हिन्दी दिवस पर फंदेबाज ने
कसी फब्तियां और बोला
‘दीपक बापू फ्लाप कवि की
जब तुम्हारी भूमिका देखता हूं
तब तरस आता है,
तुम लिखते हो शब्द
किसी के अर्थ समझ में नहीं आता है,
या तुम पर किसी का ध्यान नहीं होता,
ऐसा लगता है जब तुम लिखते हो,
तब पाठक सो जाता है,
या तुम्हारा शब्द प्रकाशित होते ही
अंतर्जाल की भीड़ में खो जाता है,
न कभी नाम मिला न नामा
14 सितम्बर हर बरस निकल जाता है।’’
सुनकर हंसे दीपक बापू
‘हम निराश नहीं होते,
क्योंकि आशा का बोझ कभी नहीं ढोते,
हिन्दी में सम्मान पाने की चाहत
हमें कभी रही नहीं,
लिखना बन गया धर्म
शब्द बन गये आराध्य देव
इसलिये कभी चाहतों की
पीड़ा कभी सही नहीं,
इस बार भी देखेंगे
हम हिन्दी दिवस पर तमाशा,
इस पर हुए गंभीर प्रवचन
बन जाते हमें लिये व्यंग्य विषय के
सृजन की आशा,
कुछ विद्वान बड़े बन जायेंगे,
कुछ बड़े विद्वान की तरह तन जायेंगे,
सभी आयेंगे मंच पर सीना तानकर,
श्रोता सुनेंगे उनको ज्ञाता मानकर,
गनीमत है अंतर्जाल पर हिन्दी
अधिक नहीं चलती है,
अपनी हर हास्य कविता
चाहे जैसी हो एकांत में मचलती है,
स्थानीय स्तर पर भी
कोई हमारा नाम नहीं जान पाया,
हम प्रसन्न हैं
हमारा हर शब्द वैश्विक स्तर पर छाया,
न मिला न मिलना चाहिये
हमें लेखकीय सम्मान,
हम एकांत साधना की चुके ठान,
देखते हैं हम भी दृष्टा की तरह
अनेक खड़े रहते सम्मान की पंक्ति में
किसी के रहते हाथ रहते खाली
किसी पर हिन्दी दिवस
प्यार से बरस ही जाता है।
————————
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”,Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका