहीं, खूब देखो। कुछ परेशानी नहीं है। इन चैनलों पर बहस के लिये आने वाले वही लोग होते हैं जो पहले भी आते रहे हैं। खगोलशास्त्र से जुड़ी इन घटनाओं पर चर्चा करने के लिये ज्योतिषी बुलाये जाते हैं। फिर उनका मुकाबला करने के लिये कुछ आधुनिक विज्ञान समर्थक भी होते हैं। प्रचार इस तरह किया जाता है कि जैसे हिन्दू समाज में ही अंधविश्वास हो और पश्चिमी विज्ञान एकदम प्रमाणिक है। यह सब देखकर हम तो यह सोचते हैं कि भारतीय हिन्दू समाज इतना अविकसित ओर पिछड़ा नहीं है जितना आधुनिक ज्ञानी समझते हैं। देखा जाये तो हमारी श्रीमद्भागवत गीता के प्रचलन में आने के बाद भारतीय समाज शायद दुनियां का इकलौता समाज है जो समय के साथ आगे बढ़ता जाता है। यह अलग बात है कि प्रगतिशील और जनवाद से जुड़े विद्वानों का सभी जगह बाहुल्य है जिनकी यह मनोवृत्ति है कि संपूर्ण भारतीय अध्यात्म दर्शन को अवैज्ञानिक तथा समाज को जड़ साबित कर अपनी चेतना की व्यवसायिक धारा प्रवाहित की जाये। फिर उनके साथ बहस करने वाले भारतीय अध्यात्म के ज्ञानी भी कुछ इस तरह पेश आते हैं जैसे कि अंधविश्वास का समर्थन कर रहे हों। पेशेवर ज्योतिषी अपने प्रचार क्रे लिये आते हैं तो उनका मुकाबला करने पेशेवर बहसकर्ता आते हैं। चर्चा कराने वाले उद्घोषक का तो कहना भी क्या? निरपेक्ष दिखने की कोशिश इस तरह करते हैं जैसे कि लग रहा हो कि किसी विषय पर सहमति या असहमति न देना ही उनकी योग्यता का प्रमाण हो।
       भारत के हिन्दी टीवी चैनलों में कार्यरत उद्घोषकों का यह भाग्य है कि भारतीय अध्यात्म की व्यापकता ही उनको इस तरह के कार्यक्रम प्रदान करती है। जिसमें ढेर सारे ग्रंथ हैं और उसमें जीवन के हर पक्ष के साथ -जिसमें मनुष्य तथा अन्य जीव भी शािमल हैं-प्रकृति के रहस्यों पर भी प्रकाश डाला गया है। जबकि अन्य दर्शनों में अन्य जीवों की उपेक्षा कर केवल मानव जीवन पर ही अधिक लिखा और बोला जाता हैं। कुछ बातें मनुष्य समाज के संचालन से संबंधित होती हैं।
        प्रकृति के रहस्यों पर पश्चिम तो अब दृष्टिपात कर रहा है जबकि भारतीय अध्यात्म दर्शन में बहुत पहले ही इस पर लिखा गया है। हमने पंचांगों में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण की तारीखें देखी हैं जो कि यकीनन पश्चिमी विज्ञान से नहीं ली गयीं। पहले लोग अखबार पढ़े बिना बताते थे कि अमुक दिन चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण है।
बहरहाल भारत के टीवी चैनल अपने व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति अपने अध्यात्मिक दर्शन के आधार पर कर लेते हैं यह अलग बात है कि अपने चश्में से समाज को अधंविश्वासी समझने वाले उद्घोषक अपने को भले ही चालाक समझें पर हम सब जानते हैं कि उनकी अदायें ऐसी न हों तो शायद उनका काम भी न चले।
       पिछली बार के पूर्ण सूर्यग्रहण की याद आती है जब कहा गया है कि उसे देखना ठीक नहीं है और देखना है तो विशेष प्रकार के चश्में से देखें। सामान्य रंगीन चश्में से काम नहीं चलेगा। हम आज भी सामान्य काले चश्में से दोपहर मेें तपते हुए सूर्य को आसानी से देख पाते हैं। तब यह सवाल आता है कि ग्रहण के समय जब सूर्य का प्रकाश कम हो जाता है तो वह सामान्य से अधिक खतरनाक कैसे हो सकता है। उस समय खूब सूर्यगं्रहण देखने वालेचश्में बिके थे उसमें कुछ तो नकली भी बताये गये थे। तय बात है कि बाज़ार ने ही ऐसा प्रचार करवाया होगा ताकि वह अपने उत्पाद बेच सके। वैसे तो इष्ट दिवस, मित्र दिवस, पितृदिवस, मातृदिवस तथा प्रेम दिवस जैसे पश्चिमी दिवसों को भारतीय प्रचार माध्यम अपने प्रायोजक बाज़ार के लिये विज्ञापन प्रसारित कर उसके लिये ग्राहक जुटाते हैं। वैसे ही भारतीय त्यौहारों के साथ सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण भी उनके लिये विज्ञापन प्रसारण के बीच में कार्यक्रम की सामग्री बन जाते हैं।
      वैसे चर्चाओं में शामिल लोग भारतीय समाज को फालतु समझते हैं पर लोगों को लगते स्वयं फालतू हैं-हम नहंी मानते क्योंकि पता है कि यह सब कमाई करने और प्रचार पाने के लिये बहस करने आते हैं।
हम यह खग्रास चंद्रग्रहण देख पायेंगे कि पता नहीं। यह लेख लिखने के तत्काल बाद ही सोने का प्रयास करेंगे। अगर बीच में नींद टूटी तो छत पर देखने जायेंगे कि कैसा है खग्रास चंद्रग्रहण। जहां हानि लाभ, दुःख सुख, और जीवन मरण का सवाल है तो वह इस संसार का हिस्सा हैं। जब तक देह हैं तो विकार आयेंगें। भूख लगेगी, प्यास लगेगी। कभी जीभ किसी नये स्वाद के लिये चीत्कार करेगी। जिस तरह सत्य अनंत है वैसे ही माया भी अनंत है। सत्य सूक्ष्म है और उसे ध्यान आदि के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है तो माया इतनी व्यापक है कि उसके चक्र में फंसे तो सभी हैं पर समझ नहीं पाते। खेलती माया है और आदमी सोचता है कि मैं खेल रहा हूं।
      जहां तक चर्चाओं का सवाल है तो भारतीय अध्यात्म इतना विशाल है कि जिस विषय पर चाहो बहस कर लो। जहां चार बुजुर्ग मिलते हैं किसी न किसी धर्मग्रंथ पर बहस करने लगते हैं। सभी अपना ज्ञान सुनाते हैं पर सुनता कौन है पता नहीं। सभी बोलते हैं। यही हाल टीवी चैनलों का है पर वहां के उद्घोषक तमाम तरह के तामझाम और आकर्षण मे घिरे होते हैं इसलिये उनको विद्वान माना जाता है। यह अलग बात है कि उनकी महाबहस-यह शब्द आज तक हमारे समझ में नहीं आया-अध्यात्मिक में वास्तविक रुचि रखने वालों के लिये हास्य का विषय होती है।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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ऐसे लोग कम हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता


सभी को बताये रास्ते पर खुद चलें, ऐसे लोग कम हैं।
दूसरे को सिखायें दांवपैंच, जो अजमाने में खुद बेदम हैं।।
हवा के झौंके से कांपने लगता है पूरा उनका बदन,
जमाने को डरपोक बतायें, अपनी बहादुरी के उनको वहम हैं।।
दूसरों की रौशनी में चले हैं पूरी जिंदगी का रास्ता,
दीपक और मशाल जलायें रोज, ऐसे लोग कम हैं।।
सह नहीं पाते दूसरे की खुशी, दुखी हो जाते हैं,
अपने मतलब की राह चले हैं वह, जहां ढेरों गम हैं।
तलवारें और ढाल थामें हैं चारों ओर लोग
कलम से शब्द लिखकर अमन लायें, ऐसे लोग कम हैं।

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शराब का नशा चढ़ता नहीं तो पीता कौन-व्यंग्य कविता


एक दिन घूमते हुए उसने
चाय पिलाई तब वह अच्छा लगा
कुछ दिन बाद वह मिला तो
उसने पैसे उधार मांगे तब वह बुरा लगा
फिर एक दिन उसने
बस में साथ सवारी करते हुए
दोनों के लिये टिकिट खरीदा तब अच्छा लगा
कुछ दिन बाद मिलने पर
फिर उधार मांगा
पहली बार उसको दिया उधार पर
फिर भी बहुत बुरा लगा
एक दिन वह घर आया और
सारा पैसा वापस कर गया तब अच्छा लगा
वह एक दिन घर पर
आकर स्कूटर मांग कर ले गया तब बुरा लगा
वापस करने आया तो अच्छा लगा

क्या यह सोचने वाली बात नहीं कि
आदमी कभी बुरा या अच्छा नहीं होता
इसलिये नहीं तय की जा सकती
किसी आदमी के बारे में एक राय
हालातों से चलता है मन
उससे ही उठता बैठता आदमी
कब अच्छा होगा कि बुरा
कहना कठिन है
चलाता है मन उसे जो बहुत चंचल है
जो रात को नींद में भी नहीं सोता
कभी यहां तो कभी वहां लगा

………………………………..
मयखानों में भीड़ यूं बढ़ती जा रही हैं
जैसे बह्ती हो नदिया जहां दो घूँट पीने पर
हलक से उतारते ही शराब दर्द बन जायेगी दवा
या खुशी को बढा देगी बनकर हवा
रात को हसीन बनाने का प्रयास
हर घूँट पर दूसरा पीने की आस
अपने को धोखा देकर ढूंढ रहे विश्वास
पीते पीते जब थक जाता आदमी
उतर जाता है नशा
तब फिर लौटते हैं गम वापस
खुशी भी हो जाती है हवा
————————————-

शराब का नशा चढ़ता नहीं तो पीता कौन
उतरता नहीं तो खामोश होता कौन
गम और दर्द का इलाज करने वाली दवा होती या
खुशी को बढाने वाली हवा होती तो
इंसान शराब पर बना लेता जगह जगह
बना लेता दरिया
मगर सच से कुछ देर दूर भगा सकती हैं
बदलना उसके लिए संभव नहीं
इसलिए नशे में कहीं झूमते हैं लोग
कहीं हो जाते मौन
शराब खुद ही बीमारी हैं
यह नहीं जानता कौन

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