अंतर्जाल पर लिखते समय भाषा मर्यादित होना चाहिये-आलेख


अंतर्जाल पर जैसे जैसे आप लिखते जायेंगे वैसे वैसे नित नये अनुभव होंगे। एक बात लगने लगी है कि यहां पर हिंदी साहित्य तो लिखा जायेगा पर शायद वैसे नहीं जैसे प्रकाशन माध्यमों में लिखा जाता है। कहानियां केवल कल्पना और सत्य का मिश्रण नहीं बल्कि अनुभूति से घटी घटनायें भी कहानी की शक्ल में प्रस्तुत होंगी। हिंदी ब्लाग अभी शैशवास्था में हैं पर इसके विकास की पूरी संभावना है। अभी तक जो ब्लाग लेखक हैं वह सामान्य लोग हैं और उनका प्रयास यही है कि किसी भी तरह वह न केवल अपने लिये पाठक जुटायें बल्कि दूसरे के पास अपने पाठक भेज सकें तो भी अच्छी बात है। ऐसी कोशिश इस ब्लाग लेखक ने कई बार की है पर अभी हाल ही में एक दिलचस्प अनुभव सामने आया।

हुआ यूं कि एक अध्यात्मिक ब्लाग पर एक ज्योतिष विद् महिला ने अपनी टिप्पणी लिखी। उनके अनुसार वह ज्योतिष की जानकार हैं और जिस तरह उसके नाम पर भले लोगों का ठगा जा रहा है उसके खिलाफ वह जागरुकता लाने का प्रयास कर रही हैं। इस मामले में वह ब्लाग/पत्रिका लेखक से सहायता की आशा भी उन्होंने की।
अगर कोई इस तरह का प्रयास कर रहा है तो उसमें कोई बुराई नहीं। तब उसे लेखक ने अपने उत्तर में बताया कि हिंदी ब्लाग जगत में भी एक महिला लेखिका हैं जो इस विषय पर लिखती हैं। उन महिला टिप्पणीकार को यह भी बताया वह ब्लाग लेखिका न केवल ज्योतिष की जानकारी हैं बल्कि अन्य विषयों पर भी लिखती है। साथ में उनके ‘जागरुकता अभियान’ को पूरा समर्थन देने का वादा भी किया।
उन्होंने फिर आभार जताते हुए ईमेल से जवाब दिया। तभी हिंदी फोरमों पर लेखक की नजर में आया कि हिंदी ब्लाग जगत की उन प्रसिद्ध महिला ब्लाग लेखिका का एक पाठ इसी विषय पर लिखा गया है जिसमें ज्योतिष के नाम पर अंधविश्वास फैलाने का विरोध किया गया है। तक इस लेखक ने उस महिला को उस पाठ का लिंक भेजते हुए लिखा कि वह इसे पढ़ें।
उस समय लेखक यह आशा कर रहा था कि ज्योतिष की जानकार दो प्रतिष्ठत लेखिकाओं-उन टिप्पणीकार महिला ने एक किताब भी लिखी है- के आपसी संपर्क होंगे और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह आगे किस तरह अपने अभियान को बढ़ाती हैं। यह लेखक ज्योतिष के मामले में कोरा है पर उसमें दिलचस्पी अवश्य है और इसी की वजह से दोनों महिलाओं के आपसी संपर्क हों इस उम्मीद में यह सब किया।

बाद में उस टिप्पणीकार का जवाब आया कि वह उस महिला ब्लाग लेखक की ज्योतिष संबंधी विषयों पर लिखे गये विचारों ं से सहमत नहीं है। अब आगे करने क्या किया जाये? उनकी बात से यह नहीं लगा कि वह उन महिला ब्लाग लेखिका से आगे संपर्क रखने के मूड में हैं। फिलहाल यह मामला विचाराधीन रख दिया। आप किसी से सहमत हों इसलिये ही संपर्क करना इस लेखक को जरूरी नहीं लगता। अगर आप असहमत हैं तब भी अपने हमख्याल व्यक्ति से संपर्क करना चाहिये ताकि उस विषय पर अपना ज्ञान बढ़ सके और हम जान सकें कि हमारे विचारों से भी कोई असहमत हो सकता है? मगर हरेक का अलग अलग विचार है। किसी पर कोई आक्षेप करना ठीक नहीं।

मन में आया कि उन महिला टिप्पणीकार से कहें कि आप भी अपना ब्लाग लिखें पर लगा कि वह तो किताब लिख चुकी हैं और यहां ब्लाग लेखक अपनी किताबें प्रकाशित होने के आमंत्रण की प्रतीक्षा कर रहे हैं ऐसे में उनको यह सुझाव देना अपनी अज्ञानता प्रदर्शित करना होगा। इसके अलावा उनकी बातों से लगा कि वह अपने जागरुकता अभियान के प्रति गंभीर है। वह हमारे अध्यात्मिक ब्लाग/पत्रिकाओं में दिलचस्पी संभवतः इसलिये लेती लगती हैं क्योंकि उनके लगता है कि उसमें लिखे गये पाठ उनके ही विचारों का प्रतिबिंब हैं। आगे जब संपर्क बढ़ेगा तो यह आग्रह अवश्य करेंगे कि वह भी अपना ब्लाग बनायें। अध्ययनशील, मननशील और कर्मशील स्वतंत्र लोग जब आगे आकर हिंदी में ब्लाग लिखेंगे तभी चेतना का संचार देश में होगा। जिस तरह लोग हिंदी ब्लाग जगत में रुचि ले रहे हैं उससे यही आभास मिलता है।

