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नये निर्माण से ही इतिहास भूलना संभव-हिन्दी लेख


                                  हमारा मानना है कि इतिहास को केवल कागज या लकड़े के पट्टे पर नहीं दर्ज होता। उसे भुलाना है तो जनमानस मे नयी स्वर्णिम छवि भी आना चाहिये। यह छवि वही लेाग बना सकते हैं जो सामान्यजनों के लिये हितकारक काम करते हुए उसकी रक्षा भी कर सकते हैं।

‎                                   औरंगजेबमार्ग का नाम बदलकर ‪‎अब्दुलकलाममार्ग किया गया है। उम्मीद है ‪इतिहास अब भविष्य में विकास मार्ग पर ले जायेगा। हमने देखा है कि इस तरह अनेक बाज़ारों, मार्गों, इमारतों तथा उद्यानों के नाम बदल गये। क्षणिक रूप से भावनात्मक शांति देने वाले ऐसे प्रयास जनमानस में अधिक दिन तक याद नहीं रखे जाते। अनेक जगह तो लोग उसे बरसों तक पुराने नाम याद रखते हैं।  अनेक जगह तो नये नामों की वजह उस स्थान को  ढूंढने वाले लोगों को  परेशानी होती है।

                                   मुख्य बात यह है कि जब तक जनमानस में इतिहास की जो  अविस्मरणीय छवियां है उसे मिटाना सहज तभी हो सकता है जब उसका वर्तमान काल सुखद और भविष्य आशामय हो।  हमें अब यह विचार भी करना चाहिये कि क्या वाकई हमारे देश के सामान्यजन यह अनुभव करते हैं कि उनके सामने ऐसी छवियां हैं जिनके दर्शन से वह भावविभोर हो उठते हों। अगर इसका जवाब हां है तो यह मान लेना चाहिये इतिहास मिट गया और नहीं तो सारे प्रयास व्यर्थ हो गये, यह समझना चाहिये।  देश में जिस तरह एक बार फिरा निराशा, आशंका, और तनाव का वातावरण बन रहा है वह चिंताजनक है।  पुराने लोग आज भी अंग्रेजों को याद करते हैं इसका मतलब यह है कि वह नये व्यवस्था से प्रसन्न नहीं है। ऐसे में इस तरह के प्रयासों पर अनेक असंतुष्ट सवाल भी कर रहे हैं जिसका साहस उनमें व्यवस्था के प्रति निराशापूर्ण वातावरण से पैदा होता है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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खानपान के विषय में गंभीरता से विचार करें-हिन्दी चिंत्तन लेख


                              हमारे देश में लोग भोजन की बात तो करते हैं पर उसे ग्रहण करने का तरीके और पचाने की शक्ति पर कभी विचार नहीं करते। हम भोजन में कब, क्या और कितना खायें-यह सवाल अनेक लोगों को परेशान करता है। अनेक लोग तो अपने से सवाल पूछकर ही स्वयं से ही कन्नी काट जाते हैं।  हमारा मानना है कि पेट में ऐसे ही भरें जैसे स्कूटर या गाड़ी में उतना ही ईंधन भरवाते हैं जितना टंकी में आता है। अंतर इतना है कि अगर उनकी टंकी में ज्यादा पेट्रोल भरा जाये तो वह बाहर फैल जाता है और उसे कपड़े से साफ किया जा सकता है पर अगर पेट में भरा ईंधन फैला तो वह शरीर में ही इधर उधर फैलता है जिसे साफ करना कठिन है। कालांतर में यही अति भोजन बीमारियों का कारण बनता है।

                              आजकल स्थिति यह हो गयी है कि लोग भोजन के बारे में कम अपने लिये धन संपदा अर्जन पर अधिक मानसिक ऊर्जा नष्ट करते हैं।  परंपरागत घरेलू रोटी सब्जी की जगह बाज़ार में चटकदार मसाले का खाना चाहते हैं। उससे भी ज्यादा मैदे के बने पिज्जा तथा अन्य सामग्री सामान्य लोगों के लिये प्रिय भोजन बनता जा रहा है। परिणाम हम देख ही रहे हैं कि आजकल अस्पताल पांच सितारानुमा बन गये हैं।  उनके बाहर की नामपट्टिका भी संस्कृत के मधुर शब्दों-आस्था, संस्कार, संजीवनी आदि-से सजी हुई हैं।  अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति से किसी  बीमारी का इलाज नहीं होता पर इसके सहारे रहने वाले चिकित्सक भारी पैसा कमा रहे हैं।

