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मनु स्मृति-प्रमाद और अहंकार मनुष्य को नष्ट कर देता है (entertainment and proud danger for man-manu smriti)


प्रकृतिव्यसननि भूतिकामः समुपेक्षेत नहि प्रमाददर्पात्। प्रकृतिव्यवसनान्युपेक्षते यो चिरातं रिपवःपराभवन्ति।।

                   विभूति की कामना से उत्पन्न प्रमाद और अहंकार की प्रकृति से उत्पन्न व्यसन की उपेक्षा न करें। प्रकृत्ति की व्यसनों की उपेक्षा करने वाला शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

                        प्रकृति के पंच तत्वों से बनी इस देह में मन, बुद्धि और अहंकार की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। जिनके पास भौतिक उपलब्धि है वह उसके आकर्षण में बंधकर मतमस्त हो जाते हैं। दूसरे को गरीब या अल्पधनी मानकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं। मज़ाक न उड़ाये तो भी शाब्दिक दया दिखाकर अपने मन को शांति देने का प्रयास करते हैं। दरअसल यह सब दूसरों से ही नहीं बल्कि अपने साथ भी प्रमाद करना ही है। इस संसार में भगवान की तरह माया का खेल भी निराला है। किसी के पास कम है तो किसी के पास ज्यादा है, इसमें मनुष्य की कोई भूमिका नहीं है। यह अलग बात है कि अज्ञानवश वह अपने को कर्ता मान लेता है। इसी कारण वह कभी प्रमाद तो कभी अहंकार के भाव से ग्रसित होकर व्यवहार करता है।
                        आज हम देश के हालात देखें तो यह बात समझ में आ जायेगी कि जिन लोगों के पास धन, प्रतिष्ठा और पद की उपलब्धि है वह दूसरे को अपने से हेय समझते हैं। नतीजा यह है कि आम इंसानों में उनके प्रति विद्रोह के बीज पड़ गये हैं। शिखर पुरुषों को यह भ्रम है कि आम आदमी उनसे जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र के बंटवारे के कारण उनसे जुड़े हैं जो कि उनके किराये के बुद्धिजीवी बनाकर रखते हैं। मगर सच तो यह है कि शिखर पुरुषों से अब किसी की सहानुभूति नहीं है। भले ही प्रचार माध्यम कितने भी दावा करें कि जनता प्रसिद्धि लोगों को देखना और सुनना चाहती है। अब तो हर आदमी यह जान गया है कि शिखर पर अब बिना ढोंग, पाखंड या बेईमानी के कोई नहीं पहुंच सकता। अगर ऐसा न होता तो देश के अनेक शिखर पुरुष अपने घरों के बाहर सुरक्षा उपाय नहीं करते। इतना ही नहीं अनेक तो राह चलते हुए भी सुरक्षा लेकर चलते हैं। इसका मतलब सीधा है कि अपने ही कारनामों को उनके अंदर भय व्याप्त है। गरीबों से भरे देश में सुरक्षा एक मुद्दा बन गयी है।
फिर अब शिखर पर भी झगड़े होने लगे हैं। एक जाता है तो दूसरा आ जाता है। यह अस्थिरता इसलिये हैं क्योंकि प्रमाद और अहंकार में लगे शिखर पुरुष जल्दी जल्दी अपना आकर्षण खो देते हैं। शिखर बैठकर वह अपने वैभव का प्रदर्शन कर वह एक दूसरे को प्रभावित तो कर सकते हैं पर आम आदमी को नहीं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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मनु स्मृति-मन पर काबू करने से लक्ष्य प्राप्ति संभव (hindi adhyatm sandesh-manu smriti)


नीति विशारद मनु कहते हैं कि
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वशे कृत्वेन्दिियग्रामं संयम्य च मनस्तथा।
सर्वान्संसाधयेर्थानिक्षण्वन् योगतस्तनुम्।।

हिंदी में भावार्थ-मनुष्य के लिये यही श्रेयस्कर है कि वह अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखे जिससे धर्म,अर्थ,काम तथा मोक्ष चारों प्रकार का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।
न तथैंतानि शक्यन्ते सन्नियंतुमसेवया।
विषयेषु प्रजुष्टानि यथा ज्ञानेन नित्यशः

