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इंटरनेट पर देवनागरी में हिन्दी लिखना सरल-हिन्दी लेख (hindi and devnagari lipi writing essey on in internet-hindi article)


अंतर्जाल पर लिखने में कोई संकट नहीं है जितना कि लोगों की कमेंट पढ़ने में लगती है। जो लोग अपनी टिप्पणियों में वाह वाह या बढ़िया लिख जाते हैं धन्य हैं, और जो थोड़ा विस्तार से लिखे गये पाठ के संदर्भ में नयी बातें लिख जाते हैं वह तो माननीय ही हैं शर्त यह है कि उनकी लिपि देवनागरी होना चाहिए। अगर कहीं रोमन लिपि में हुआ तो भारी तकलीफदेह हो जाता है और काफी देर तक तो यही संशय रहता है कि कहीं वह टिप्पणीकर्ता मजाक तो नहीं उड़ा रहा।
हम बात करें उन लोगों की जो रोमन लिपि में हिन्दी लिखना और पढ़ना चाहते हैं। अपना विचार तो यह है कि रोमन लिपि में हिन्दी लिखने से तो अच्छा है कि सीधे अंग्रेजी में लिखो। इधर सुन रहे हैं कि कुछ विद्वान आधिकारिक रूप से हिन्दी को रोमन लिपि में बांधने के लिये तैयार हो चुके हैं।
अरे, रुको यार पहले हमारी सुनो।
हम तो कह रहे हैं कि नहीं तुम तो बिल्कुल अंग्रेजी को भारत में लादने के लिये कमर कसे रहो। इस पर हमारा पूरा समर्थन है। इधर हम अपने ब्लाग पर हिन्दी में लिखते जायेंगे उधर तुम्हें भी अंग्रेजी के लिये समर्थन देते रहेंगे। कम से कम रोमन लिपि में हिन्दी लिखकर हमारे लिये टैंशन यानि तनाव मत पैदा करो।
होता यह है कि कुछ लोग हमारे लिखने से नाराज होते हैं। अगर वह अंग्रेजी में नकारात्मक टिप्पणी लिखते हैं तो उसे पढ़कर अफसोस नहीं होता।
लिख देते हैं ‘bed poem, you are a bed writer वगैरह वगैरह। हम उनको उड़ा देते हैं। कोई चिंता नहीं! अंग्रेजी में ही हो तो है। किसी ने हिन्दी तो नहीं लिखा। यह तसल्ली इसी तरह की है कि किसी दूसरे शहर में पिटकर आया आदमी अपनी ताकत का बयान अपने शहर में करता है।
अंग्रेजी नहीं आती पर पढ़ लेते है। कोई बात समझ में नहीं आये तो डिक्शनरी की मदद लेते हैं। एक बार एक शब्द आया था जो कविता के बुरे होने की तरफ इशारा कर रहा था। शब्द देखकर लगा कि कम से कम यह अच्छी बात तो नहीं कह रहा। फिर डिक्शनरी की मदद ली। बाद में उस टिप्पणी को हटा दिया। हिन्दी में होती तो सोचते। इससे कुछ लोगों को गलत फहमी हो गयी कि इस लेखक को अंग्रेजी नहीं आती तो अब कभी कभार रोमन लिपि में हिन्दी लिखकर अपनी नकारात्मक राय रखते हैं। यह तकलीफ देह होता है। रखते तो वह भी नहीं है पर पढ़ने में भारी तकलीफ होती है।
अगर कोई लिख देता है कि bakwas तो पढ़ने में क्रष्ट जरूर होता है पर समझने में नहींपर अगर कोई लिखता है bed तो वह तत्काल समझ में आ जाता है उसको भी धन्यवाद देते हैं कि पढ़ने में तकलीफ नहीं हुई। चलो इनसे तो निपट लेते ही हैं पर कुछ लोग पाठों की प्रशंसा में ऐसी टिप्पणियां लिखते हैं जो वाकई उस उसकी चमक बढ़ाते हैं और कहना चाहिये कि पाठ से अधिक प्रशंसनीय तो उनकी टिप्पणी होती है मगर दुःख यह कि वह रोमन लिपि में होती हैं। उनका हटाना पाप जैसा लगता है पर एक बात निश्चित यह है कि हिन्दी का पाठक जब उस पाठ को पढ़ते हुए जब टिप्पणियां पढ़ना चाहेगा तो वह उसे रोमन लिपि में देखकर अपना विचार त्याग देगा और टिप्पणीकर्ता अन्याय का स्वयं ही शिकार होगा।
