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नारों का व्यापार-हिंदी शायरी



—————–
जमाने को बदल देने का नारा
वह रोज  सुनायेंगे,
कुछ गीत और गजलें
बस यूं ही  गुनगुनायेंगे।
कहें दीपक बापू
खुद कभी बदलने का प्रयास करते नहीं,
नियमों की जंजीरों से बंधें उनके हाथ
लाचारी जताते
वादे करते कभी नहीं थकते
किसी की झोली आस से भरते नहीं,
बहता रहेगा समय अपनी चाल से
लोग भूलेंगे, उनके घर भरेंगे माल से
इसी तरह वह नारों को हमेशा भुनायेंगे।

 

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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लोगों के जज़्बात भी देखने होंगे-हिंदी कविता


वह चीखकर अपना दर्द
ज़माने को  सुना हैं,
भीड़ लगी उनके घर के दरवाजे पर
लोग तरह तरह के इलाज पर
एक दूसरे के कान में गुनागुना रहे हैं,
लगता नहीं उनका मसला  हल होगा।
चर्चा होगी पूरे शहर में
मगर घाव उनका वहीं होगा।
कहें दीपक बापू
अपना गम चौराहे पर सुनाने से
पहले सोचना होगा
लोगों के दिल में जज़्बात हैं भी कि नहीं
वरना खामोशी से अपनी हालातों को पीना होगा।
———————-
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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भ्रष्टाचार पर निबंध और हास्य कविता लिखकर बताएं -दीपक भारतदीप की मौलिक हास्य कवितायें रचना (bharashtachar par nibandh aur hasya kavitaen likhkar bataen-Deepak Bharatdeep’s original hindi poem’s on corruption)


पोते ने दादा से कहा
‘‘कक्षा की हिन्दी शिक्षिका ने
सभी विद्यार्थियों  घर से
भ्रष्टाचार पर निबंध लिखने को कहा है,
आप जरा मदद करो
कुछ जोरदार तर्क भरो
ताकि मेरी श्रेणी सुधर जाये
वरना मैंने फिसड्डी होने का दर्द बहुत सहा है,
पहले तो मेरे यही समझ में नहीं आता कि
भ्रष्टाचार होता किस तरह है,
सभी चेहरे ईमानदार दिखते
फिर बेईमानी होने की क्या वजह है,
आप तो अनेक बार आंदोलन कर चुके हैं,
कई बार अनशन तो हड़ताल कर
इतिहास में अपना नाम भर चुके हैं,
इसलिये भ्रष्टाचार पर निबंध जोरदार लिखायें,
पहले मुझे बाद में समाज के मार्ग दिखायें।’’
सुनकर बोले दादाजी
‘‘बेटा,
कल चलना मेरे साथ स्कूल,
तुम्हारी शिक्षिका को समझाऊंगा
भ्रष्टाचार पर निबंध लिखवाने की बात जायेगी भूल,
तुम चाहे तो अब भी अनशन करा लो,
नौकरी अब करता नहीं
इसलिये सुबह दूध सब्जी लाने के काम से
चाहे हड़ताल धरा लो,
मगर यह भंष्टाचार पर निबंध लिखने में
मदद की बात सोचना भी नहीं,
इस पर पूरा पुराण लिखना पड़ेगा
अपने सिर के बाल नौचना न पड़ें कहीं,
वैसे तुम्हारी शिक्षिका को समझाऊंगा
इस बालपन में भला
हमारे बच्चों को भ्रष्टाचार के विषय से
अवगत क्यों करा रही हो,
सीख जायेंगे सब कुछ
जब बड़े ओहदे पर पहुंच जायेंगे,
नहीं पहुंचे तो भी
इसके परिणाम जरूर समझ पायेंगे,
बड़े बड़े लोग माथापच्ची कर भी
भ्रष्टाचार के आगे हार जाते हैं,
जेब सबसे अधिक वही भरते

जो बहसों में ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं,
हिन्दी में ईमानदारी और नैतिकता पाठ
कभी न पढ़ायें,
भ्रष्टाचार जैसे विषय पर
हमारे बच्चों का खून अभी से न जलाये
बड़े होकर वैसे भी भ्रष्टाचार पर बहस करेंगे,
कहीं देखेंगे फिल्म, कहीं  कविता कहेंगे,
इससे अच्छा तो शीला की जवानी को इंगित करती,

बदनाम मुन्नी के नाम में प्रतिष्ठा भरती,
कविता इनको लिखना सिखायें,
संभव है कुछ बालक
भविष्य में हास्य कवि होकर आपका नाम
गुरु के रूप में रौशन कर दिखायें।’’
————
समाज सेवक को धनपति ने
अपनी शराब पार्टी में बुलाकर
अकेले में कहा
‘‘यार, अपनी कमाई बहुत हो रही है,
पर मजा नहीं आ रहा है,
लोगों के कल्याण के नाम पर
तुम्हें चंदा देते हैं
गरीबों की भीड़ कम नहीं हुई
कभी लोग भड़क न उठें
यह डर सता रहा है,
इसलिये तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाओ,
यहां जिंदा कौम रहती है यह
संदेश विदेशों में फैलाओ,
बस इतना ख्यान रखना
भ्रष्टाचार के खिलाफनारे लगाना,
किसी पर आरोप लगाकर
उसकी पहचान मत बताना,
तुम तो जानते हो
हमारा काम बिना रिश्वत
दिये बिना चलता नहीं,
टेबल के नीचे से न दो पैसे
तो किसी का पेन काम के लिये मचलता नहीं,
फिर कई बड़े लोग
तुम्हें जानते हैं,
उनका भी ख्याल रखना
तुमको वह अपना सबसे बड़ा दलाल मानते हैं
इसलिये
हवा में भाषणबाजी कर
अपना अभियान चलाना,
हमें भी है विदेश में
अपने देश की जिंदा पहचान बताना,
अब तुम रकम बताओ,
अपना चेक ले जाओ।

समाज सेवक ने चेक की रकम देखी
फिर वापस करते हुए कहा
‘यह क्या रकम भरते हो,
लड़ा रहे हो उस भ्रष्टाचार नाम के शेर से
जिसका पालन तुम ही करते हो,
पहले से कम से कम पांच गुना
रकम वाला चेक लिखो,
कम से कम हमारे सामने तो
ईमानदार दिखो,
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए
जब मैदान में आयेंगे,
भले किसी का नाम लें
पर हमारे कई प्रायोजक
डरकर साथ छोड़ जायेंगे,
बाल कल्याण और स्त्री उद्धार वाले हमारे धंधे
सब बंद हो जायेंगे,
भ्रष्टाचार विरोधी होकर
हमारी कमाई के दायरे तंग हो जायेंगे,
बंद हो जायेगा
शराब और जुआ खानों पर जाना,
बंद हो जायेगा वहां का नजराना,
जब चारों तरफ मचेगा कोहराम,
तुम्हारा बढ़ जायेगा दो नंबर का काम,
इसलिये हमारा चंदा बढ़ाओ,
वरना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
हम कतई न उलझाओ।’’
————

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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भ्रष्टाचार पर एक हिन्दी हास्य कविता (bhrashtachar par one hindi hasya kavita)


समाज सेवक को धनपति ने
अपनी शराब पार्टी में बुलाकर
अकेले में कहा
‘‘यार, अपनी कमाई बहुत हो रही है,
पर मजा नहीं आ रहा है,
लोगों के कल्याण के नाम पर
तुम्हें चंदा देते हैं
गरीबों की भीड़ कम नहीं हुई
कभी लोग भड़क न उठें
यह डर सता रहा है,
इसलिये तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाओ,
यहां जिंदा कौम रहती है यह
संदेश विदेशों में फैलाओ,
बस इतना ख्यान रखना
भ्रष्टाचार के खिलाफनारे लगाना,
किसी पर आरोप लगाकर
उसकी पहचान मत बताना,
तुम तो जानते हो
हमारा काम बिना रिश्वत
दिये बिना चलता नहीं,
टेबल के नीचे से न दो पैसे
तो किसी का पेन काम के लिये मचलता नहीं,
फिर कई बड़े लोग
तुम्हें जानते हैं,
उनका भी ख्याल रखना
तुमको वह अपना सबसे बड़ा दलाल मानते हैं
इसलिये
हवा में भाषणबाजी कर
अपना अभियान चलाना,
हमें भी है विदेश में
अपने देश की जिंदा पहचान बताना,
अब तुम रकम बताओ,
अपना चेक ले जाओ।