हिन्दी में भावार्थ-जब तक इंद्रियों और विषयों के बारे में जानकारी नहीं है तब तब उन पर निंयत्रण नहीं किया जा सका। इंद्रियों पर नियंत्रण करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये यह आवश्यक है कि विषयों की हानियों और दोषों पर विचार किया जाये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इंद्रियों पर नियंत्रण और विषयों से परे रहने का संदेश देना आसान है पर स्वयं उस पर नियंत्रण करना कोई आसान काम नहीं है। आप चाहें तो पूरे देश में ऐसे धार्मिक मठाधीशों को देख सकते हैं जो श्रीगीता का ज्ञान देते हुए निष्काम भाव से कर्म करने का संदेश देते हैं पर वही अपने प्रवचन कार्यक्रमों के लिये धार्मिक लोगों से सौदेबाजी करते हैं। लोगों को सादगी का उपदेश देने वाले ऐसे धर्म विशेषज्ञ अपने फाइव स्टार आश्रमों से बाहर निकलते हैं तो वहां भी ऐसी ही सुविधायें मांगते हैं। देह को नष्ट और आत्मा को अमर बताने वाले ऐसे लोग स्वयं ही नहीं जानते कि इंद्रियों पर नियंत्रण करते हुए विषयों से परे कैसे रहा जाता है। उनके लिये धार्मिक संदेश नारों की तरह होते हैं जिसे वह लगाये जाते हैं।
दरअसल ऐसे लोगों से शास्त्रों से अपने स्वार्थ के अनुसार संदेश रट लिये हैं पर वह इंद्रियों और विषयों के मूलतत्वों को नहीं जानते। इंद्रियों पर नियंत्रण तभी किया जा सकता है जब विषयों से परे रहा जाये। यह तभी संभव है जब उसके दोषों को समझा जाये। वरना तो दूसरा कहता जाये और हम सुनते जायें। ढाक के तीन पात। सत्संग सुनने के बाद घूम फिरकर इस साँससिक दुनियां में आकर फिर अज्ञानी होकर जीवन व्यतीत करें तो उससे क्या लाभ? कहने  का तात्पर्य यह है कि ज्ञान का श्रवण या अध्ययन करने के साथ उस पर चिंतन और मनन भी करना चाहिए। किसी किताब में पढा या किसी के मुख से सूना शब्द तभी ज्ञान बनता है जब उस पर अपनी बुद्धि चलायी जाए।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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मनु स्मृति-गुणवान आदमी से मित्रता कर लें (gunvan se mitrata karen-manu smriti)


मनु महाराज कहते है कि
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प्राज्ञं कुलीनं शूरं च दक्षं दातारमेव च।
कृतज्ञः धुतिमंत च कष्टमाहुररि बुधाः।।
हिंदी में भावार्थ-
बुद्धिमान, कुलीन, शूरवीर, चतुर, धर्मात्मा, धैर्यवान, तथा कृतज्ञ व्यक्ति पर विजय पाना कठिन है। ऐसे व्यक्ति से संधि कर लेना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-अनेक अवसर पर क्रोध अथवा विवाद के कारण आदमी अपनी बुद्धि पर नियंत्रण खो बैठता है और यही उसके लिये आपत्ति का कारण बनता है। क्रोध या निराशा की स्थिति क्षणिक और जीवन बहुत लंबा होता है। इसलिये अवसाद के क्षणों में भी बुद्धिमान, वीर, चतुर, धर्मात्मा तथा धैर्य धारण करने वाले व्यक्ति से विवाद मोल नहीं लेना चाहिये। जीवन में पता नहीं कम किस के सहयोग की आवश्यकता पड़ जाये। क्रोध और निराशा के क्षणिक आवेग में सुयोग्य व्यक्ति से बैर लेना भविष्य में उससे मिलने वाले सहयोग की अपेक्षाओं को समाप्त करना है। जब कोई आपत्ति आती है तब उससे निपटने के लिये योजनाबद्ध तरीके से निपटने के लिये कार्यक्रम बनाना, साधन जुटाना तथा नियत समय पर कार्यवाही करने के लिये जिस बौद्धिक चातुर्य की आवश्यकता होती है उसकी पूर्ति के लिये सुयोग्य व्यक्तियों का साथ होना जरूरी है। ऐसे लोगों के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार रखना चाहिये।
अनेक लोगों को यह भ्रम होता है कि धनी, प्रतिष्ठित तथा बाहूबली लोगों के साथ मित्रता होने से ही सारे संकट दूर हो जायेंगे तो यह उनका भ्रम है। कुछ लोग तो ऐसे लोगों की संगत में शांतिप्रिय, धैयैवान तथा बुद्धिमान लोगों से बैर भी लेते हैं पर जब विपत्ति आती है तो उन्हें ऐसे ही लोगों की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि जीवन में अपने मित्र और सहयोगियों के संग्रह करते समय इस बात को अवश्य देखना चाहिये कि वह न केवल सुयोग्य हों बल्कि समय आपने पर मददगार भी हों। इसके लिये उनके साथ हमेशा सौहार्दपूर्ण संबंध रखें। गुणवान आदमी से संपर्क रखने  से अपने अन्दर भी उस जैसे गुण विकसित होता  हैं।
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मनु स्मृति-शरीर की सफाई भी नियमित रूप से जरूरी (sharir aur safai-manu smriti)