                              हर व्यक्ति दावा करता है कि वह स्वयं परिवार तथा रोटी के लिये कमा रहा है पर उसी के प्रति वह गंभीर नहीं दिखता। लोग खाने का बाहरी आकर्षण और स्वाद देखते हैं यह जानना ही नहीं चाहते  कि उनके हाथ से उदरस्थ सामग्री सुपाच्य है कि नहीं।  खासतौर से शादी आदि समारोह  में लोगों की यह दिलचस्पी ही खत्म हो गयी है कि वह जो खा रहे हैं कि उससे उसे वह पचा पायेंगे कि नहीं। कई घंटे पहले रखा सलाद खा लेते हैं जिसके खराब होने की पूरी आशंका रहती है।

                              सबसे बड़ी बात यह है कि खाने के बाद आदमी में जो संतोष का भाव होना चाहिये उसकी अनुभूति करना ही भुला दिया गया है।  कहा जाता है कि भोजन प्रसाद की ग्रहण करना चाहिये। यह भी कहा जाता है कि प्रसाद भोजन की तरह नहीं लेना चाहिये। लोगों खाने पीने में किसी नियम का पालन नहीं कर रहे।  हमारा मानना है कि भोजन शांत भाव से ग्रहण करते हुए सर्वशक्तिमान का इस बात के लिये मन ही मन धन्यवाद देना चाहिये कि उसने हमें न केवल वह दिया वरन् हमें पचाने की शक्ति भी दी।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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अल्पआयु में मृतकों की बढ़ती संख्या चिंताजनक-हिन्दी चिंत्तन लेख


                      आमतौर से बड़ी आयु में मौत होना ही स्वाभाविक माना जाता है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य राजरोगों से एक सामान्य मनुष्य एक आयु तक स्वयं ही लड़ लेता है पर बड़ी उम्र होने पर वह हथियार डाल देता है। अब छोटी आयु में मौतें भी अधिक होने लगी हैं जिस पर शायद ही कोई अधिक चिंतित होता हो।  सड़क हादसों में अनेक युवा काल कवलित होते देखे गये हैं।  अगर बड़ी आयु के लोग अपनी स्मरण शक्ति पर बोझ डालें तो उन्हें लगेगा कि अपनी युवा अवस्था से अधिक उम्र के इस पड़ाव अनेक  गोदें सूनी होते देख रहे हैं।   बहरहाल तीस से चालीस के बीच अगर सड़क हादसे की बजाय बीमारी से किसी की मौत हो तो अब भी स्वाभाविक मानना कठिन लगता है पर जिस तरह तंबाकू के पाउचों का प्रचलन हुआ है उस पर अनेक स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं। अनेक लोग तो इन पाउचों को धीमे विष जैसा मानते हैं। ऐसे में जागरुक लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिये।

                              इस लेखक ने एक चिकित्सक मित्र को एक अस्वस्थ युवक के पिता से यह कहते सुना था कि‘अगर तुम्हारा लड़का इस पाउच का सेवन बंद नहीं करता तो समझ लेना कि वह तुम्हें दुनियां का सबसे बड़ा दर्द देने वाला है।’ अतः यह जरूरी है कि इस विषय पर गंभीरता से अनुसंधान कर लोगों को जानकारी दी जाये।

                              शायद दस वर्ष पूर्व की बात होगी। इस लेखक के एक मित्र न मात्र 42 वर्ष की उम्र में हृदयाघात से दम तोड़ा होगा।  वह ऐसे पाउचों का सेवन करता था।  उससे एक दो वर्ष पूर्व एक लड़के ने इन पाउचों के सेवन का दुष्परिणाम बताया था। उसने पाउच की पूरी सामग्री एक ग्लास में भरते हुए पानी के साथ ही चार आल्पिनें उसमें डाल दीं। सुबह वह चारों आल्पिने गुम थीं।  मित्र की  मौत के बाद इस लेखन ने कम उम्र में हृदयाघात से मरने वालों की जानकारी लेना प्रारंभ किया।  दस में से सात इसके सेवन में लिप्त पाये गये। पिछले बीस पच्चीस वर्ष से यह पाउच प्रचलन में आया है इसलिये अनेक बड़ी आयु के भी इसका शिकार होते हैं तो बड़ी बात नहीं पर चूंकि उनकी मौत स्वाभाविक मानी जाती है इसलिये कोई चर्चा नहीं करतां।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
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