जिन लोगों को हिन्दी से परहेज है वह उसमें लिखा हुआ लिपि रोमन हो या देवनागरी में कतई नहीं पढ़ेगा क्योंकि उसकी नाराजगी भाषा से है न कि लिपि से। वैसे तो देवनागरी में हिन्दी लिखना इंटरनेट पर कठिन था पर टूलों की उपलब्धता ने उसे समाप्त कर दिया है। अब तो जीमेल पर ही हिन्दी में लिखकर अपना संदेश कट पेस्ट कर कहीं भी रखा जा सकता है। इसलिये आम पाठकों को भी ऐसी शिकायत नहीं करना चाहिये क्योंकि इंटरनेट पर पढ़े लिखे लोग ही सक्रिय हो पाते हैं।
भाषा का संबंध हृदय के भाव से तो लिपि का संबंध मस्तिष्क से होता है। जो लोग रोमन लिपि में हिन्दी लिखना चाहते हैं उनकी निराशाओं को समझ सकते। बहुत प्रयास के बावजूद हिन्दी आम भारतीय की भाषा है। यह अलग बात है कि हिन्दी बाज़ार अंग्रेजीदांओं के कब्जे में है। दरअसल मोबाइल पर एसएमएस लिखवाने के लिये यह बाज़ार विशेषज्ञ अपने प्रायोजित विद्वानों को सक्रिय किये हुए हैं जो रोमन लिपि को यह स्थाई रखना चाहते हैं। उनको लगता है कि बस, रोमन लिपि में यहां का आम आदमी अपना एसएमएस कर अपने हाथ बर्बाद करे। याद रहे कि अधिक एसएमएस करने से लोगों के हाथ बीमार होने की बात भी सामने आ रही है। यह एसएमएस की प्रथा नयी है इसलिये अभी चल रही है और एक दिन लोग इससे बोर हो जायेंगे तब यह रोमन का भूत भी उतर जायेगा। वैसे अनेक लोग यह भी कोशिश कर रहे हैं कि रोमन लिपि से ही ऐसे संदेश हों।
आखिरी बात यह है कि इंटरनेट ने सभी को दिग्भ्रमित कर दिया है। अभी तक देश के आर्थिक, सामाजिक, तथा अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में जिन समूहों या गुटों का कब्जा रहा है वह अब आम आदमी पर नियंत्रण खोते जा रहे हैं। अगर भाषा की बात करें तो आज़ादी के बाद हिन्दी में जो लिखा गया है लोग उस पर असंतोष जता रहे हैं। फिल्में पिट रही हैं, अखबार भी अधिक महत्व के नहीं रहे, टीवी चैनल तो आपस में ही लड़ रहे हैं। पहले उनकी सामग्री की चर्चा लोगों के बीच में होती है पर अब बहुतायत के कारण कोई किसी से जुड़ा है तो कोई किसी से।
आम आदमी को भेड़ की तरह चलाने के आदी कुछ लोग इंटरनेट पर सक्रिय लोगों को आज़ाद देखकर घबड़ा रहे हैं। इसलिये अपने चेले चपाटों के माध्यम से अपना खत्म हो रहा अस्तित्व बचाने में जुटे हैं। इसके लिये पहले उन्होंने हिन्दी के फोंट न होने की बात प्रचारित की और वह जब सार्वजनिक हो गये तो अब वह बता रहे हैं कि रोमन लिपि में लिखकर विश्व पर राज करेंगे क्योंकि दूसरे देश भी इसे सीखेंगे। भाषा के सहारे सम्राज्यवाद का उनका सपना केवल एक ढोंग है क्योंकि हिन्दी में लिपि संबंधी बहस से अधिक समस्या उसमें सार्थक लिखने की है। वह भी इस तरह का लेखन करना होगा जो अभी तक बाज़ार में न दिखा हो। जिन्होंने हिन्दी के बाज़ार पर कब्जा कर रखा है वह इंटरनेट पर भी ऐसे सपने देखने लगे हैं। जबकि हमारा मानना है कि जैसे जैसे इंटरनेट पर लोगों की सक्रियता बढ़ेगी उनके बहुत सारे भ्रम टूटेंगे जो उन पर थोपे गये। इंटरनेट पर देवनागरी में हिन्दी लिखने की बढ़ती जा रही सरलता उनको अंततः अपना मार्ग छोड़ने को बाध्य कर देगी। इस तरह हिन्दी भाषा के अंग्रेजीकरण की कोशिश एक निरर्थक कदम है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अमीरी और अमन-हिन्दी शायरी (amiri aur aman-hindi shayari)


चलकर अमीरी का रास्ता
नहीं रहता अमन से वास्ता
दौलत के ढेर पर बैठकर
दिल का चैन पाना, बस एक ख्याल है,
कहीं खोना होगा अपनी असलियत,
कहीं बदलनी होगी वल्दियत,
ईमान सोने के भाव बिके
या खुद का जज़्बात कूड़ेदान में फिंके,
सिक्के झोली में भरते हुए होते हुए
कोई करना होता नहीं सवाल है।
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वफदारी के दलाल-हिन्दी शायरी


हुक्मरानों ने तय कर दी सरहदें
आम इंसानों का रास्ता रोकने के लिये,
उनकी तन्ख्वाहों पर पलने वाले
पहरेदार खड़े हैं आजादी से चलने वालों को
टोकने के लिये।
सिंहासन पर बैठने वाले चलते हैं
उड़न खटोले में
सांस लेते हैं मातहतों के टोले में,
बेईमानों और दहशतगर्दों का
रास्ता कोई नहीं रोक पाता,
दौलतमंदों के लिये तो
हर कायदा लापता हो जाता,
सब जगह खजाना लूटने की लड़ाई,
नाम है बस, आम इंसान की भलाई,
खड़े हैं गाजर घास के टोले की तरह
वफदारी के दलाज सभी जगह
उसके पसीने से निकली
पैसे की धारा को सोखने के लिये।
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हिन्दू धर्म संदेश-अज्ञानी करते हैं स्वर्ग की कल्पना