कृत्वा मूत्रं पूरीषं वा खन्याचान्त उपस्मृशेत्।
वेदमश्येघ्यमाणश्च अन्नमश्नंश्च सर्वदा।।
हिंदी में भावार्थ-
मल मूत्र त्याग करने के बाद हमेशा हाथ धोकर आचमन करना के साथ ही दो बार मूंह भी धोना चाहिये। सदैव वेद पढ़ने तथा भोजन करने से पहले भी आचमन करना चाहिये।
वसाशुक्रमसृंमज्जामूत्रविंघ्राणकर्णविट्।
श्नेष्माश्रुदूषिकास्वेदा द्वादशैते नृणां मलाः।।
हिंदी में भावार्थ-
मनुष्य की देह में बारह प्रकार का मल होता है-1.चर्बी, 2.वीर्य, 3.रक्त, 4.मज्जा, 5.मूत्र, 6.विष्ठा, 7.आंखों का कीचड़, 8.नाक की गंदगी, 9.कान का मैल, 10. आंसू, 11.कफ तथा 12. त्वचा से निकलने वाला पसीना।
एका लिंगे गुदे त्रिस्त्रस्तथैकत्र करे दश।
उभयोः सप्त दातव्याः मृदः शुद्धिमभीप्सता।।
हिंदी में भावार्थ-
जो लोग पूर्ण रूप से देह की शुद्धता चाहते हैं उनके लघुशंका पर लिंग पर एक बार मल त्याग करने पर गुदा पर तीन बार तथा बायें हाथ पर दस बार एवं दोनों हाथों की हथेलियों और उसके पृष्ठ भाग पर सात बार मिट्टी (वर्तमान में साबुन भी कह सकते हैं) लगाकर जल से धोना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-दरअसल जब शरीर की पवित्रता और अपवित्रता की बात कही जाती है तो आधुनिक ढंग से सोचने वाले उसे एक तरह से अंध विश्वास मानते हैं जबकि पश्चिम के वैज्ञानिक भी अब मानने लगे हैं कि शरीर को साफ रखने से उसे अस्वस्थ करने वाले अनेक प्रकार के सूक्ष्म कीटाणु दूर हो जाते हैं। जल न केवल जीवन है बल्कि औषधि भी है। यही बात वायु के संबंध में कही जाती है। प्रातः प्राणायम करने से आक्सीजन अधिक मात्रा में शरीर को प्राप्त होता है जिससे कि अनेक रोग स्वतः ही परे रहते हैं। वैसे अगर हम विचार करें तो देह अस्वस्थ हो और इलाज के लिये चिकित्सकों के घर जाकर नंबर लगायें उससे अच्छा तो यह है कि जल और वायु से अपने शरीर को स्वस्थ रखें।
भारतीय अध्यात्म के आलोचक आधुनिक विज्ञान की चकाचैंध में इस बात को भूल जाते हैं कि बीमारी के इलाज से अच्छा तो स्वस्थ रहने के लिये प्रयास करने की बात तो पश्चिमी वैज्ञानिक भी मानते हैं। हालांकि कहा जाता है कि अगर मन साफ़ है तो फिर देह कि चिंता क्या करना? पर सच यह है कि देह की नियमित सफाई न की जाये तो तमाम तरह के रोग हमें घेर  लेते हैं और जिसका अंतत मन पर प्रभाव होता है जिससे वह भटकता है।
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