समाज सेवक ने चेक की रकम देखी
फिर वापस करते हुए कहा
‘यह क्या रकम भरते हो,
लड़ा रहे हो उस भ्रष्टाचार नाम के शेर से
जिसका पालन तुम ही करते हो,
पहले से कम से कम पांच गुना
रकम वाला चेक लिखो,
कम से कम हमारे सामने तो
ईमानदार दिखो,
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए
जब मैदान में आयेंगे,
भले किसी का नाम लें
पर हमारे कई प्रायोजक
डरकर साथ छोड़ जायेंगे,
बाल कल्याण और स्त्री उद्धार वाले हमारे धंधे
सब बंद हो जायेंगे,
भ्रष्टाचार विरोधी होकर
हमारी कमाई के दायरे तंग हो जायेंगे,
बंद हो जायेगा
शराब और जुआ खानों पर जाना,
बंद हो जायेगा वहां का नजराना,
जब चारों तरफ मचेगा कोहराम,
तुम्हारा बढ़ जायेगा दो नंबर का काम,
इसलिये हमारा चंदा बढ़ाओ,
वरना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
हम कतई न उलझाओ।’’
————

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior

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पतंजलि योग विज्ञान-क्रिया योग से आनंद मिलता है


                 भारतीय पतंजलि योग विज्ञान अत्यंत व्यापक है और इसे पूरी तरह बिना समझे कोई गुरु जैसी पदवी की योग्यता धारण नहीं कर सकता। योगसाधना की चरमस्थिति समाधि है। संसार, देह और अन्य सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों के अस्तित्व के आभास से रहित होना ही समाधि है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि देह के क्लेशों से रहित होकर आत्मा में ही अपना ध्यान स्थापित करना भी योग का सर्वश्रेष्ठ रूप है।
योग साधना का यह आशय कतई नहीं है कि आसन या प्राणायाम कर ही इतिश्री समझ लें। यह दोनों तो आष्टांग योग के दो भाग मात्र हैं। इसका अंतिम भाग समाधि है जहां तक पहुंचने के लिये प्राणायाम तथा आसन तो मार्ग मात्र हैं। शून्य में स्थापित होने पर ही समाधि की अवस्था समझना चाहिए।
        पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
                       ——————
               तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।।
        ‘तप, स्वाध्याय और ईश्वर में ध्यान लगाना क्रिया योग है।’
               समाधिभावनार्थः क्लेशतनूकरणार्थश्च।
          ‘यह समाधि की सिद्धि करने वाला और अविद्या जैसे क्लेशों का नाश करने वाला है।’
                अविद्यास्मितारागद्वेषभिनिवेशाः क्लेशः।
           ‘अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश यह सभी क्लेश हैं।
           तत्वज्ञान होने पर ही मनुष्य को इस संसार का पूर्ण आंनद मिल सकता है। इसलिये क्रिया योग करना आवश्यक है। क्रिया योग का आशय तप, स्वाध्याय और परमात्मा के नाम का स्मरण करना है। प्राणयाम तथा योगासन से शरीर और मन में स्फूर्ति आती है तब किसी रचनात्मक कर्म की प्रेरणा स्वतः प्राप्त होती है। देह में विचर रही ऊर्जा किसी सकारात्मक कर्म के लिये प्रेरित करती है। ऐसे में तप और स्वाध्याय के माध्यम से क्रिया योग कर संसार को समझा जा सकता है। नये विषयों की खोज, अनुसंधान और शोध के लिये प्रयत्नशील होना चाहिए भले ही इससे शरीर को थोड़ा कष्ट पहुंचे। यह प्रयास तप करने जैसा ही होता है। संबंधित ग्रंथों का अध्ययन कर अपनी स्वाध्याय की भूख को जिज्ञासा से उपजी भूख को भी शांत करना चाहिए। इसी क्रिया योग से ही योग साधना के अभी तक उद्घाटित न किये गये रहस्यों को भी समझा जा सकता है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’, Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