भर्तृहरि महाराज के अनुसार 
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स्वपरप्रतारकोऽसौ निन्दति योऽलीपण्डितो युवतीः।
यस्मात्तपसोऽपि फलं स्वर्गस्तस्यापि फलं तथाप्सरसः।।
हिन्दी में भावार्थ-
शास्त्रों का अध्ययन करने वाले कुछ अल्पज्ञानी विद्वान व्यर्थ ही स्त्रियों की निंदा करते हुए लोगों को धोखा देते हैं क्योंकि तपस्या तथा साधना के फलस्वरूप जिस स्वर्ग की प्राप्ति होती है उसमें भी तो अप्सराओं के साथ रमण करने का सुख मिलने की बात कही जाती है।
उन्मतत्तप्रेमसंरम्भादारभन्ते यदंगनाः।
तत्र प्रत्यूहमाधातुं ब्रह्मापि खलु कातरः।
हिन्दी में भावार्थ-
प्रेम में उन्मत होकर युवतियां अपने प्रियतम को पाने के लिये कुछ भी करने लगती हैं। उनके इस कार्य को रोकने का ब्रह्मा भी सामर्थ्य नहीं रखता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-विश्व के अनेक धर्मों की बड़ी बड़ी किताबें लिखी गयी हैं। उन सभी को पढ़ना कठिन है, पर कोई एक भी पढ़ी जाये तो उसमें तमाम तरह की विसंगतियां नज़र आती है। अधिकतर धार्मिक पुस्तकों के रचयिता पुरुष हैं इसलिये स्त्रियों पर नियंत्रण रखने के लिये विशेष रूप से कुछ कुछ लिखा गया है। यह शोध का विषय है कि आखिर सारे धर्म ही स्त्रियों पर नियंत्रण की बात क्यों करते हैं पुरुष को तो एक देवता मानकर प्रस्तुत किया जाता है। सच बात तो यह है कि अगर पुरुष देवता नहंी है तो नारी भी कोई देवी नहीं है। हर मनुष्य परिस्थतियों, संस्कारों और व्यक्तिगत बाध्यताओं के चलते अपना सामाजिक व्यवहार करता है। अब यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे प्रेरणा कैसी मिलती है। अगर प्रेरणास्त्रोत बुरा है तो वह भी बुरा ही करेगा अगर अच्छा है तो वह अच्छे काम में लिप्त हो जायेगा।
दूसरी जो सबसे बड़ी अहम बात है वह यह कि हर पुरुष और स्त्री का व्यवहार तय करने में उसकी आयु का बहुत योगदान होता है। बाल्यकाल तो अल्लहड़पन में बीत जाता है। उसके बाद युवावस्था में स्त्री पुरुष दोनों का मन नयी दुनियां को देखने के लिये लालायित होता है। विपरीत लिंग का आकर्षण उनको जकड़ लेता है। ऐसे में उन पर जो नियंत्रण की बात करते हैं वह या तो बूढ़े हो चुके होते हैं या फिर जिनका जीवन असाध्य कष्टों के बीच गुजर रहा होता है। कभी कभी तो यह लगता है कि दुनियां के अनेक धर्म ग्रंथ बूढ़े लोगों द्वारा ही लिखे या लिखवाये गये हैं क्योंकि उसमें औरतों पर ही नियंत्रण की बात की जाती है पुरुष को तो स्वाभाविक रूप से आत्मनिंयत्रित माना जाता हैं स्त्रियों के लिये मुंह ढंकने, पिता या भाई के साथ ही घर के बाहर निकलने तथा ऊंची आवाज में न बोलने जैसी बातें कहीं जाती हैं। कभी कभी तो लगता है कि युवतियों की युवावस्था अनेक धर्म लेखकों और विद्वानों के बहुत बुरी लगती है। इसलिये अतार्किक और अव्यवाहारिक बातें लिखते हैं। स्त्री हो या पुरुष युवावस्था में स्वाभाविक रूप से हर जीव अनिंयत्रित होता है-मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों में भी काम वासना की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से देखी जाती है। इस पर युवा स्त्रियों पर नियंत्रण की बात तो व्यर्थ ही लगती है क्योंकि अपने प्रियतम को पाने के लिये जो वह करती हैं उसे रोकने का सामर्थ्य तो विधाता भी नहीं रखता। अलबत्ता सभ्य, कुलीन, शिक्षित तथा बुद्धिमान लड़कियां स्वयं पर नियंत्रण रखती हैं इसलिये ही समाज में अभी तक नैतिकता का आधार बना हुआ है। ऐसी लड़कियों को धार्मिक शिक्षक न भी समझायें तो भी वह मर्यादा में रहती हैं पर जो भटकने पर आमादा है उनको रोकना किसी के लिये संभव नहीं है। कम से कम भर्तृहरि महाराज की समझाइश के अनुसार तो स्त्रियों पर सामाजिक नियंत्रण की बात तो करना ही नहीं चाहिए। दूसरी बात यह कि स्वर्ग कि कल्पना वास्तविकता पर आधारित न होकर अज्ञानियों तथा अल्पज्ञानियों की कल्पना मात्र है।
लोगों के मरने के बाद स्वर्ग पाने की इच्छा का चालाक धार्मिक दलालों ने खूब दोहन किया है और वह अपनी कमाई के लिये उनको तमाम तरह के कर्मकांड करने के लिये प्रेरित करते हैं। अतः जिन लोगों को भारतीय अध्यात्म का ज्ञान है उनको इस बात का प्रचार करना चाहिये कि स्वर्ग और नरक केवल एक भ्रम है। अलबत्ता अपने अच्छे कामों से इस धरती पर स्वर्ग भोगा जा सकता है और बुरे कर्मो यही नरक का वातावरण बना देते हैं।
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हिन्दू धर्म संदेश-योग साधना से मन मजबूत होता है


प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।
हिन्दी में भावार्थ-
प्राणवायु को बाहर निकालने और अंदर रोकने के निरंतर अभ्यास चित्त निर्मल होता है।
विषयवती वा प्रवृत्तिरुपन्न मनसः स्थितिनिबन्धनी।।
हिन्दी में भावार्थ-
विषयवाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने पर भी मन पर नियंत्रण रहता है।
विशोका वा ज्योतिवस्ती।
हिन्दी में भावार्थ-
इसके अलावा शोकरहित प्रवृत्ति से मन नियंत्रण में रहता है।
वीतरागविषयं वा चित्तम्।
हिन्दी में भावार्थ-
वीतराग विषय आने पर भी मन नियंत्रण में रहता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भारतीय योग दर्शन में प्राणायाम का बहुत महत्व है। योगासनों से जहां देह के विकार निकलते हैं वहीं प्राणायाम से मन तथा विचारों में शुद्धता आती है। जैसा कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते आ रहे हैं कि इस विश्व में मनोरोगियों का इतना अधिक प्रतिशत है कि उसका सही आंकलन करना संभव नहीं है। अनेक लोगों को तो यह भी पता नहीं कि वह मनोविकारों का शिकार है। इसका कारण यह है कि आधुनिक विकास में भौतिक सुविधाओं की अधिकता उपलब्धि और उपयेाग के कारण सामान्य मनुष्य का शरीर विकारों का शिकार हो रहा है वहीं मनोरंजन के नाम पर उसके सामने जो दृश्य प्रस्तुत किये जा रहे है वह मनोविकार पैदा करने वाले हैं।
ऐसी अनेक घटनायें आती हैं जिसमें किसी फिल्म या टीवी चैनल को देखकर उनके पात्रों जैसा अभिनय कुछ लोग अपनी जिंदगी में करना चाहते हैं। कई लोग तो अपनी जान गंवा देते हैं। यह तो वह उदाहरण सामने आते हैं पर इसके अलावा जिनकी मनस्थिति खराब होती है और उसका दुष्प्रभाव मनुष्य के सामान्य व्यवहार पर पड़ता है उसकी अनुभूति सहजता से नहीं हो जाता।
प्राणायाम से मन और विचारों में जो दृढ़ता आती है उसकी कल्पना ही की जा सकती है मगर जो लोग प्राणायाम करते और कराते हैं वह जानते हैं कि आज के समय में प्राणायाम ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिससे समाजको बहुत लाभ हो सकता है।

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जुबां का रिश्ता-हिन्दी शायरी


आखों से अब अश्क नहीं बहते
क्योंकि दर्द का दरिया सूख गया है,
जहां दिल लगाया
दिल्लगी समझ जमाने ने मुंह फेरा
अब बयां नहीं करते किसी से अपने हाल
अपनी ही हकीकतों से
हमारी जुबां का रिश्ता टूट गया है।
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उनकी प्यार भरी निगाहें
देखकर हमने समझा कि
नज़र हम पर इनायत है।
मतलब निकलते ही
उन्होंने मुंह फेरा
तब उनकी नीयत का पता चला
फिर भी नहीं उनसे गिला
उनके इरादों की नावाकफियत पर
अपनी ही सोच से शिकायत है।
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ज्योतिष, नववर्ष और सितारे- नये वर्ष पर विशेष लेख (hindi satire on new year 2010)


धरती के सितारों को अपने सितारों की फिक्र नहीं जितनी कि उनके चेहरे, अदायें और मुद्रायें बेचने वालों को है। धरती के बाकी हिस्से का नहीं पता पर भारतीय धरती के सितारे तो दो ही बस्तियों में बसते हैं-एक है क्रिकेट और दूसरी है फिल्म। यही कारण है कि टीवी चैनल ज्योतिषियों को लाकर उनका भविष्य अपने कार्यक्रमों में दिखा रहे हैं। समाचार चैनलों को कुछ ज्यादा ही फिक्र है क्योंकि वह नव वर्ष के उपलक्ष्य में कोई प्रत्यक्ष कार्यक्रम नहीं बनाते बल्कि मनोरंजन चैनलों से उधार लेते हैं। इसलिये अगर इस साल का आखिरी दिन का समय काटना कहें या टालना या ठेलना उनके लिये दुरुह कार्य साबित होता दिख रहा है।
उनको इंतजार है कि कब रात के 12 बजें तो नेपथ्य-पर्दे के पीछे-कुछ संगीत को शोर तो कुछ फटाखों के स्वर से सजी पहले से ही तैयार धुनें बजायें और उसमें प्रयोक्ताओं को आकर्षित अधिक से अधिक संख्या में कर अपने विज्ञापनदाताओं को अनुग्रहीत करें-अनुग्रहीत इसलिये लिखा क्योंकि विज्ञापनदाताओं को तो हर हाल में विज्ञापन देना है क्योंकि उनके स्वामियों को भी इन समाचार चैनलों में अपने जिम्मेदार व्यक्तित्व और चेहरे प्रचार कराना है। इस ठेला ठेली में एक दिन की बात क्या कहें पिछले एक सप्ताह से सारे चैनल जूझ रहे हैं-नया वर्ष, नया वर्ष। ऐसे में समय काटना जरूरी है तो फिर क्रिकेट और फिल्म के सितारों का ही आसरा बचता है क्योंकि उनके विज्ञापनों में अधिकतर वही छाये रहते हैं।
अगर किसी सितारे की फिल्म पिट जाये तो भी उनके विज्ञापन पर गाज गिरनी है और किसी क्रिकेट खिलाड़ी का फार्म बिगड़ जाये तो भी उनको ही भुगतना है-याद करें जब 2007 में पचास ओवरीय क्रिकेट मैचों की विश्व कप प्रतियोगिता में भारत हारा तो लोगों के गुस्से के भय से सभी ने उनके अभिनीत विज्ञापनों कोे हटा लिया था और यह तब तक चला जब भारत को बीस ओवरीय क्रिकेट प्रतियोगिता जीतने का मौका नहीं दिया गया! उस समय बड़े बड़े नाम गड्ढे में गिर गये लगते थे पर फिर अब वही सामने आ गये हैं। जिनके भविष्य पूछे जा रहे हैं यह वही हैं जिनका 2007 में दस महीने तक लोग चेहरा तक नहीं देखना चाहते थे।
हैरानी होती है यह सब देखकर! कला, खेल, साहित्य, पत्रकारिता तथा अन्य आदर्श क्षेत्रों पर बाजार अपने हिसाब से दृष्टि डालता है और उस पर आश्रित प्रचार माध्यम वैसे ही व्यवहार करते हैं।
उद्घोषक पूछ रहा है कि ‘अमुक खिलाड़ी का नया वर्ष कैसा रहेगा?’ज्योतिषी बता रहा है‘ ग्रहों की दशा ठीक है। इसलिये उनका नया साल बहुत अच्छा रहेगा।’
नेपथ्य में बैठा प्रचार प्रबंधक चैन की सांस ले रहा होगा-‘चलो, यार इसके विज्ञापन तो बहुत सारे हैं। इसलिये अपने ग्रह अच्छे हैं।’
फिर ज्योतिषी दूसरे खिलाड़ी के बारे में बोल रहा है-‘उसके ग्रह भारी हैं। अमुक ग्रह की वजह से उनके चोटिल रहने की संभावनायें हैं, हालांकि इसके बावजूद उनका प्रदर्शन अच्छा रहेगा।’
प्रचार प्रबंधक ने सोचा होगा-‘अरे यार, ठीक है चोटिल रहेगा तो भी खेलेगा तो सही! अपने विज्ञापन तो चलते रहेंगे। हमें क्या!
तीसरे खिलाड़ी के बारे में ज्योतिषी जब बोलने लगा तो उसके अधरों पर एक मुस्काल खेल गयी-शायद वह सोच रहे थे कि सारी दुनियां इस खिलाड़ी के भविष्यवाणी का इंतजार कर रही है और वह अपने मेहमान चैनल के सभी लोगों का खुश करने जा रहे हैं। वह बोले-‘यह खिलाड़ी तो स्वयं ही बड़ा सितारा है। इसके पास अभी साढ़े तीन साल खेलेने के लिये हैं। यह भी बढ़िया रहेंगे!’
उदुघोषक भी खुश हो गया क्योंकि उसे लगा होगा कि नेपथ्य में बैठा प्रचार प्रबंधक इससे बहुत उत्साहित हुआ होगा। वह बीच में बोला-‘वह सितार क्या अगले वर्ष भी ऐसे ही कीर्तिमान बनाता रहेगा, जैसे इस साल बना रहा है।’
ज्योतिषी ने कहा-‘हां!’
वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर खुशी भरी मुस्कान की लहरें खेलती दिख रही थीं।
हमें भी याद आया कि हम पुराने ईसवी संवत् से नये की तरफ जा रहे हैं इसलिये बाजार और प्रचार के इस खेल में बोर होने से अच्छा है कि अपना कुछ लिखें। हमारी परवाह किसे है? हम ठहरे आम प्रयोक्ता! आम आदमी! विदेशों का तो पता नहीं पर यहां बाजार अपनी बात थोपता है। ऐसे ज्योतिष कार्यक्रम तीन महीने बाद फिर दिखेंगे जब अपना ठेठ देशी नया वर्ष शुरु होगा पर उस समय इतना शोर नहीं होगा। बाजार ने धीरे धीरे यहां अपना ऐजेंडा थोपा है। अरे, जिसे वह कीर्तिमान बनाने वाला सितारा कह रहे हैं उसके खाते में ढेर सारी निजी उपलब्धियां हैं पर देश के नाम पर एक विश्व कप नहीं है।
सोचा क्या करें! इधर सर्दी ज्यादा है! बाहर निकल कर कहां जायें! ऐसे में अपना एक पाठ ठेल दें। अपना भविष्य जानने में दिलचस्पी नहीं है क्योंकि डर लगता है कि कोई ऐसा वैसा बता दे तो खालीपीली का तनाव हो जायेगा। जो खुशी आयेगी वह स्वीकार है और जो गम आयेगा उससे लड़ने के लिये तैयार हैं। फिर यह समय का चक्र है। न यहां दुःख स्थिर है न सुख। अगर हम भारतीय दर्शन को माने तो आत्मा अमर है इसका मतलब है कि जीवन ही स्थिर नहीं है मृत्यु तो एक विश्राम है। ऐसे में उस सर्वशक्तिमान को ही नमन करें जो सभी की रक्षा करता है और समय पड़ने पर दुष्टों का संहार करने के लिये स्वयं प्रवृत्त भी होता है।
बहरहाल याद तो नहीं आ रहा है पर उस दिन कहीं सुनने, पढ़ने या देखने को मिला कि कुंभ राशि में बृहस्पति महाराज का प्रवेश हो रहा है। बृहस्पति सबसे अधिक शक्ति शाली ग्रह देवता हैं और वाकई उसके बाद हमने महसूस किया जीवन के कमजोर चल रहे पक्ष में मजबूती आयी। वैसे नाम से हमारी राशि मीन पर जन्म से कुंभ है। इन दोनों का राशिफल करीब करीब एक जैसा रहता है। हमारे सितारों की फिक्र हम नहीं करते पर दूसरा भी क्यों करेगा क्योंकि हम सितारे थोड़े ही हैं। यह अलग बात है कि सितारे अपने सितारों की फिक्र नहीं भी करते हों-इसकी उनको जरूरत भी क्या है-पर उनके सहारे धन की दौलत के शिखर पर खड़ा बाजार और उसके सहारे टिका प्रचार ढांचे से जुड़े लोगों को जरूर फिक्र है वह भी इसलिये क्योंकि वह बिकती जो है।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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इशारे-हिन्दी व्यंग्य कविता (ishare-hindi satire poem)