बहरहाल ज्योतिष का विषय हमेशा ही इस देश में विवादास्पद रहा है। कुछ लोग सहमत होते हैं तो कुछ नहीं। यह लेखक इस विषय पर विश्वास और अविश्वास दोनों से परे रहा है। एक प्रश्न जो हमेशा दिमाग में आता रहा है कि क्या खगोल शास्त्र और ज्योतिष में क्या कोई अंतर नहीं है। हमारे पंचागों में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण का समय और दिन कैसे निकाला जाता है? यह हमें भी पता नहीं पर इतना तय है कि इसके पीछे कोई न कोई विद्या है और उसे जानने वाले विद्वान हमारे देश में हैं जिनको उसके लिये पश्चिम से किसी प्रकार का ज्ञान उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ती। फिर उसमें तमाम राशियों के लिये भविष्यफल भी होता है। हमने यह भी देखा कि कुछ भविष्यवाणियां सत्य भी निकलती हैं तो कुछ नहीं भी। सबसे बड़ी चीज है कि हमारे यहां गर्मी, सदी और बरसात के लिये जो माह निर्धारित हैं उन्हीं महीनों में होती है। इस विद्या को किससे जोड़ा जाना चाहिये-खगोल शास्त्र से ज्योतिष शास्त्र से।
इधर कोई ब्लाग लेखकों का महासम्मेलन हो रहा है। उसमें इस लेखक को भी आमंत्रण भेजा गया। वहां जाना नहीं हो पायेगा पर वहां शामिल होने वाले लोगों के लिये शुभकामनायें। हां, एक महिला ब्लाग लेखिका ने अपने ब्लाग पर लिखे पाठ में शिकायत की उसने उस ब्लाग पर अपनी सहमति जताते हुए टिप्पणी लिखी थी जिसमें उस महासम्मेलन के लिये सभी को आमंत्रित किया गया पर उसकी टिप्पणी को उड़ा कर ईमेल भेजा गया और कहा गया कि ‘आपको तथा आपकी सहेलियों को आमंत्रण नहीं है।’
दोनों प्रसंग एक ही दिन सामने थे। हमने सोचा कि ज्योतिषविर्द ब्लाग लेखिका और टिप्पणीकार के बीच संपर्क कायम हो जाये फिर इन ब्लाग लेखकों और लेखिकाओं के बीच समझौते के लिये आग्रह करते हैं। आज जब ज्योतिषविद् महिला टिप्पणीकार से यह उत्साहहीन जवाब मिला तो फिर हमने दूसरा कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया।
यह सब अजीब लगता है। ब्लाग लेखकों और टिप्पणीकारों के बीच एक ऐसा रिश्ता है जिसकी अनुभूति बाहर नहीं की जा सकती। मैं उन ज्योतिषविद् महिला टिप्पणीकार और प्रसिद्ध ब्लाग लेखिका के बीच संपर्क होते देखना चाहता था पर नहीं हुआ। सभी यहीं खत्म नहीं होने वाला है। जैसे जैसे हिंदी ब्लाग जगत आगे बढ़ता जायेगा वैसे वैसे ही इस तरह की छोटी छोटी घटनायें भी जब पाठों में आयेंगी तो लोग रुचि से पढ़ेंगे और शायद कुछ लोगों को मजा नहीं आये। हां, वैसे इनका मजा तभी तक है जब तक मर्यादा के साथ उन पर पाठा लिखा जाये। अश्लीलता या अपमान से भरे शब्द न केवल पाठ का मूलस्वरूप नष्ट करते हैं बल्कि पाठक पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं।
इधर ब्लाग पर नियंत्रण को लेकर अनेक तरह के भय व्यक्त किये जा रहे हैं पर यह भ्रम है। दरअसल उन्ही ब्लाग लेखकों पर परेशानी आ रही है जो दूसरों के लिये अपशब्द लिखते हैं। सच बात तो यह है कि आप किसी की वैचारिक, रणनीतिक, या कार्यप्रणाली को लेकर आलोचना कर सकते हैं पर अपशब्द के प्रयोग की आलोचना कानून नहीं देता भले ही ब्लाग के लिये अलग से कानून नहीं बना हो। भंडास निकलने के लिये क्या साहित्यक भाषा नहीं है जो अपशब्दों का प्रयोग किया जाये। इसलिये अंतर्जाल पर लिखने वाले लेखकों इस बात से विचलित नहीं होना चाहिये। इसकी बजाय किसी की आलोचना या विरोधी के लिये शालीन भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।
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टिप्पणियाँ

  • ajit gupta  On 31/03/2009 at 2:33 पूर्वाह्न

    भाषा तो हमेशा ही मर्यादित होनी चाहिए। मनुष्‍य का मन बहुत संवेदनशील होता है। कभी हम ऐसा नहीं लिखना चाहते फिर भी किसी को बुरा लग जाता है तो जो लोग किसी के मन को दुखाने के लिए ही लिखते हैं वे तो अमानवीय कृत्‍य जैसा है। साहित्‍य हमें परस्‍पर प्रेम सिखाता है, लोक जीवन का व्‍यवहार सिखाता है। आपने अच्‍छा विषय उठाया है आपको बधाई।

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