धर्म निंदा विरोधी कानून से ठेकेदारों को आसरा-हिन्दी लेख


पाकिस्तान में एक ईसाई महिला ने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की है। उस पर ईश निंदा के तहत मामला दर्ज था और जाहिर है सजा मौत से कम क्या हो सकती है? उस पर तरस आया क्योंकि उसकी स्थिति इस दुनियां के शर्म की बात है? आखिर यह ईश निंदा का मामला क्या है? पाकिस्तान तो मज़हबी राष्ट्र होने के कारण बदनाम है पर दुनियां के सभ्य देश भी धार्मिक आलोचना को लेकर असंवेदनशील है। जब अपने देश में देखता हूं तब यह सोचता हूं कि किसी भी धर्म की आलोचना किसी को भी करने की छूट होना चाहिए! अगर किसी धर्म की आलोचना या व्यंग्य से बवाल फैलता है तो रचनाकार पर नहीं बल्कि उपद्रव करने वालों पर कार्यवाही करना चाहिए। कुछ लोग शायद इसका विरोध करें कि अभिव्यक्ति की सुविधा का लाभ इस तरह नहीं उठाना चाहिए कि दूसरे की धाार्मिक आस्था आहत हो।
जिन लोगों ने इस लेखक के ब्लाग पढ़े हैं उनको पता होगा कि उन पर हिन्दू धर्म से संबंधित बहुत सारी सामग्री है। महापुरुषों के संदेश वर्तमान संदभ में संपादकीय व्याख्या सहित अनेक पाठ प्रकाशित हैं! सामान्य भाषा में कहें कि यह लेखन धार्मिक प्रवृत्ति का है और आस्था इतनी मज़बूत है कि इंटरनेट पर हिन्दू धर्म की निंदा पढ़कर भी विचलित नहीं होती। वजह साफ है कि अपने धर्म के मूल तत्व मालुम है और यह भी कि आलोचक तो छोड़िये धर्म के प्रशंसक भी उनको नहीं समझ पाते। आलोचक भारतीय धर्मग्रंथों के वही किस्से सुनाकर बदनाम कर रहे है जिनको पढ़ते सुनते भी तीस बरस हो गये हैं। मुख्य बात तत्व ज्ञान की है जिसे भारतीय क्या विदेशी तक भागते नज़र आते हैं।
ईश या धर्म निंदा पर हमला या कार्यवाही करना इस बात का प्रमाण है कि हमारी आधुनिक सभ्यता पहले से कहीं अधिक असहिष्णु हुई है। अगर आज कबीरदास जी होते तो पता नहीं उन पर कितने मुकदमे चलते और शायद ही उनको कोई वकील मुकदमा लड़ने के लिये नहीं मिलता। स्थिति यह है कि हम उनके कई दोहे इसलिये नहीं लिखते क्योंकि असहिष्णुता से भरे समाज में ऐसी लड़ाई अकेले लड़ना चाणक्य नीति की दृष्टि से वर्जित है।
आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है? दरअसल आधुनिक लोकतंत्र में धर्म के ठेकेदारों के माध्यम से समाज को नियंत्रित किया जा रहा है। वह समाज की बजाय राज्य से अधिक निकट हैं और उसकी वजह से उनको अपना नियंत्रण करना आसान लगता है। सर्वशक्तिमान के किसी भी स्वरूप के नाम का दरबार बना लो, चंदा आयेगा, राज्य भी सहायता देगा और जरूरत पड़ी तो बागी पर ईश निंदा का आरोप लगा दो। सच बात तो यह है कि महापुरुषों के नाम पर धर्म चलाने वाले ठेकेदार अपनी राजनीति कर रहे हैं। आखिर ईश निंदा को खौफ किसे है? हमें तो नहीं है। मनुस्मृति पर इतनी गालियां लिखी जाती हैं पर इस लेखक ने उनके बहुत सारे संदेशों को पढ़ा है जो आज भी प्रासांगिक है उनको छांटकर व्याख्या सहित प्रकाशित किया जाता है। मनुस्मृति के समर्थकों का कहना है कि उसमें वह सब बातें बाद में जोड़ी गयी हैं जिनकी आलोचना होती है। इसका मतलब साफ है कि किसी समय में राज्य की रक्षा की खातिर ही विद्वानों से वह सामग्री बढ़ाई गयी होगी।
यह आश्चर्य की बात है कि जो पश्चिमी देश पाकिस्तान के खैरख्वाह हैं वह उसे इस कानून को हटाने का आग्रह नहीं करते क्योंकि उनको भी कहीं न कहीं उसके धर्म की सहायता की आवश्यकता है। उसके सहधर्मी देशों में तेल के कुऐं हैं जो इस तरह के कानूनों के हामी है और पश्चिमी देशों के तेल तथा धन संपदा के मामले में सहायक भी हैं। इतना ही नहीं पश्चिमी देश भी अपने ही धर्म की आलोचना सहन नहीं  कर पाते। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वह आधुनिक सभ्यता के निर्माण के बहाने अपना धर्म बाज़ार के माध्यम से ला रहे हैं।
