सभी को बताये रास्ते पर खुद चलें, ऐसे लोग कम हैं।
दूसरे को सिखायें दांवपैंच, जो अजमाने में खुद बेदम हैं।।
हवा के झौंके से कांपने लगता है पूरा उनका बदन,
जमाने को डरपोक बतायें, अपनी बहादुरी के उनको वहम हैं।।
दूसरों की रौशनी में चले हैं पूरी जिंदगी का रास्ता,
दीपक और मशाल जलायें रोज, ऐसे लोग कम हैं।।
सह नहीं पाते दूसरे की खुशी, दुखी हो जाते हैं,
अपने मतलब की राह चले हैं वह, जहां ढेरों गम हैं।
तलवारें और ढाल थामें हैं चारों ओर लोग
कलम से शब्द लिखकर अमन लायें, ऐसे लोग कम हैं।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भ्रष्टाचार,
अत्याचार
और व्याभिचार को भी
जाति, भाषा और धर्म के नाम पर
बांटने की कोशिश जारी है,
अक्लमंद दिखाते हैं बहादुरी
अपने अपने हिस्से की शिकायतें उठाने में
शब्द खर्च करते
दूसरे की कमियां गिनाने में
हर हादसे पर देखते हैं बस यही कि
किसके चिल्लाने की बारी है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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स्वर्ग की परियां किसने देखी
स्वयं जाकर
बस एक पुराना ख्याल है।
धरती पर जो मिल सकते हैं,
तमाम तरह के सामान
ऊपर और चमकदार होंगे
यह भी एक पुराना ख्याल है।
मिल भी जायें तो
क्या सुगंध का मजा लेने के लिये
नाक भी होगी,
मधुर स्वर सुनने के लिये
क्या यह कान भी होंगे,
सोना, चांदी या हीरे को
छूने के लिये हाथ भी होंगे,
परियों को देखने के लिये
क्या यह आंख भी होगी,
ये भी जरूरी सवाल है।
धरती से कोई चीज साथ नहीं जाती
यह भी सच है
फिर स्वर्ग के मजे लेने के लिये
कौनसा सामान साथ होगा
यह किसी ने नहीं बताया
इसलिये लगता है स्वर्ग और परियां
बस एक ख्याल है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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तैश में आकर तांडव नृत्य मत करना
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन
जीभ होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
यह लोग
इशारे से तुम्हें उकसा रहे रहे हैं।
जब तुम खो बैठोगे अपने होश,
तब यह वातानुकूलित कमरों में बैठकर
तमाशाबीन बन जायेंगे
तुम्हें एक पुतले की तरह
अपने जाल में फंसा रहे हैं।
————————
कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
http://dpkraj.blogspot.com
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किताबों में लिखे शब्द
कभी दुनियां नहीं चलाते।
इंसानी आदतें चलती
अपने जज़्बातों के साथ
कभी रोना कभी हंसना
कभी उसमें बहना
कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।
ओ किताब हाथ में थमाकर
लोगों को बहलाने वालों!
शब्द दुनियां को सजाते हैं
पर खुद कुछ नहीं बनाते
कभी खुशी और कभी गम
कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता
यह कोई करना नहीं सिखाता
मत फैलाओं अपनी किताबों में
लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम
किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें
उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम
शब्द समर्थ हैं खुद
ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को
गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है
जो तुम उनका बोझा उठाकर
अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।
————–
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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अख़बारों में छपे बड़े बड़े शख्सों के
बयान अब आखों से आगे बढ़कर
दिल की गहराई में नहीं जाते.
ढेर सारा कागज़ का भंडार है चारों तरफ
उसे खाने के लिए अक्षर पक्षी चाहिए
स्याही की बह रही हैं धारा,
मिलना जरूरी है उसको भी किनारा,
बाज़ार के सौदागर केवल शय ही नहीं बेचते,
ज़माने पर काबू रखने का भी खेल खेलते,
उनका खामोश रहना जरूरी है
इसलिए बोलने के लिए वह इंसानी बुत लाते.
जो बाज़ार के लिखे शब्दों पर बस होंठ हिलाते.
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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नजरें फेरकर वह चले जाते हैं।
देखने में लगते हैं हमसे बेपरवाह
पर हकीकत यह है कि
हमारी आंखों में उनको अपने
पुराने सच दिखते नजर आते है।
हम तो भूल चुके उनके पुराने कारनामे
पर उनकी नजरें फेरने से
फिर वही यादों मे तैर जाते हैं।।
…………………………
कुछ हकीकतें बयां करने में
कलम कांप जाती है
इरादा यह नहीं होता कि
किसी कि दुःखती रग सभी को दिखायें
जरूरत पड़ी तो उनका नाम भी छिपायें
पर खौफ जमाने का जिसकी
रिवाजों पर उठ सकती है उंगली
कही लोग भड़क न जायें
कायदों में बंधी आजादी
तब गुलामी से बुरी नज़र आती है।
………………………..
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शोला कहो या शबनम
मोहब्बत के जज्बातों के
इजहार में हर लफ्ज़ है कम।
मगर जिदंगी में सफर में
खूबसूरत हमसफर भी
लगते हैं बदसूरत
जब होते है सामने गम।
चैहरे को कब तक बनावटी सामान से
कितना चमकाओगे
उम्र के साथ फीके होते जाओगे
जला सके ताउम्र खूबसूरत कोई चिराग
जिस्म की मोहब्बत में नहीं है इतना दम।
…………………….
रंगबिरंगे कागज पर शायरी लिखने से
रंगीन नहीं हो जाएगी
शब्द को शोर करते हुए लिखने से
संगीन नहीं हो जाएगी।
रोते हुए उसके जज़्बातों से
वह गमगीन नहीं हो जाएगी।
ओ शायर!
जब तेरे अल्फ़ाजों में
तुझे तेरा अक्स दिखने लगे
तू हो जाये बेहोश
तेरे जज़्बात खुद लिखने लगे
तभी समझना कि तेरी शायरी
जमाने में रौशन हो जायेगी।
………………………………
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आसमान से जमीन पर आते हुए
लिखा लाये हैं वह अपनी रंगीन तकदीर।
न ख्याल उनका अपना
न कोई सोच अपनी
पर जमाने को सुधारने के लिये
देते हैं जोरदार तकरीर।
लगता है उनकी अदाओं से ऐसे
मानो जिंदा हो सिर्फ उनका जमीर।
क्योंकि वह हैं अमीर।
…………………
कभी कभी छोड़ कर आते हैं बाहर
छोड़कर अपने खूबसूरत महल।
आसमान से गिरती तकदीर की हवायें
कहीं उनके महल का रास्ता न भूल जायें
गरीब इंसान कहीं समंदर के पानी सरीखे
उसे बहाकर न जायें
जमाने पर काबिज होने के लिये
जला देते हैं वह रौशनी के दिये
नीली छतरी वाले का देते हैं वास्ता
नहीं जानते जिसका खुद भी रास्ता
उजाड़ देते हैं उनके सिपहसालार पूरा चमन
तब वह निकलते हैं बाहर
अपनी तकरीरों में
उसे बसाने की करते हैं पहल।
………………………………..
क्षितिज पर जमीन और आसमान के
मिल जाने का दिखता है सुखद अहसास।
मगर यह एक ख्वाब है
वह दोनों कभी नहीं आते
कभी एक दूसरे के पास।
उनके आपस में मिलने की चाहत
कभी पूरी नहीं हो सकती
दोनों के बीच फासले ही
उनके अस्तित्व का है आधार
दूरियों में ही छिपा है जिंदगी का सार
उनकी निकटता कभी हो नहीं सकती
चाहत अलग चीज है
जिंदगी चलते रहने के उसूल अलग हैं
दोनों के फासले मिटाने की कोशिश में
खौफनाक मंजर सामने आ जायेगा
धोखा बन सकता है अपना विश्वास।
………………………….
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