Tag Archives: हास्य कविताएँ

चमत्कार वाला धर्म-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
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चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
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चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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हास्य कविताएँ-काले धन के फेर में गुरू चेला (hasya kavitaen-black money and guru chela)


चेले ने कहा गुरु से
‘‘इस समय चारों तरफ
काले धन के विरुद्ध
अभियान चल रहा है,
आप भी इसमें शामिल होकर
अपने आश्रम और हम जैसे चेलों
का रुतवा बढ़ाओ
यह विचार मेरे दिमाग में पल रहा है।’

सुनकर गुरुजी बोले
‘‘मुझे तेरी जन्म कुंडली
देखकर अपने दल में शामिल करना था,
तेरे ख्याल देखकर
अपने आश्रम में तुझे भरना था,
धंधा नहीं तेरा कोई भी
फिर भी रोज पीता है शराब,
क्या जानता है उसका पैसा कहां से आता है
स्वच्छ है कि खराब,
नित नित नये चमकदार कपड़े भेंट मे जो तू लाता है,
कभी समझ में आयी है यह बात तुझे कि
अपने भक्तों में किसके पास सफेद और
किसके पास काला धन आता है,
ज्यादा चक्कर में नहीं पड़ना,
फंस जायेगा वरना,
अभी तक लोगों की नज़र अपने से दूर है,
कहीं छपने लगे रोज अखबार में तो
समझ लो आगे अपनी जांच होना भी जरूर है।
सफेद धन तो बस, गरीबों के पास ही होता है,
जिनका धर्म से नहीं नाता
आत्मा जिनका पेट भरकर ही सोता है,
ज्यादा आंदोलन के चक्कर में
पड़े तो दानदाता नाराज हो सकते हैं
तब काले धन के बिना
हम लोग ही बेरोजगार हो जायेंगे,
जल्दी आश्रम को भी अतिक्रमण विरोधी अभियान से
ध्वस्त पायेगे,
हमें अपने वातानुकूलित आश्रम में रहना चाहिए
क्या करना शहर बेईमानी की आग में जल रहा है।’’
——–
मुर्दे के कफन से भी
वह टुकड़ा चुरा लाते हैं,
बच्चे के मुख की रोटी छीनकर
अपना बैंक बढ़ाते हैं,
कमबख्त!
कल्याण का ठेका उन्हीं का नाम चढ़ता है
जो बेईमानी के ढंग सीख जाते हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior

गरीबी की रेखा-हास्य कविताएँ (garibi ki rekha-haysa kavitaen


गरीबी की रेखा के ऊपर बैठे लोग ही
पूरा हिस्सा खा जाते हैं
इसलिये ही नीचे वाले
नहीं उठ पाते ऊपर
कहीं अधिक नीचे दब जाते हैं।
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गरीबी रेखा के ऊपर बसता है इंडिया
नीचे भारत के दर्शन हो जाते हैं,
शायद इसलिये बुद्धिजीवी अब
इंडिया शब्द का करते हैं इस्तेमाल
भारत कहते हुए शर्माते हैं।
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गरीबी की रेखा पर कुछ लोग
इसलिये खड़े हैं कि
कहीं अन्न का दाना नीचे न टपक जाये
जिस भूखे की भूख का बहाना लेकर
मदद मांगनी है दुनियां भर से
उसका पेट कहीं भर न जाये।
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गरीबी रेखा के नीचे बैठे लोगों का
जीवन स्तर भला वह क्यों उठायेंगे,
ऐसा किया तो
रुपये कैसे डालर में बदल पायेंगे,
फिर डालर भी रुपये का रूप धरकर
देश में नहीं आयेंगे,
इसलिये गरीबी रेखा के नीचे बैठे
इंसानों को बस आश्वासन से समझायेंगे।
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अपना पेट भरने के लिये
गरीबी की रेखा के नीचे
वह इंसानों की बस्ती हमेशा बसायेंगे,
रास्ते में जा रही मदद की
लूट तभी तो कर पायेंगे।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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