आखिर धर्म के ठेकेदार ऐसा क्यों करते हैं? अपने धर्म की जानकारी किसी ठेकेदार को नहीं है। समयानुसार वह अपनी व्याख्या करते हैं। अगर बागी कोई माफिया, नेता या दौलत वाला हुआ तो उसके आगे नतमस्तक हो जाते हैं पर आम आदमी हुआ तो उस राज्य का दंडा चलवाते हैं। यह अलग बात है कि आज समाज के शिखर पुरुष अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं धर्म के ठेकेदारों को समाज पर लादते हैं जो उनके हितैषी हैं। दूसरी बात यह भी है कि भारतीय अध्यात्म को छोड़ दें तो विश्व की अधिकतर विचाराधारायें नये संदर्भों के अप्रसांगिक होती जा रही हैं। भारतीय अध्यात्म में श्रीमद्भागवत गीता ही एक ऐसा ग्रंथ है जो आज भी निर्विवाद है। उसके बाद आता है पतंजलि योग दर्शन का नंबर। रामायण, वेद, उपनिषद, पुराण, रामचरित मानस तथा अन्य बहुत सारे ग्रंथ हैं पर अपने रचनाकाल के परिप्रेक्ष्य में उनकी संपूर्ण सामग्री भले ही श्रेष्ठ रही हो पर कालांतर में समाज के बदलते स्वरूप में उनमें वर्णित कई घटनायें तथा दर्शन अजीब लगता है। संभव है कि रचना के बाद कुछ ग्रंथों में बदलाव हुआ हो या फिर उनका भाव वैसा न हो जैसा हम समझते हैं, पर उनकी आलोचना होती है। होना चाहिए और इसका उत्तर देना आना चाहिए। वेदों की आलोचना पर तो इस लेखक का स्पष्ट कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता में सभी ग्रंथों का उचित सार शामिल हो गया है इसलिये उसके आधार पर वेदों का अध्ययन किया जाये। मज़े की बात यह है कि हिन्दू धर्म का कोई भी आलोचक श्रीमद्भागवत गीता को नहीं पढ़ता जिसमें भेदात्म्क बुद्धि को अज्ञान का प्रतीक माना गया है। मतलब मनुष्य में जाति, धर्म, लिंग, भाषा, धन तथा शिक्षा के आधार पर भेद करना और देखना ही तामस बुद्धि का प्रमाण है।
भारत में ऐसे सारे कानूनों पर भी विचार होना चाहिए जो धार्मिक आलोचना को रोकते हैं। यह जरूरी भी नहीं है कि किसी धर्म की आलोचना उस धर्म का ही आदमी करे दूसरे को भी इसका अधिकार होना चाहिए। दंगे फैलने की आशंका का मतलब यह है कि कहींे न कहीं हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि राज्य ऐसे झगड़ों से निपटने के लिये तैयार नहीं है। धार्मिक ठेकेदार धर्म के नाम पर मलाई तो खाते हैं पर आलोचना का प्रतिकार करने की क्षमता उनमेें नहीं है। इस समय देश में जो वातावरण है वह दमघोंटु बना दिया गया है। कहीं किसी को तस्वीर से एतराज है तो कहीं किसी को निबंध से चिढ़ होती है। जो दावा करते हैं कि हमारा समाज नयापन और खुलापन ले रहा है वह इस बात को भूल जाते हैं कि संत कबीर और रहीम ने बहुत पहले ही सभी धर्मो और उनके ठेकेदारों पर उंगली उठाई है। आज की पीढ़ी खुलेपन वाली है तो फिर यह धार्मिक आलोचना पर रोक लगाने का काम क्यों और कौन कर रहा है? हमारा मानना है कि जो धार्मिक ठेकेदार मलाई खा रहे हैं उनको इन आलोचनाओं के सामने खड़ा कर उसका मुकाबला करने के लिये प्रेरित या बाध्य करो। यह क्या हुआ कि शंाति भंग की आशंका से ऐसे मामलों में कार्टूनिस्टों, लेखकों और पत्रकारों पर कार्यवाही की जाये?
भारत के बुद्धिजीवी पाकिस्तान की कार्यप्रणाली पर टिप्पणियां तो करते हैं पर अपने देश की स्थिति को नहीं देखते जहां धर्म के नाम पर आलोचना रोककर अभिव्यक्ति को आतंकित किया जा रहा है। पाकिस्तान में तो यह आम हो गया है। अगर समाचार पत्रों में छपी विभिन्न खबरों को देखें तो ऐसा लगता है कि लोग अपनी धार्मिक किताब को कबाड़ी के यहां बेच देंगे। उसमें अगर अपने धर्म का आदमी सेव बेचे तो कोई बात नहीं अगर दूसरा बेचे तो लगा दो ईश निंदा का आरोप। मज़े की बात यह कि यह खबर भारत में पढ़ी है पर उसमें ईश निंदा लिखी है पर यह नहीं बताया कि वह किस तरह की है। स्पष्टतः डर की वजह से यह छिपाया गया है। यह खौफ खुलेपन के दावे की पोल खोलकर रख देता है। क्या यह माना जाये कि इस देश में दो तरह के लोग रहते हैं एक असहिष्णु और दूसरे डरपोक।
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