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शराब और शराबी -हास्य कविता (drink and drunker-hindi comedy poem)


त्यौहार के दिन
फंदेबाज घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू आज पहली बार दे रहा हूं सात्विक बधाई,
यह पहला मौका है है
जब मैने किसी खास अवसर पर
अपने मुंह से शराब की एक बूंद भी नहीं लगाई।
सोच रहा हूं पीना छोड़ दूं
वरना कहीं कोई पीट पीटकर कर न दे धराशायी,
भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना साहेब ने
शराबियों को हंटर से पीटने की आवाज जो लगाई।
आप तो जानते हैं,
लोग उनको बहुत मानते हैं,
उनके दर्शन में भले लगता नहीं दम है,
पर नारों का वजन नहीं कम है,
आपने पीना छोड़ दिया है,
इसलिये अपने को उनकी मुहिम से जोड़ दिया है,
इसलिये आप भी शराब के खिलाफ लिखो,
उनके कट्टर समर्थक की तरह दिखो,
अभी तक आप रहे फ्लाप हो
संभव हिट हो जाओ
करने लगें लोग आपकी बड़ाई।’’

सुनकर चुप रहे पहले
फिर गला खंखारकर बोले
‘‘दूसरों के मसौदे देखकर अपनी राह बदलें
यह आमजन को बहुत भाता है,
अन्ना की बात सुनकर
शराब छोड़ने के नारे बहुत लोग लगायेंगे
पर देखेंगे कौन इस पर चल पाता है,
हम जानते हैं
अन्ना 74 बरस में भी स्वस्थ हैं
क्योंकि अपनी जिंदगी में शराब नहीं पिये,
अमेरिका में उनसे भी बड़ी उम्र के लोग जिंदा हैं
जिन्होंने एक नहीं बहुत सारे पैग लिये,
बहुत बुरी चीज है शराब,
फिर भी लोग पीते साथ में खाते कबाब,

दुनियां का सच है
जिस बुराई को दबाने का प्रयास करो
बढ़ती जायेगी,
पहले फ्लाप हो रही
क्रिकेट खेलकर
अन्ना ने उसमें अपने प्रशंसकों लगाया
अब उनके मुख से निकली बात
शराब भी शायद वैसा ही प्रचार पायेगी,
हम ठहरे गीता साधक
बुराई से नफरत करते,
मगर बुरे आदमी में ज्ञान के सूत्र भरते,
अरे,
परमात्मा नहीं खत्म कर पाया
तामसी प्रवृत्ति के लोगों को,
भला क्या भगायेंगे अन्ना संसार से ऐसे रोगों को,
सारे संसार को ठीक करने का ठेका लेना
आत्ममुग्ध करने वाली चीज है,
समझ लो इस भाव में ही
अज्ञान से उपजे अहंकार के बीज हैं,
इससे तो अपने बाबा रामदेव का दर्शन सही है,
कपाल भाति करे जो शख्स स्वस्थ वही है,
हमारा मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के साथ
पतंजलि योग में भरा है ज्ञान और विज्ञान,
देश भूल गया पर
बाकी विश्व रहा है मान,
फिर कौन अपने को बाज़ार से
कभी चंदा मिला है,
खुद नहीं पीते
मगर नहीं पीने वालों से गिला,
समझें जो लोग
अपनी वाणी से करना
भूल जाते निंदा और बड़ाई
हम जैसे लोगों के लिये नारे लगाना संभव नहीं है
कर सकते हैं आध्यात्मिक चिंत्तन
फिर जहां मौका मिला वहीं हास्य कविता बरसाई।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
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जवान उम्र की इसमें खता नहीं-कन्या भ्रुण हत्या विषय पर तीन हिन्दी शायरियां (jawan umar ki khata nahin-kanya bhrun hatya par teen shayariyan)


आशिक ज्यादा घूम रहे सड़कों पर
माशुकाओं का बढ़ता जा रहा है अकाल
शहरों में कोहराम मचा है।
कन्या भ्रुण हत्याओं के नतीजे
अब यूं सामने आने लगे
कार वाले कर रहे इश्क की सवारी
आसमान में उम्मीद के लिये ताक रहा
वह आशिक जो खाली बचा है।
————–
चार आशिक एक माशुका के पीछे
घूमते नजर आते हैं,
किसके प्रेम पत्र का जवाब देगी
इस इंतजार में बरसों इंतजार करते हैं
—–
एक जवान लड़की घर से निकलेगी
कितने लड़के पीछे लग जायेंगे
पता नहीं,
कन्या भ्रुण हत्याओं के चलते
ऐसे दृश्य नज़र आयेंगे
जवान उम्र की इसमें कोई खता नहीं
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
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हास्य कविताएँ-काले धन के फेर में गुरू चेला (hasya kavitaen-black money and guru chela)


चेले ने कहा गुरु से
‘‘इस समय चारों तरफ
काले धन के विरुद्ध
अभियान चल रहा है,
आप भी इसमें शामिल होकर
अपने आश्रम और हम जैसे चेलों
का रुतवा बढ़ाओ
यह विचार मेरे दिमाग में पल रहा है।’

सुनकर गुरुजी बोले
‘‘मुझे तेरी जन्म कुंडली
देखकर अपने दल में शामिल करना था,
तेरे ख्याल देखकर
अपने आश्रम में तुझे भरना था,
धंधा नहीं तेरा कोई भी
फिर भी रोज पीता है शराब,
क्या जानता है उसका पैसा कहां से आता है
स्वच्छ है कि खराब,
नित नित नये चमकदार कपड़े भेंट मे जो तू लाता है,
कभी समझ में आयी है यह बात तुझे कि
अपने भक्तों में किसके पास सफेद और
किसके पास काला धन आता है,
ज्यादा चक्कर में नहीं पड़ना,
फंस जायेगा वरना,
अभी तक लोगों की नज़र अपने से दूर है,
कहीं छपने लगे रोज अखबार में तो
समझ लो आगे अपनी जांच होना भी जरूर है।
सफेद धन तो बस, गरीबों के पास ही होता है,
जिनका धर्म से नहीं नाता
आत्मा जिनका पेट भरकर ही सोता है,
ज्यादा आंदोलन के चक्कर में
पड़े तो दानदाता नाराज हो सकते हैं
तब काले धन के बिना
हम लोग ही बेरोजगार हो जायेंगे,
जल्दी आश्रम को भी अतिक्रमण विरोधी अभियान से
ध्वस्त पायेगे,
हमें अपने वातानुकूलित आश्रम में रहना चाहिए
क्या करना शहर बेईमानी की आग में जल रहा है।’’
——–
मुर्दे के कफन से भी
वह टुकड़ा चुरा लाते हैं,
बच्चे के मुख की रोटी छीनकर
अपना बैंक बढ़ाते हैं,
कमबख्त!
कल्याण का ठेका उन्हीं का नाम चढ़ता है
जो बेईमानी के ढंग सीख जाते हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior