गंदगी साफ करने पर नाखुशी जताते हैं-स्वच्छ भारत अभियान पर विशेष हिन्दी व्यंग्य कविता


पूरे शहर में स्वच्छता

जरूर होना चाहिए

सभी मानते हैं।

लोग फैलाते हैं

स्वयं गंदगी जानबूझकर

कोई आयेगा साफ करने

यह जानते हैं।

कहें दीपक बापू सुविधा युग

जब से आया है,

ज़माने की बुद्धि पर

अंधेरा छाया है,

शराब और सिगरेट

बन गये संस्कार का हिस्सा,

पहले पीते थे छिपकर

अब सुनाते लोग शान से किस्सा,

गंदगी फैलाने में सभी हो गये माहिर

साफ करने की बात पर

भौहें तानते हैं।

———————

समाज के कल्याण का

काम इतना सरल है

सभी उसमें चले जाते हैं।

इसमें ढेर सारा मिलता दाम

साथ में मुफ्त सम्मान

विरोधियों के दिल

गले जाते हैं।

कहें दीपक बापू घर में

जिनके नहीं थे दाने,

उन्होंने ही बड़े बड़े होटल

और अस्पताल ताने,

प्रचार में बनाई काले धंधे के

व्यापारियों ने धवल छवि,

कथाकार लिखते उनकी

महान जीवन गाथा

छंद रच रहे कवि,

अज्ञानी उसमें फंसते हैं,

ज्ञानी मौन होकर हंसते हैं,

खाली थी जिनकी जेब

जुगाड़ से ताकतवर बने

सोने के सिक्के उनके

घर की तरफ चले आते हैं।

———————-

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 

poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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टिप्पणियाँ

  • Sudhir Singh  On 01/11/2014 at 11:36 पूर्वाह्न

    AACHA YANGYA HAI

    2014-11-01 10:34 GMT+05:30 “*** दीपक भारतदीप की हिंदी सरिता-पत्रिका***

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