स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ रथ कूबर छांहि।।
कविवर रहीम कहते हैं कि लोग अपने स्वार्थ के अनुसार दूसरे में गुण और अवगुण ढूंढते रहते हैं। जो कभी अपना स्वार्थ साधने के लिये रथ के हरसो की टेढ़ी मेढ़ी छाया को अशुभ कहते हैं वह लोग उसकी छाया में भी बैठ जाते हैं।
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ रथ कूबर छांहि।।
कविवर रहीम कहते हैं कि लोग अपने स्वार्थ के अनुसार दूसरे में गुण और अवगुण ढूंढते रहते हैं। जो कभी अपना स्वार्थ साधने के लिये रथ के हरसो की टेढ़ी मेढ़ी छाया को अशुभ कहते हैं वह लोग उसकी छाया में भी बैठ जाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अगर आपको अपने जीवन में तरक्की करनी हैं तो फिर लोगों के कहने सुनने की परवाह छोड़ दो। लोग तो अपने स्वार्थ के अनुसार गुण और अवगुण देखते हैं। अगर आपका कार्य किसी के अनुकूल नहीं है तो वह कभी आपको उसे करने के लिये प्रेरित नहीं करेगा। यदि प्रतिकूल हुआ तो वह जमकर आलोचना करेगा। यह मनुष्य स्वभाव है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि एक आदमी दूसरे की तरक्की को रोकने के लिये उसके लक्ष्य से भटकाते हुए अनेक दोष गिनाता है। जब कोई मनुष्य वास्तव में समाज सेवा के लिये प्रेरित होता है तो लोग उसे पागल तक कहते हैं। लोगों के कहने की परवाह करने वाले कभी भी विकास नहीं कर पाते। इसलिये जब आपने कोई लक्ष्य तय कर लिया है तो उस पर बढ़ चलिये। जब उसमें आपको सफलता मिलेगी तो वही लोग प्रशंसा कर आपकी छाया में बैठने का प्रयास करेंगे जिन्होंने आपकी आलोचना की थी। यह इस संसार की प्रकृति है कि वह गरीब को देता नहीं है और अमीर को सहन नहीं करता। गुणवान की गाता नहीं वरन् अवगुणी का बखान कर अपनी प्रशंसा कराना चाहता है। इसलिये अपने पथ पर चलते रहो। किसी की परवाह न करो। लोग अपने स्वार्थ के अनुसार समय समय दृष्टिकोण बदलते रहते हैं और अगर उन पर विचार किया तो फिर कोई भी काम ही नहीं कर सकेंगे।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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i want the informention of ” Drushtikon manushya ko rup deta hai