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गरीबी की रेखा-हास्य कविताएँ (garibi ki rekha-haysa kavitaen


गरीबी की रेखा के ऊपर बैठे लोग ही
पूरा हिस्सा खा जाते हैं
इसलिये ही नीचे वाले
नहीं उठ पाते ऊपर
कहीं अधिक नीचे दब जाते हैं।
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गरीबी रेखा के ऊपर बसता है इंडिया
नीचे भारत के दर्शन हो जाते हैं,
शायद इसलिये बुद्धिजीवी अब
इंडिया शब्द का करते हैं इस्तेमाल
भारत कहते हुए शर्माते हैं।
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गरीबी की रेखा पर कुछ लोग
इसलिये खड़े हैं कि
कहीं अन्न का दाना नीचे न टपक जाये
जिस भूखे की भूख का बहाना लेकर
मदद मांगनी है दुनियां भर से
उसका पेट कहीं भर न जाये।
——-
गरीबी रेखा के नीचे बैठे लोगों का
जीवन स्तर भला वह क्यों उठायेंगे,
ऐसा किया तो
रुपये कैसे डालर में बदल पायेंगे,
फिर डालर भी रुपये का रूप धरकर
देश में नहीं आयेंगे,
इसलिये गरीबी रेखा के नीचे बैठे
इंसानों को बस आश्वासन से समझायेंगे।
————-
अपना पेट भरने के लिये
गरीबी की रेखा के नीचे
वह इंसानों की बस्ती हमेशा बसायेंगे,
रास्ते में जा रही मदद की
लूट तभी तो कर पायेंगे।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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नीलामी में इनाम-हास्य कविता


आशिक जूझ रहा था
क्रिकेट खिलाड़ी बनने के लिये
तो माशुका भी खड़ी थी
फिल्म अभिनेत्री बनने की पंक्ति में
कई उसने साक्षात्कार भी दिये।
बढ़ते जा रहे थे दोनों के कदम
इश्क के साथ
अपने लक्ष्य की तरफ भी सफलता के लिये।
पर आशिक की चिंतायें बढ़ रही थी
रौशन करना चाहता था वह अब
अपने घर में ही इश्क के दिए।
वह बोला माशुका से
‘अब तो मैं नामी खिलाड़ी बनने जा रहा हूं,
अपने रनों और विकेटों की बरसात में नहा रहा हूं,
पर डरता हूं
तुम्हारे और मेरे इश्क का क्या होगा
कहीं बिछड़ न जाये,ं
आओ अपना घर बसायें,
अपने अमर प्रेम के लिये।’
सुनकर बोली माशुका
‘क्यों घबड़ाते हो,
मैं भी सैट पर नृत्य करती हूं
जब तुम मैदान में रन बनाते होे,
हमारा बिछड़ना अब संभव नहीं,
फिल्म और क्रिकेट का
घालमेल हो गया है हर कहीं,
जब तुम नामी खिलाड़ी हो जाओगे,
मुझे भी बड़ी अभिनेत्री की तरह पाओगे,
कभी न कभी तुम्हारी भी लगेगी नीलाम बोली,
कोई टीम मैं भी खरीदूंगी
जिसमें समायेगी तुम्हारी भी टोली,
वैसे क्या रखा है दूल्हे की तरह बिकने में,
मजा है बिकाऊ क्रिकेट खिलाड़ी दिखने में,
दहेज का शब्द हो गया है बदनाम,
इसलिये नीलामी में दूंगी तुम्हें ढेर सारे इनाम,
माल तो अपने ही घर आयेगा,
हर कोई देखकर जल जायेगा,
इश्क बाजी में कीर्तिमान बनाकर रख देंगे
आने वाली पीढ़ी के लिये।
लोग गायेंगे इश्क के साथ हमारी
दौलत के भी गीत,
नहीं देखी होगी किसी ने ऐसी प्रीत,
अभी घर संसार बनाकर
गुमनामी के अंधेरे में खोकर जिये
तो फिर क्या खाक जिये।’

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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इशारे-हिन्दी व्यंग्य कविता (ishare-hindi satire poem)


