वहां अपना बसाया आशियाना
हमने क्यों बसाया,
बेकद्रों के लिये बेकार बहाया पसीना,
मगर फिर भी उन्होंने बेरुखी दिखाई
आसरा देने का अहसान भी जताया।
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मालुम था भरोसा टूट जायेगा
फिर भी किया,
ख्वाब बिखरने का अंदेशा था
फिर भी उसे जिया,
धरती पर बहती जिंदगी की
यह नदिया
कितनी गहरी है यह किसने समझा
कभी हम डूबे
कभी तैरे
देखने की ख्वाहिश थी
इसलिये घाट घाट का पानी पिया।
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