तैश में आकर तांडव नृत्य मत करना
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन
जीभ होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
यह लोग
इशारे से तुम्हें उकसा रहे रहे हैं।
जब तुम खो बैठोगे अपने होश,
तब यह वातानुकूलित कमरों में बैठकर
तमाशाबीन बन जायेंगे
तुम्हें एक पुतले की तरह
अपने जाल में फंसा रहे हैं।

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कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
http://dpkraj.blogspot.com
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हिन्दू धर्म संदेश-बड़ा वही है जो गरीब पर कृपा करे (garib par kripa karen-hindu dharm sandesh)


जे गरीब पर हित करै, ते रहीम बड़लोग
कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग

कविवर रहीम कहते हैं जो छोटी और गरीब लोगों का कल्याण करें वही बडे लोग कहलाते हैं। कहाँ सुदामा गरीब थे पर भगवान् कृष्ण ने उनका कल्याण किया।

आज के संदर्भ में व्याख्या- आपने देखा होगा कि आर्थिक, सामाजिक, कला, व्यापार और अन्य क्षेत्रों में जो भी प्रसिद्धि हासिल करता है वह छोटे और गरीब लोगों के कल्याण में जुटने की बात जरूर करता है। कई बडे-बडे कार्यक्रमों का आयोजन भी गरीब, बीमार और बेबस लोगों के लिए धन जुटाने के लिए कथित रूप से किये जाते हैं-उनसे गरीबों का भला कितना होता है सब जानते हैं पर ऐसे लोग जानते हैं कि जब तक गरीब और बेबस की सेवा करते नहीं देखेंगे तब तक बडे और प्रतिष्ठित नहीं कहलायेंगे इसलिए वह कथित सेवा से एक तरह से प्रमाण पत्र जुटाते हैं। मगर असलियत सब जानते हैं इसलिए मन से उनका कोई सम्मान नहीं करता।

जिन लोगों को इस इहलोक में आकर अपना मनुष्य जीवन सार्थक करना हैं उन्हें निष्काम भाव से अपने से छोटे और गरीब लोगों की सेवा करना चाहिऐ इससे अपना कर्तव्य पूरा करने की खुशी भी होगी और समाज में सम्मान भी बढेगा। झूठे दिखावे से कुछ नहीं होने वाला है।वैसे भी बड़े तथा अमीर लोगों को अपने छोटे और गरीब पर दया के लिये काम करते रहना चाहिये क्योंकि इससे समाज में समरसता का भाव बना रहता है। जब तक समाज का धनी तबका गरीब पर दया नहीं करेगा तब तक आपसी वैमनस्य कभी ख़त्म नहीं हो सकता है।


संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://terahdeep.blogspot.com

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शरीर और मन से विकार निकालने का सबसे अच्छा उपाय है योग साधना (yogsadhna-hindi lekh)


अक्सर लोग योग साधना को केवल योगासन तक ही सीमित मानकर उसका विचार करते हैं। जबकि इसके आठ अंग हैं।
योगांगानुष्ठानादशुद्धिये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः।।
हिंदी में भावार्थ-
योग के आठ अंग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
इसका आशय यही है कि योगसाधना एक व्यापक प्रक्रिया है न कि केवल सुबह किया जाने वाला व्यायाम भर। अनेक लोग योग पर लिखे गये पाठों पर यह अनुरोध करते हैं कि योगासन की प्रक्रिया विस्तार से लिखें। इस संबंध में यही सुझाव है कि इस संबंध में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं और उनसे पढ़कर सीखें। इन पुस्तकों में योगासन और प्राणायम की विधियां दी गयी हैं। योगासन और प्राणायम योगसाधना की बाह्य प्रक्रिया है इसलिये उनको लिखना कोई कठिन काम है पर जो आंतरिक क्रियायें धारणा, ध्यान, और समाधि वह केवल अभ्यास से ही आती हैं।
इस संबंध में भारतीय योग संस्थान की योग मंजरी पुस्तक बहुत सहायक होती है। इस लेखक ने उनके शिविर में ही योगसाधना का प्रशिक्षण लिया। अगर इसके अलावा भी कोई पुस्तक अच्छी लगे तो वह भी पढ़ सकते हैं। कुछ संत लोगों ने भी योगासन और प्राणायाम की पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिनको खरीद कर पढ़ें तो कोई बुराई नहीं है।
चूंकि प्राणयाम और योगासन बाह्य प्रक्रियायें इसलिये उनका प्रचार बहुत सहजता से हो जाता है। मूलतः मनुष्य बाह्यमुखी रहता है इसलिये उसे योगासन और प्राणायाम की अन्य लोगों द्वारा हाथ पांव हिलाकर की जाने वाली क्रियायें बहुत प्रभावित करती हैं पर धारणा, ध्यान, तथा समाधि आंतरिक क्रियायें हैं इसलिये उसे समझना कठिन है। अंतर्मुखी लोग ही इसका महत्व जानते हैं। धारणा, ध्यान और समाधि शांत स्थान पर बैठकर की जाने वाली कियायें हैं जिनमें अपने चित की वृत्तियों पर नियंत्रण करने के लिये अपनी देह के साथ मस्तिष्क को भी ढीला छोड़ना जरूरी है।
इसके अलावा कुछ लोग तो केवल योगासन करते हैं या प्राणायम ही करके रह जाते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में भी लाभ कम होता है। अगर कुछ आसन कर प्राणायम करें तो बहुत अच्छा रहेगा। प्राणायम से पहले अगर अपने शरीर को खोलने के लिये सूक्ष्म व्यायाम कर लें तो भी बहुत अच्छा है-जैसे अपने पांव की एड़ियां मिलाकर घड़ी की तरह घुमायें, अपने हाथ मिलाकर ऐसे आगे झुककर घुमायें जैसे चक्की चलाई जाती है। अपनी गर्दन को घड़ी की तरह दायें बायें आराम से घुमायें। अपने दोनों हाथों को कंधे पर दायें बायें ऊपर और नीचे घुमायें। अपने दायें पांव को बायें पांव के गुदा मूल पर रखकर ऊपर नीचे करने के बाद उसे अपने दोनों हाथ से पकड़ दायें बायें करें। उसके बाद यही क्रिया दूसरे पांव से करें। इन क्रियायों को आराम से करें। शरीर में कोई खिंचाव न देते सहज भाव से करें। सामान्य व्यायाम और योगासन में यही अंतर है। योगासनों में कभी भी उतावली में आकर शरीर को खींचना नहीं चाहिये। कुछ आसन पूर्ण नहीं हो पाते तो कोई बात नहीं, जितना हो सके उतना ही अच्छा। दूसरे शब्दों में कहें तो सहजता से शरीर और मन से विकार निकालने का सबसे अच्छा उपाय है योग साधना। शेष फिर कभी
लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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