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आज दशहरा है तो सामाजिक मसलों पर चिंतन करें-हिन्दी लेख (aaj dashahara hai to samajik maslon par chittan karen-hindi lekh


        आज सारे देश में दशहरा पर्व मनाया जा रहा है। भगवान श्रीराम की युद्ध में लंकापति रावण पर विजय के रूप के समरण के रूप में मनाये जाने वाले इस दशहरा पर्व से उल्लास से मनाया जाने परंपरा बरसो से इस देश में रही है पर फटाखे जलाकर, घर के सामान पूजकर तथा मिठाई खाकर इस दिन को बेकार कर दिया जाता है जबकि इस विषय पर अध्यात्मिक चर्चा कर मन और विचारों में शुद्धता लाने कप प्रयास किया जाना चाहिए। मूल बात यह है कि ऐसे पर्व आत्ममंथन और सामाजिक चिंतन के लिये उपयोग किये जाने चाहिए। यह अलग बात है कि अनेक कथित धार्मिक विशेषज्ञ इस दिन अपने अनुयायियों को मन का रावण मारने तथा आत्मा रूपी सीता की रक्षा करने का उपदेश भर देते हैं। वैसे देखा जाये तो इसे पर्व का उपयोग बाज़ार अच्छी तरह उपयोग करता है। प्रचार माध्यम जहां तक हो सके उपभोग की वस्तुओं के उपयोग के लिये प्रेरित करते हुए राम राम किये जाते हैं। बीची बीच में रावण की कलुषित गतिविधियों की चर्चा भी होती है। ऐसे में हमारे मूल अध्यात्मिक दर्शन की तरफ किसी का ध्यान जाता ही नहीं।
        कुछ लोगों का मानना है कि राम एक मिथक हैं और श्रीबाल्मीकी जी ने उनको इस तरह प्रस्तुत किया है कि वह सत्य स्वरूप प्रतीत होते हैं। इस दृष्टि से श्रीसीता और रावण सहित रामायण के अनेक पात्रों को औपन्यासिक मानने वाले लोग इस बात को नहीं जानते कि इस संसार में सात्विक, राजस तथा तामसी प्रवृत्तियों की उपस्थिति सदैव रही है और हर काल में अच्छे और बुरे लोगों की उपस्थिति रहनी है। ऐसे में अगर श्री राम और रावण को मिथक मानना गलत है। आधुनिक इतिहास में अनेक ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने महान चरित्र से इतिहास में नाम दर्ज कराया। हमारे देश में महात्मा गांधी ने तो अपनी सादगी, उच्च विचार तथा सात्विक कर्मों से ऐसा इतिहास रचा कि अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ठ आइंस्टीन ने उनके बारे कहा था कि हजारों वर्ष बाद कौन इस बात पर यकीन करेगा कि इस दुनियां में ऐसा भी कोई महान आदमी हुआ होगा। यही स्थिति भगवान श्रीराम के बारे कही जा सकती है कि त्याग, संघर्ष तथा आत्मविश्वास के साथ ही ज्ञान का ऐसा विशाल भंडार रखने वाला व्यक्तित्व इस संसार में किसी के पास रहा होगा इस बात पर यकीन करना कठिन है। मगर यह सत्य मानना होगा कि ऐसे अध्यात्मिक पुरुष कभी मिथक नहीं होते क्योंकि यह संभव नहीं है कि कल्पनाओं को इतनी दृढ़ता से विस्तार दिया जाये कि वह सत्य लगने लगें।
         बाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम, श्रीसीता जी, श्रीलक्ष्मण जी, श्रीभरत जी और श्रीशत्रुध्न का जो वर्णन किया गया है हम उनका अध्ययन करें तो पायेंगे कि मनुष्य देह उन प्रकृतियों पर ध्यान जाता है जो उसे नायकत्व का दर्जा दिलाती हैं तो कैकयी और रावण के आचरण से खलनायकत्व का आभास होता है। भगवान श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता हैं पर उन्होंने कहीं ऐसा दावा नहीं किया। उसी तरह उनके सेवक हनुमान को भी अवतारी बताते हुए कहानियां हैं पर वह कभी स्वयं उसकी पुष्टि नहीं करते। कुछ लोग मानते हैं कि बाल्मीकी रामायण की रचना के बाद कालांतार में उसे बदल भी गया है जबकि यह मूल रचना भगवान श्रीराम के जन्म तथा राज्याभिषेक तक ही लिखी गयी थी। उत्तर रामायण के पृष्ठ बाद में लाये गये हैं। इसका कारण यह है कि महर्षि बाल्मीकी स्वयं निरंकार राम के भक्त थे और उन्होंने समाज में उनको साकार रूप से स्थापित करने के प्रयास से ही यह रचना की थी इसलिये वह उसमें उत्तर रामायण के भाग की रचना नहीं कर सकते थे जिनके उनके चरित्र के विरोधाभास के दर्शन होते हैं। अगर भगवान श्रीराम के जन्म और राज्यभिषेक तक ही उनकी रचना को मूल माना जाये तो यकीनन सभी पात्रों के अवतारी होने की पुष्टि नहीं होती। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम अवतार थे पर उन्होंने अपने अवतारी होने का दावा इसलिये किया ताकि सामान्य मनुष्यों के रूप में उनकी लीला के अलौकिक अर्थ न लिये जायें। ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता का स्मरण होता है भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘ मैं धनुर्धरों मे राम हूं’। भगवान श्रीराम की तरह श्रीकृष्ण को भी भगवान श्री विष्णु नारायण का अवतार माना जाता है। इस तरह की चर्चा करने का मतलब यह है कि हम जब अपने अध्यात्मिक नायकों में असामान्य पुरुष की जगह सामान्य रूप ढूंढना चाहिए ताकि हम अपने मन को दृढ़ता प्रदान कर सकें। भगवान श्रीराम को आचरण ऐसा नहीं है कि सामान्य मनुष्य धारण नहीं कर सके। बात केवल यह है कि उसके लिये संकल्प होना चाहिए। त्याग, समाज सेवा तथा संघर्ष की प्रवृत्ति का अनुसरण करें।
      इस पावन पर्व पर साथी ब्लॉग लेखकों तथा पाठकों को बधाई। साथ ही यह कामना है कि सभी अपने अंदर मानसिक शुद्धता लाने के साथ ही अपने सद्विचारों पर दृढ़तापूर्वक चलने का व्रत लें।
दीपक भारतदीप
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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हिन्दू धर्म संदेश-अज्ञानी करते हैं स्वर्ग की कल्पना


भर्तृहरि महाराज के अनुसार 
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स्वपरप्रतारकोऽसौ निन्दति योऽलीपण्डितो युवतीः।
यस्मात्तपसोऽपि फलं स्वर्गस्तस्यापि फलं तथाप्सरसः।।
हिन्दी में भावार्थ-
शास्त्रों का अध्ययन करने वाले कुछ अल्पज्ञानी विद्वान व्यर्थ ही स्त्रियों की निंदा करते हुए लोगों को धोखा देते हैं क्योंकि तपस्या तथा साधना के फलस्वरूप जिस स्वर्ग की प्राप्ति होती है उसमें भी तो अप्सराओं के साथ रमण करने का सुख मिलने की बात कही जाती है।
उन्मतत्तप्रेमसंरम्भादारभन्ते यदंगनाः।
तत्र प्रत्यूहमाधातुं ब्रह्मापि खलु कातरः।
हिन्दी में भावार्थ-
प्रेम में उन्मत होकर युवतियां अपने प्रियतम को पाने के लिये कुछ भी करने लगती हैं। उनके इस कार्य को रोकने का ब्रह्मा भी सामर्थ्य नहीं रखता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-विश्व के अनेक धर्मों की बड़ी बड़ी किताबें लिखी गयी हैं। उन सभी को पढ़ना कठिन है, पर कोई एक भी पढ़ी जाये तो उसमें तमाम तरह की विसंगतियां नज़र आती है। अधिकतर धार्मिक पुस्तकों के रचयिता पुरुष हैं इसलिये स्त्रियों पर नियंत्रण रखने के लिये विशेष रूप से कुछ कुछ लिखा