तैश में आकर तांडव नृत्य मत करना
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन
जीभ होते हुए भी गूंगे
कान होते हुए भी बहरे
यह लोग
इशारे से तुम्हें उकसा रहे रहे हैं।
जब तुम खो बैठोगे अपने होश,
तब यह वातानुकूलित कमरों में बैठकर
तमाशाबीन बन जायेंगे
तुम्हें एक पुतले की तरह
अपने जाल में फंसा रहे हैं।

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कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
http://dpkraj.blogspot.com
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फरिश्ते होने का अहसास जताते-व्यंग्य कविता


किताबों में लिखे शब्द
कभी दुनियां नहीं चलाते।
इंसानी आदतें चलती
अपने जज़्बातों के साथ
कभी रोना कभी हंसना
कभी उसमें बहना
कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।

ओ किताब हाथ में थमाकर
लोगों को बहलाने वालों!
शब्द दुनियां को सजाते हैं
पर खुद कुछ नहीं बनाते
कभी खुशी और कभी गम
कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता
यह कोई करना नहीं सिखाता
मत फैलाओं अपनी किताबों में
लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम
किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें
उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम
शब्द समर्थ हैं खुद
ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को
गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है
जो तुम उनका बोझा उठाकर
अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।
————–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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लिखने की बीमारी जो है-व्यंग्य आलेख (likhne ki bimari-hindi hasya vyangya)


अंतर्जाल पर रचनाकर्म कोई आसान काम नहीं है। जो लेखक, कलाकर या कार्टूनिस्ट स्वयं न लिखकर दूसरे को अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिये देते हैं वह पाठकों की अभद्र टिप्पणियों से बच जाते हैं। एक तो दूसरी वेबसाईट या ब्लाग का लेखक उनको बताता नहीं होगा कि तुम्हारी रचना पर इस तरह की टिप्पणी आई है और अगर बतायेगा भी तो सोचेंगे कि कौन हमने सीधे यह अभद्र टिप्पणी का दर्द झेला है।
इसी कारण जो मौलिक स्वतंत्र लेखक तथा कलाकार हैं उनके सामने यह समस्या तो आने वाली है क्योंकि कलाकार, कहानीकार, व्यंग्यकार, निबंधकार तथा कवि तो बहुत भावुक होते हैं। ऐसा हो सकता है कि कोई एक टिप्पणी ही किसी लेखक का अंतर्मन हिला दे कि वह उसे फिर न संभाल सके।
दरअसल यह समस्या केवल लेखन से जुड़े ब्लाग पर ही नहीं बल्कि गीत, संगीत तथा तकनीक विषयों पर भी है। इंटरनेट पर कई ऐसी वेबसाईटें और ब्लाग हैं जो गाली गलौच वाली टिप्पणियों से भरे पड़े हैं। एक बात देखकर आश्चर्य होता है कि उनको वहां से उसके स्वामियों ने हटाया भी नहीं है। संभवतः वह उस सामग्री पर उनका स्वामित्व नहीं है वरना संबंधित कलाकार, लेखक गायक या गायिका उसे देख ले तो वह यकीनन मानसिक यंत्रणा का अनुभव करेगी।
इधर एक वरिष्ठ ब्लाग लेखक की इसी संबंध में एक जगह टिप्पणी पढ़ी। उन्होंने लिखा कि ‘लोग तो यह लिख जाते हैं कि यह क्या कूड़ा लिखा है। हम भी कह देते हैं कि भई हम तो गधे हैं और अपनी जाति वालों के लिये लिख रहे हैं।’
वह भी हमारी तरह लेखक हैं तो उनकी इस सदाशयता ने हमारा आत्म्विश्वास बढ़ाया। इधर कुछ दिनों से हमारे सामने भी ऐसी टिप्पणियां आ रही हैं। तब हम सोच रहे थे कि ‘यार, एक तो मुफ्त में मेहनत कर रहे हैं। अनेक बार राह चलते या काम करते हुए कोई विषय आता है तो कितनी मेहनत से अपने दिमाग में सुरक्षित-कंप्यूटर की भाषा में कहें कि सेव-करते है। अब हमारा दिमाग कंप्यूटर तो है नहीं है कि उसकी तरह सामने प्रदर्शित-डिस्प्ले-कर दे। फिर हाथ की बजाय बड़ी मेहनत से टाईप करते हैं। ऐसे में संभव है कि हास्य रचना चिंतन नुमा और कविता गद्यनुमा हो जाती हो। लिख लिया तो फिर उसे रख नहीं सकते। ब्लाग/पत्रिका पर ठेलना-प्रकाशित करना-ही है। जितने शब्द हमारी कविता में है उतने तो वह टिप्पणीकार लिखने में दो दिन लगा देंगे जो लिखते हैं कि यह मूर्खतापूर्ण रचना है या यह कविता नहीं है या यह व्यंग्य नहीं है। हमने देखा है कि एस.एम.एस लिखने वालों की हालत क्या होती है। अनेक कंप्यूटर प्रेमी एक उंगली से एक एक अक्षर देखकर टाईप करते हैं। हम जितना बड़ा गद्य लिखते हैं उतना तो इस देश में बहुत कम ही लिखने वाले होंगे। मगर पढ़ने वालों को समझ कितनी है यह भी देख चुके हैं। देश, भाषा, समाज और धर्म के नाम पर जो नारे उन्होंने सुने हैं उससे आगे उनका सोच जा ही नहीं सकता। ऐसी टिप्पणियां देखकर उन पर ही हमें दया आती है। फिर तो यही कहते हैं कि हम तो गधे हैं और अपनी जाति वालों के लिये ही लिख रहे हैं। याद, रखिये गधा शब्द सुनकर सभी को बुरा लगता है पर परिश्रम के मामले में किसी अन्य जीव की उससे तुलना नहीं है। हमारे वह वरिष्ठ लेखक भले ही अपने को गधा केवल दिखाने के लिये बोले हों हम तो मन से अपने को गधा मानने लगे हैं। वरना तो कभी कभी इतना गुस्सा आता है कि सारे ब्लाग उड़ा दो। हम मेहनत किसके लिये कर रहे हैं। इन टेलीफोन कंपनियों के लिये जो इंटरनेट कनेक्शनों से पैसा कमाती हैं और खर्च करती हैं फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों तथा क्रिकेट खिलाड़ियों पर विज्ञापन के रूप में। जिस कंपनी का हमारे पास कनेक्शन है वह तो अब क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन भी कर रही है। दरअसल इस क्रिकेट ने देश का सत्यानाश कर दिया है। बीसीसीआई की टीम जब हारती है तब लोग उसके लिये तमाम तरह की कटु भाषा का प्रयोग करते हैं। कोई खिलाड़ी जल्दी आउट हो जाता है तब भी गालियां निकालकर अपना गुस्सा ठंडा करते हैं। यह करते करते इंटरनेट पर भी उनकी यही आदत हो गयी है। यह हम इसलिये कह रहे हैं क्योंकि क्रिकेट मैच वाले दिन हमारा ब्लाग पिट जाते हैं।
हमें पढ़ने वाले भी इन्हीं टेलीफोन कंपनियों को पैसा देते हैं जैसे कि हम। यह तो लिखने की पुरानी बीमारी है जिसका इलाज तो लिखना ही है।
बहरहाल एक बात हम अपने देश के लोगों को बता देना चाहते हैं कि इससे विश्व में अपने देश की छबि खराब होगी। आप जो ब्लाग देख रहे हैं वह किसी अन्य भाषा में पढ़ा जा सकता है क्योंकि अनुवाद टूल इस काम को आसान करते जा रहे हैं। जब हिंदी के ब्लाग ख्याति प्राप्त करेंगे तब यह अभद्र टिप्पणियों पूरे विश्व में हमारी छबि खराब करेंगी यह सोच लेना। हम तो गधे ठहरे सब झेल जायेंगे पर जब आगे चलकर अखबारों में अपनी इसी छबि की चर्चा पढ़ोगे तो तिलमिलाओगे क्योंकि तुम तो इंसान हो न! वैसे गधे की दुलती पड़ जाये तो आदमी हिल जाता है। अगर हम अपने बीस ब्लाग उड़ा दें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा बस यह है कि मित्र लोगा निराश होंगे और हम ऐसे गधे हैं कि धोबी के गधे की तरह उनको छोड़ नहीं सकते। अलबत्ता गुस्सा कुछ भी करा सकता है।
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