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पश्चिम के बाद पूर्व को भी आजमा लें-हिन्दी चिंत्तन लेख


            अभी हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्रमोदी ने जापान का दौरा किया। वहां उन्होंने वहां के प्रधानमंत्री को भारत का पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता उपहार में दिया।  इस यात्रा के राजनीतिक संदर्भ चाहें जो भी हों अध्यात्मिक विचार धारा के पोषक भारतीय समाज के लिये यह एक नवीन विषय बन गया है जब किसी राजनीतिक मंच पर श्रीगीता का नाम इस तरह लिया गया हो।  अभी तक भारत के शिखर पुरुष पश्चिम की तरफ देखते थे पर यह पहला अवसर है जब पूर्व से रिश्ता बनाने में विशेष दिलपस्पी देखी गयी है।

            इस पर पारंपरिक दृष्टिकोण से अलग हटकर विचार करें तब यह निष्कर्ष सामने आता है कि हम अपने भौतिक विकास का स्वरूप पश्चिम की बजाय पूर्व के आधार पर तय करें तो शायद बेहद अच्छा रहे।  जापान दुनियां एक धनी राष्ट्र है।  द्वितीय विश्वयुद्ध में उस पर अमेरिका ने परमाणु  बम फैंका था।  यह मलाल आज भी वहां के लोगों के मन में है।  अमेरिका ने अभी तक एशियाई देशों पर ही बम बरसाये हैं।  दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन राजपुरुषों ने अमेरिका से दोस्ती की अंततः वह उनका ही दुश्मन बना। सद्दाम हुसैन इसका एक सबसे अच्छा उदाहरण है। ऐसे में उस पर यकीन करना हमेशा ही कठिन रहता है।  मूलतः भारत का अमेरिका से कोई बैर नहंी है पर उसकी रणनीतियां हमेशा ही संदिग्ध मानी जाती हैं।  दूसरी बात यह कि वह दुनियां का सबसे अमेरिका विश्व  का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है पर उसकी अर्थव्यवस्था पराश्रित मानी जाती है।  इसके विपरीत जापान एक आत्मनिर्भर राष्ट्र है।  सबसे बड़ी बात यह कि वह एशियाई क्षेत्र होने के साथ ही सहधर्मी राष्ट्र है।  वहां बौद्धधर्म प्रचलित हैं जिसके प्रवर्तक भगवान बौद्ध हमारी धरती पर ही प्रकट हुए थे। जापान विश्व में दूसरों को कर्ज और दान देने वाला राष्ट्र है पर यह बात अलग है कि छोटा होने के कारण उसे वह सम्मान नहीं मिलता।  अगर भारत जैसा विशाल देश उसके साथ हो जाये तो सामरिक दृष्टि से भी उसका आत्मविश्वास बढ़ सकता है।  हमारे यहां का भी जाता है कि हरा भरा वृक्ष ही इंसान का सहायक होता है सूखा पेड़ किसी काम का नहीं हो सकता।

            तकनीकी रूप से जापान हमारे पड़ौसी चीन से कहीं बेहतर है। अमेरिका हमारे साथ संपर्क इसलिये बढ़ा रहा है क्योंकि यहां उसके लिये रोजगार के अवसर हैं।  जापान को पूंजी लगाने का स्थान चाहिये जिससे हमारे विशाल राष्ट्र में हमारे लिये तो हमें भी रोजगार के अवसर बन सकते हैं। सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से भी जापान हमारा निकटस्थ सहयोगी बन सकता है। मूल बात यह कि हम आर्थिक, वैचारिक, साहित्यक तथा संस्कारिक दृष्टि से हम पश्चिम की तरफ देखकर निराश हो चुके हैं।  पश्चिम से आई हवा ने हमारे यहां तनाव पैदा किया है इसलिये अब पूर्व की तरफ रुख करना चाहिये। हम पश्चिम की साम्राज्यवादी और मध्य एशिया की हिंसक गतिविधियों से जुड़कर अपना समय व्यर्थ ही बरबाद करते हैं।  मध्य एशिया में हिंसक संघर्ष कभी थम नहीं सकता।  ऐसा लगता है यह उनका स्वभाव है। वर्षों पुराना इतिहास गवाह है कि पश्चिमी राष्ट्र साम्राज्य बढ़ाने तो मध्य एशिया के राष्ट्र आपस मे उलझकर विश्व में हिंसा का संकट पैदा करते रहे हैं।  दूसरी बात यह कि पश्चिमी से आई हवा यहां गुलाम पैदा करती है जबकि पूर्व से आई हवा में स्वतंत्र मानसिकता की खुशबू आती है।  वैसे भी हमारे देश में सदियों से पूर्व की तरफ देखकर पूजा, आरती या प्रणाम करने की परंपरा रही है।

            एक सज्जन पलंग पर दो वर्ष तक पश्चिम की सिर कर सोते रहे।  लगातार तनाव में गुजारा। एक दिन उनके ही अध्यात्मिक ज्ञानी मित्र ने  उनको घर पर ऐसा करते पाया तो उसे चेताया कि पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर रखकर सोया करो। उत्तर की तरफ सिर करने से से उष्णता तो पश्चिम की तरफ सोने से कुंठा पैदा होती है।  उस मित्र को यह बात लग गयी।  बाद में उन्होंने बताया कि उस अध्यात्मिक मित्र की सलाह मानने के बाद वह अलग तरीके से ही सुखदायक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

            अध्यात्मिक तथा ज्ञान साधक पूर्व की तरफ मुख कर ही योग साधना करते हैं। लोग उगते हुए सूरज को जल देते हैं जो पूर्व से ही उगता है।  पश्चिम के लोग हमारे आर्थिक सहायक कतई नहीं है।  जिस तरह चीन और जापान की चीजें बाज़ार में बिकती हैं उससे यह साफ लगता है कि विकास के तत्व तो पूर्व में ही मौजूद हैं।  बहरहाल यह हमारी एक राय भर है जो अध्यात्मिक लेखक होने के नाते लिखी गयी है जो कि इस अवसर श्रीमद्भागवत गीता का उल्लेख होने पर पैदा हुई।  यह किसी आर्थिक या राजनीतिक विश्लेषक की रचना नहीं है जिसमें पूर्व बेहतर संपर्क होने से अन्य लाभों या हानियां का आंकलन प्रस्तुत किया जा सके।

 

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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