गया है। यह शोध का विषय है कि आखिर सारे धर्म ही स्त्रियों पर नियंत्रण की बात क्यों करते हैं पुरुष को तो एक देवता मानकर प्रस्तुत किया जाता है। सच बात तो यह है कि अगर पुरुष देवता नहंी है तो नारी भी कोई देवी नहीं है। हर मनुष्य परिस्थतियों, संस्कारों और व्यक्तिगत बाध्यताओं के चलते अपना सामाजिक व्यवहार करता है। अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे प्रेरणा कैसी मिलती है। अगर प्रेरणास्त्रोत बुरा है तो वह भी बुरा ही करेगा अगर अच्छा है तो वह अच्छे काम में लिप्त हो जायेगा।
दूसरी जो सबसे बड़ी अहम बात है वह यह कि हर पुरुष और स्त्री का व्यवहार तय करने में उसकी आयु का बहुत योगदान होता है। बाल्यकाल तो अल्लहड़पन में बीत जाता है। उसके बाद युवावस्था में स्त्री पुरुष दोनों का मन नयी दुनियां को देखने के लिये लालायित होता है। विपरीत लिंग का आकर्षण उनको जकड़ लेता है। ऐसे में उन पर जो नियंत्रण की बात करते हैं वह या तो बूढ़े हो चुके होते हैं या फिर जिनका जीवन असाध्य कष्टों के बीच गुजर रहा होता है। कभी कभी तो यह लगता है कि दुनियां के अनेक धर्म ग्रंथ बूढ़े लोगों द्वारा ही लिखे या लिखवाये गये हैं क्योंकि उसमें औरतों पर ही नियंत्रण की बात की जाती है पुरुष को तो स्वाभाविक रूप से आत्मनिंयत्रित माना जाता हैं स्त्रियों के लिये मुंह ढंकने, पिता या भाई के साथ ही घर के बाहर निकलने तथा ऊंची आवाज में न बोलने जैसी बातें कहीं जाती हैं। कभी कभी तो लगता है कि युवतियों की युवावस्था अनेक धर्म लेखकों और विद्वानों के बहुत बुरी लगती है। इसलिये अतार्किक और अव्यवाहारिक बातें लिखते हैं। स्त्री हो या पुरुष युवावस्था में स्वाभाविक रूप से हर जीव अनिंयत्रित होता है-मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों में भी काम वासना की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से देखी जाती है। इस पर युवा स्त्रियों पर नियंत्रण की बात तो व्यर्थ ही लगती है क्योंकि अपने प्रियतम को पाने के लिये जो वह करती हैं उसे रोकने का सामर्थ्य तो विधाता भी नहीं रखता। अलबत्ता सभ्य, कुलीन, शिक्षित तथा बुद्धिमान लड़कियां स्वयं पर नियंत्रण रखती हैं इसलिये ही समाज में अभी तक नैतिकता का आधार बना हुआ है। ऐसी लड़कियों को धार्मिक शिक्षक न भी समझायें तो भी वह मर्यादा में रहती हैं पर जो भटकने पर आमादा है उनको रोकना किसी के लिये संभव नहीं है। कम से कम भर्तृहरि महाराज की समझाइश के अनुसार तो स्त्रियों पर सामाजिक नियंत्रण की बात तो करना ही नहीं चाहिए। दूसरी बात यह कि स्वर्ग कि कल्पना वास्तविकता पर आधारित न होकर अज्ञानियों तथा अल्पज्ञानियों की कल्पना मात्र है।
लोगों के मरने के बाद स्वर्ग पाने की इच्छा का चालाक धार्मिक दलालों ने खूब दोहन किया है और वह अपनी कमाई के लिये उनको तमाम तरह के कर्मकांड करने के लिये प्रेरित करते हैं। अतः जिन लोगों को भारतीय अध्यात्म का ज्ञान है उनको इस बात का प्रचार करना चाहिये कि स्वर्ग और नरक केवल एक भ्रम है। अलबत्ता अपने अच्छे कामों से इस धरती पर स्वर्ग भोगा जा सकता है और बुरे कर्मो यही नरक का वातावरण बना देते हैं।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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